भाग – 2पाँचों दोस्त बहुत अच्छे से अपनी ज़िंदगी बिता रहे थे। पढ़ाई में सब एक-दूसरे की मदद करते और पूरी मेहनत करते। इसी वजह से वो अपने टीचर्स के भी फेवरिट बन गए थे।अब उनकी 11वीं के फ़ाइनल एग्ज़ाम आ गए। शिवि, शिलु, सालू और परी का रोल नंबर एक ही क्लास में आया था। शिवि के पीछे परी बैठी थी और साथ ही 7वीं क्लास के बच्चों को भी वहाँ बैठा दिया गया था।उस दिन उनका आख़िरी पेपर था — कंप्यूटर। कंप्यूटर परी का थोड़ा कमजोर था। वो शिवि से बोली –“यार थोड़ी मदद करा दे।”जैसे ही मैडम दूसरी रो में गईं, शिवि ने परी को दिखा दिया। तभी साथ बैठी 7वीं की लड़की उठकर बोली –“मैडम, ये चीटिंग करा रही है।”शिवि को ग़ुस्सा आ गया लेकिन उसने किसी तरह मैडम को समझा लिया और उस लड़की से बोली –“मेरी दोस्त है, मेरी मर्ज़ी।”
कुछ दिन बाद रिज़ल्ट आया। उस दिन शिवि स्कूल नहीं आई क्योंकि वो बाहर गई हुई थी, लेकिन उसकी मम्मी रिज़ल्ट लेने आईं। शिवि की चारों सहेलियाँ बहुत खुश हुईं ये जानकर कि ये शिवि की मम्मी हैं। शिलु तो जाकर उन्हें गले भी लगा लेती है।
रिज़ल्ट में –
शिलु की 3rd पोज़ीशन आई,
शिवि के 89%,
मोना, परी और सालू के 85% से ऊपर नंबर आए।
उस दिन घर पर शिवि के पापा ने कहा –
“नंबर अच्छे हैं, लेकिन मैं चाहता हूँ कि 12वीं के बोर्ड में तेरे और भी हाई नंबर आएं।”
रात को बिस्तर पर लेटी शिवि पंखे की ओर देखते हुए अपनी मम्मी से बोली –
“मम्मी, मुझे तो 85% से ऊपर आकर भी खुशी मिल जाती, लेकिन पापा के चेहरे पर प्राउड वाली स्माइल देखने के लिए मैं पूरी मेहनत करूँगी। हार नहीं मानूँगी।”
यही शिवि की असली स्पिरिट थी — हार न मानने वाली।
अब 12वीं क्लास शुरू हो गई थी। पाँचों दोस्त जमकर मेहनत करने लगे। हर दिन कोई एक लंच बॉक्स लाता और सब मिलकर खाते। सालू की मम्मी के हाथ का पास्ता सबकी फ़ेवरेट डिश थी। पाँचों के बीच कभी कोई भेदभाव या मनमुटाव नहीं था। उनका रिश्ता सगी बहनों जैसा था।
एक दिन शिवि को फटा हुआ 10 रुपये का नोट मिला। फिर क्या था, पाँचों ने उसका “ऑपरेशन” करना शुरू कर दिया। शिलु ने ग्लू से चिपकाया, शिवि ने फूँक मारी तो नोट उड़ गया। सब हँस पड़े। शिलु बोली –
“शिवि, तू दूर ही रह, हमारे पेशेंट की हड्डियाँ तोड़ देगी।”
मोना ने नोट उठाया और बोली –
“कोई बात नहीं, ये कॉमर्स वाले डॉक्टर के पास गया था इसलिए हालत ऐसी हो गई।”
इस पर बाकी चारों उसे घूरने लगीं। शिवि हँसकर बोली –
“मोना, इतना प्यार दे रही हो इस नोट को, तेरी शादी इसी से करा दूँ?”
आख़िरकार उन्होंने नोट कैन्टीन वाली खड़ूस आंटी को दे ही दिया।
एक दिन इकोनॉमिक्स का लेक्चर चल रहा था। पता चला कि सालू फिर पास्ता लाई है। सब खुश होकर ग्राउंड में खाने बैठीं, लेकिन उसमें मिर्च बहुत ज़्यादा थी। सब पानी पीते रहे, फिर भी मिर्च खत्म नहीं हुई। चारों सालू को घूरते हुए बोलीं –
“इतनी मिर्च क्यों डाल दी?”
