Gunahon Ki Saja - Part 17 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | गुनाहों की सजा - भाग 17

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गुनाहों की सजा - भाग 17

नताशा हैरान थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसने वरुण की तरफ़ देखते हुए कहा, "तुम मज़ाक कर रहे हो ना वरुण...? यह अचानक तुम्हें क्या हो गया है?"

तभी वरुण ने कहा, "मेरा बचपन का दोस्त तेजस यहाँ पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी कर रहा है। वह आईजी की रैंक का आदमी है। मुझे सिर्फ़ यह रिकॉर्डिंग उस तक पहुँचानी पड़ेगी। बस उतना ही काफ़ी होगा। हो सकता है फिर तुम्हारी भाभी माही और उसका परिवार भी तुम्हारे भाई रीतेश के खिलाफ गवाही दे दें। नताशा, तुम तलाक के विषय में मत सोचना वरना...!"

नताशा ने वरुण के हाथ से उसका मोबाइल छीनने की जैसे ही कोशिश की, वरुण ने उसकी चोटी पकड़कर खींचते हुए कहा, "नताशा, ऐसा सोचना भी मत। तुझे क्या लगता है मैंने इतना बड़ा सबूत केवल इस मोबाइल में ही रख छोड़ा है। अरे नहीं रे भोली, यह तो मैं मेरे दोस्त को कब का भेज चुका हूँ, पर जब तक मैं इशारा नहीं करूंगा, वह कुछ नहीं करेगा।"

नताशा के बाल ज़ोर से खिंच रहे थे। उसने कहा, "मेरे बाल छोड़ो वरुण, मुझे दर्द हो रहा है।"

"अरे मेरी जान, अभी तो सिर्फ़ बाल ही पकड़े हैं तो दर्द हो रहा है, हाथ तो उठाया ही नहीं है। तुम्हें यदि मेरे गुस्से से बचना है तो वापस चलते ही मकान की बात कर लेना, वरना मुझे केवल चोटी पकड़ना ही नहीं, चोटी उखाड़ना भी आता है।"

यह उनके हनीमून का पाँचवां और आखिरी दिन था। नताशा गुमसुम थी, उसे डर लग रहा था कि वह कैसे अपने पापा को यह सब बता पाएगी। उसे लग रहा था कि उसने इतनी जल्दी शादी का निर्णय लेकर बहुत ग़लत कर लिया है। वह वरुण को पहचान ही नहीं सकी और उससे गलती हो गई है, और ऐसी गलती जिसे अब सुधार पाना बहुत ही मुश्किल है। वरुण ऐसा निकलेगा, उसने नहीं सोचा था। वह बहुत उदास थी, मगर वरुण खुश था। उसे जैसी जगह की इच्छा थी, वैसी जगह उसे मुफ्त में मिल सकती है। यह सोचकर उसकी ख़ुशी और उत्साह दोनों ही चरम सीमा पर थे।

इस समय वरुण और नताशा के बीच लगभग ना के बराबर ही बातचीत हो रही थी। कुछ ही देर में नताशा सूटकेस तैयार करने के बाद जाने के लिए तैयार हो गई।

वरुण ने उसे देखकर कहा, "नताशा, यूँ मुंह फुलाने से कोई फायदा नहीं है। चलो, गाड़ी आ गई है, उसमें बैठो और घर जाकर जो काम करना है उसके बारे में सोचो। अरे, वह हमारा दोनों का बिज़नेस होगा, तुम्हें तो खुश होना चाहिए।"

नताशा ने रोते हुए कहा, "वरुण, अपने माँ-बाप और भाई को दुख देकर मैं खुश कैसे हो सकती हूँ। अरे, पर तुम क्या जानोगे इस बात को... तुम्हारा तो कोई परिवार ही नहीं है। अनाथ हो ना, इसलिए दर्द नहीं है। तुम क्या जानो परिवार क्या होता है। जिस दिन तुम मुझे पहली बार मिले थे, उस दिन को मैंने अपने जीवन का सबसे खूबसूरत दिन माना था। मुझे क्या मालूम था कि वह दिन मेरी ज़िंदगी का काला दिन बन जाएगा। तुमने तो मेरी ज़िंदगी ही बर्बाद कर दी। यदि मुझे तुम्हारी नीयत का पता होता, तो मैं हरगिज़ तुमसे शादी नहीं करती।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः