Gomti Tum Bahati Rahna - 17 in Hindi Biography by Prafulla Kumar Tripathi books and stories PDF | गोमती तुम बहती रहना - 17

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गोमती तुम बहती रहना - 17

                      नदियों की तरह हम मनुष्यों के जीवन को भी नदी की बहती हुई धाराओं की तरह होना चाहिए | मंथर गति,कलकल निनाद ,अनुकूल धाराओं की तरह |किन्तु क्या ऐसा हो पाता है ? वर्ष 2007 के बाद मेरे और मेरी पत्नी के सहज जीवन की दशा और दिशा बदल सी गई |दोनों के जीवन में मानो कोई सैलाब सा आ गया था | पत्नी घोर डिप्रेशन में जाती रहीं | वर्षांत में मेरा आकाशवाणी अल्मोड़ा के लिए स्थानांतरण आदेश आ गया |असल में लखनऊ में मेरी पोस्टिंग के लगभग चार साल हो चुके थे और लखनऊ की पोस्टिंग चाहने वालों के टार्गेट पर मैं था |एक ओर अपनी शारीरिक अस्वस्थता तो दूसरी ओर पुत्र शोक में डूबा मैं अब परेशान-लगभग हताश |मेरा ट्रांसफर ऑर्डर निकलवा कर मुझे यथाशीघ्र रिलीव भी कराने की साजिश शुरू हो गई|मेरी केंद्र निदेशक अलका पाठक , जो नई नई आई थीं ने बहरहाल मेरी स्थिति को संज्ञान में लेकर मुझे कुछ समय दिया कि मैं दिल्ली दरबार में पैरवी करके अपना आदेश निरस्त करवाऊँ |मैंने उस समय के कार्यालय प्रमुख केंद्र अभियंता श्री भोला नाथ जी से रिप्रेजेंटेशन अपनी संस्तुति सहित फॉरवर्ड करने को कहा जिसे वे मान गए |वे मान ही नहीं गए बल्कि उन्होंने मेरी स्थितियों का जिक्र करते हुए मेरे स्थानांतरण आदेश को निरस्त करने की संस्तुति भी किया |उस पत्र की प्रति लेकर मैं अब महानिदेशालय में था | मुझसे कहा गया कि आप अपर महानिदेशक से मिल लीजिए|मैडम नूरेन नकवी अपने कमरे में टेबुल पर किसी अंग्रेजी नॉवेल को पढ़ने में झुकी थीं कि मैं अपनी असामान्य चाल से अंदर दाखिल हो गया |मेरे साथ मेरे साढ़ू श्री ओ.पी. एम. त्रिपाठी भी थे |मुझे देखते ही वे हड़बड़ा उठीं और मैंने अपने को लगभग गिरने का बहाना बनाते हुए उनका ध्यान खींचा |अब मैंने उनको अपनी अप्लीकेशन दी और परेशानियों से अवगत कराया |उन्होंने अप्लीकेशन रख लिया |लगभग पंद्रह बीस दिनों में मेरे स्थानांतरण का आदेश कैंसिल हो गया|मैंने भगवान को धन्यवाद दिया ।अब परेशानी बस यह रह गई कि मेरी पत्नी सामान्य हो सकें |लेकिन ऐसा नहीं हो सका |आज तक नहीं हो सका |पुत्र वियोग ने उनके जीवन को सारहीन बना दिया है|तमाम उपाय व्यर्थ गए हैं और अब मैंने भी सब कुछ परमात्मा पर छोड़ दिया है |हाँ,उनकी इस स्थिति से कभी कभी भयावह दृश्य अलबत्ता  उपस्थित हो जाया करता है जिससे मैं भी विचलित हो जाता हूँ |            उन दिनों उधर आकाशवाणी की दिनचर्या उसी तरह की थी |अब मैंने मेराज नामक एक ड्राइवर रख लिया था जो सुबह 7 बजे मीना को छोड़ने स्कूल जाता था और वापस आकर दस बजे मुझे ऑफिस ले जाता था |वह ऑफिस में ही रुका रहता था और दोपहर दो बजे वहीं से स्कूल जाकर मीना को ले आता था और फिर मुझे लेने जाता था |अक्सर मेरे साथ कुछ सहकर्मी भी आया करते थे जैसे सुशीम मलिक दादा,सारंगी वादक खान साहब और कभी कभी सहयोगी पेक्स रश्मि जी |मेरे विभाग(संगीत और सुरक्षा) प्राय:नहीं बदले क्योंकि वे सभी झंझटी विभाग थे जिनको किसी तरह काबू में मैंने पा लिया था |   

