RUH SE RUH TAK - 1 in Hindi Love Stories by Paagla books and stories PDF | रूह से रूह तक - भाग 1

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रूह से रूह तक - भाग 1


आरव हमेशा से चुपचाप रहने वाला लड़का था। उसकी दुनिया में न दोस्त थे, न महफ़िलें, न ही भीड़ का शोर। उसे लोगों से ज़्यादा किताबों की संगत अच्छी लगती थी। पन्नों के बीच लिखे अनगिनत शब्द उसके साथी बन जाते, और जब भी उसे मन की बात कहनी होती, तो वह अपनी डायरी के पन्नों पर सब उकेर देता।

कक्षा में भी वह सबसे अलग कोने में बैठता, जहाँ उसकी ओर किसी की नज़र न जाती। लोग अक्सर उसे अजीब समझते थे, क्योंकि वह न तो अनावश्यक बातचीत करता और न ही हर छोटी-बड़ी बात पर प्रतिक्रिया देता। मगर सच तो यह था कि उसके भीतर शब्दों का एक सागर छिपा था, जिसे वह सिर्फ़ काग़ज़ पर बहने देता।

उसकी डायरी ही उसका सबसे अच्छा दोस्त थी। उसमें उसके ख़्वाब, उसके डर, उसकी हसरतें, सबकुछ क़ैद था। कभी वह अपने अधूरे सपनों को कविता में ढाल देता, तो कभी अपनी तकलीफ़ों को टुकड़ों-टुकड़ों में शब्दों में बाँट देता।

बाहर से वह जितना खामोश दिखता था, भीतर उतना ही गहरा और संवेदनशील था। मगर दुनिया को यह राज़ कभी पता नहीं चल पाया।
आरव की खामोशी ही उसकी पहचान थी… और वही खामोशी उसकी सबसे बड़ी कहानी लिखने वाली थी।


पहली मुलाक़ात

कॉलेज की कैंटीन, दोपहर का वक्त। बाहर धूप तीखी थी लेकिन कैंटीन के अंदर हल्की-हल्की ठंडक थी। लोहे की लंबी टेबलों पर भीड़ जमी हुई थी। कोई ग्रुप चाय के कप पर बहस कर रहा था, तो कोई कोने में बैठा गिटार बजा रहा था। शोर था, लेकिन उस शोर में भी हर कोई अपनी दुनिया में गुम था।

कैंटीन के सबसे कोने वाली टेबल पर, हमेशा की तरह आरव अकेला बैठा था। उसके सामने आधा भरा हुआ कॉफ़ी का कप रखा था, जिसकी भाप अब लगभग खत्म हो चुकी थी। वह कप को छू भी नहीं रहा था। उसकी निगाहें उसकी डायरी के पन्नों पर जमी थीं। मोटी भूरी जिल्द वाली वो डायरी उसकी ज़िंदगी की सबसे अहम चीज़ थी। उसमें उसके सारे राज़, सारे डर और सारी खामोशियाँ कैद थीं।

उसके हाथ काँपते हुए भी लिख रहे थे। हर शब्द जैसे दिल से टूटकर गिर रहा हो और कागज़ पर आकार ले रहा हो।
उसने लिखा,
"कभी सोचा था कोई आएगा, मेरी खामोशियों को पढ़ लेगा… पर शायद खामोशियों की आवाज़ सबको सुनाई नहीं देती।"

लिखते-लिखते उसकी उँगलियाँ थम गईं। उसने गहरी साँस ली और आस-पास देखा। वही शोरगुल, वही हँसी-मज़ाक। किसी की निगाह उसकी तरफ़ नहीं थी। हमेशा की तरह वह भीड़ में भी अकेला था।

लेकिन किस्मत को शायद आज कुछ और ही मंज़ूर था।

“अरे… ये क्या लिख रहे हो?”
उसने आवाज़ सुनी और चौंककर ऊपर देखा। सामने एक लड़की खड़ी थी, अनाया।

वह बाकी लड़कियों से बिलकुल अलग थी। उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी, जैसे उनमें कोई गुप्त राज़ छुपा हो। होंठों पर वही मासूम मुस्कान, जो किसी भी उदास इंसान को हँसा दे। उसके हाथ में कोल्ड ड्रिंक का ग्लास था, लेकिन उसकी जिज्ञासा साफ़ थी कि उसका ध्यान उस डायरी पर है।

आरव कुछ बोल पाता, उससे पहले ही अनाया ने झटके से डायरी उठा ली।

“वाह! मिस्टर शायर…” उसने शरारत भरे अंदाज़ में कहा और पन्ने पलटने लगी।
“ये सब मेरे लिए लिखा है न?”

