Chandranandini - 7 in Hindi Adventure Stories by Uday Veer books and stories PDF | चंद्रनंदिनी - भाग 7

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चंद्रनंदिनी - भाग 7

सुबह का समय है, मौसम सुहावना है, चिड़ियां चहचहा रही है, महाराज रूद्र प्रताप सिंह के माथे पर चिंता की लकीरें साफ साफ दिखाई दे रही है, देखने पर लगता है, कि रात भर सोए नहीं हैं....

तभी राजगुरु का आगमन होता है...

रुद्र प्रताप सिंह :- प्रणाम गुरु जी।

राज गुरु :- क्या बात है महाराज? आप बड़े चिंतित नजर आ रहे हैं....

रुद्र प्रताप सिंह :- आप तो जानते हैं गुरुदेव, वीर प्रताप सिंह का अभी तक कोई पता नहीं चला है, हमारे सारे गुप्तचर लौट कर वापस आ गए।

राज गुरु :- महाराज, जहां तक हम कर सकते हैं, हमने कोई कसर नहीं छोड़ी है वीर सिंह को खोजने में, आगे परमात्मा को क्या मंजूर है ये तो वही जाने।


तभी किसी दासी का आगमन होता है....

दासी :- महाराज, महारानी जी की तबीयत खराब है, आपको चलना होगा।

महाराज और गुरु जी दोनों ही महल में प्रवेश करते हैं, महाराज महारानी के कक्ष में पहुंचते हैं तो महारानी बेसुध अवस्था में होती है, महाराज सेवक को राजवैद्य को बुला लाने का आदेश देते हैं....

राजवैद्य आकर जांच पड़ताल करते हैं, और बताते हैं:-

राजवैद्य:- महाराज घबराने की कोई बात नहीं है, हमने दवाइयां दे दी है, जल्दी ही महारानी ठीक हो जाएंगी, और एक खुशखबरी है, राज महल में जल्द ही एक युवराज आने वाला है।

(महाराज को खुशी तो बहुत होती है, लेकिन छोटे भाई की खोज खबर ने उन्हें कुछ ज्यादा ही विचलित कर दिया है)


यह बात थोड़े ही समय में पूरे राज्य में हवा की तरह फैल जाती है, सारे राज्य वासियों में खुशी की लहर दौड़ जाती है, लेकिन जैसे ही महारानी की बहनों के कानों में यह खबर पहुंचती है, दोनों को बहुत ही ईर्ष्या होने लगती है, और बहुत खुश भी होती हैं, आखिर वह खुश हो भी क्यों ना, वह वक्त आ गया, जिसका उन्हें न जाने कितने लंबे समय से इंतजार था।


दिन गुजरे हफ्ते और महीने गुजरे और वह दिन भी आ गया, जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार था, महारानी को संतान पैदा होने वाली है, ऐसे में महाराज को लगा की महारानी की बहने साथ होंगी तो महारानी को किसी तरह की जरूरत होने पर मदद करेंगी, और यह अच्छा भी होगा, क्योंकि ऐसे वक्त में अपनों का साथ जरूरी होता है।

महारानी की बहनों को तो इसी बात का इंतजार था, वह हमेशा से ही अपनी छोटी बहन यानि कि महारानी को नीचा दिखाने के मौके की तलाश में रहती थी, और आज उन्हें वह मौका मिल गया।

जब महारानी बच्चे को जन्म देती है, तो बेहोशी की हालत में होती हैं, महारानी एक सुंदर युवराज को जन्म देती हैं, और यही वक्त होता है, कि जब महारानी की बहने उनके खिलाफ साजिश रचती हैं, महारानी की बहनें शिशु को उठाकर महल के पीछे वहने वाली राप्ती में प्रवाहित कर देती हैं, और महारानी के पास मरा हुआ बिल्ली का बच्चा रख देती हैं, और महारानी को जब होश आता है, तो वह अपने पास मरा हुआ बिल्ली का बच्चा देखकर, फिर से बेहोश हो जाती है।

जल्द ही यह बात पूरे राज्य में फैल जाती है, कि महारानी ने मरे हुए बिल्ली के बच्चों को जन्म दिया है, महाराज रुद्र प्रताप सिंह भाई के लिए पहले से ही परेशान होते हैं, जब यह खबर उन्हें मिलती है, तो उन्हें बड़ा ही दुख होता है, लेकिन कर्मों की लिखी मानकर खुद को संभाल लेते हैं.....