           उन दिनों हर साल सॉफ्टवेयर स्कीम में कुछ अच्छे कार्यक्रम बनाने के लिए बजट आता था |ज्यादातर लोग इसमें रुचि नहीं लेते किन्तु मैंने लगभग हर वित्तीय वर्ष में कोई न कोई विशेष कार्यक्रम बनाए |इतना ही नहीं जितना बजट मिलता उसका दुगुना खर्च भी किया करते थे |वर्ष 2012-13 में मलिका ए ग़ज़ल बेगम अख्तर पर आधारित 13 एपिसोड का संगीत रूपक “कुछ नक्श तेरी याद के” नाम से मैंने तैयार किया जिसका आलेख हिंदुस्तान के उप संपादक श्री अटल तिवारी ने लिखा था और संगीतकार थे उत्तम चैटर्जी और अमिताभ श्रीवास्तव | कार्यक्रम खूब सराहा गया और आज भी जब बेगम अख्तर की गायकी की चर्चा होती है तो उस कार्यक्रम का जिक्र अवश्य आता है |इस कार्यक्रम का संदर्भ सेवानिवृत्त निदेशक और बेगम अख्तर को निकट से जानने वाले श्री नित्यानंद मैठानी और पत्रकार श्री अटल तिवारी की बेगम साहिबा पर लिखी पुस्तक में भी है |

       उधर मेरे पिताजी 79 वर्ष के हो चले थे |चूंकि वे मेरे आजीवन “हीरो” थे इसलिए मैं उनको उनके 80 वे जन्म दिन पर एक खास भेंट के रुप में उन पर लिखी जाने वाली पुस्तक थी जिसमें उनके व्यक्तित्व पर उनके परिजनों सहित उनके जानने वालों के संस्मरण शामिल होने थे |                                                                       मैंने दिन रात एक करके लोगों को पत्र लिखे |सामग्रियाँ आती रहीं और उन्हें मैं पिताजी को दिखा कर प्रेस में छपने को भेजता रहा |वर्ष 2013 में मेरा रिटायरमेंट होना था और ज़िंदगी की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही थीं |वर्ष 2013 की पहली जनवरी को गोरखपुर में मेरे भतीजे धवल की शादी हुई और उसी शादी की पारिवारिक जुटान में पता चला कि 79 वर्षीय पिताजी को गले में कुछ तकलीफ है|यह तकलीफ आगे चलकर (Dysplasia Esophaged Cancer) कैंसर के रुप में परिवर्तित हुई |07 जनवरी को लखनऊ में ग्लोब हॉस्पिटल के डा.अग्रवाल ने उनके गले में नली (stent)डाली जिससे उनको लिक्विड भोजन दिया जा सके |पूर्व योजनानुसार अगली सुबह अर्थात 8 जनवरी को उन्हें बड़े  भाई साहब,छोटी बहन प्रतिमा और अम्मा फ्लाइट से मुंबई ले गए |टाटा कैंसर अस्पताल में जांच हुई और विशेषज्ञ ने कैंसर रोग कन्फर्म करते इसका इलाज रेडिएशन बताया और इसके लिए लखनऊ के पी.जी.आई. में रेफर कर दिया |14 जनवरी की शाम को इन सभी की लखनऊ और फिर गोरखपुर वापसी हुई |परिजनों में इस बात को लेकर संशय था कि रेडियेशन कराया जाए या नहीं |पिताजी स्वयं इसके विरुद्ध थे |

