आगरा की रात ठंडी थी, और पुलिस स्टेशन के बाहर सन्नाटा पसरा था। विक्रम राठौर स्टेशन के एक छोटे-से कमरे में बैठा था, सामने मेज पर राधिका मेहता की फाइल खुली हुई थी। उसका दिमाग उस नोट पर अटक गया था: “अगला नंबर तुम्हारा है, इंस्पेक्टर।” ये किलर अब सिर्फ़ हत्याएँ नहीं कर रहा था। वो विक्रम को चुनौती दे रहा था। वो उसे अपने खेल में खींच रहा था।
विक्रम ने अपनी सिगरेट जलाई और धुएँ का एक लंबा कश लिया। कमरे की मद्धम रोशनी में उसका चेहरा और सख्त लग रहा था, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब-सी बेचैनी थी। छह महीने पहले जब उसे ये केस सौंपा गया था, तब उसने सोचा था कि ये एक और क्रिमिनल है, जिसे वो पकड़ लेगा। लेकिन अब, हर नई लाश के साथ, उसे लग रहा था कि ये किलर कोई साधारण अपराधी नहीं है। ये कोई ऐसा शख्स था, जो हर कदम पर सोचता था, प्लान करता था, और सबसे बड़ी बात – जो विक्रम को जानता था।
कमरे का दरवाज़ा खुला, और सब-इंस्पेक्टर नेहा वर्मा अंदर आई। उसके हाथ में एक फाइल थी, और चेहरे पर चिंता की लकीरें। “सर, आपको ये देखना होगा,” उसने कहा, फाइल मेज पर रखते हुए। “राधिका की गैलरी के सीसीटीवी फुटेज से कुछ मिला है।”
विक्रम ने सिगरेट को ऐशट्रे में दबाया और फाइल खोली। उसमें कुछ तस्वीरें थीं – राधिका की आर्ट गैलरी के बाहर की सीसीटीवी तस्वीरें। एक तस्वीर में राधिका दिख रही थी, रात के ९:३० बजे, गैलरी से बाहर निकलते हुए। उसके पीछे एक आदमी था, सिर पर हुड, चेहरा छुपा हुआ। वो इतनी दूर था कि उसका चेहरा साफ नहीं दिख रहा था, लेकिन उसके हाथ में कुछ चमक रहा था – शायद एक चाकू।
“ये कौन है?” विक्रम ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक ठंडी-सी सख्ती थी।
“पता नहीं, सर,” नेहा ने कहा। “फुटेज में वो सिर्फ़ दो सेकंड के लिए दिखा। इसके बाद वो गायब हो गया। लेकिन...” उसने एक पल रुका। “गैलरी के स्टाफ ने बताया कि राधिका पिछले कुछ हफ्तों से परेशान थी। उसने कहा था कि उसे लग रहा है कोई उसे फॉलो कर रहा है।”
विक्रम की आँखें सिकुड़ गईं। “वही बात जो उसकी डायरी में लिखी थी। ‘वो फिर आया। मुझे लगता है वो मुझे फॉलो कर रहा है।’”
नेहा ने सिर हिलाया। “और सर, वो पेंडेंट। मोहन ज्वेलर्स ने कन्फर्म किया कि राधिका ने खुद उसे ऑर्डर किया था। लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि राधिका ने फोन पर किसी से बात की थी जब वो पेंडेंट का डिज़ाइन फाइनल कर रही थी। मोहन ने सुना कि वो किसी ‘एम’ को मेंशन कर रही थी।”
विक्रम ने एक गहरी साँस ली। “तो राधिका इस किलर को जानती थी। या कम से कम, उसे ‘एम’ के बारे में कुछ पता था।”
“लेकिन सर,” नेहा ने कहा, “अगर राधिका को शक था कि कोई उसे फॉलो कर रहा है, तो उसने पुलिस को क्यों नहीं बताया?”
“शायद वो डर रही थी,” विक्रम ने कहा। “या शायद... वो इस किलर को प्रोटेक्ट कर रही थी।”
नेहा की आँखें चौड़ी हो गईं। “प्रोटेक्ट? मतलब?”