आरव के चेहरे पर घबराहट साफ़ झलक रही थी। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने हाथ बढ़ाकर डायरी वापस लेने की कोशिश की,
“नहीं… वो… ये बस…”

अनाया ने डायरी और ऊपर उठा ली, जैसे किसी बच्चे से खिलौना छीनकर छेड़ रहे हों।
“ओहो… इतनी जल्दी क्यों? मुझे भी तो पढ़ने दो। पता नहीं तुम इसमें क्या-क्या राज़ छुपाकर बैठे हो।”

उसकी हँसी इतनी मासूम थी कि आरव गुस्सा भी नहीं हो पा रहा था। बस उसके होंठों से धीमी आवाज़ निकली,
“ये… बस कुछ ख्याल हैं, जो मेरे मन में आते हैं।”

अनाया ने एक पल को उसकी आँखों में गहराई से देखा। उसके चेहरे से हँसी थोड़ी कम हो गई और उसकी जगह एक हल्की सी गंभीरता आ गई।
“ख्याल अगर इतने खूबसूरत हों, तो इन्हें छुपाना नहीं चाहिए। इन्हें दुनिया तक पहुँचना चाहिए।”

आरव का दिल पहली बार किसी ने इतनी आसानी से पढ़ लिया था। वह हैरान था कि उसकी खामोशी को कोई ऐसे समझ भी सकता है। कैंटीन का शोर मानो गायब हो गया था। अब बस वो दोनों थे, एक लड़का जो अपनी खामोशियों में डूबा था और एक लड़की जिसने उन खामोशियों की आवाज़ सुन ली थी।

यही उनकी कहानी की पहली शुरुआत थी।

पहली दोस्ती और करीबियां

उस दिन कैंटीन में हुई मुलाक़ात बस एक शुरुआत थी। आरव सोच रहा था कि शायद अनाया अब भूल जाएगी और अपनी दुनिया में लौट जाएगी, जैसे बाकी सब लोग करते हैं। मगर वह गलत था।

अगले ही दिन क्लास में जब प्रोफ़ेसर नोट्स समझा रहे थे, तो आरव हमेशा की तरह पीछे वाली बेंच पर अकेला बैठा था। अचानक उसे पास ही बैठने की आहट हुई। उसने सिर घुमाया तो देखा, अनाया वहीं उसके बगल में बैठ गई थी।

“क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।

आरव कुछ बोल नहीं पाया, बस हल्का सा सिर हिला दिया। उसके लिए ये बहुत अनजाना था कि कोई उसके पास खुद आकर बैठना चाहे।

क्लास के दौरान अनाया कभी-कभी उसकी कॉपी में झाँक लेती, कभी उसके पेन से कुछ लिख लेती, और फिर मज़ाक में कह देती,
“तुम्हारी लिखावट भी तुम्हारी तरह खामोश है।”

धीरे-धीरे ये सिलसिला रोज़ का हो गया। आरव को उसकी आदत होने लगी थी। वो अब उतना अकेला महसूस नहीं करता था।

लाइब्रेरी के पल

एक दिन दोनों लाइब्रेरी में थे। खामोश कमरा, किताबों की खुशबू, और बाहर से आती हल्की बारिश की आवाज़। अनाया ने एक मोटी सी किताब उठाई और बोली,
“पढ़ाई की किताबें कितनी बोरिंग होती हैं। मुझे तो तुम्हारी डायरी पढ़ना ज़्यादा अच्छा लगेगा।”

आरव ने किताब से नज़रें हटाईं और हल्की मुस्कान दी। ये पहली बार था जब उसने उसके सामने हँसने जैसी कोशिश की थी। अनाया ने तुरंत नोटिस किया और बोली,
“अरे वाह! मिस्टर शायर के होंठों पर मुस्कान! इसे तो सेलिब्रेट करना चाहिए।”

उसने जल्दी से अपनी बैग से चॉकलेट निकाली और उसके सामने रख दी।
“लो, ये तुम्हारी पहली मुस्कान का गिफ्ट है।”

