Rooh se Rooh tak - 2 in Hindi Horror Stories by Paagla books and stories PDF | रूह से रूह तक - भाग 2

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रूह से रूह तक - भाग 2

हॉस्पिटल के उस कमरे में जहाँ अनाया का कंगन पहली बार उसकी हथेली में आया था, वहीं से आरव की ज़िंदगी ने नया मोड़ लिया। वह अक्सर सोचता,
"क्यों बचा लिया मुझे… जब मेरा सब कुछ मुझसे छिन गया?"

कभी-कभी रातों में वह खिड़की से बाहर आसमान को देखता और फुसफुसाता,
“अनाया, अगर तू होती, तो कहती कि भागना हल नहीं है। शायद तू कहती कि अपने दर्द को ताक़त बना।”

उस दिन से उसने अपने आँसुओं को कागज़ पर उतारना शुरू किया। डायरी के हर पन्ने में अनाया की यादें थीं,पर धीरे-धीरे वही पन्ने उसके रिसर्च के नोट्स में बदलने लगे।

कैंपस की लाइब्रेरी उसका दूसरा घर बन गई। सुबह की ठंडी हवा जब खिड़कियों से अंदर आती, तो आरव चुपचाप किसी कोने में बैठा किताबों के ढेर में खोया रहता।
उसके गाइड, प्रोफेसर मेहरा, कई बार उसे देख कर हैरान हो जाते।
“आरव,” उन्होंने एक दिन कहा, “रात-दिन पढ़ने से रिसर्च नहीं होती। रिसर्च सवाल पूछने से होती है।”

आरव ने धीमी आवाज़ में जवाब दिया,
“सर, मेरे पास सवालों की कमी नहीं है। जवाब ढूँढ रहा हूँ।”

और यही उसका पहला कदम था, दर्द से रिसर्च की तरफ़।

उस साल उसने खुद को पूरी तरह पढ़ाई में झोंक दिया। दोस्तों ने कई बार बुलाया, पार्टियाँ कीं, पर वह कभी नहीं गया।
उसकी डायरी अब कविताओं से कम और आंकड़ों व विचारों से ज़्यादा भरने लगी।

कभी-कभी आधी रात को वह अपनी ही लिखी थ्योरी पढ़ते-पढ़ते रुक जाता और सोचता,
“अनाया, अगर तू होती, तो शायद मुझे डाँटती… कहती, इतना मत पढ़ो, पागल हो जाओगे!”
और फिर हल्की-सी मुस्कान उसके होंठों पर आ जाती।

आरव ने अपना पहला रिसर्च पेपर लिखा। उसने उम्मीद की थी कि यह सबको पसंद आएगा। लेकिन रिव्यू बोर्ड से जवाब आया - रिजेक्टेड।
उस रात उसने कागज़ को फाड़कर फेंक दिया और बिस्तर पर गिर पड़ा।
आँखें बंद कीं, तो अनाया का चेहरा उभरा।
“आरव,” जैसे वह कह रही हो, “हार मत मानो। याद है कॉलेज में भी तुम कहते थे,मैं तुझसे वादा करता हूँ, कभी हार नहीं मानूँगा?”

वह अचानक उठ बैठा। फटे हुए कागज़ जो डस्टबिन में पड़े थे, उन्हें जोड़ने लगा।
उसने खुद से कहा-
“अगर मैं गिरा हूँ, तो उठकर और मज़बूत बनूँगा।”

तीसरे साल के अंत तक उसके दो पेपर पब्लिश हो चुके थे। यूनिवर्सिटी में लोग उसे पहचानने लगे। लेकिन उसके भीतर अब भी वही खामोशी थी, जो सिर्फ़ डायरी सुनती थी।

अब उसकी थीसिस लगभग पूरी हो चुकी थी। उसका विषय था,
“मानव भावनाओं और स्मृतियों का सामाजिक जीवन पर प्रभाव।”

