पार्ट–8
पार्क में साये का सच
सुबह के नौ बजने ही वाले थे। कॉलोनी का बड़ा पार्क, जो आमतौर पर बच्चों की क्रिकेट और बुजुर्गों की टहलने की जगह हुआ करता था, आज एक सभा स्थल में बदल गया था।
हर गली से लोग वहाँ पहुँच रहे थे। किसी के हाथ में मोबाइल, किसी के हाथ में पानी की बोतल, और किसी के मन में सिर्फ एक सवाल—
“आज झग्गू जी कौन सा बम फोड़ेंगे?”
बुजुर्ग आगे की बेंच पर बैठ गए, आंटियाँ गोल घेरा बनाकर खुसुर-फुसुर करने लगीं। लड़के झुंड में खड़े मोबाइल ऑन करके लाइव करने की तैयारी करने लगे। यहाँ तक कि पप्पू नाई भी अपनी दुकान आधी खुली छोड़कर आ पहुँचा।
झग्गू जी मंच जैसे बने पार्क के छोटे चबूतरे पर खड़े थे। उनके हाथ में माइक था
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झग्गू जी का आगाज़
“कॉलोनी वासियों!” झग्गू ने गहरी आवाज़ में कहना शुरू किया।
“कल रात मैंने आपसे वादा किया था कि ‘साये’ का सच मैं आप सबके सामने रखूँगा। आज वही घड़ी आ गई है। CCTV फुटेज आपने देखा, चर्चा आपने की, अफवाहें आपने उड़ाईं… लेकिन असली कहानी किसी ने नहीं जानी।”
भीड़ में खुसुर-फुसुर तेज़ हो गई।
“तो आइए,” झग्गू ने हाथ उठाया, “मिलिए उस शख्स से, जो CCTV फुटेज में दिखा था।”
झग्गू ने पीछे इशारा किया। धीरे-धीरे एक दुबला-पतला आदमी आगे आया। उसके चेहरे पर थकान, आँखों में उदासी, और कदमों में झिझक थी।
भीड़ का शोर
भीड़ देखते ही गरज उठी।
“अरे ये तो वही है!”
“मोहतरमा का कॉलेज वाला फ्रेंड है ना?”
“रात-बिरात घर क्यों आया था?”
“इसी ने मोहतरमा की इज़्ज़त खराब की।”
आंटियाँ हाथ हिलाकर ताने मारने लगीं।
मास्टरजी तक ने चश्मा ठीक करते हुए कहा—
“ये सही नहीं है। शादीशुदा औरत के घर देर रात जाना गलत है।”
कुछ लड़के सीटी बजाते हुए बोले—
“पकड़ लिया गया साया! अब तो बताओ असली माजरा क्या है।”
उस आदमी का सिर झुका हुआ था। शब्द गले में अटक रहे थे।
झग्गू जी का हस्तक्षेप
झग्गू ने माइक पर जोर से कहा—
“रुकिए दोस्तों! पहले मेरी बात सुन लीजिए। आप सब उसे दोषी मान रहे हैं, लेकिन सच इससे बिल्कुल अलग है।”
भीड़ धीरे-धीरे शांत हुई। सबकी नज़रें अब झग्गू और उस शख्स पर टिक गईं।
झग्गू बोले—
“हाँ, ये मोहतरमा का कॉलेज वाला मित्र है। लेकिन इसका वहाँ जाने का मकसद वैसा नहीं था जैसा आप सब सोच रहे हैं।”
सच्चाई का खुलासा
झग्गू ने उस व्यक्ति की ओर इशारा किया।
“बताइए, आप क्यों गए थे?”