आरव ने चॉकलेट थामी, मगर उसकी आँखों में कृतज्ञता थी। वह कहना चाहता था कि इतने सालों में पहली बार उसे ऐसा लगा है कि कोई सच में उसकी परवाह करता है, मगर उसने कुछ नहीं कहा। उसकी खामोशी ही उसका जवाब थी।

बारिश का जादू

कुछ दिन बाद, कॉलेज के गेट पर तेज़ बारिश शुरू हो गई। सब भागकर शेड के नीचे खड़े हो गए। आरव भीगने से बचने के लिए दीवार से टिक गया। लेकिन अनाया अचानक बारिश में कूद गई।

वह हँसते हुए हाथ फैलाकर घूम रही थी, जैसे बारिश सिर्फ़ उसके लिए बरस रही हो। फिर उसने आरव को आवाज़ दी,
“आओ ना! खामोशी में भीगने का मज़ा नहीं आता, हँसी के साथ भीगना चाहिए।”

आरव हिचकिचाया। उसे लोगों के सामने कभी सहज नहीं लगा। मगर अनाया ने उसका हाथ पकड़ लिया और खींचकर बारिश में ले आई। ठंडी बूँदें उनके बालों और कपड़ों से फिसल रही थीं। आरव पहली बार खुलकर हँसा।

अनाया उसकी आँखों में देखती रही और बोली,
“बस यही चाहिए था… तुम्हें हँसते हुए देखना।”

उस पल आरव को लगा कि उसकी ज़िंदगी की सूखी ज़मीन पर पहली बार बारिश आई है।

छोटी-छोटी बातें, गहरे अहसास

धीरे-धीरे दोनों की दिनचर्या एक-दूसरे से जुड़ गई।
सुबह कैंपस में मिलना, क्लास बंक करके कैंटीन में बैठना, लाइब्रेरी में फुसफुसाकर बातें करना, और शाम को कैंपस के बगीचे में टहलना।

अनाया अक्सर कहती,
“तुम्हारी खामोशी सबसे ज़्यादा बोलती है। बस लोग सुनना नहीं जानते।”

आरव उस बात को अपनी डायरी में लिख लेता और सोचता कि शायद यही वजह है कि वह लड़की बाकी सब से अलग है।

उसकी डायरी अब सिर्फ़ उसके दर्द और अकेलेपन की गवाह नहीं थी। उसमें अनाया की हँसी, उसके सवाल, उसके शब्द भी शामिल हो गए थे।

वह लिखता,
"आज उसने मेरी कॉपी में फूल बना दिया। शायद ये फूल मेरी जिंदगी में भी खिल रहा है।"

या फिर,
"बारिश में भीगते वक़्त उसने मेरा हाथ पकड़ा। उस छूने में जो गर्मी थी, उसने मेरी सारी ठंडक मिटा दी।"

आरव अब समझने लगा था कि यह दोस्ती उसके लिए सिर्फ़ दोस्ती नहीं थी। यह उसकी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत कहानी बनने जा रही थी।

होली का दिन – रंगों में छुपा इज़हार

कॉलेज कैंपस उस दिन किसी मेले जैसा लग रहा था। चारों तरफ़ रंग उड़ रहे थे, ढोल-नगाड़ों की आवाज़ गूँज रही थी, और हर कोई रंगों में सराबोर था। मैदान में स्टॉल लगे थे, कहीं ठंडाई, कहीं गुजिया, तो कहीं रंगों की पिचकारियाँ बिक रही थीं।

आरव हमेशा की तरह इस भीड़ से बचना चाहता था। उसने सोचा था कि लाइब्रेरी के कोने में बैठकर दिन निकाल लेगा। रंग और शोर उसे कभी पसंद नहीं आए। लेकिन इस बार कुछ अलग था। इस बार अनाया थी।

वह जानता था कि अनाया उसे छोड़ने वाली नहीं है।

जैसे ही वह लाइब्रेरी की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा, पीछे से एक शरारती आवाज़ आई-
“अरे मिस्टर शायर! यहाँ भाग कहाँ रहे हो? होली बिना रंगों के अधूरी होती है।”

आरव पलटा। सामने अनाया थी, सफेद कुर्ते में, चेहरे पर हल्की-सी गुलाबी गुलाल की छाप, और हाथ में पिचकारी। उसकी मुस्कान में वही पुरानी शरारत थी।

