Part 3शिवि अब अपने घर में नहीं रहना चाहती थी। शायद घर के माहौल से उसका दम घुट रहा था। इसलिए वह दो दिन बाद स्कूल गई।जैसे ही सुबह वह क्लास में दाख़िल हुई, उसने पाया कि शीलू पहले से ही वहाँ थी और बेंच पर बैठकर पढ़ाई कर रही थी।शीलू ने जैसे ही शिवि को देखा, उसकी आँखें भर आईं। उसे भी सर से पता चल गया था कि शिवि के पापा अब इस दुनिया में नहीं रहे।लेकिन शिवि ने झूठी हिम्मत दिखाते हुए कहा –“शीलू, सर ने जो काम दिया है, वो बता दे, मैं रिवीज़न कर लूँगी।”
लेकिन शीलू ने उसे ज़बरदस्ती गले लगा लिया।
जैसे ही उसने शिवि को गले लगाया, शिवि, जिसने अपने आँसू अब तक रोके हुए थे, रोते हुए बोली –
“शीलू… मेरे पापा मुझे छोड़कर चले गए…”
शायद जो दर्द वह अपने घरवालों के सामने नहीं दिखा पा रही थी, अब वह अपने दोस्तों के सामने छलक गया।
वह फूट-फूटकर रो पड़ी और शीलू ने पहली बार इतनी मज़बूत शिवि को इस तरह टूटते हुए देखा। यह देखकर शीलू भी रो पड़ी।
कुछ देर दोनों एक-दूसरे को गले लगाकर रोती रहीं।
धीरे-धीरे सारे क्लासमेट्स आ गए और शिवि के लिए सहानुभूति जताने लगे।
कुछ देर बाद सालू, मोना और परी भी क्लास में आ गए। उन्होंने शिवि की आँखों में आँसू देखे, पर किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि उसका दुख दोबारा सामने लाएँ।
इसलिए सबने सामान्य दिनों की तरह उससे बात की, ताकि शिवि को थोड़ा अच्छा महसूस हो।
थोड़ी देर में लेक्चर शुरू हो गए। शिवि ने जबरदस्ती पढ़ाई पर ध्यान लगाने की कोशिश की, लेकिन अपने पापा को खोने के सिर्फ दो दिन बाद पढ़ाई पर ध्यान लगाना उसके लिए असंभव था।
जब क्लास फ्री होती, तो सर अक्सर कहते –
“शीलू, अगर तुम दोनों चाहो तो स्कूल का एक चक्कर लगा सकती हो।”
वह ऐसा इसलिए कहते क्योंकि उन्हें पता था कि शिवि कितनी इंटेलिजेंट है और वह उसे टूटने नहीं देना चाहते थे।
उन्होंने शिवि से कहा –
“बेटा, तुम्हें बहुत हिम्मतवाला इंसान बनना है। ज़िंदगी में मेहनत करके कुछ बड़ा करना है।”
शिवि ने यह सब सोचते हुए मन ही मन ठान लिया –
“चाहे कुछ भी हो जाए, मैं मेहनत से पीछे नहीं हटूँगी। मेरे पापा जहाँ भी होंगे, मेरी सफलता देखकर खुश होंगे।”
अगले दिन शिवि ने अपनी आँखों में एक नई उम्मीद के साथ कहा –
“मैं हार नहीं मानूँगी।”
वह स्कूल गई और उसके दोस्तों ने भी हर विषय में उसकी मदद की।
समझना उसके लिए मुश्किल था, इसलिए उसने घर जाकर यूट्यूब और सेल्फ-स्टडी से अपने टॉपिक पूरे किए।
इसी तरह 3 महीने बीत गए।
फिर खबर आई कि मोना की दादी का कैंसर के कारण निधन हो गया।
यह सुनकर सबको बहुत दुख हुआ, क्योंकि मोना के पापा का देहांत बचपन में ही हो गया था। उसकी दादी ही उसका सहारा थीं।
मोना ने खुद बताया –
“हाँ, मैं इंस्टा पर लड़कों से टाइमपास करती थी… क्योंकि मुझे प्यार और भरोसे से नफ़रत हो गई है। बचपन में पापा चले गए और जिस पर भरोसा किया उसने भी मुझे धोखा दिया। अब तो दादी भी मुझे छोड़ गईं।”
यह सुनकर सभी दोस्त भावुक हो गए।
कुछ दिन बाद जब मोना स्कूल आई, तो सबने उसे संभाला और उसके साथ अच्छा समय बिताया।
दोस्तों के साथ वह हमेशा हँसती, मज़ाक करती और सबको हँसाती रहती।
एक दिन फ्री लेक्चर में परी बोली –
“पता नहीं कैसी नज़र लग गई हमें। जैसे ही 12वीं में आए, कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा। सोचकर आए थे कि बोर्ड में टॉप करेंगे, पर अब तो इम्पॉसिबल लग रहा है।”
तभी सालू बोली –
“नहीं, हमने खुद कहा था न – लाइफ़ में कुछ भी इम्पॉसिबल नहीं होता। हम हर मुश्किल का सामना करेंगे।”
इसी तरह एक-दूसरे को हिम्मत देते हुए 2 महीने और निकल गए।
एक दिन बिज़नेस का लेक्चर था। चैप्टर बहुत बोरिंग था और मैडम भी उतने ही बोरिंग तरीके से पढ़ा रही थीं।
पूरी क्लास जागी हुई नींद में थी। शिवि तो मुँह झुकाकर पीछे सो भी गई थी।
इसी बीच मोना को नींद का झटका लगा और उसकी आँख बंद होकर तुरंत खुल गई।
मैडम ने देख लिया और गुस्से में बोलीं –
“जाओ, क्लास से बाहर निकल जाओ!”