      उस बीच पिताजी पर लिखी पुस्तक पर धीमी गति से काम चल रहा था लेकिन पिताजी की हालत देख कर मैंने प्रकाशक को जल्दी छापने के लिए कहा |मुझे याद है कि जब मैंने उन पर लिखी पुस्तक का कवर उनको दिखाया तो पिताजी की आँखें रुग्ण शैया पर होते हुए भी चमक उठी थीं |उन्होंने इशारे से अपनी उस फ़ोटो को बदलने को कहा जिसमें उनके माथे पर चंदन टीका लगा हुआ था |उस दौरान गोमती नदी की शुचिता पर आधारित आकाशवाणी से मेरे शृंखलाबद्ध संगीत रूपक “गोमती तुम बहती रहना” का प्रसारण होता रहा |इसके अंतिम तेरहवें एपिसोड का प्रसारण 28 मार्च 2012 को हुआ |इसी बीच 30 मार्च को मुझे बताया गया कि मेरे विरुद्ध किन्हीं अनुराग तिवारी, डी-61(बी),सेक्टर डी.,एल.  डी.ए.कालोनी,कानपुर रोड लखनऊ ने 17 फरवरी को आर.टी.आई.लगाकर  कुछ जानकारियाँ मांगी हैं|उन दिनों अपर महानिदेशक के रुप में मेरे मित्र श्री गुलाब चंद पदस्थ थे और कार्यालय में मेरे क्रिया कलाप से अच्छी तरह परिचित थे |मैं संगीत प्रशासन विभाग देखता था और संगीत के कुछ बिगड़ैल कलाकार मुझसे नाराज थे इस बात को वे जानते भी थे |यह उन्हीं सबों का करा धरा था |मैंने बिन्दुवार सूचनाएं दे दीं |

       2 अप्रैल 2012 की सुबह पिताजी को लेकर उनकी शिष्या डा. रंजना बागची सहित परिजन लखनऊ आईं और एस.जी.पी.जी.आई.में रेडिएशन के हेड डा.शालीन कुमार से विमर्श हुआ |अभी भी कुछ तय नहीं हो सका |बेहतर चिकित्सकीय सुविधा के लिए 4 अप्रैल को उन्हें लखनऊ के आस्था नर्सिंग होम में एडमिट किया गया | कष्ट बढ़ता देख 9 अप्रैल को पी.जी.आई.में पिताजी की कुछ जांच हुई |अगले दिन 10 अप्रैल को उनके गले में राइस पाइप डाला गया |आस्था मे एक हफ्ते बिताते यह लगा कि वहाँ से अच्छा उनको घर ले जाना होगा| 13 अप्रैल को छोटी बहन प्रतिमा उनको लेकर अपने घर मॉल एवेन्यू गईं | किन्तु 24 घंटे के अंदर ही वहाँ पिताजी अस्वस्थ हो गए और 14 को उनको फिर से आस्था लाना पड़ा |पिताजी का दर्द बढ़ता ही जा रहा था इसलिए थक हार कर अंतत: 17अप्रैल को पी.जी.आई.में प्राइवेट वार्ड में उन्हें भर्ती करना पड़ा |उसी दिन उनकी रेडियोथेरेपी शुरू हुई |अब पिताजी की स्मृति जाती रही | लगातार 9 दिनों तक उनकी सिंकाई चलती रही और कोर्स पूरा होने पर 27अप्रैल को पी.जी.आई.से रिलीव होकर पिताजी मेरे घर आए |अगली सुबह 28 अप्रैल को प्रतिमा,भाई साहब,अम्मा, विजया दीदी और अनुचर शिवनारायन गोरखपुर के लिए निकले |पिताजी की यह अंतिम लखनऊ यात्रा थी |