लेकिन लोगों को भला कौन रोक सकता है, हजार लोग तो हजार तरह की बातें लोग कहते हैं, कोई कहता है, कि महारानी बदनसीब है, कोई कहता है, महारानी बदनसीबी लेकर आई है, जब से आई है मुसीबत शुरू हो गई है, कोई कहता है, कि महारानी शापित है, और ना जाने क्या-क्या.....


समय तेजी से गुजरता है, दिन, महीने, साल और फिर महारानी के गर्भ में बच्चे का आगमन होता है, और सही समय पर सब कुछ होता है, राज्य के सभी लोग दुआएं करते हैं, कि परमात्मा हमारे राज्य को युवराज दे, महाराज दिन-रात परमात्मा से दुआएं लगाते रहते हैं, महारानी भी हमेशा ही भगवान से दुआ करती हैं, कि उन्हें सुंदर और बहादुर बेटा हो।

और जल्द ही वह दिन भी आ जाता है, पिछली बार की तरह इस बार भी महारानी की बहने महारानी के साथ होती हैं, महारानी फिर एक सुंदर से युवराज को जन्म देती हैं, और महारानी की बहने पहले की भांति ही शिशु को राप्ति की धारा में प्रवाहित कर देती हैं, और महारानी के पास मरे हुए चूहे को रख देती हैं, महारानी को जब होश आता है, तो वह मरे हुए चुहो को देखके पागल सी हो जाती हैं।

सारे राज्य में फिर से खबर फैल जाती है, कि महारानी ने चूहों को जन्म दिया है, लोग उन्हें चुड़ैल और डायन तक कहते हैं।

महाराज किसी तरह खुद को तो संभाल लेते हैं, लेकिन महारानी के प्रति उनका लगाव बहुत कम हो जाता है, महारानी इस सब का दोषी खुद को मानती हैं......


और इस सबसे महारानी की बहनें बहुत ही खुश होती है यही तो चाहती हैं, और ईर्ष्या में इस कदर अंधी हो जाती हैं, और यह तक भूल जाती हैं कि महारानी छोटी बहन है उनकी, कभी इतना प्यार करती थी, कि सुमार नहीं, और आज इतनी नफरत, वह भी सिर्फ इसलिए, क्योंकि छोटी बहन महारानी है और वह दोनों मामूली नौकरो की पत्नियां........


राप्ती नदी जो कि राजमहल के पीछे होकर निकलती है, शाही वागानो और शाही बगीचों से होकर जाती है......

महाराज रूद्र प्रताप के, शाही बगीचों का बागवान जो कि अपनी पत्नी के साथ रहता है, उसकी कोई संतान नहीं होती, दिन रात परमात्मा से प्रार्थना करता है, कि उसके घर में भी एक संतान हो, और प्रार्थना करते करते उसकी उम्र 55 साल होने को आई, लेकिन उम्मीद अभी भी बाकी है।


सुबह के समय बागवान नहाने के लिए राप्ती नदी के किनारे आता है, और नहाकर राप्ती के किनारे बने मंदिर में पूजा करके वापस जाने की तैयारी करता है, तभी किसी बच्चे की रोने की आवाज उसके कानों में पड़ती है, वागवान दौड़ते हुए राप्ती के किनारे आता है तो देखता है, कि एक छोटा बालक एक छोटी टोकरी में बहता हुआ आ रहा है, बागवान बच्चे को उठाता है, और भागते हुए अपनी पत्नी के पास आता है....

वागवान:- अरे सुनो भग्यवान परमात्मा ने हमारी सुन ली........

