लघु उपन्यास यशस्विनी: अध्याय 16: हर अन्याय का
कर प्रतिरोध, अबला नहीं तू सबला है
अपने संदेश में यशस्विनी ने साधकों से कहा कि वे केवल योग साधक नहीं हैं। आवश्यकता होने पर उन्हें समाज की सेवा के लिए सार्वजनिक सेवा और सार्वजनिक क्षेत्र में भी उतरना होगा और लोगों की सहायता भी करनी होगी। योग, प्राणायाम, ध्यान ये सब केवल वैयक्तिक साधना तक ही सीमित नहीं होने चाहिए। इनका सही उपयोग जनता जनार्दन की सेवा में ही होना चाहिए।
अपने उद्बोधन में रोहित ने साधकों से कहा कि लोग प्राचीन भारतीय विज्ञान की शिक्षा पाने वालों को ज्ञान विज्ञान में प्रायः पिछड़ा समझ लेते हैं। आप साधकों को इस धारणा को तोड़ना होगा और तकनीक के इस्तेमाल में भी हाईटेक होना होगा। लेकिन हां, हम अपनी जड़ें न भूलें। हम आत्ममुग्ध न रहें इसलिए पश्चिम की अच्छी चीजों को ग्रहण करें लेकिन हमारी भारतीय सभ्यता की गहरे तक जमी जड़ों को काटने की कोशिश न करें क्योंकि हम,हमारी पहचान, हमारी जड़ें इसी मिट्टी में हैं……
सभी साधकों को प्रमाण पत्र और स्मृति चिन्ह भी दिया गया। सब ने यह संकल्प लिया कि योग साधक के रूप में वे समाज और राष्ट्र की सेवा करते रहेंगे और आवश्यकता होने पर श्री कृष्ण प्रेमालय के सार्थक कार्यक्रमों में योगदान भी करेंगे। …...या तो यहां आकर या अपनी जगह में रहते हुए…..
देखते ही देखते 50 साधकों से भरा पूरा पंडाल खाली हो गया। थोड़ी देर के लिए यशस्विनी और रोहित भी भावुक हो गए…. लेकिन अगले ही पल वे सचेत हो गए कि आगे भी अनेक बैचेज़ आएंगे और हमारा उद्देश्य भारत के हर गांव और हर घर तक योग की अलख को जगाना है…. बिना किसी स्वार्थ के…..।
यह संयोग था कि योग सत्र की शुरुआत वाले दिन से ही मीरा के कॉलेज की छुट्टियां थीं। उसने मेडिकल स्टोर से भी छुट्टी ले ली थी। अब योग शिविर समाप्ति के अगले ही दिन से उसे अपने कॉलेज में पढ़ाई के लिए वापस लौटना था और साथ ही मेडिकल स्टोर के पार्ट टाइम जॉब को भी फिर शुरू करना था। घर पहुंचते ही उसने यशस्विनी द्वारा भेजी गई सहायिका को विशेष धन्यवाद दिया। माता-पिता को देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए लेकिन वे जानते थे कि बेटी एक बड़े उद्देश्य को लेकर देश के सर्वश्रेष्ठ योग प्रशिक्षक से योग सीखने के लिए गई है और इसमें न सिर्फ उसका, बल्कि उसके पूरे परिवार का कल्याण है।बेटी से लिपटकर मां-बाप भी फूट-फूट कर रोने लगे।
अगले दिन मेडिकल स्टोर से घर लौटते समय किसी कारणवश गार्ड भैया उसके साथ नहीं आ पाया और मीरा को लाइन ऑटो पकड़ कर अपने मोहल्ले लौटना पड़ा। वैसे अगर गार्ड व्यस्त न होते, तब भी वह उन्हें मना कर देती क्योंकि योग प्रशिक्षण और मार्शल आर्ट सीखने के बाद उसके आत्मविश्वास में अत्यंत वृद्धि हुई थी। गांधी चौराहे पर मीरा के मोहल्ले की ऑटो रिक्शा स्टॉपेज है और यहां से उसे पैदल ही घर जाना होता है। बीच में एक मैदान है,जहाँ दिनभर तो चहल पहल रहती है लेकिन रात में 9:00 के बाद वहां खामोशी छा जाती है। कुछ झाड़ियां और झुरमुट भी हैं। यहां अंधेरे और सुनसान का लाभ उठाकर एक दो अवांछित लोग भी कभी-कभी खड़े दिखाई देते हैं।मीरा को आज भी मैदान के दूसरे छोर पर एक-दो ऐसे ही लोग दिखाई पड़े। किसी टकराव और असहज स्थिति से बचने के लिए मीरा तेजी से कदम बढ़ाती हुई इस मैदान के कोने से होकर अपने मोहल्ले की पहली गली की ओर लपकी।
उसने पीछे मुड़कर देखा कोई नहीं आ रहा था तो उसकी चाल थोड़ी धीमी हो गई, लेकिन 10 सेकेंड के अंदर उसने अपने पीछे किसी की उपस्थिति का अनुभव किया। वह तुरंत झुक गई।दो लड़के उसके पीछे थे और उन्होंने एक डंडे से उसके सिर पर प्रहार करने की कोशिश की।मीरा साफ बच गई। इस प्रयास में वो जमीन पर गिर पड़ी और दोनों उस पर टूट पड़े। अचानक हुए हमले से मीरा संभल नहीं पाई। मीरा को जबरदस्ती उठाकर वे दोनों झाड़ियों की ओर ले गए।झाड़ियों के पीछे पहुंचते-पहुंचते मीरा उनकी पकड़ से छूट गई और उछलकर खड़ी हो गई। एक के हाथ में डंडा था और दूसरे के हाथ में लंबा चाकू। दोनों मीरा की ओर बढ़े…….