“मुझे ये सब पसंद नहीं…” आरव ने धीमे स्वर में कहा।

अनाया ने होंठ काटे और बोली-
“अच्छा? तो क्या तुम्हें हमेशा खामोशी और डायरी ही पसंद है? थोड़ी ज़िंदगी भी जी लो आरव।”

इतना कहकर उसने बिना इंतज़ार किए उसकी गाल पर गुलाल मल दिया।
“अब देखो, तुम्हारा चेहरा भी बोलने लगा है।”

आरव कुछ पल के लिए ठिठक गया। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई इतनी आसानी से उसकी दुनिया के नियम तोड़ देगा।

दोस्तों की एंट्री

तभी अनाया के दो-तीन दोस्त भी आ गए।
राहुल,जो हमेशा मज़ाक करने वाला था, बोला,
“ओहो… आरव भाई, आखिरकार रंग लग ही गया आपको।”

दूसरी तरफ़ निशा और साक्षी हँसते हुए कहने लगीं,
“लगता है आरव सिर्फ़ अनाया से ही रंग लगवाने वाले हैं।”

आरव का चेहरा लाल पड़ गया-गुलाल से भी ज़्यादा।
वह कुछ कहने ही वाला था कि अनाया ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोली,
“चलो, अब तुम बच नहीं सकते। आज तुम्हें रंगों में डूबना ही पड़ेगा।”

मैदान में धूम

वह उसे खींचकर मैदान में ले आई। वहाँ सैकड़ों छात्र-छात्राएँ रंगों में नहा रहे थे। ढोल की थाप पर डांस हो रहा था। हवा में गुलाल की सुगंध और ढोल की धुन घुली हुई थी।

अनाया ने उसकी ओर पिचकारी तानी और हँसते हुए बोली-
“भाग सकते हो तो भाग जाओ!”

आरव ने पहली बार उसके सामने हार मान ली। उसने सिर झुका लिया और कहा-
“ठीक है… कर लो जो करना है।”

अनाया ने पिचकारी से उसके सीने पर नीले रंग की बौछार कर दी। फिर बोली-
“ये रहा तुम्हारा असली रंग। अब तुम मेरे रंग में रंग चुके हो।”

आरव उसकी आँखों में देखता रह गया। भीड़, शोर, ढोल, सब धुँधला लग रहा था। बस वो दोनों थे, और उनके बीच रंगों की ये डोर।

भीड़ से दूर का पल

कुछ देर बाद, जब भीड़ और ज़्यादा हो गई, अनाया ने कहा-
“चलो, थोड़ा इधर चलते हैं।”

वह उसे कैंपस के पुराने बरगद के पेड़ के पास ले गई। वहाँ शांति थी, सिर्फ़ हल्की हवा और दूर से आती ढोल की आवाज़।

अनाया ने उसकी तरफ़ देखा और धीमे से बोली—
“जानते हो आरव, मैंने तुम्हें पहली बार कैंटीन में देखा था तो लगा था तुम बहुत अलग हो। सब से दूर, खामोश। लेकिन आज…”

उसने उसके चेहरे पर हाथ रखा और कहा,
“आज तुम रंगों में उतने ही खूबसूरत लग रहे हो, जितनी तुम्हारी कविताएँ हैं।”

आरव ने उसकी हथेली को थाम लिया। उसके शब्द गले में अटक गए, लेकिन आँखें सब कह रही थीं।

तभी आरव की नजर उसके कंगन पर पड़ी,
“अनाया ने बताया, ये कंगन नानी ने दिया है। मैं हमेशा पहनती हूँ। कहते हैं, ये अपनों को जोड़कर रखता है।”
आरव ने हँसकर कहा था, 
“तो अब ये हमें हमेशा साथ रखेगा।”

उसने धीमी आवाज़ में कहा-
“अनाया… शायद तुम ही वो हो, जो मेरी खामोशी को सच में सुन सकती हो।”

दोस्तों की शरारत

अचानक पीछे से राहुल और बाकी दोस्त आ गए।
“ओहो! यहाँ तो रंगों से ज़्यादा कुछ और ही खेल चल रहा है,” राहुल ने चुटकी ली।

अनाया हँस पड़ी और तुरंत आरव से दूर हट गई।
“चुप रहो राहुल! चलो, सबको ठंडाई पिलाते हैं।”

लेकिन आरव के दिल में उस पल की धड़कनें अब भी गूँज रही थीं।

इज़हार के करीब

शाम तक सब थक गए थे। मैदान में रंगों की परतें बिछी थीं, हँसी और ढोल की गूँज अभी भी कानों में बज रही थी।
आरव और अनाया अकेले बगीचे की बेंच पर बैठे थे।

अनाया ने कहा-
“आज का दिन याद रहेगा, है ना?”