विक्रम ने जवाब नहीं दिया। उसका दिमाग तेजी से चल रहा था। ये ‘एम’, ये सिक्के, ये नोट्स – सब कुछ एक पहेली का हिस्सा था। और अब, किलर ने उसे सीधे टारगेट किया था।
सुबह १० बजे, विक्रम और रवि आगरा की संकरी गलियों में मोहन ज्वेलर्स के पास पहुँचे। दुकान खुल चुकी थी, और मोहन लाल, दुकान का मालिक, उनके लिए सीसीटीवी फुटेज तैयार रखे था। विक्रम ने फुटेज को ध्यान से देखा। उसमें राधिका दिख रही थी, तीन हफ्ते पहले की तारीख, जब वो पेंडेंट का ऑर्डर देने आई थी। वो अकेली थी, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब-सी बेचैनी थी। वो बार-बार अपने फोन को चेक कर रही थी, जैसे किसी का इंतज़ार कर रही हो।
“क्या उसने कुछ और कहा था?” विक्रम ने मोहन से पूछा।
मोहन ने सिर हिलाया। “नहीं साहब। बस इतना कहा कि ये पेंडेंट बहुत खास है। और हाँ, उन्होंने जल्दी डिलिवरी के लिए ज़ोर दिया था। कहा था कि ये किसी के लिए गिफ्ट है।”
विक्रम ने फुटेज को फिर से देखा। राधिका के पीछे कोई नहीं था, लेकिन दुकान के बाहर एक साये-सा कुछ दिखा, जो एक पल के लिए कैमरे में आया और फिर गायब हो गया। “ये वही आदमी हो सकता है,” विक्रम ने रवि से कहा। “हुड वाला।”
रवि ने घबराते हुए कहा, “सर, ये किलर हर बार इतना सावधान कैसे रहता है? कोई फिंगरप्रिंट, कोई चेहरा, कुछ नहीं।”
“वो सावधान है, लेकिन वो इंसान है,” विक्रम ने कहा। “और इंसान गलतियाँ करता है। ये पेंडेंट उसकी गलती हो सकती है।”
विक्रम ने मोहन से दुकान के बाहर की और फुटेज माँगी, और फिर रवि को कहा, “राधिका की गैलरी के स्टाफ से और डिटेल्स निकालो। कोई ऐसा शख्स जो उसे हाल में मिला हो। कोई भी क्लू छोड़ना नहीं है।”
दोपहर के २ बजे, विक्रम राधिका की आर्ट गैलरी पहुँचा। गैलरी एक पुरानी हवेली में बनी थी, जिसकी दीवारें पुरानी पेंटिंग्स और मूर्तियों से सजी थीं। गैलरी का मैनेजर, एक ४० साल का आदमी जिसका नाम अखिलेश था, विक्रम से मिलने आया। उसका चेहरा उदास था, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब-सा डर था।
“राधिका मैडम बहुत अच्छी थीं,” अखिलेश ने कहा। “वो हमेशा सबसे प्यार से बात करती थीं। लेकिन पिछले कुछ हफ्तों से वो... बदली हुई थीं।”
“बदली हुई कैसे?” विक्रम ने पूछा।
“वो अक्सर फोन पर किसी से बात करती थीं,” अखिलेश ने कहा। “और हर बार बात करने के बाद वो परेशान हो जाती थीं। एक बार मैंने सुना, वो किसी से कह रही थीं, ‘मुझे अकेला छोड़ दो, मैंने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा।’”
विक्रम की भवें सिकुड़ गईं। “क्या तुमने कभी उस शख्स को देखा? जिससे वो बात करती थीं?”
अखिलेश ने सिर हिलाया। “नहीं साहब। लेकिन एक बार, शायद दो हफ्ते पहले, एक आदमी गैलरी में आया था। उसने हुड पहना था, और उसने राधिका मैडम से अकेले में बात की। मैडम उससे मिलने के बाद बहुत घबराई हुई थीं।”
विक्रम ने अपनी नोटबुक में लिखा। “उस आदमी का कोई नाम? कुछ और डिटेल?”
