Sikko ka Rahashy - 2 in Hindi Thriller by Arsh Saifi books and stories PDF | सिक्कों का रहस्य - 2

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सिक्कों का रहस्य - 2

सुबह के ७:३० बजे थे, और आगरा का आसमान धुंध से भरा था। यमुना नदी के किनारे ताजमहल की सफेद मीनारें धीरे-धीरे सूरज की रोशनी में चमक रही थीं। लेकिन इस खूबसूरत नज़ारे के नीचे एक भयानक हकीकत छिपी थी। ताजमहल के पीछे, एक सुनसान गली में, जहाँ पर्यटक कम ही आते थे, एक और लाश पड़ी थी। और उस लाश के पास वही खौफनाक निशान – एक ‘एम’, खून से लिखा हुआ, और एक छोटी-सी शीशे की बोतल, जिसमें १५ एक रुपये के सिक्के चमक रहे थे।
विक्रम राठौर की जीप आगरा के संकरी सड़कों से गुजर रही थी। दिल्ली से आगरा तक का सफ़र चार घंटे का था, लेकिन विक्रम ने इसे तीन घंटे में पूरा किया था। उसका दिमाग उस फोन कॉल में अटका था जो डॉ. अंजलि मेहरा ने सुबह ६ बजे किया था। “विक्रम, ये वही है। सिक्का किलर। लेकिन इस बार... कुछ और भी है।” अंजलि की आवाज़ में एक अजीब-सी बेचैनी थी, जो विक्रम को और परेशान कर रही थी।
जीप ताजमहल के पास रुकी। वहाँ पहले से ही स्थानीय पुलिस की गाड़ियाँ खड़ी थीं, और एक छोटा-सा क्राउड जमा था – कुछ स्थानीय लोग, कुछ पत्रकार, और कुछ टूरिस्ट जो गलती से इस गली में भटक आए थे। विक्रम ने अपनी जीप से उतरते ही अपनी सीबीआई की बैज निकाली और उसे अपनी जैकेट पर लगाया। कॉन्स्टेबल रवि शर्मा, जो उसके साथ आया था, अभी भी उस लाश के बारे में सोचकर घबराया हुआ था।
“सर, ये किलर इतनी जल्दी कैसे?” रवि ने पूछा, उसकी आवाज़ में डर और हैरानी थी। “कल रात दिल्ली में, और अब आगरा? ये तो... इंसान से ज़्यादा मशीन लगता है।”
विक्रम ने रवि की तरफ देखा, उसकी आँखों में एक ठंडी-सी सख्ती थी। “मशीन नहीं, रवि। ये एक इंसान है। और इंसान थकता है, गलतियाँ करता है। हमें बस उसकी एक गलती ढूँढनी है।”
विक्रम क्राइम सीन की तरफ बढ़ा। फॉरेंसिक की टीम पहले से ही वहाँ थी, और डॉ. अंजलि मेहरा एक बार फिर टेंट के नीचे खड़ी थी, अपने नोट्स में कुछ लिख रही थी। उसने विक्रम को देखा और एक थकी हुई मुस्कान दी। “तुम जल्दी आए, विक्रम। मैंने सोचा था तुम्हें दिल्ली से यहाँ पहुँचने में और वक्त लगेगा।”
“जब किलर इतनी तेजी से मूव करता है, तो हमें भी तेज होना पड़ता है,” विक्रम ने कहा, अपनी सिगरेट जलाते हुए। “क्या मिला?”
अंजलि ने एक गहरी साँस ली और लाश की तरफ इशारा किया। वहाँ एक औरत पड़ी थी, उम्र शायद ३४-३५ साल, उसका चेहरा वैसा ही पीला और ठंडा, जैसा दिल्ली में शालिनी गुप्ता का था। उसकी गर्दन पर गहरे निशान थे, जैसे किसी ने रस्सी से गला घोंट दिया हो। लेकिन उसकी आँखें... वो खुली थीं, और उनमें एक अजीब-सा डर जमा हुआ था।
“विक्टिम का नाम राधिका मेहता,” अंजलि ने कहा। “३५ साल, आगरा में एक आर्ट गैलरी की क्यूरेटर थी। सिंगल, अकेले रहती थी। कल रात १० बजे तक वो अपनी गैलरी में थी। उसके बाद... कोई नहीं जानता वो यहाँ कैसे पहुँची।”
विक्रम ने लाश के पास बैठकर उस ‘एम’ को ध्यान से देखा। ये पिछले निशानों से थोड़ा अलग था – खून से लिखा हुआ, लेकिन किनारे थोड़े धुंधले थे, जैसे किलर ने जल्दबाज़ी में लिखा हो। फिर उसने बोतल उठाई। १५ सिक्के, हर बार की तरह। लेकिन इस बार बोतल के नीचे एक छोटा-सा कागज़ चिपका हुआ था। उसपर लिखा था: “समय खत्म हो रहा है, इंस्पेक्टर।”
विक्रम का दिल ज़ोर से धड़का। “ये... ये मुझसे बात कर रहा है,” उसने धीरे से कहा।
अंजलि ने उसकी तरफ देखा। “क्या मतलब?”
“ये नोट,” विक्रम ने कहा, अपनी आवाज़ को शांत रखते हुए। “पहले केसेज में ऐसा कुछ नहीं था। दिल्ली में भी एक नोट था – ‘तुम मुझे नहीं रोक सकते।’ और अब ये। ये किलर जानता है कि मैं इस केस पर हूँ।”
अंजलि ने एक पल के लिए चुप्पी साध ली। “तो ये अब पर्सनल हो गया है, विक्रम। तुम्हें सावधान रहना होगा।”

विक्रम ने क्राइम सीन को और ध्यान से देखा। ताजमहल की दीवारों के साये में, ये जगह एक अजीब-सी खामोशी लिए हुए थी। स्थानीय पुलिस ने इलाके को सील कर दिया था, लेकिन पत्रकारों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। एक न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर चिल्ला रहा था, “सिक्का किलर ने फिर मारा! क्या सीबीआई इसे रोक पाएगी?”
विक्रम ने रवि की तरफ देखा। “इन पत्रकारों को यहाँ से हटाओ। और हाँ, आसपास के सारे सीसीटीवी फुटेज इकट्ठे करो। इस गली में कोई ना कोई कैमरा तो होगा।”
रवि ने सिर हिलाया और स्थानीय पुलिस के साथ काम शुरू कर दिया। विक्रम ने अंजलि से पूछा, “कुछ और मिला? कोई फिंगरप्रिंट? कोई ट्रेस?”
“नहीं,” अंजलि ने निराशा से कहा। “ये किलर हर बार की तरह साफ काम करता है। कोई फिंगरप्रिंट, कोई डीएनए। लेकिन...” उसने एक पल रुककर कहा, “इस बार कुछ अलग है। राधिका की जेब में एक छोटा-सा पेंडेंट मिला।”
अंजलि ने एक एविडेंस बैग निकाला, जिसमें एक चाँदी का पेंडेंट था। उसपर एक छोटा-सा ‘एम’ उकेरा हुआ था, लेकिन ये खून का नहीं था – ये पहले से बना हुआ था, जैसे कोई ज्वेलरी हो।
विक्रम ने पेंडेंट को ध्यान से देखा। “ये क्या है? कोई साइन? या कोई मैसेज?”
“पता नहीं,” अंजलि ने कहा। “लेकिन ये पहली बार है जब किलर ने कुछ ऐसा छोड़ा जो खून से लिखा हुआ नहीं है। शायद ये उसकी गलती है।”
विक्रम ने पेंडेंट को बैग में वापस रखा। “या शायद ये उसका अगला कदम है।”

विक्रम और रवि राधिका मेहता के घर पहुँचे, जो ताजमहल से कुछ किलोमीटर दूर, एक शांत और पॉश मोहल्ले में था। राधिका का फ्लैट छोटा लेकिन स्टाइलिश था, दीवारों पर आर्ट पीसेस और किताबों की अलमारियाँ भरी हुई थीं। लेकिन घर में एक अजीब-सी खामोशी थी, जैसे वो अपने मालिक की मौत को पहले से जानता हो।
विक्रम ने घर का मुआयना शुरू किया। राधिका की टेबल पर कुछ कागज़ात बिखरे हुए थे – आर्ट गैलरी के इनवॉइस, कुछ स्केच, और एक डायरी। विक्रम ने डायरी खोली। उसमें राधिका की हैंडराइटिंग में कुछ नोट्स थे। एक पेज पर लिखा था: “वो फिर आया। मुझे लगता है वो मुझे फॉलो कर रहा है।”
विक्रम की भवें सिकुड़ गईं। “ये क्या है?” उसने रवि को दिखाया। “राधिका को किसी के बारे में शक था।”
रवि ने डायरी पढ़ी और घबराते हुए कहा, “सर, क्या इसका मतलब है कि किलर उसे पहले से टारगेट कर रहा था?”
“शायद,” विक्रम ने कहा। “लेकिन सवाल ये है कि क्यों? राधिका का इस किलर से क्या कनेक्शन था?”
विक्रम ने डायरी को एविडेंस बैग में डाला और रवि से कहा, “राधिका की गैलरी जाओ। वहाँ के स्टाफ से बात करो। कोई भी जो उसे हाल में मिला हो, उसकी डिटेल चाहिए।”

