RAKASHVAN - 2 in Hindi Anything by Mani Kala books and stories PDF | राक्षवन - 2

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राक्षवन - 2

अजय पीछे हटने लगा लेकिन परछाईयां और तेज़ी से पास आने लगीं हर परछाई का चेहरा उसका ही था मानो समय की हर शक्ल उस पर टूट पडी हो वह चीख़ पड़ा तुम मुझसे क्या चाहते हो सभी परछाईयां एक साथ बोलीं  सच।।। नीली रोशनी अचानक लाल हो गईं अजय का दिल ज़ोर से धड़क रहा था तभी वहीं धुंधली आकृति प्रकट हुईं उसने हाथ उठा कर परछाई को रोका अजय वह बोलीं ये सब तेरे अलग-अलग समय के रुप है अगर तु सच जानना चाहते हैं तो इन परछाईयां को स्वीकार कर लेकिन याद रख हर सच की कीमत होती है अजय कांपते हुए और  अगर मै इंकार कर दूँ? आकृति हंसी- तो तू हमेशा के लिए इसी तहखाने के अधंकार में कैद हो जाएगा अजय कांपते हुए खड़ा था चारों तरफ परछाईयां उसे घेर रही थी अजय ने गहरी सांस ली उसने डरते डरते कहा "मैं  सच जानना चाहता हूँ चाहें कीमत कुछ भी हो  तभी  तहखानों  की दीवार पर चमकदार चिन्ह बनने लगे एक बड़ा दरवाजा खुला और अजय उसमें खिंच गया वह अपने ही गांव पहुंचा लेकिन यह गांव 50 साल पुराना था लोग चौपाल में आग जला कर किसी बच्चे को घेरे खड़े थे अजय चौंक गया-वह बच्चा बिलकुल उसी जैसा दिखता था भीड़ चिल्ला रही थी "ये अपशकुन है  इसकी परछाई ठीक नहीं है  इसे कैद कर दो"  अजय समझ गया कि उसके परिवार पर जो श्राप चला आ रहा है वह यही से शुरू हुआ था उस बच्चे की परछाई कभी बूढ़ी कभी जवान कभी बच्ची हो जाती थी गांव वालों ने डर कर उसे शापित मान लिया और पूरे वंश को श्रापित कर दिया पीछे से आकृति फिर बोलीं - ये है तेरा  सच तु उसी शापित वंश का वाहक है अब या तो तु इस श्राप को स्वीकार करेंगा  और आगे बढ़ेगा या सदा सदा के लिए अंधेरे  का हिस्सा बन जाएगा  अजय की आखों में आंसू आ गए उसने परछाई की ओर हाथ बढ़ाया और उन्हें गले लगा लिया एक पल को भयंकर चीख़ गूँजी फिर सब शांत हो गया । जब अजय ने आंख खोली - वह अपने कमरे में था सुबह की धूप खिड़की से आ रही थी घड़ी और मोबाइल का समय एक जैसा था । सब सामान्य लग रहा था । लेकिन ......... उसके हाथ पर वही चमकते चिन्ह बने हुए थे । और आईने में उसकी अजीब तरह से मुसकुरा रही थी । मानो असली लड़ाई अब शुरू होनी अभी बाकी हो । ।

अचानक हवा तेज़ चलने लगी, जैसे प्रकृति खुद युद्ध का संकेत दे रही हो। Ajay ने अपनी तलवार घुमाई और पहली चोट की गूँज पूरे मैदान में फैल गई। दुश्मनों की पंक्ति हिल गई, लेकिन उनकी संख्या बहुत थी। हर वार के साथ परछाई की मुस्कान और गहरी होती जा रही थी, मानो उसे यही चाहिए था। चिंगारियों की तरह तलवारें टकरा रही थीं, ज़मीन पर खून की बूंदें गिर रही थीं। यह अब साधारण लड़ाई नहीं रही, बल्कि एक महायुद्ध की शुरुआत थी आगे कहानी में क्या होगा ये आपको नये chapter में पता चलेगा 

Written by - vikas 

Pauri garhwal uttarakhand