लेकिन तभी बेल बज गई और लेक्चर खत्म हो गया।
मैडम जाते-जाते मोना को वॉर्निंग देकर बोलीं –
“कल से मेरी क्लास में मत दिखना।”
मैडम के जाते ही क्लास ने राहत की साँस ली।
शिवि ने मोना का मूड ठीक करने के लिए कहा –
“अरे इग्नोर कर… असली बात तो यह है कि पूरी क्लास सो रही थी, बस तू पकड़ी गई।”
सब फिर से नॉर्मल हो गए और जमकर मेहनत करने लगे।
धीरे-धीरे एग्ज़ाम और फेयरवेल पार्टी पास आ गई।
सबने जमकर पढ़ाई की और एग्ज़ाम दिए।
फेयरवेल पार्टी में पाँचों दोस्तों ने बहुत इंजॉय किया।
सबने डांस किया, खूब सारी फोटो खींची और एक-दूसरे के साथ यादें बनाई।
इसी बीच जब शिवि को प्यास लगी तो वह कैंपर के पास पानी पीने गई।
तभी शीलू ने मज़ाक करते हुए कहा –
“ए भैंस, जल्दी पानी पी ले… एयो एयो!”
और वीडियो बनाते हुए हँसते-हँसते बोली –
“भैंस तो कितना पानी पीती है, बस कर अब।”
इस मज़ाक पर सब हँस-हँसकर लोटपोट हो गए और वह दिन भी उनकी यादों में एक हँसी भरा पल बनकर रह गया।
“परिणाम का दिन”
रिज़ल्ट वाले दिन शिवि ने अपने पापा की टी-शर्ट पहनकर रिज़ल्ट देखना शुरू किया।
साइट हमेशा की तरह बिज़ी थी। लेकिन उसकी मासी की बेटी ने साइट खोलकर उसका रिज़ल्ट चेक किया।
पता चला – शिवि ने 98% स्कोर किया!
अपने मार्क्स देखकर वह रो पड़ी।
उसे खुशी से ज़्यादा दर्द था… क्योंकि पापा अब नहीं थे।
इन मार्क्स के लिए ही तो उसने इतनी मेहनत की थी… ताकि पापा प्राउड महसूस करें।
उसकी माँ बहुत खुश हुईं, लेकिन बेटी को रोता देखकर वह भी रो पड़ीं।
थोड़ी देर बाद शिवि ने दोस्तों को कॉल किया।
पता चला – पाँचों दोस्तों ने 90% से ऊपर स्कोर किया और सब मेरिट में थे।
सभी दोस्त खुश थे और एक-दूसरे पर गर्व कर रहे थे।
अब वे अलग-अलग कॉलेज में चले गए, लेकिन कॉल पर हमेशा जुड़े रहते थे।
सबने ठान लिया था –
“हम सफल ज़रूर बनेंगे और कभी एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे।”
अब पाँचों दोस्त कॉलेज की नई-नई दुनिया में कदम रख चुके थे।
रास्ते अलग हो गए थे, लेकिन दिलों का साथ अब भी वही था।
कभी हँसी-मज़ाक, कभी आँसू, और कभी अनगिनत यादें – सब कुछ उन्होंने साथ में बाँटा था।
शायद आने वाला कल किस ओर ले जाएगा, ये किसी को नहीं पता…
पर इतना ज़रूर था कि इनकी दोस्ती अब किसी भी दूरी से कमज़ोर नहीं होगी।
हर किसी ने मन ही मन ठान लिया था –
“हम चाहे जहाँ भी जाएँ, पर एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे।”
“फिलहाल, यह मेरी कहानी का आख़िरी भाग है।”