यह विषय उसके अपने जीवन से निकला था।
डिफेंस वाले दिन बड़े-बड़े प्रोफेसर उसके सामने बैठे थे।
आरव ने प्रोजेक्टर ऑन किया और आत्मविश्वास से कहना शुरू किया,
“हमारे अनुभव सिर्फ़ अतीत में नहीं रहते, वे हमारे वर्तमान और भविष्य को भी गढ़ते हैं। स्मृतियाँ कभी मरती नहीं… वे हमें जीने की वजह देती हैं।”

जब उसकी प्रेज़ेंटेशन खत्म हुई, तो कमरे में कुछ पल सन्नाटा रहा। फिर तालियों की गड़गड़ाहट गूँजी।
प्रोफेसर मेहरा ने गर्व से कहा,
“आरव, तुमने सिर्फ़ रिसर्च नहीं की… तुमने रिसर्च को जिया है।”

उसके हाथ में डिग्री आई, चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन दिल में वही खालीपन।
वह सोच रहा था,
“अनाया, आज अगर तू होती, तो ये जीत अधूरी न लगती।”

चार साल बीत चुके थे।
चार साल,जिन्होंने आरव को भीतर से खोखला कर दिया था।
उसकी हँसी, उसकी मोहब्बत, उसकी चाहतें सब उसी रात खत्म हो गई थीं, जब अनाया हमेशा के लिए उससे जुदा हो गई।

अब उसके पास ज़िंदगी बस गुज़ारने लायक बची थी।
दिन-रात किताबों और रिसर्च में खोकर वो खुद को दर्द से दूर रखना चाहता था। शायद यही वजह थी कि जब उसे इस रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए चुना गया और पता चला कि जगह एक पुरानी, वीरान हवेली है, तो उसने बिना सोचे हाँ कर दी।

लोगों ने कहा था,
“वहाँ अजीब घटनाएँ होती हैं।”
“कोई वहाँ रातभर टिक नहीं पाता।”
“हवेली में भूत-प्रेत का साया है।”

लेकिन आरव के लिए इन बातों का कोई मतलब नहीं था।
जिस इंसान ने सब कुछ खो दिया हो, वो और क्या खोएगा?


---

बरसात की शाम

उस दिन आसमान काले बादलों से भरा था।
बिजली बार-बार आसमान को चीरती और उसके साथ गड़गड़ाहट जैसे आसमान को फाड़ देने वाली आवाज़ करती।
बारिश की बूँदें इतनी तेज़ थीं कि जैसे कोई हजारों पत्थर एक साथ ज़मीन पर गिरा रहा हो।

आरव उस काली शाम में हवेली के गेट तक पहुँचा।
गेट पर काई जमी थी। लोहे की सलाखें जंग से खुरदरी हो चुकी थीं।
हवा में एक अजीब-सी सीलन और गंध थी, मानो सदियों से कोई यहाँ आया ही न हो।

जैसे ही उसने गेट को धक्का दिया, उसके hinges
चिरचिराकर चीख उठे।
आवाज़ इतनी तीखी थी कि उसके कानों में गूंजती चली गई।


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रामदीन चाचा की एंट्री

गेट खुला ही था कि एक झिलमिलाती लालटेन हवा में लहराती हुई सामने आई।
वो एक बूढ़ा आदमी था, झुकी हुई कमर, बेतरतीब सफ़ेद दाढ़ी, आँखों के नीचे गहरी झुर्रियाँ, और एक खामोशी भरी थकान।

उसने ठंडी, काँपती आवाज़ में कहा, 
“साहब… ये जगह ठीक नहीं है। जो यहाँ आता है… कभी लौटकर नहीं जाता।”

आरव ने उसकी आँखों में देखा।
उन आँखों में डर ही नहीं, बल्कि किसी पुराने राज़ का बोझ भी छुपा था।

मगर आरव बस हल्का-सा मुस्कुराया।
“मेरे पास खोने के लिए अब बचा ही क्या है?”

