"जब मोहब्बत विदाई मांगती है.."
कुछ कहानियाँ अधूरी नहीं होतीं..
वो पूरी होकर भी अधूरी ही लगती हैं।
क्योंकि उनका अंत 'साथ' में नहीं,
बल्कि 'बिछड़ने' में लिखा जाता है।
अनंत और शानवी की कहानी भी अब उस मोड़ पर
आ चुकी थी --
जहाँ एक तरफ यादें थीं, और दूसरी तरफ.. अंतिम विदाई।
उस शाम की बात है --
दिल्ली की सड़कों पर धूप ढल रही थी,
और मैं अकेला एक बेंच पर बैठा था।
हाथ में वही पुरानी डायरी..
जिसके हर पन्ने में बस एक ही नाम लिखा था --
शानवी।
वो आज मुझसे आख़िरी बार मिलने वाली थी।
हाँ.. उसने कहा था --
"अनंत, मैं तुमसे एक बार मिलना चाहती हूं,
शायद आख़िरी बार.. क्योंकि उसके बाद मैं किसी और की ज़िंदगी हो जाऊंगी।"
क्या सच में प्यार का अंतिम चरण ऐसे बिछड़ना होता हैं
इसी तरह के लाखों सवाल मेरे जहन में चल रहे थे,
मगर मै बेबस उसके सामने चुप चाप सब सहता रहा।
सिर्फ एक बात जहन में चल रही थी कि काश शानवी तुम मेरे लिए एक बार बोल पाती सबके सामने, मेरे लिए लड़ पाती, तो देखती मै तुम्हारे एक इशारे पर सारी दुनिया से लड़ जाता।
वो आई..
हल्की गुलाबी साड़ी में,
बाल बंधे हुए, आंखों में नमी..
पर चेहरे पर जबरन की गई मुस्कान।
वो वही थी -- मेरी शानवी।
पर अब वो मेरी नहीं थी।
हम सामने बैठे..
कॉफी के कप से उठती भाप के बीच,
हमारे बीच कुछ अधूरी सांसें उलझी थीं।
मैंने कहा --
"कैसी हो?"
उसने बहुत धीमी आवाज़ में कहा --
"ठीक हूं.. और तुम?"
मैंने मुस्कुराकर कहा --
"टूट रहा हूं, लेकिन ज़िंदा हूं।"
कहना तो बहुत कुछ था लेकिन मैं चुप रहा, बस उसकी उस बेबसी को देखता रहा जिसने मुझे जिंदा दफ़न कर दिया।
वो कुछ कह नहीं पाई।
उसकी आंखों में आंसू भर आए।
मैंने उसकी ओर देखा,
और कहा --
"तुम्हें पता है,
तुम मेरी सबसे खूबसूरत अधूरी कविता हो।"
जो मेरी रूह में बसी है, मेरी अंतिम सांस तक मेरे साथ रहेगी।
वो फूट - फूट कर रो पड़ी।
फिर उसने डायरी खोली, जो वो अपने साथ लाई थी।
उसमें सिर्फ एक पन्ना था..
जिस पर लिखा था --
"अनंत"
अगर मेरी किस्मत में तुम नहीं थे,
तो शायद किस्मत ही अधूरी थी।
मैं तुम्हारे साथ पूरी नहीं हो सकी,
लेकिन मैं जानती हूं --
मेरी रूह हमेशा तुम्हारे पास रहेगी।
अगर कभी कहीं मिलूं,
तो मुझे फिर से उसी मासूमियत से देखना,
जैसे पहली बार देखा था।
मैं जा रही हूं..
लेकिन तुम कभी मत कहना कि ये कहानी अधूरी है।
क्योंकि तुमने मुझे ऐसे चाहा..
जैसे कोई इंसान किसी रूह को चाहता है।"
मैंने वो पन्ना अपने सीने से लगा लिया।
कुछ नहीं कहा.. क्योंकि अब शब्द छोटे पड़ने लगे थे।
आंसुओं में बहता हुआ वक़्त
सब कुछ कह रहा था।
मै एक टक उसकी आँखों में देखता जा रहा था,
मुझे खुद को सम्भाल पाना मुश्किल लग रहा था।
फिर उसने हाथ जोड़े और कहा "
"अनंत, अब मुझे जाना होगा..