आरव ने डायरी निकाली और लिखा-
“आज पहली बार मुझे लगा कि रंग सिर्फ़ चेहरे पर नहीं, दिल पर भी चढ़ते हैं।”

अनाया ने झाँककर पढ़ा और मुस्कुराई-
“तो मिस्टर शायर, ये सब मेरे लिए लिखा है न?”

आरव ने उसकी ओर देखा, और इस बार बिना झेंपे बोला-
“हाँ, ये सब सिर्फ़ तुम्हारे लिए है।”

उसके बाद दोनों के बीच खामोशी छा गई, लेकिन वो खामोशी पहले जैसी नहीं थी। उसमें अनकहा इज़हार छुपा था।

बाइक राइड – वो सफ़र जिसने सब बदल दिया

होली के उस दिन के बाद आरव और अनाया की दोस्ती और भी गहरी हो गई थी। रंगों में खेली गई वह मासूमियत अब रिश्ते की नई परतें खोल रही थी। अनाया अक्सर उसे छेड़ती,
“मिस्टर शायर, अब तो तुम्हें दुनिया की भीड़ में भी जीना आ गया होगा।”

आरव मुस्कुरा देता, लेकिन भीतर से मान चुका था कि उसकी ज़िंदगी में अब एक नया रंग आ चुका है, अनाया का रंग।

सफर की शुरुआत

एक हफ़्ते बाद, कॉलेज से छुट्टी थी। मौसम सुहाना था। आसमान हल्के बादलों से ढका था, जैसे धूप ने खुद को सफेद चादर से ढक लिया हो। हवा में गर्मी और ठंडक का अजीब-सा संतुलन था।

अनाया ने अचानक कहा-
“आरव, आज कहीं चलते हैं। सिर्फ़ तुम और मैं। ये शहर कितना बड़ा है, और हमें सिर्फ़ क्लासरूम और कैंटीन ही दिखता है। चलो कहीं दूर चलते हैं।”

आरव पहले हिचकिचाया।
“पता नहीं… मैं बाहर घूमने में अच्छा नहीं हूँ।”

“तो सीख लो। वैसे भी, तुम्हें कौन सा अकेले जाना है। मैं हूँ न तुम्हारे साथ।”

उसकी आँखों में चमक थी। आरव ने पहली बार इतनी सहजता से ‘हाँ’ कहा।
“ठीक है। चलो।”

आरव की बाइक कॉलेज के पार्किंग में खड़ी थी। काली रंग की पुरानी लेकिन संभली हुई बाइक। उसने हैलमेट उठाया और अनाया की तरफ़ बढ़ाया।
“ये पहन लो।”

अनाया हँसी,
“ओहो! कितने जिम्मेदार हो मिस्टर शायर। ठीक है, चलो।”

उसने हैलमेट पहन लिया और बाइक के पीछे बैठ गई। जैसे ही उसने आरव के कंधे को हल्के से पकड़ा, आरव के भीतर एक अजीब-सी गुनगुनाहट उठी।

सड़क और मौसम

बाइक कैंपस से निकलकर शहर की सड़कों पर दौड़ने लगी। सड़कें चौड़ी थीं, दोनों ओर पेड़ों की कतारें। हवा के झोंके चेहरे से टकराते, अनाया के खुले बाल उड़कर आरव के गालों को छू जाते।

ट्रैफ़िक का शोर धीरे-धीरे पीछे छूट रहा था। शहर का भीड़-भाड़ वाला इलाका ख़त्म होते ही रास्ते पर शांति छा गई। दूर तक खेत, कहीं-कहीं छोटे घर, और सड़क के किनारे लगी चाय की टपरी।

अनाया ने पीछे से धीरे से कहा,
“वाह, कितना अच्छा लग रहा है। हवा में जैसे आज़ादी की खुशबू है।”

आरव ने हल्के से मुस्कुराकर जवाब दिया,
“तुम्हें पता है, मैं ज़्यादातर अकेले सफ़र करता था। लेकिन आज पहली बार लग रहा है कि सफ़र सिर्फ़ मंज़िल तक पहुँचने के लिए नहीं, किसी के साथ जीने के लिए भी होता है।”