उसकी मुस्कान ऐसी थी, जैसे कोई इंसान अपने जख्म को दिखाते हुए कहे कि अब उसे दर्द का भी डर नहीं।

रामदीन चाचा कुछ कहना चाहते थे, मगर तभी आसमान गड़गड़ा उठा।
बिजली कौंधी और हवेली का विशाल दरवाज़ा अपने आप ज़ोर से खुल गया।
आवाज़ इतनी तेज़ थी मानो किसी ने ज़ंजीरें तोड़ दी हों।

लालटेन की रोशनी में हवेली का दरवाज़ा अब काला मुँह बनाकर खड़ा था,
जैसे वो आरव को निगलने के लिए बुला रहा हो।


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हवेली का पहला कदम

आरव ने गहरी साँस ली और अंदर कदम रख दिया।
रामदीन चाचा लालटेन लेकर पीछे-पीछे आए।

अंदर का माहौल और भी भयावह था।
दीवारों पर जाले लटके थे।
कोनों में चमगादड़ें सरसराते हुए उड़ रही थीं।
फ़र्श टूटा-फूटा था और हर कदम पर लकड़ी की चटखने की आवाज़ आती थी।

कमरे में सीलन की गंध थी, मानो सदियों से खून और आँसुओं की बू यहाँ चिपकी हो।
कहीं से पानी टपकने की आवाज़ आ रही थी, “टप… टप… टप…”
ये आवाज़ इतनी लगातार थी कि आरव को ऐसा लग रहा था मानो वो उसके दिल की धड़कनों से तालमेल बिठा रही हो।


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पहला डरावना अहसास

अचानक पीछे से दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
“धड़ाम!”

आवाज़ इतनी तेज़ थी कि दीवारें काँप उठीं।
रामदीन चाचा डरकर बोले,
“देखा साहब! मैंने कहा था न, ये जगह अपशकुनी है। हवेली अपने मेहमान खुद चुनती है।”

आरव ने चारों तरफ़ नज़र डाली।
उसकी आँखों में डर नहीं, बल्कि अजीब-सी बेचैनी थी।
मानो वो अंदर ही अंदर किसी का इंतज़ार कर रहा हो।

तभी अचानक हवेली के अंधेरे गलियारे में एक धीमी हँसी गूँजी।
वो हँसी बिलकुल वही थी,
वही मासूम, शरारती हँसी…
जो उसने चार साल पहले आख़िरी बार सुनी थी।

आरव का दिल जोर से धड़का।
उसने बुदबुदाया,
“अनाया…?”

रामदीन चाचा काँपते हुए बोले,
“साहब, आपने भी सुनी न…? यही वो हँसी है जो हर रात इन दीवारों में गूँजती है। कभी रोना, कभी चीख… और कभी ये मासूम हँसी।”


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दीवारों की फुसफुसाहट

हवेली की दीवारें अब अजीब आवाज़ें निकाल रही थीं।
कहीं से पायल की छन-छन सुनाई दे रही थी।
कहीं दरवाज़े खुद-ब-खुद चरमराकर खुल-बंद हो रहे थे।

आरव आगे बढ़ा।
उसके कदम भारी थे, मगर दिल में एक अजीब खिंचाव था।
जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे भीतर बुला रहा हो।

अचानक एक टूटी हुई खिड़की से हवा का झोंका आया और उसकी जेब में रखा अनाया का कंगन बाहर निकलकर ज़मीन पर गिर पड़ा।
कंगन ज़मीन पर लुढ़कता हुआ सीढ़ियों की तरफ़ चला गया।

आरव ने घबराकर उसे उठाना चाहा, मगर तभी उसे लगा…
सीढ़ियों के ऊपर से किसी ने उसका नाम पुकारा,
“आरव…”

उसकी रूह काँप गई।
ये वही आवाज़ थी, वही सुर…
जैसे अनाया फिर से ज़िंदा हो गई हो।

रामदीन चाचा के हाथ से लालटेन काँपने लगी।
“न-नहीं साहब… ये इंसानी आवाज़ नहीं है। ये उस आत्मा की पुकार है। मत जाओ उस तरफ़।”

लेकिन आरव के कदम मानो अपने आप सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगे।
हर पायदान पर चढ़ते हुए उसके कानों में यादें गूँज रही थीं,
अनाया की हँसी, उसका गुस्सा, उसकी मासूम बातें।


