O Mere Humsafar - 25 in Hindi Drama by NEELOMA books and stories PDF | ओ मेरे हमसफर - 25

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ओ मेरे हमसफर - 25

(दो साल बाद प्रिया भीम रियल एस्टेट में असफल कर्मचारी साबित हो रही है। जुनैजा उसे निकालने ही वाला था कि अचानक नए सीनियर मैनेजर तरुण खन्ना आते हैं और सभी को ट्रेनिंग व नौकरी की गारंटी देते हैं। इसी बीच वे कंपनी का नया ट्रेनर बुलाते हैं—कुणाल राठौड़। प्रिया उसे देखकर सन्न रह जाती है, जबकि कुणाल की आँखों में सवाल और दर्द है। दोनों की मुलाक़ात में अतीत की टीस साफ़ झलकती है। प्रिया घबराकर बचने की कोशिश करती है, पर कुणाल उसे सीधे काम के बहाने टकराव में खींच लेता है। अब उनका रिश्ता नए इम्तिहान से गुज़रने वाला है। अब आगे)

साजिश और प्यार 

आसमान पर अंधेरा गहराने लगा था, पर भीम रियल एस्टेट के ऑफिस के बाहर एक और अंधेरा उतर चुका था —दिलों का, इरादों का, और बदले का।

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प्रिया जब बाहर निकली, कदम तेज़ थे, लेकिन दिल की धड़कनें कँपकँपाहट में बदल चुकी थीं। पीछे से एक तीखी आवाज़ आई — "सबसे वीक छात्र सबसे पहले निकल रही है?"

प्रिया वही जमी की जमी रह गई।

कुणाल, दरवाज़े से टिके हुए एक शिकार को देखते हुए शिकारी की तरह बोला।

प्रिया ने पलटकर धीरे लेकिन गुस्से में कहा — "तुम यहां मेरे ऑफिस में क्यों हो? तरुण से कहकर जानबूझकर वो पेपर्स साइन करवाए ताकि मैं ये जॉब छोड़ ही न सकूं?"

कुणाल हँसा, लेकिन उसकी आँखों में दर्द और गुस्सा एक साथ चमक रहा था। "सच में मेरी स्टूडेंट बन चुकी हो, इतनी जल्दी मेरी चाल समझ गई। पर क्या करूँ प्रिया?

मेरी मैना उड़ती बहुत है — इसलिए उसे बांधना ज़रूरी था।"

"और ये नया लुक...छोटे बाल, ढीला सलवार सूट, चश्मा

खूबसूरत हो गई हो।" अगर कहो तो इसी वक्त भाग चलें... शादी करने?"

प्रिया ने एक बार भी उसे नहीं देखा — बस बाहर निकल गई।

"एक मिनट!" कुणाल की आवाज़ तेज़ से गूंजी।

प्रिया ठिठकी — पर बिना मुड़े।

कुणाल उसके सामने आकर खड़ा हो गया। "मैंने थोड़ी देर पहले जो कहा, फिर कह रहा हूं। मेरे पास लौट आओ। वरना..."

"वरना क्या करोगे?" अब की बार प्रिया की आँखों में सालों की पीड़ा और घृणा थी।

कुणाल मुस्कुराया —"जब मैं तुमसे प्यार नहीं करता था, तब भी तुम्हें दूर जाने दिया। अब तो मैं..."

"कुछ मत कहो।" प्रिया ने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा। "सब जा चुके हैं। क्या अब मैं जा सकती हूं?"

कुणाल ने अपनी मुस्कान में साजिश छिपाते हुए पलकें झपका दीं — "हाँ" और प्रिया वहाँ से निकल गई।

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पर युद्ध यहीं से शुरू हुआ।

कुणाल की मुस्कान अब चुप्पी में बदल चुकी थी।

उसने फोन उठाया — "मिस्टर सक्सेना?"

"जी सर।"

"नैनीताल की एक कंपनी है — 'भीमा रियल एस्टेट' खरीद लो उसे। किसी भी कीमत पर।"

फोन काटते हुए उसने कहा — "अब जो होगा, उसके लिए तुम खुद जिम्मेदार हो, प्रिया डोगरा।"

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प्रिया जब घर पहुँची, आसमान में साँझ गहराने लगी थी

पर दिल में अजीब सी घबराहट थी — जैसे किसी अज्ञात आंधी के आने की आहट।

मुड़कर देखा… कोई नहीं था। पर कदमों की आहट, जैसे हवा में भी पीछा कर रही हो। वह भागते हुए दरवाज़े के भीतर आई — और सामने एक बिलकुल ही सामान्य दृश्य था।

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टीवी पर चल रही थी एक पुरानी हिंदी फिल्म। कुमुद और वैभव हँसते हुए सीन देख रहे थे।

कुमुद मुस्कुराकर बोली — "आ जा बैठ, बहुत अच्छी मूवी है।

मैं तेरे लिए चाय लाती हूं।"

प्रिया कुछ पल देखती रही, फिर वैभव से पूछा — "पापा, आज आप घर पर हैं?"

वैभव: "हाँ, आज पुलिस ने हमारी दुकान पर अवैध निर्माण का नोटिस चिपका दिया। आज दुकान नहीं खोली सकते।"

यह सुनकर प्रिया की आंखें भीग गईं। "पापा, एक वक्त था जब आपकी अपनी बहुत बड़ी कंपनी थी, सब कुछ था हमारे पास —और आज…" "…यह सब कुछ — सिर्फ कुणाल की वजह से। उसने हमें बर्बाद कर दिया।"

वैभव ने टीवी की आवाज धीमी कर दी।"आज अचानक उसका जिक्र क्यों, बेटा?"