अनाया चुप रही। उसके हाथ थोड़े कसकर आरव के कंधों पर टिक गए।

बातें और खामोशियाँ

रास्ते भर अनाया लगातार बोलती रही, अपने बचपन की कहानियाँ, स्कूल की शरारतें, सपने, और कुछ अधूरी ख्वाहिशें।
“जानते हो, मैं हमेशा चाहती थी कि कोई ऐसा दोस्त हो, जिससे मैं सबकुछ कह सकूँ। बिना डर, बिना झिझक।”

आरव ने धीमे स्वर में कहा,
“शायद अब वो तुम्हें मिल गया है।”

अनाया मुस्कुरा दी।
“हाँ… शायद।”

उनकी बातें कभी तेज़, कभी धीमी। कभी खामोशियाँ भी शब्दों से ज़्यादा कह जाती थीं। बाइक की गड़गड़ाहट और हवा का शोर उन खामोशियों को और गहरा बना देता।

कुदरत का जादू

बाइक अब हाइवे से निकलकर एक देहाती रास्ते पर मुड़ चुकी थी। चारों तरफ़ हरियाली थी। सरसों के खेतों में पीले फूल हवा के साथ झूम रहे थे। कहीं-कहीं पेड़ों की छाँव सड़क पर बिछी थी, जैसे धूप-छाँव का खेल चल रहा हो।

अनाया ने खुशी से कहा,
“रुको! बाइक रोकना।”

आरव ने ब्रेक लगाया।
“क्या हुआ?”

“मैं सरसों के खेत देखना चाहती हूँ।”

वह दौड़कर खेत की ओर चली गई। हवा में उसके दुपट्टे का लाल रंग उड़ रहा था, जैसे किसी पेंटिंग में तूलिका से खींची गई एक लकीर।

आरव बाइक के पास खड़ा उसे देखता रहा।
उसे लगा, जैसे पूरा नज़ारा उसी के लिए ठहर गया हो।

अनाया ने मुट्ठी भर फूल तोड़े और वापस आई। उसने एक फूल आरव को पकड़ाया और कहा,
“ये तुम्हारे लिए। याद रखना, सफ़र सिर्फ़ मंज़िल के लिए नहीं होता।”

आरव ने फूल लिया और उसे डायरी के पन्ने में दबा दिया।

मोड़ – हादसे की आहट

सफ़र फिर शुरू हुआ। सूरज धीरे-धीरे ढलने लगा था। आसमान नारंगी रंग में रंगा था, पक्षियों के झुंड लौट रहे थे।

लेकिन अब सड़क थोड़ी सँकरी और ऊबड़-खाबड़ हो गई थी। दाएँ तरफ़ गहरी खाई और बाएँ तरफ़ घना जंगल। हवा की गूंज और भी तेज़ हो चुकी थी।

अनाया ने धीरे से कहा,
“आरव, थोड़ा धीरे चलाओ। ये रास्ता थोड़ा डरावना लग रहा है।”

आरव ने सिर हिलाकर रफ़्तार कम करने की कोसिस की।
लेकिन तभी सामने से एक ट्रक तेज़ रोशनी के साथ आया। ट्रक की हेडलाइट्स ने उनकी आँखों को चौंधिया दिया। सड़क सँकरी थी और मोड़ खतरनाक।

आरव ने बाइक संभालने की कोशिश की, लेकिन अचानक एक कुत्ता सड़क पर आ गया। ब्रेक लगाने पर बाइक लड़खड़ा गई और दोनों सड़क किनारे गिर पड़े।

हवा में ठहराव

कुछ सेकंड के लिए सब रुक गया। हवा, आवाज़ें, यहाँ तक कि धड़कनें भी।

आरव उठने की कोशिश करता है, उसका माथा छिल गया था। लेकिन अनाया… वह ज़मीन पर चुप पड़ी थी।

आरव ने घबराकर उसका नाम पुकारा,
“अनाया!! उठो… देखो, कुछ नहीं हुआ।”

लेकिन उसकी आँखें बंद थीं। होंठों पर मुस्कान का हल्का-सा अक्स था, जैसे वो अभी भी कोई सपना देख रही हो।