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हवेली का जाल

ऊपर पहुँचते ही उसने देखा,
एक कमरा, जिसकी दीवारों पर पुरानी पेंटिंग्स लगी थीं।
पेंटिंग्स में औरतें थीं, कुछ हँसती हुई, कुछ रोती हुई, कुछ के चेहरे पर खून के धब्बे।

जैसे ही आरव ने दरवाज़ा खोला, कमरे में ठंडी हवा का भयानक झोंका आया।
लालटेन बुझ गई।
पूरा कमरा अंधेरे में डूब गया।

उस अंधेरे में, अचानक वही पायल की छन-छन गूँजी।
और फिर…
आरव के कंधे पर किसी ठंडी हथेली का स्पर्श हुआ।

उसका पूरा शरीर सिहर गया।
उसने धीरे-धीरे पलटकर देखा,
और उसके सामने थी…

अनाया।

सफ़ेद कपड़ों में, बिखरे बालों में, लाल आँखों में, और चेहरा कभी मुस्कुराता… कभी खून से सना हुआ।

आरव की साँसें थम गईं।
“अनाया…”

उसकी आँखें आँसुओं से भर गईं।
मगर उसी पल अनाया की आँखें लाल हो गईं और उसने चीख मारी,
“क्यों नहीं बचाया मुझे उस रात, आरव?!”

कमरा गूँज उठा।
दीवारें काँपने लगीं।
और आरव को एहसास हुआ,
वो अब सिर्फ़ हवेली में नहीं है,
वो अपने अतीत की कैद में प्रवेश कर चुका है।


बरसों का दर्द अपने भीतर दबाए आरव जब उस जर्जर हवेली में आया, तो उसके लिए ये बस एक पुराना मकान नहीं था। ये जगह उसके अतीत की यादों से भरी हुई थी, अँधेरे, खामोशी और अधूरेपन की तरह।
हवा में सीलन थी, पुराने फर्श की दरारों से अजीब सी बदबू आती थी। टूटी खिड़कियों से बारिश की बूँदें भीतर गिरकर पत्थर पर टपकतीं, और हर टपकन जैसे उस वीराने में गूँज उठती।

रामदीन चाचा ने हाथ जोड़कर कहा था,
“साहब, यह जगह ठीक नहीं है। यहाँ कुछ ऐसा है… जिसे इंसानी आँखें देख नहीं सकतीं।”
मगर आरव ने बस फीकी मुस्कान दी थी,
“मेरे पास अब खोने के लिए कुछ नहीं है।”

वह उस हवेली के भीतर चला आया। अंधकार उसे निगलने को था, मगर उसके भीतर का अंधकार कहीं ज़्यादा गहरा था।
कमरे में पहुँचकर उसने अपनी पुरानी डायरी खोली, वही डायरी जिसमें अनाया के लिए लिखी हर शायरी, हर ख्वाब और हर दर्द दर्ज था।

वह पन्नों को पलट ही रहा था कि अचानक,
पन्ने अपने आप हिलने लगे।
हवा बिल्कुल बंद थी, मगर पन्ने जैसे किसी अदृश्य हाथ से पलट रहे हों। और फिर एक पन्ने पर खुद-ब-खुद शब्द उभरने लगे,

“याद है… तुमने कहा था कि मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ोगे?”

आरव का पूरा शरीर काँप उठा। उसकी साँसें रुक गईं। उंगलियाँ ठंडी पड़ गईं।
उसने काँपते हुए बुदबुदाया,
आरव: “अ…अनाया? क्या सच में… तू है?”