      गोरखपुर में 28 की शाम को उनकी नाक और पेशाब से खून आया तो उनको बागची नर्सिंग होम ले जाया गया | उसी रात से पिताजी के जीवन का सूर्य अस्ताचल को जाने की तैयारी में था |29 की सुबह लखनऊ से मैं,पत्नी मीना,बुआ जयंती और उनके पुत्र सर्वेश सड़क मार्ग से गोरखपुर निकले| मेरे ड्राइवर मेराज ने उन दिनों काम छोड़ दिया था इसलिए सर्वेश ही गाड़ी चला कर ले जा रहे थे |खलीलाबाद में उन्होंने असावधानीवश सड़क पर खड़ी एक ट्रक के पीछे के हिस्से में गाड़ी भिड़ा डाली|गाड़ी का अगला शीशा टूट गया लेकिन गनीमत कि हमलोग बच गए |तत्क्षण मैंने महसूस किया कि यह अशुभ लक्षण है .. लगता है पिताजी का अंत निकट है |30 अप्रैल को पिताजी की तबीयत और भी गंभीर हो गई |दिन में उन्हें आक्सीजन पर रखा गया |हमलोग वहीं थे |एक साधक खुश मुहम्मद कसया से उनको देखने आए थे |पिताजी जब चेतनवस्था में आते तो इशारों में सभी से बातें करते |उस रात बडे भाई साहब उनके पास ही रहे| लेकिन पहली मई की भोर में पिताजी को हृदयाघात हुआ |डा. बागची ने खुद आकर उन्हें अटेंड किया |बताया कि उनका गला  और मुंह कफ़ की वज़ह से चोक हो गया है और बाहर से आक्सीजन देने के बावजूद  उनको      सांस लेने में कठिनाई हो रही है |7-30 बजे भाई साहब ने हम लोगों को नर्सिंग होम आने को कहा क्योंकि उन्हें फ्रेश होने के लिए घर आना था |उन्होंने  बताया कि पिताजी के लिए अगले कुछ घंटे कीमती हैं|वे घर के लिए निकले ही थे कि लगभग 9-15 बजे पिताजी को दूसरा हार्ट अटैक पड़ा |मैं,जयंती बुआ,गाँव से आए मैनेजर गीदड़ बाबा,खुश मुहम्मद, सभी अवाक |डा. बागची भी भाग कर आईं,भरपूर कोशिश कीं लेकिन लगभग 9-45 पर उन्होंने उनको मृत घोषित कर दिया | पूरा परिवार ही नहीं उनसे जुड़ा पूरा समाज शोकमग्न हो गया |दोपहर में उनका शव घर लाया गया |चूंकि बहनों और कुछ रिश्तेदारों को बाहर से आना था इसलिए उन सभी के आने पर अगले दिन राप्ती नदी के किनारे आनंदमार्गीय विधि से उनका अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ | 4 मई को आनंदमार्गीय पद्धति से सम्पन्न उनके श्रद्धानुष्ठान में उन पर लिखी पुस्तक “अद्भुत और अद्वितीय आचार्य जी “का विमोचन भी हुआ |इस प्रकार मेरे “हीरो”अब हमारे बीच नहीं थे |

         इस अवधि में दिनचर्या की तमाम उलझनों के बीच सेवा काल के समापन के दिन नजदीक आने और उसके बाद की दिनचर्या पर भी मेरा चिंतन शुरू हो गया था | कभी कभी मैं सोचता हूँ कि अगर मैंने  गोरखपुर में अपने सेवाकाल के अंतिम कुछ वर्ष बिताए होते तो पोस्ट रिटायरमेंट इनगेजमेंट मिलना आसान रहा होता |रिटायर होने के बाद बाहर की कौन कहे विभाग ने ही जिस उपेक्षात्मक रवैये से परिचित कराया वह अकल्पनीय था |                                                   ---------------------------