बागबान की पत्नी काम में व्यस्त होती है, लेकिन बच्चे की रोने की आवाज से उसका ध्यान पति की तरफ जाता है, तो फौरन दौड़ती हुई आती है

वागवान की पत्नी:- किसका बच्चा लाये हो, कितनी बार बोला है लोगों को परेशान मत किया करो।

और बच्चे पर नजर जाते ही कहती है…….

वागवान की पत्नी:- कितना प्यारा बच्चा है काश भगवान हमारी भी सुन ले…..

बागवान उसे सारी बात बताता है तो पत्नी खुश हो जाती है......

वागवान:- भगवान ने आज हमारी सुन ली, वह सच में बड़ा दयालु है।


बच्चे की आंखें सूर्य की तरह सुनहरी होकर चमकती है और चेहरे पर सूर्य का तेज होता है, तो बागवान उसका नाम सूर्यांश रख देता है, और बच्चा बागवान के घर में पलने लगता है।


ठीक 1 साल बाद बागवान को सुबह में फिर किसी बच्चे की रोने की आवाज राप्ती के नारे सुनाई देती है, और बागवान के घर में एक और शिशु आता है, बिल्कुल पहले शिशु की तरह, फर्क सिर्फ इतना होता है, कि सूर्यांश में सूर्य की चमक होती है और इस बच्चे के माथे पर चंद्रमा का निशान बना होता है, और चेहरे पर चंद्रमा की चमक होती है, बच्चा गोद में आते ही मुस्कुराने लगता है, वागवान उसका नाम चंद्रांश रखता है, अब दोनों भाई एक ही जगह पर पलने और बड़े होने लगते हैं, बागबान इन सब बातों से अनजान होता है कि ये दोनों कौन है, और कहां से आए हैं, वह तो उन्हें अपने बच्चों की तरह प्यार से पालता है।


धीरे-धीरे समय व्यतीत होने लगा, एक बार फिर महारानी के गर्भ में शिशु का आगमन हुआ, महारानी हर वक्त परमात्मा से प्रार्थना करती है, परमात्मा मेरे साथ कैसा अन्याय किया है तूने कि मैं मां बन कर भी मां न बन सकी, आखिर ऐसा क्या पाप किया है मैंने, हे परमात्मा अगर मुझसे कोई पाप हुआ है, तो मैं हर सजा के लिए तैयार हूं, लेकिन एक बार तो मुझे किसी बच्चे का चेहरा दिखा दे जो मुझे मां कहे ताकि मुझ पर लगे जमाने भर के कलंक दूर हो सकें, मैं नहीं कहती कि मुझे युवराज दे, मैं बेटे की मांग नहीं करती, कम से कम बेटी का ही चेहरा दिखा दे, बेशक मैंने जमाने के पाप किये हों, लेकिन तू इतना निर्दई कैसे हो सकता है कि एक लाचार की बेबसी को ना समझ सके।

महाराज रुद्र प्रताप सिंह को भी कहीं ना कहीं उम्मीद थी, कि हो ना हो इस बार बच्चे की किलकारियां गूंजेंगी राजमहल में।


धीरे-धीरे करके दिन महीने गुजर गए और फिर वही वक्त लौट के आ गया, महारानी बच्चे को जन्म देने वाली हैं, और दोनों बहने उसके साथ है।........

इस बार महारानी ने एक खूबसूरत सी कन्या को जन्म दिया है, नीली नीली आंखें चेहरे पर चमक...........

बड़ी बहन:- क्यों ना इस लड़की को छुपा लिया जाए, अपने घर पालन किया जाए, और वक्त आने पर इस राज्य के सिंहासन पर हमारा अधिकार होगा, क्योंकि अगर महारानी की कोई संतान ना होगी तो फिर हमारी ही संतान को राज सिंहासन पर बैठाया जाएगा, क्योंकि हम महारानी की बहनें जो हैं......

मझली बहन:- अगर किसी को भनक भी लग गई, तो हम दोनों को फांसी हो जाएगी, और तो और हमारे पति खुद हमारा सर काट देंगे...