योग शिविर समाप्ति के 3 दिनों बाद यशस्विनी ने अखबार में एक लड़की का साहसिक कारनामा पढ़ा।…...पार्ट टाइम जॉब से घर लौटते समय एक कॉलेज छात्रा का अपहरण कर एक सूने मैदान में ले जाने वाले दोनों अपहरणकर्ताओं द्वारा अनाचार की कोशिश को उस साहसी लड़की ने विफल कर दिया। मार्शल आर्ट प्रशिक्षित उस लड़की द्वारा शरीर के अज्ञात स्थलों पर प्रहार से वे दोनों लफंगे बुरी तरह घायल हो गए हैं। अभी तक वे दोनों अस्पताल में बेसुध पड़े हैं…..
समाचार पढ़कर यशस्विनी मुस्कुरा उठी।उसने स्थान आदि का विवरण पढ़कर अनुमान लगा लिया कि वह साहसी लड़की मीरा ही है।उसके होठों से अनायास निकला:- वेल्डन मीरा... आई एम प्राउड ऑफ यू।"
यशस्विनी के कार्यों में से एक काउंसलिंग भी है। विशेष रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं या अन्य परीक्षा की तैयारियों के दौरान मानसिक रूप से किसी उलझन या कठिनाई का सामना करने वालों के लिए शनिवार की शाम को दो घंटे के परामर्श सत्र का आयोजन किया जाता है।
आज के परामर्श सत्र में मीरा को देखकर यशस्विनी प्रसन्न हो गई। उसने मीरा को गले लगा लिया।
" बधाई हो मीरा तूने बहुत बड़ा काम किया है।मुझे तुम पर गर्व है।"
" धन्यवाद दीदी, यह आप ही के प्रशिक्षण और आप ही की प्रेरणा का कमाल था।"
" इसमें मेरा कुछ नहीं है यह तो संकल्प शक्ति का चमत्कार है। क्या नहीं है तुम्हारे शरीर और तुम्हारे मन के संकल्प के भीतर….. बस इच्छा कर लो और प्राण प्रण से उसे पूरा करने में जुट जाओ तो दुनिया की कोई ताकत तुम्हें अपनी मंजिल को प्राप्त करने से नहीं रोक सकती है। यही हाल आत्मरक्षा का भी है।'' यशस्विनी ने कहा।
"आपकी बात सही है दीदी, लेकिन मैं कुछ प्रश्नों को लेकर आई हूं। मैं जानती हूं कि इनका समाधान बस आपके हाथ में है।"
" अच्छा पूछ मीरा, क्या जानना चाहती हो? मैं कोशिश करूंगी तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देने की।"
अपनी कुर्सी पर बैठी यशस्विनी मीरा की बातें ध्यान से सुनती रही और उसके प्रश्नों का उत्तर देती रही। मनकी इस बीच कॉफी का कप लेकर आई। दोनों की बातचीत जारी रही।
"दीदी, मैं उसी दिन की घटना से अपनी बात शुरू करना चाहती हूं।वे बदमाश छोटे हथियार से लैस थे,इसलिए मैंने उनका सामना किया और उन्हें ठिकाने लगा दिया, पर क्या मार्शल आर्ट हर स्थिति में हमारी रक्षा कर सकता है? योग और प्राणायाम क्या किसी बड़े संगठित हमले के समय भी काम आएंगे?"
(क्रमश:)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय