Diya and storm in Hindi Short Stories by Nandini Sharma books and stories PDF | दीया और तूफान

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दीया और तूफान


बचपन से ही मीरा की आँखों में सपनों का समंदर था। छोटे-से कस्बे में जन्मी मीरा अक्सर आँगन में बैठकर आसमान को ताकती और सोचती—“क्या लड़कियों के सपनों की कोई सीमा होती है?” उसकी माँ मुस्कुरा कर कहतीं—“बिटिया, तेरे सपनों की कोई दीवार नहीं है, बस हिम्मत चाहिए।”

परंतु समाज की सोच अलग थी। गाँव में यह धारणा थी कि लड़की का जीवन घर-गृहस्थी तक सीमित है। पढ़ाई पूरी होते ही विवाह, और विवाह के बाद पति-पति का घर। मीरा के सपनों को कई बार लोगों ने “अनावश्यक उड़ान” कहकर तोड़ा। लेकिन उसके पिता ने उसे पढ़ाया, संबल दिया।

मीरा पढ़ाई में तेज थी। उसने स्नातक की परीक्षा में पूरे जिले में पहला स्थान पाया। अखबारों में उसका नाम छपा। लोग चकित थे कि एक साधारण घर की लड़की इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकती है। परंतु यही सफलता उसके लिए एक नई चुनौती बन गई। रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने ताने देने शुरू कर दिए—“लड़की इतनी पढ़-लिखकर करेगी क्या? अंत में चूल्हा ही तो संभालना है।”

समाज की आवाज़ें तेज़ थीं, पर मीरा की आत्मा उससे भी अधिक प्रखर थी। उसने ठान लिया कि वह न केवल अपने लिए, बल्कि उन तमाम लड़कियों के लिए रास्ता बनाएगी, जिनके सपनों को समाज ने पिंजरे में बंद कर रखा है।

मीरा ने शिक्षक बनने का सपना सँजोया। वह चाहती थी कि गाँव की हर बेटी पढ़े, समझे और अपने पैरों पर खड़ी हो। कठिनाइयाँ कम न थीं। आर्थिक तंगी, समाज की आलोचना और परंपराओं की जंजीरें बार-बार उसके कदम रोकतीं। परंतु हर बार माँ का वह वाक्य उसे आगे बढ़ाता—“बिटिया, तेरे सपनों की कोई दीवार नहीं है।”

वर्षों की मेहनत के बाद मीरा का चयन अध्यापिका के पद पर हुआ। जब वह पहली बार गाँव के स्कूल में पढ़ाने पहुँची, तो लड़कियों की आँखों में वही चमक देखी, जो कभी उसकी आँखों में थी। उसने बच्चियों को केवल किताबों का ज्ञान नहीं दिया, बल्कि उन्हें आत्मविश्वास और साहस भी सिखाया। वह कहती—“तुम सिर्फ घर तक सीमित नहीं हो, तुम्हारी उड़ान आसमान से भी ऊँची है।”

धीरे-धीरे बदलाव आने लगा। जो माता-पिता पहले बेटियों को स्कूल भेजने से कतराते थे, वे अब स्वयं आकर मीरा से कहते—“मैडम, हमारी बेटी को भी पढ़ाइए।” गाँव में शिक्षा का दीप जलने लगा।

लेकिन जीवन केवल जीतों से नहीं बनता। मीरा की राह में तूफ़ान भी आया। एक दिन पंचायत में कुछ लोगों ने कहा—“लड़कियों को इतना पढ़ाना ठीक नहीं, इससे वे विद्रोही बन जाती हैं।” मीरा पर दबाव बनाया गया कि वह केवल लड़कों को पढ़ाए।

उस रात मीरा ने माँ के आँचल में सिर रखकर पूछा—“क्या मैं सच में गलत हूँ?”माँ ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए कहा—“दीया जब जलता है, तो अँधेरा हमेशा उसे बुझाने आता है। परंतु वही दीया घर-घर उजाला करता है। तू दीया है बिटिया, तू क्यों डरती है?”

अगली सुबह मीरा फिर से उसी हिम्मत के साथ स्कूल पहुँची। उसने बच्चियों को पढ़ाना बंद नहीं किया। उसने कहा—“अगर मुझे रोका गया तो मैं गाँव की गलियों में, पेड़ों के नीचे और खेतों की मेड़ों पर बैठकर भी बच्चियों को पढ़ाऊँगी।”

उसकी अडिगता ने धीरे-धीरे लोगों के दिल बदल दिए। वही लोग, जो कल तक उसके विरोधी थे, अब गर्व से कहते—“हमारी बेटियों को मीरा जैसी दीदी पढ़ा रही हैं।”

मीरा का जीवन एक मिसाल बन गया। वह साबित कर पाई कि अगर एक महिला अपने आत्मविश्वास और साहस से खड़ी हो जाए, तो पूरी पीढ़ी का भविष्य रोशन कर सकती है।

आज भी गाँव की बच्चियाँ जब किताबें खोलती हैं, तो उनकी आँखों में वही उजाला झलकता है—मीरा का उजाला, जिसने सिखाया कि औरत केवल चूल्हे तक सीमित नहीं, बल्कि वह तो दीपक है, जो अंधेरे से लड़कर सबको रोशनी देता है।✨

संदेश

यह कहानी हमें सिखाती है कि महिला केवल घर की शोभा नहीं, बल्कि समाज की दिशा बदलने की शक्ति है। उसके साहस और संघर्ष से पीढ़ियाँ रोशन हो जाती हैं।