और यही सोचकर लड़की को भी राप्ती नदी की लहरों के हवाले कर दिया जाता है, और महारानी के पास एक बकरे के मांस का टुकड़ा रख दिया जाता है, और सबको बताया जाता है, की महारानी के गर्भ से कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई, उनके गर्भ से सिर्फ मांस का एक टुकड़ा निकला है.....


महाराज के सब्र का बांध टूट जाता है, वे महारानी को ही दोषी मानकर महल से निष्कासित कर देते हैं, महारानी परमात्मा के नाम की दुहाई देती है, लेकिन रूद्र प्रताप सिंह पर कोई असर नहीं होता है, गम और दुखों में इतनी डूब जाते हैं, इतना भी नहीं समझ पाते कि महारानी इस हालत में अकेली जाएगी कहाँ........


राज महल में हर तरफ मनहूशियत छा जाती है, जिस राजमहल में कभी खुशियां नाचती थी, आज उस महल में शमशान की सी शांति मालूम होती है, महाराज की हालत बद से बदतर हो जाती है, सारा राज काज ठप हो जाता है, राजगुरु राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले लेते हैं ताकि कोई हमारी कमजोरी का फायदा न उठा सके।


महारानी दर-दर की ठोकरें खाती हुई राज्य के बाहर आ जाती है, और एक पुरानी टूटी फूटी झोपड़ी के पास आकर बैठ जाती है, और अपने भाग्य पर रोती हैं, तभी उस झोपड़ी के अंदर से एक बुढ़िया निकल कर आती है और पूछती है:-

बूढी औरत:- बेटी तुम क्यों रो रही हो, आखिर तुम्हें क्या परेशानी है

महारानी अपनी आपबीती सुनाती हैं, तो वह बूढ़ी औरत महारानी को अपनी झोपड़ी के अंदर ले जाती है, और उन्हें पानी पिलाती है तथा खाने को भोजन देती है, वह बूढ़ी औरत अपनी बेटी की तरह महारानी का ख्याल रखती है, और अपने साथ ही रखती है कहीं जाने नहीं देती, महारानी भी वहां पर चुपचाप रहने लगती है.........

बूढी औरत:- बेटी अभी सही वक्त नहीं है, समय की धारा हर वक्त एक तरफ ही नहीं बहती, वक्त आयेगा जब इस राज्य को फिर से तुम्हारी जरूरत पडेगी, जब तुम्हारे बच्चे लौट आयेंगे...........

महारानी:- (रोते हुए) मां मैं वो अभागिन हूँ, जो मां बनकर भी मां नहीं हूँ, मेरा कोई बच्चा नहीं है।

बूढी औरत:- बेटी वक्त कब और क्या मोड लेकर आये जीवन में कोई नहीं जानता......


राप्ती नदी में आज फिर एक टोकरी में एक बच्चा बहता हुआ आता है, बागवान मंदिर में पूजा करके वापिस जाने की तैयारी करता है, तभी उसे बच्चे की रोने की आवाज कानों में सुनाई देती है, बागबान दौड़ा दौड़ा राप्ति के किनारे आता है, और देखता है, की टोकरी में आज एक बच्चा फिर बहता हुआ आ रहा है, बागवान उसे जल्दी से निकालता है और दौड़ता हुआ अपनी पत्नी के पास जाता है........

वागवान:- एक वक्त था जब हम संतान के लिए भगवान के आगे दुआएं मांगते थे, हमारे पास एक भी संतान न थी, और आज भगवान ने हमें तीन तीन संताने दे दीं, देखो आज भगवान ने हमारे घर में लक्ष्मी भेजी है, बच्ची की आंखें नीली होती है, और चेहरे पर गजब की चमक होती है उसके माथे पर भी चांद की तरह........

बागबान की पत्नी कहती है:- लड़की का नाम मैं रखूंगी, उसका नाम नंदिनी होगा .......

बागवान:- भाग्यवान इसका चेहरा किसी चांद की भांति चमक रहा है, तो आज से इसका नाम चंद्रनंदिनी होगा....


क्रमश...........