प्रिया फूट पड़ी। "आपने इतनी मेहनत से जो कुछ भी बनाया था, वह सब खत्म हो गया। दीदी को आदित्य जैसे दरिंदे के चुंगल में फंसे गयी —IAS एग्जाम में भी फेल हो गईं। माँ… माँ जो कभी रानी की तरह रहती थीं, अब खुद झाड़ू पोछा करती हैं। घर का काम वह अकेली करती है। यह सब मेरी वजह से है। मैंने कुणाल से प्यार किया — यह मेरी सबसे बड़ी भूल थी।"

कुमुद ने पास आकर उसे गले लगा लिया।

वैभव ने गंभीरता से कहा: "बेटा! कौन कैसा होता है? हमें नहीं पता होता और तूने तो मुझे मना किया था कि कुणाल से कोई फाइनेंशियल रिलेशन न रखूं, मैंने रखा, यह मेरी गलती थी। यह भी सच है कि रिया की शादी हमने तेरे वजह से करवाई, यह हमारी गलती थी कि हमने आदित्य की छानबीन नहीं की और आदित्य की सच्चाई पता चलते ही तूने ही रिया को आदित्य से बचाया।""

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प्रिया बस कुमुद की गोद में सिर रखकर आँसू बहाती रही।

पर मन में एक ही बात थी — "इस बार तूफ़ान आया तो है…

लेकिन इस बार मैं अपने परिवार को कुणाल से बचाकर रहूंगी। ईश्वर! मेरी रक्षा करना।"

कुमुद ने माथा चूमते हुए कहा — "जा, आराम कर… मैं चाय और नाश्ता वहीं लाती हूं।"

प्रिया धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर बढ़ गई।

-......

सुबह का शांत सा दृश्य।

प्रिया अपने कमरे में अकेले बैठी थी। खिड़की से आती हल्की धूप उसके चेहरे को छू रही थी।

फोन पर छुट्टी की मेल डाली और बैड पर सुस्त हो बैठ गई।

तभी वैभव कमरे में दाखिल हुए — "आज काम में नहीं जाना?"

प्रिया ने फोन छुपाने की कोशिश नहीं की,

साफ़ नजर आया कि छुट्टी की मेल भेजी जा चुकी है।

"तबीयत खराब है तुम्हारी?" वैभव ने पूछा।

प्रिया ने धीरे से कहा — "नहीं, पर आज जाने का मन नहीं है…"

वैभव मुस्कुराए, "ठीक है, चल आराम कर। थोड़ी देर में नीचे आकर नाश्ता कर लेना।"

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जैसे ही वैभव कमरे से निकले, प्रिया ने एक पुराना बक्सा निकाला।

उसमें रखी थी… सगाई की वही अंगूठी।

प्रिया ने उसे पलकों से लगाया… फिर खुद से कहा — "यह वापस करनी होगी… ताकि वह कोई उम्मीद न रखे मुझसे।"

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किचन में कुमुद: "तू खाना खा, मैं तेरे पापा को दुकान में खाना देकर आती हूं।"

प्रिया ने तुरंत कहा — "दोनों चलते हैं। आज हम दुकान में ही खाना खा लेते हैं।"

कुमुद थोड़ा चौंकी —"तेरी तबीयत?"

"ठीक हूं।" 

(फोन को वह कमरे में छोड़ देती है। असल में वह ऑफिस से दूरी चाहती थी।)

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दुकान में:

वैभव और कुमुद बैठकर खा रहे थे

और प्रिया ग्राहकों को सामान दे रही थी।

वैभव बोले — "याद है, हमारी बिजनेस की शुरुआत ऐसे ही हुई थी?" "बच्चे हाथ बंटाते थे..."

कुमुद हँसते हुए प्रिया को देखती है — "हाथ? कहां जी! हाथ तो सिर्फ रिया बंटाती थी, प्रिया जी तो बस तोड़फोड़ मचाती थीं।"

दोनो हँस पड़ते हैं।

प्रिया चिढ़ती है — "मम्मी!"

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तभी वैभव का फोन बजता है।

स्क्रीन पर “तमन्ना कॉलिंग…”

"हां प्रिया यही है…" और प्रिया को फोन थमा देते हैं।

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 प्रिया:"हैलो?"

 तमन्ना (चीखती हुई):"कहां है तू?"

"मैं… दुकान पर। क्या हुआ?"

 "बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है… अभी के अभी ऑफिस आ।"

"पर मेरी तबीयत… " (प्रिया बहाना बनाने लगती है)

 "बहाने मत बना। बहुत बुरी खबर है। वरना…"

 "वरना क्या? हैलो? हैलो?"

लाइन कट जाती है।

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कैमरा प्रिया के चेहरे पर फोकस करता है —

चेहरा डर, संदेह और बेचैनी से भरा हुआ।

उसकी उंगलियाँ कसकर बक्सा थामे हैं जिसमें अंगूठी रखी है।

...

1. क्या तमन्ना की कॉल वाकई किसी हादसे की चेतावनी है या यह कुणाल की शातिर चाल का हिस्सा है?

2. क्या प्रिया अंगूठी लौटाकर सचमुच अपने अतीत के बंधन से मुक्त हो जाएगी, या कुणाल फिर से उसकी ज़िंदगी में तूफ़ान खड़ा कर देगा?

3. क्या वैभव अपनी टूटी पहचान और खोया सम्मान वापस पा सकेगा?

जानने के लिए पढ़ते रहिए "ओ मेरे हमसफर''.