🥀अनाथ का दिल🥀अध्याय 1 : प्रेम का जन्मभाग 01 : अनाथालय की सुबह__________________________________________________________“वादल बेटा, आज फिर खिड़की से सूरज को देख रहे हो?”मथुरा के अनाथालय की अधीक्षिका सरला मैडम ने हल्के डपट भरे स्वर में पूछा। उनकी उम्र पचपन के आसपास रही होगी। चेहरे पर कठोरता की रेखाएँ थीं, लेकिन आँखों में किसी छिपे हुए दर्द और ममता की छाप भी झलकती थी।वादल खिड़की के चौखटे पर हाथ टिकाए खड़ा था। सूरज की पहली किरणें गली की धूल को भेदती हुई उसके चेहरे पर पड़ रही थीं। उसने मुस्कुराकर कहा—“मैडम, सूरज मुझे लगता है जैसे कोई कवि है। हर सुबह नई कविता लिखकर हमें सुनाता है। देखिए न, आज की कविता सुनहरी है... कल थोड़ी धुँधली थी।”सरला मैडम ठिठकीं। “बाकी बच्चे तो इस वक़्त सोते हैं, तू हर रोज़ यही करता है। तू हमेशा ख्वाबों और कविताओं में क्यों खोया रहता है?”वादल ने मासूम आँखों से देखा।“क्योंकि सपनों में मुझे माँ दिखती है, मैडम... कभी पिता भी। और कविताओं में... परिवार। जब मैं शब्दों को गाता हूँ तो लगता है जैसे कोई मुझे सुन रहा है।”सरला मैडम ने गहरी साँस ली। वह जानती थीं, यह लड़का बाकी बच्चों से बिल्कुल अलग है। अनाथालय के अधिकांश बच्चे चुपचाप, दबे-दबे रहते, लेकिन वादल... उसके भीतर जैसे कोई गुप्त नदी बहती थी—शब्दों और सुरों की नदी।---🌸 मथुरा का अनाथालय और वादल का बचपनयह अनाथालय यमुना किनारे बने पुराने हवेली-जैसे भवन में था। सफ़ेद झरझरी दीवारें, जिन पर जगह-जगह सीलन के धब्बे उभरे रहते। आँगन में पीपल का विशाल वृक्ष खड़ा था, जिसकी छाँव में बच्चे खेला करते। सुबह-सुबह मंदिरों की घंटियाँ और शंखनाद की ध्वनि यहाँ तक आ जाती।वादल का बचपन यहीं बीता था। किसकी संतान है, किस हाल में यहाँ लाया गया—यहाँ तक कि सरला मैडम को भी पूरी जानकारी न थी। बस इतना याद है कि कोई अजनबी रात के अँधेरे में उसे यहाँ छोड़ गया था। जब पहली बार मिला तो शायद छह माह का था।समय बीता और बच्चा बड़ा हुआ। बाकी बच्चों की तरह वह शरारती नहीं था। उसके हाथों में खड़िया मिलती तो वह फर्श पर तुकबंदियाँ लिखने लगता। उसके पास अगर कोई टूटे खिलौने आते तो वह उन्हें जोड़कर उनसे भी कहानी बना देता।कभी अकेले बैठा गुनगुनाता—“कौन सुनेगा मेरी धुन,कौन पढ़ेगा मेरी कविता...फिर भी मैं गाऊँगा, लिखूँगा,क्योंकि यही मेरा परिवार है।”अन्य बच्चे अकसर चिढ़ाते—“अरे, देखो कवि महाराज फिर शुरू हो गए!”“वादल, तू तो बड़ा होकर पागल बन जाएगा!”वादल बस मुस्कुरा देता। जवाब में कहता—“पागल वही होता है जो सपनों से डर जाए। मैं तो सपना देखने से डरता नहीं।”---🌸 अधीक्षिका से संवादएक सुबह, जब सब बच्चे दूध पीने में व्यस्त थे, सरला मैडम ने वादल को बुलाकर पूछा—“वादल, तू बड़ा होकर क्या बनेगा?”वादल की आँखें चमक उठीं।“मैं कवि बनूँगा, मैडम! कवि और गायक। लोग मेरी कविताओं में अपने दिल की धड़कन सुनेंगे। और शायद... कोई ऐसा होगा, जो मेरी आवाज़ में अपना दर्द ढूँढ पाएगा।”“बेटा, ये दुनिया आसान नहीं है। अनाथों को लोग कमतर समझते हैं। कवि बनना, गायक बनना... ये सब बहुत दूर की बातें हैं। पहले पेट पालना सीख।”वादल ने दृढ़ता से कहा—“मैडम, पेट तो सब पाल लेते हैं। लेकिन आत्मा? आत्मा भूखी रह जाए तो जीवन कैसा? मैं चाहता हूँ कि मेरी आत्मा तृप्त हो।”सरला मैडम उसकी आँखों में झाँकने लगीं। वहाँ एक अडिग विश्वास था।---🌸 बच्चों की संगति और अकेलापनअनाथालय में करीब पचास बच्चे थे। हर किसी की अपनी पीड़ा थी। वादल सबसे घुलता-मिलता भी था, फिर भी भीतर से अकेला रहता। जब बच्चे क्रिकेट या कबड्डी खेलते, वादल पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर गीत लिखता।कभी कोई पूछता—“तू हमारे साथ क्यों नहीं खेलता?”वह हँसकर कहता—“मैं शब्दों से खेलता हूँ। देखना, एक दिन मेरे शब्द उड़कर तुम्हारे पास भी आएँगे।”---🌸 वादल का पहला सार्वजनिक गीतएक दिन अनाथालय में रक्षाबंधन का उत्सव मनाया गया। आसपास की कुछ संस्थाएँ मिठाई और कपड़े बाँटने आईं। सरला मैडम ने वादल से कहा—“तू कविता लिखता है न? आज मंच से सुनाकर दिखा।”वादल पहले झिझका, लेकिन फिर उठा। छोटा-सा कद, दुबली काया, आँखों में अनोखी चमक। उसने अपनी लिखी पंक्तियाँ सुनाईं—“**माँ का चेहरा याद नहीं,पिता की छवि भी खो गई,पर अनाथ हूँ तो क्या हुआ,मेरे भीतर रौशनी सो गई।सूरज मेरा भाई है,चाँद मेरी बहन,गीत मेरा परिवार है,कविता मेरा जीवन।**”पंक्तियाँ खत्म होते ही आँगन तालियों से गूँज उठा। संस्थाओं से आए लोग भावुक हो उठे। किसी की आँखों से आँसू गिर पड़े।सरला मैडम के होठ काँपे—“यह लड़का सचमुच अनोखा है।”---🌸 अनाथालय का वातावरणदिनचर्या साधारण थी। सुबह पाँच बजे उठना, प्रार्थना, नाश्ता, स्कूल जाना। वादल भी सबकी तरह चलता, पर मन में हमेशा अलग ख्याल।स्कूल से लौटकर बाकी बच्चे शोर मचाते, पर वह खिड़की पर बैठा कविताएँ लिखता।यमुना का बहता पानी उसे प्रेरणा देता। मथुरा की गलियों से आती कृष्णभक्ति की आवाजें उसके गीतों में घुल जातीं।उसका सबसे प्रिय समय रात का था, जब सब सो जाते। वह छोटे-से नोटबुक में लिखता और धीमे स्वर में गुनगुनाता—“रात के आँचल में छुपे,सपने मेरे साथी हैं,मैं अनाथ सही, मगर,ख्वाब मेरे मात-पिता हैं।”---🌸 भावनात्मक मोड़एक दिन, जब बाकी बच्चे उसे बार-बार चिढ़ा रहे थे—“अरे कवि महाराज, गाना गाकर क्या रोटी मिलेगी?”—वादल चुप रहा। लेकिन उसके भीतर हलचल मच गई।वह भागकर अनाथालय की छत पर चढ़ गया। आसमान में बादल थे। उसने हाथ फैलाकर कहा—“अगर दुनिया मुझे नहीं समझेगी तो क्या? मैं आसमान को अपना दोस्त बना लूँगा। हे बादलों, तुम मेरे नाम का हिस्सा हो... वादल! एक दिन मैं तुम्हारी तरह गाऊँगा और पूरी दुनिया सुनेगी।”उस रात सरला मैडम उसे ढूँढते हुए छत पर पहुँचीं। उन्होंने धीरे से उसके सिर पर हाथ रखा।“वादल, बेटा... तू अनाथ है, मगर तेरे शब्द कभी अनाथ नहीं होंगे। उन्हें दुनिया अपना लेगी।”वादल की आँखें भर आईं।“मैडम, कहीं न कहीं कोई होगा... जो मेरी कविता को समझेगा। शायद वह मुझे मेरा घर देगा।”और उसी क्षण, आसमान से चाँदनी फैलकर उसकी आँखों में उतर आई। भाग 01 का समापनउस रात वादल देर तक सो नहीं पाया। उसके हृदय में एक अनजाना विश्वास जन्म ले चुका था—कि जीवन चाहे जैसा भी हो, किसी न किसी मोड़ पर उसकी कविताएँ किसी दिल तक पहुँचेंगी।और वही दिल उसका ‘घर’ बनेगा।यह वादा उसने खुद से किया शेषांश.......आगे ........क्रमशा।Written by H K Joshiअध्याय 1 का भाग 01समाप्त अगलें भाग की 02 झलक :-- दिल्ली कॉलेज की सांस्कृतिक संध्या की तैयारी ,और वादल का पहला बड़ा मंच