“नहीं,” अखिलेश ने कहा। “लेकिन उसने मैडम को एक लेटर दिया था। मैडम ने उसे अपने डेस्क में रखा था।”
विक्रम ने तुरंत राधिका के ऑफिस की तलाशी शुरू की। डेस्क के एक दराज में, एक लिफाफा मिला। उसपर कोई नाम नहीं था, लेकिन अंदर एक कागज़ था, जिसपर लिखा था: “तुम मेरे बिना अधूरी हो। ‘एम’ तुम्हें पूरा करेगा।”
विक्रम का दिल ज़ोर से धड़का। ये किलर का मैसेज था। लेकिन ये राधिका को पहले से क्यों मिला था? क्या राधिका इस किलर से पहले से जुड़ी थी?
शाम के ६ बजे, विक्रम वापस पुलिस स्टेशन पहुँचा। वहाँ डॉ. अंजलि मेहरा उसका इंतज़ार कर रही थी। उसके हाथ में एक और एविडेंस बैग था। “विक्रम, ये राधिका की लाश के पास मिला,” उसने कहा। “पहले हमें नहीं दिखा, लेकिन जब हमने क्राइम सीन दोबारा चेक किया, तो ये एक पत्थर के नीचे दबा हुआ था।”
बैग में एक छोटा-सा लकड़ी का डिब्बा था। विक्रम ने उसे खोला। अंदर एक और सिक्का था – लेकिन इस बार ये एक रुपये का नहीं था। ये एक पुराना, तांबे का सिक्का था, जिसपर ‘१९७५’ लिखा था। और उसके साथ एक और नोट: “तुम मेरे करीब आ रहे हो, इंस्पेक्टर। लेकिन क्या तुम तैयार हो?”
विक्रम की साँस रुक गई। “ये... ये क्या है? पुराना सिक्का? १९७५?”
अंजलि ने कहा, “हम इसे लैब में चेक कर रहे हैं। लेकिन विक्रम, ये किलर अब तुम्हें सीधे चैलेंज कर रहा है। ये सिक्का, ये नोट – ये सब तुम्हारे लिए है।”
विक्रम ने सिक्के को ध्यान से देखा। उसका दिमाग तेजी से चल रहा था। “१९७५... ये कोई तारीख हो सकती है। या कोई कोड।”
“या शायद ये किलर का जन्म साल,” अंजलि ने कहा। “लेकिन हमें और डिटेल्स चाहिए।”
विक्रम ने सिक्के को बैग में वापस रखा। “नेहा को बोलो, इस सिक्के की हिस्ट्री चेक करे। और हाँ, राधिका के फोन रिकॉर्ड्स और उस प्रीपेड नंबर को ट्रैक करने में और तेजी लाओ।”
रात के १० बजे, विक्रम अपनी जीप में अकेले बैठा था। आगरा की सड़कें अब खाली थीं, और ताजमहल की मीनारें चाँद की रोशनी में चमक रही थीं। लेकिन विक्रम का दिमाग उस चमक में नहीं, बल्कि उस अंधेरे में था जो ‘सिक्का किलर’ छोड़ रहा था।
उसका फोन बजा। एक अननोन नंबर। विक्रम ने कॉल उठाई, लेकिन दूसरी तरफ कोई आवाज़ नहीं थी। सिर्फ़ एक हल्की-सी साँस की आवाज़, जैसे कोई उसे सुन रहा हो।
“कौन है?” विक्रम ने सख्त आवाज़ में पूछा।
कुछ सेकंड की खामोशी के बाद, एक ठंडी, धीमी आवाज़ आई। “तुम अच्छा खेल रहे हो, इंस्पेक्टर। लेकिन खेल अभी शुरू हुआ है।”
विक्रम का खून ठंडा हो गया। “तुम कौन हो? और ये ‘एम’ क्या है?”
हँसी की एक हल्की-सी आवाज़ आई। “सब्र, इंस्पेक्टर। सब्र। अगला कदम जल्दी आएगा।”
कॉल कट गई। विक्रम ने फोन को गुस्से से मेज पर पटका। ये किलर अब सिर्फ़ उसका पीछा नहीं कर रहा था। वो उसका शिकार बनाना चाहता था।