आरव की साँसें तेज़ हो गईं। उसने उसका हाथ पकड़ा और काँपती आवाज़ में कहा,
“नहीं… तुम ऐसे मुझे छोड़ नहीं सकती।”
और फिर आरव बेहोश हो गया 

टूटे सपनों का कमरा

धीरे-धीरे पलकें खुलीं। आँखों के सामने सफ़ेद छत थी, जिस पर एक ट्यूबलाइट की धुंधली रोशनी झिलमिला रही थी। कानों में मशीनों की बीप-बीप की आवाज़ गूँज रही थी। हवा में दवाइयों की तीखी गंध फैली थी।
आरव ने हिलने की कोशिश की, मगर शरीर बोझिल था, मानो हर नस पर किसी ने पत्थर रख दिए हों। गले में सूखापन था, होंठ फटे हुए।

कई सेकंड तक उसे समझ ही नहीं आया कि वो कहाँ है। सब धुँधला था, सब अजनबी।
लेकिन फिर अचानक स्मृतियाँ बिजली की तरह कौंधीं।
सड़क… तेज़ रोशनी… ट्रक का शोर… और अनाया की चीख।

उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
उसने बेताबी से सिर घुमाया।
“अनाया…?”

कमरे में कोई नहीं था। बस, पास वाली मेज़ पर पानी का गिलास रखा था और उसके बगल में एक छोटा-सा कंगन। वही कंगन, जिसे अनाया हमेशा पहनती थी।
काँच की चूड़ियों के बीच एक चाँदी का पतला-सा गोला, जिसमें छोटे-छोटे मोती जड़े थे।

आरव ने काँपते हुए हाथ बढ़ाया। उंगलियाँ कमजोर थीं, मगर उसने पूरी ताक़त लगाकर कंगन को उठाया।
जैसे ही वो उसकी हथेली में आया, उसकी आँखें धुंधली हो गईं। आँसू बहने लगे।

उसने बुदबुदाते हुए कहा,
“तू मुझे छोड़कर कैसे जा सकती है अनाया…?”

वो पल किसी खंजर की तरह उसके सीने को चीर गया।
उसके कानों में अब भी अनाया की हँसी गूँज रही थी, वही हँसी जो कैंटीन में गूँजती थी, लाइब्रेरी में फुसफुसाहटों के बीच सुनाई देती थी, बारिश में भीगते हुए सड़कों पर गूँजती थी।
लेकिन आज वही हँसी एक दर्दनाक खामोशी में बदल गई थी।

कमरे की खामोशी और टूटा हुआ दिल

कमरे में घड़ी टिक-टिक कर रही थी। हर सेकंड आरव के लिए एक चुभन बन रहा था।
उसने आँखें बंद कीं और यादों की परतें खुलने लगीं।

अनाया की मुस्कुराती आँखें…
वो शरारती लहजा जब उसने डायरी छीनी थी…
बारिश में उसका हाथ पकड़ना…
और बाइक पर पीछे बैठकर उसकी कमर को कसकर पकड़ लेना।

सब कुछ जैसे अभी भी उसके पास था। लेकिन अब बस स्मृतियों में।

“क्यों, अनाया?” उसकी आवाज़ टूट गई।
“मैं तो हमेशा तुझे अपने पास रखना चाहता था… फिर तू मुझे ऐसे अधूरा छोड़कर क्यों चली गई?”

कंगन उसके हाथ से छूटकर तकिये पर गिर पड़ा।
आरव ने चेहरा हाथों में छुपा लिया और फूट-फूटकर रो पड़ा।

डॉक्टर और नर्स की हलचल

दरवाज़ा खुला। डॉक्टर और नर्स अंदर आए।
“गुड, आप होश में आ गए।” डॉक्टर ने कहा।
आरव ने उनकी तरफ़ देखा, लेकिन कुछ बोला नहीं।

डॉक्टर ने उसका चार्ट चेक किया, नर्स ने ड्रिप ठीक की।
“आप बहुत lucky हैं। उस हादसे में आपकी जान बचना किसी चमत्कार से कम नहीं।”

आरव ने सुना, मगर उसके लिए इन शब्दों का कोई मायने नहीं था।
उसके लिए तो वो रात उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा अभिशाप थी।

“अनाया… कहाँ है वो?” उसने टूटे स्वर में पूछा।

डॉक्टर ने नज़रें झुका लीं।
“वो… बच नहीं सकी।”