मेरी नई ज़िंदगी मेरा इंतज़ार कर रही है।"
मैंने बस सर हिलाया --
“जाओ.. लेकिन यादें यहीं छोड़ जाना।
मैं उन्हें संभाल लूंगा।”
वो चली गई।
धीरे-धीरे भीड़ में खो गई,
जैसे कोई सपना सुबह की रौशनी में घुल जाए।
मैं वहीं बैठा रहा..
टूटे हुए ख्वाबों की राख समेटते हुए।
उसके जाने के बाद
मैंने आख़िरी बार उसकी भेजी एक वॉइस रिकॉर्डिंग सुनी --
वो हल्की सी हँसी-- और वो आखिरी शब्द --
“अनंत.. अगर जनमों का सच होता है,
तो मैं अगले जनम में तुम्हारी बनकर आऊंगी।”
अब हर रात मैं उसकी उसी बात पर रो देता हूं।
ना शिकायत है, ना सवाल..
बस एक खालीपन है,
जो हर लम्हा उसके नाम से भरता हूं।
कभी-कभी लगता है,
सच्चा प्यार वो होता है --
जो मिल नहीं पाता।
जो किसी मोहर की तरह दिल पर छप जाता है।
जिसे समय नहीं मिटा सकता,
ना समाज, ना दूरी, ना हालात।
आज भी जब कोई कहता है --
"तुम किसे सबसे ज़्यादा चाहते हो?"
मैं बस मुस्कुराता हूं और कहता हूं --
"एक लड़की थी.. जो मेरी सांसों में बस गई थी,
पर किस्मत की गलियों में खो गई।"
यह कहानी खत्म नहीं हुई..
ये बस एक अनकही खामोशी में बदल गई है।
एक ऐसा प्यार,
जो आज भी ज़िंदा है --
मेरी कविताओं में, मेरी सांसों में,
और उस अधूरे नाम के पीछे जो आज भी मेरी कलम से फिसलता है --
"शानवी"
समर्पित उस हर प्रेम को,
जो मुकम्मल न होकर भी सच्चा होता है। 💔💔
यह वहीं कविता है जो मैने उस रात लिखी थी --
"एक अधूरी कविता, जो पूरी लगती है"
तू मिली थी इक ख्वाब की तरह,
छू गई थी रूह के पार तक।
लफ़्ज़ों में तू नहीं थी शायद,
पर हर एहसास था तेरा नाम तक।
तेरे बिना भी तू पास थी,
हर धड़कन में, हर साँस थी।
मैंने कभी तुझे माँगा नहीं,
पर रब से भी ज़्यादा मेरे पास थी।
तेरे जाने का डर नहीं था,
क्योंकि तुझे खोया ही नहीं।
तू जो गई, तो यादें रह गईं,
जैसे बारिश के बाद भीगी ज़मीं।
अब भी तेरा नाम लिखता हूँ,
हर रात, हर चाँदनी में।
तेरी वो चुप हँसी गूंजती है,
मेरे खाली तकिये की तन्हाई में।
तू शादी के मंडप में सजी होगी,
और मैं अकेला बैठा, बस लिखता रहूँगा।
पर जान लो शानवी --
मैं तुझमें नहीं,
तेरे एहसास में ज़िंदगी भर जीता रहूँगा।
तेरा जाना मेरा अंत नहीं,
ये इश्क़ अब इबादत बन चुका है।
तू जिस जनम में भी मिले
तेरी आँखों में मैं खुद को ढूँढ लूंगा
फिर से.. एक बार फिर से।
क्योंकि..
सच्चा प्यार साथ मांगता नहीं,
बस रूह में बस जाता है।
और तुम मेरी रूह बन चुकी हो,
शानवी..
हमेशा के लिए।
दोस्तों बस इतनी सी थी, ये मेरी अधूरे लफ्ज़ों की
पूरी प्रेम कहानी