कांपती आवाज़ में उसने कहना शुरू किया—
“मेरा नाम अजय है। मैं सचमुच मोहतरमा का पुराना कॉलेज फ्रेंड हूँ। मैंने किसी की इज़्ज़त खराब करने की कोशिश नहीं की। मैं तो मजबूरी में उनके पास गया था।”
भीड़ सन्न हो गई।
“मेरी छोटी बेटी बहुत बीमार है। डॉक्टर ने तुरंत ऑपरेशन कराने को कहा है। खर्च इतना बड़ा है कि मैं अकेला पूरा नहीं कर पा रहा। मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन कोई सहारा नहीं मिला। तभी मुझे याद आया कि मोहतरमा मेरी पुरानी दोस्त हैं, शायद कुछ मदद कर सकें। इसलिए रात को ही उनसे मिलने चला गया।”
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
“कसम खुदा की, मेरा इरादा बस मदद माँगने का था। लेकिन CCTV ने मुझे चोर, समाज ने मुझे गुनहगार बना दिया।”
भीड़ की खामोशी
पार्क में गहरी चुप्पी छा गई।
जो आंटियाँ अभी तक ताने दे रही थीं, वे गीली आँखों से एक-दूसरे को देखने लगीं।
मास्टरजी का चेहरा गंभीर हो गया।
लड़के भी हँसी भूलकर मोबाइल नीचे कर लिए।
अजय ने सिर झुका लिया—" मैंने इज़्ज़त नहीं छीनी, बस मदद माँगने आया था। अगर ये भी गुनाह है तो मुझे सज़ा दे दीजिए।”
मानवता की जीत
भीड़ में से अचानक पप्पू नाई आगे आया।
“भैया, गुनाह तो हम सबका है। हमने बिना जाने तुम्हें कटघरे में खड़ा कर दिया।”
फिर उसने जेब से कुछ नोट निकाले और अजय की हथेली पर रख दिए।
“ये मेरी तरफ़ से, बेटी के लिए।”
माहौल बदल गया।
आंटी ने अपने पर्स से पैसे निकाले।
मास्टरजी ने पेंशन से बचाए रुपये थमाए।
लड़कों ने जेबखर्च से इकट्ठा रकम आगे बढ़ाई।
कुछ ही देर में कॉलोनी के लोग मिलकर एक छोटी-सी थैली भर चुके थे—रुपयों से, दुआओं से, इंसानियत से।
मोहतरमा, जो अब तक खामोश थीं, आगे आईं।
“अजय, मेरे पास ऐसे समय पर आए इनकी मजबूरी थी और उसी समय हमारे पास भी इतनी बड़ी रकम नही थी... लेकिन उस वक़्त मुझे और अजय को नहीं पता था ऐसे इनका आना इतनी बड़ी मुसीबत ख़डी कर देगा... लेकिन आज हमने सबक सीखा है। इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।”
झग्गू जी का समापन
झग्गू ने माइक उठाया और आखिरी बार बोला—
“दोस्तों, मैंने अपना पत्रकार होने का पूरा दायित्व निभाया लेकिन अफवाहें इंसान की इज़्ज़त को मिटा सकती हैं, वही सच्चाई और मानवता उसे फिर से खड़ा कर सकती है। FB न्यूज़ का मकसद तमाशा नहीं, सच्चाई दिखाना है। और आज की सच्चाई ये है कि
जब हम सब मिलकर किसी की मदद करते हैं, तभी असली समाज बनता है।”
भीड़ ताली बजाने लगी। किसी की आँखों में नमी थी, किसी के चेहरे पर राहत।
उस दिन कॉलोनी ने एक नया सबक सीखा।
किसी को बिना जाने दोषी न ठहराना, और जरूरतमंद की मदद करना ही असली इंसानियत है। साया भले ही CCTV में कैद हो गया था, लेकिन असली उजाला तो लोगों के दिलों में जल उठा था। ध्यान रखें अफवाहें बाँटती हैं, लेकिन इंसानियत जोड़ती है। कॉलोनी का असली चेहरा वही है, जहाँ सब मिलकर एक-दूसरे का सहारा बनते हैं।”
सब आपने अपने ठिकाने को जाने लगे थे तभी पप्पू नाई ने झग्गू पत्रकार से होले से पूछा... "वो गार्डन वाला लफंगा का कब पर्दा फास होगा?"
झग्गू पत्रकार- बहुत जल्द ही.
क्रमशः