शाम के ५ बजे थे जब विक्रम सीबीआई की अस्थायी ऑफिस में वापस पहुँचा, जो आगरा में एक छोटे-से पुलिस स्टेशन में सेट की गई थी। वहाँ नेहा वर्मा, उसकी जूनियर, पहले से ही लैपटॉप पर कुछ डेटा चेक कर रही थी।
“सर, कुछ मिला,” नेहा ने उत्साह से कहा। “राधिका के फोन रिकॉर्ड्स में वही नंबर मिला जो दिल्ली में शालिनी के फोन में था। प्रीपेड सिम, जो कल रात ९ बजे एक्टिव हुआ और फिर बंद हो गया। लेकिन इस बार हमें लोकेशन मिली – ये नंबर ताजमहल के पास एक टावर से कनेक्ट था।”
विक्रम की आँखें चमक उठीं। “तो किलर यहाँ था। और शायद अभी भी है।”
नेहा ने एक और फाइल खोली। “और सर, वो पेंडेंट। हमने उसकी डिटेल्स चेक की। ये एक कस्टम-मेड पीस है, जो आगरा की एक ज्वेलरी शॉप से बनवाया गया था। शॉप का नाम ‘मोहन ज्वेलर्स’ है। राधिका ने इसे तीन हफ्ते पहले ऑर्डर किया था।”
विक्रम ने एक पल के लिए सोचा। “राधिका ने खुद ये पेंडेंट बनवाया? ‘एम’ के साथ? ये तो और सवाल खड़े करता है।”
“हाँ,” नेहा ने कहा। “या तो राधिका इस किलर को जानती थी, या फिर... वो खुद इस ‘एम’ से कनेक्टेड थी।”

रात के ८ बजे, विक्रम और रवि ‘मोहन ज्वेलर्स’ के सामने खड़े थे। दुकान बंद थी, लेकिन दुकान के मालिक, मोहन लाल, को पुलिस ने बुला लिया था। मोहन एक ५० साल का आदमी था, जिसके चेहरे पर घबराहट साफ दिख रही थी।
“साहब, मैंने तो बस ऑर्डर लिया था,” मोहन ने कहा। “राधिका मैडम ने कहा कि उन्हें एक पेंडेंट चाहिए, जिसपर ‘एम’ लिखा हो। मैंने पूछा भी कि ‘एम’ का क्या मतलब है, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बताया।”
“क्या उन्होंने कोई और डिटेल दी?” विक्रम ने पूछा। “कोई और आदमी उनके साथ था? कोई कॉल?”
मोहन ने सिर हिलाया। “नहीं साहब। वो अकेली थीं। लेकिन...” उसने एक पल रुका। “उन्होंने कहा था कि ये पेंडेंट किसी खास इंसान के लिए है।”
विक्रम का दिमाग तेजी से चल रहा था। राधिका का किलर से कनेक्शन? या ये किलर का कोई नया गेम था? उसने मोहन को जाने दिया और रवि से कहा, “इस दुकान के सीसीटीवी फुटेज चेक करो। और हाँ, राधिका की गैलरी के स्टाफ से मिली कोई जानकारी हो, तो तुरंत बताओ।”
उसी रात, जब विक्रम अपनी जीप में बैठा था, उसका फोन बजा। अंजलि थी। “विक्रम, तुम्हें अभी आगरा पुलिस स्टेशन आना होगा।”
“क्या हुआ?” विक्रम ने पूछा, उसकी आवाज़ में बेचैनी थी।
“एक और नोट मिला,” अंजलि ने कहा। “राधिका की लाश के पास, एक पत्थर के नीचे छिपा हुआ। उसपर लिखा है: ‘अगला नंबर तुम्हारा है, इंस्पेक्टर।’”
विक्रम का खून ठंडा हो गया। ये किलर अब सिर्फ़ हत्या नहीं कर रहा था। वो विक्रम को टारगेट कर रहा था।