सालू ने हँसते हुए कहा –
“गलती से गिर गई।”
कभी शिवि के कंधे में दर्द होता तो परी उसकी मसाज कर देती। जब तेज़ गर्मी और सिरदर्द होता तो शिलु अपनी गोद में उसका सिर रखवा लेती। कभी शिवि लिखने का मन नहीं करता तो उसका काम सालू या शिलु कर देतीं। पढ़ाई में पाँचों बहुत अच्छी थीं।
शिवि रोज़ रात के 3 बजे तक पढ़ती थी ताकि पापा के चेहरे पर मुस्कान ला सके। उसके पापा ALM (Assistant Lineman) थे। जब वो नाइट शिफ़्ट से लौटते तो शिवि ही दरवाज़ा खोलती।
कुछ महीने बीत गए और फिर वो दिन आ गया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
सुबह 5 बजे शिवि उठी। पता चला कि पापा की तबीयत रात से ठीक नहीं है। मम्मी ने बताया कि पापा को उल्टी हुई थी, अब वो आराम कर रहे हैं। शिवि ने कहा –
“मम्मी, मैं डॉक्टर को दिखाने ले जाती हूँ।”
लेकिन पापा ने खुद कहा –
“अब ठीक हूँ, बस आराम करने दो।”
इतने में पापा ने कमरे से आवाज़ दी –
“शिवि, रॉकी को बाँध दो। वरना शरारत करेगा।”
रॉकी उनका छोटा पिल्ला था जिसे शिवि ने बहुत प्यार से पाला था।
शिवि ने कहा – “हाँ पापा।”
वो सामान्य दिन की तरह स्कूल चली गई। पाँचों ने मस्ती की, पास्ता खाया।
लेकिन आख़िरी पीरियड में पीऑन ने आकर कहा –
“शिवि को घर से कोई लेने आया है।”
टीचर ने मज़ाक में दोनों शिवियों (क्लास में दो लड़कियाँ थीं जिनका नाम शिवि था) को भेज दिया। शिवि सोच भी नहीं सकती थी कि बाहर उसका अंकल खड़ा होगा।
अंकल ने कहा –
“बेटा, चलना होगा, बैग ले लो।”
शिवि घबरा गई – “क्या हुआ?”
अंकल बोले – “कुछ नहीं, बस सब घर पर इकट्ठा हुए हैं, तेरी माँ ने बुलाया है।”
रास्ते में भी शिवि को शक होता रहा लेकिन अंकल टालते रहे।“जैसे ही गली में पहुँची तो देखा घर के बाहर कारें और भीड़ लगी हुई है। अर्थी का सामान रखा है।”
शिवि को लगा दादी का देहांत हुआ होगा। वो रोने लगी।
तभी उसकी छोटी बहन दौड़कर आई और रोते हुए गले लगकर बोली –
“दीदी… पापा नहीं रहे।”
ये सुनते ही शिवि सन्न रह गई। पहले ग़ुस्से में, फिर टूटकर चिल्लाने लगी –
“नहीं! मेरे पापा ठीक हैं, मैं सुबह उनसे मिली थी। सब झूठ बोल रहे हो… मेरे पापा को बुलाओ!”
वो कमरे में दौड़ी जहाँ सुबह पापा आराम कर रहे थे और चीख-चीखकर बोली –
“पापा… आप कहाँ हो? पापा… वापस आ जाओ…”
लेकिन कुछ देर बाद जब रिश्तेदारों ने उसे पापा का चेहरा दिखाया तो वो सन्न रह गई। उसे यक़ीन नहीं हुआ कि उसके पापा अब इस दुनिया में नहीं रहे।
उसका दिल टूट चुका था, पर उसी समय उसने खुद से वादा किया –
“पापा, मैं कमज़ोर नहीं पड़ूँगी। न ही घरवालों को किसी पर डिपेंडेंट रहने दूँगी।”
लेकिन अंदर से उसका दिल बार-बार यही कह रहा था –
“पापा… वापस आ जाओ…”
बाद में पता चला कि उनके पापा को हार्ट फेल हुआ था।
शिवि इस सदमे से टूट चुकी थी, पर माहौल से दूर रहने के लिए दो दिन बाद ही फिर स्कूल चली गई।
आज के लिए बस इतना ही। आगे की कहानी में और भी बड़े ट्विस्ट आने वाले हैं।