बस इतना सुनना था। आरव का दिल मानो दो टुकड़े हो गया।
उसकी साँसें भारी हो गईं। उसने चादर को भींच लिया।

डॉक्टर ने नर्स को इशारा किया और दोनों चुपचाप बाहर चले गए।
कमरे में फिर वही खामोशी छा गई।

कंगन की कहानी

आरव ने तकिये पर पड़े कंगन को उठाया।
उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं, आँखों में धुंधलापन था।
“तूने ही तो कहा था, अनाया… ये कंगन मेरा lucky charm है। जब तक ये मेरे पास रहेगा, सब अच्छा होगा।”

उसकी आवाज़ सिसकियों में टूट गई।
“लेकिन आज तू ही नहीं है। अब ये किस काम का?”

उसने कंगन को अपनी मुट्ठी में कसकर पकड़ लिया।
मानो उस ठंडे धातु में अनाया की गर्माहट तलाश रहा हो।

उसे याद आया, कॉलेज की होली पर अनाया ने ही उसे ये कंगन दिखाया था।
“देखो आरव, ये कंगन नानी ने दिया है। हमेशा पहनती हूँ। कहते हैं, ये अपनों को जोड़कर रखता है।”
आरव ने हँसकर कहा था, 
“तो अब ये हमें हमेशा साथ रखेगा।”

लेकिन आज वही कंगन उसके पास था, और अनाया कहीं नहीं।

रात की तन्हाई

रात धीरे-धीरे गहराने लगी। बाहर सन्नाटा था।
आरव अस्पताल की खिड़की से बाहर देखता रहा।
सड़क की बत्तियाँ पीली रोशनी में झिलमिला रही थीं। कभी-कभी किसी गाड़ी की हेडलाइट कमरे में पड़ती और फिर ग़ायब हो जाती।

वो सोचने लगा,
अगर उस रात उसने बाइक धीरे चलाई होती…
अगर वो रास्ता बदल लेते…

“शायद तू ज़िंदा होती अनाया…”
उसकी आँखें फिर भर आईं।

उसने खुद से वादा किया,
“मैं तुझे कभी नहीं भूलूँगा। मेरी हर साँस में तू होगी। मेरी हर धड़कन तेरा नाम लेगी।”

लेकिन दिल के किसी कोने में एक कसक थी,
क्या सच में ये सिर्फ़ हादसा था? या इसके पीछे कोई और राज़ छुपा था?



अधूरी मोहब्बत का बोझ

अगले दिन, जब सुबह की धूप खिड़की से अंदर आई, आरव थका हुआ-सा लेटा था।
उसकी आँखें सूजी हुई थीं, चेहरा बुझा हुआ।
नर्स आई और बोली,
“आप discharge हो सकते हैं। लेकिन ख्याल रखना, अभी कमजोर हैं।”

आरव ने कुछ नहीं कहा।
बस अपने कपड़ों में कंगन को जेब में रखा और बाहर निकल आया।

अस्पताल की सीढ़ियों पर खड़ा होकर उसने आसमान की तरफ़ देखा।
सूरज की रोशनी तेज़ थी, मगर उसके लिए सब अंधेरा था।

भीड़-भाड़ वाले शहर में हर कोई अपनी ज़िंदगी में भाग रहा था। लेकिन आरव को लगा, उसकी ज़िंदगी वहीं उस मोड़ पर रुक गई है, जहाँ अनाया उसे छोड़कर चली गई।


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नए सफ़र की शुरुआत

उसने खुद से कहा,
“अब मेरी ज़िंदगी का मक़सद सिर्फ़ यही होगा, अनाया। तेरी यादों को संजोना, तेरे अधूरे सपनों को पूरा करना। चाहे कोई समझे या न समझे, मैं तुझे हमेशा अपने साथ रखूँगा।”

उसकी आँखों से आँसू फिर बह निकले, मगर इस बार उनमें एक अजीब-सी ठान भी थी।
अनाया भले ही दूर चली गई थी, मगर उसका प्यार, उसकी यादें और वो कंगन अब आरव की रूह से बंध चुके थे।

उसे नहीं पता था कि ये कंगन सिर्फ़ एक याद नहीं, बल्कि आने वाले दिनों में उसकी अधूरी मोहब्बत और उस हवेली के रहस्य से भी जुड़ा हुआ है।


रूह से रूह तक भाग - 2