कमरे का दरवाज़ा धीरे-धीरे अपने आप चरमराते हुए खुला। हवा का तेज़ झोंका आया और उसके साथ मिट्टी, धूल और ठंडी नमी की गंध फैली।
धुंध के बीच एक आकृति उभरने लगी।
वह चेहरा… वही आँखें… वही मुस्कान।
अनाया।

उसकी आँखें बिल्कुल वैसी ही थीं जैसी आरव ने आख़िरी बार देखी थीं, गहरी, मासूम, और मोहब्बत से भरी। मगर इस बार उनमें कुछ और था… एक अजीब सा दर्द, एक अधूरापन।

अनाया (हल्की मुस्कान के साथ):
“हाँ आरव… मैं ही हूँ। देखा? मैंने कहा था न… मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊँगी।”

आरव की आँखों से आँसू छलक पड़े।
उसने काँपती आवाज़ में कहा,
आरव:
“तू चली क्यों गई थी अनाया…? मैं अब तक तुझी में जी रहा हूँ। तेरे बिना सब कुछ सूना है, अधूरा है।”

अनाया पास आई। उसकी ठंडी हथेली आरव के गाल से गुज़र गई।
आरव ने उसे छूने की कोशिश की, मगर उसका हाथ हवा में ही ठहर गया।
उसका दिल टूटकर फिर से बिखर गया।

अनाया (हल्की हँसी के साथ):
“अब मैं सिर्फ़ अहसास हूँ, आरव। छू तो नहीं सकते… लेकिन तंग ज़रूर कर सकती हूँ।”

इतना कहते ही,
पूरे कमरे की लाइट्स एक साथ बुझ गईं।
हवेली में गहरा अंधेरा छा गया। सिर्फ़ आरव की साँसों और बाहर की बारिश की आवाज़ सुनाई दे रही थी।

अचानक पीछे से एक ज़ोरदार आवाज़ आई,
अनाया (भयानक आवाज़ में):
“भूsss…”

आरव घबराकर चीखते हुए पलटा।
उसके चारों ओर सिर्फ़ अंधेरा था। कोई नहीं दिख रहा था।
तभी हर कोने से खिलखिलाती हँसी गूँज उठी।

अनाया (हँसते हुए):
“तुम वैसे ही डरपोक हो जैसे कॉलेज में थे!”

आरव हक्का-बक्का रह गया।
बरसों बाद उसके होंठों पर मुस्कान आई।
एक पल को लगा जैसे वो फिर से वही लड़का बन गया हो, जो अनाया के पीछे भागता था और उसकी शरारतों से परेशान होकर हँस देता था।

लेकिन तभी…
अनाया का चेहरा गंभीर हो गया।
उसकी आँखों की चमक बुझ गई। उसकी आवाज़ भारी और ठंडी हो गई।

अनाया (गंभीर होकर):
“पर याद रखना आरव… मैं सिर्फ़ तुम्हारी अनाया नहीं हूँ। मैं एक अधूरी रूह भी हूँ। और कभी-कभी… मेरा दर्द मुझे खुद पर काबू नहीं रखने देता।”

आरव की साँस अटक गई। मगर उसने उसकी आँखों में सीधे झाँकते हुए कहा,
आरव:
“तू चाहे दर्द बनकर आये… या मोहब्बत बनकर। मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा।”

अनाया की आँखों से आँसुओं की जगह ठंडी बूंदें टपकने लगीं, मानो ओस की बूँदें हों, मगर उनमें ठंडक नहीं, एक अजीब सा बोझ था।

अनाया (धीरे से):
“शायद… इसी वजह से मैं अब तक इस हवेली से बँधी हुई हूँ।”

कमरे की दीवारें मानो उनकी बातों की गवाह थीं। टूटी खिड़की से आती हवा हर बार परदे को हिलाकर जैसे कहती, ये कहानी अभी अधूरी है।
आरव वहीं खड़ा रहा, एक तरफ़ डर, दूसरी तरफ़ अपनी मोहब्बत का अहसास।
अनाया का चेहरा कभी नरम, कभी सख़्त, कभी मोहब्बत से भरा, कभी रूह की पीड़ा से टूटा हुआ।

और आरव समझ चुका था,
उसकी ज़िंदगी फिर से उसी मोड़ पर आ गई है…
जहाँ उसे अपनी मोहब्बत से लड़ना नहीं, बल्कि उसके दर्द को अपनाना है।

हवेली में सनी का आगमन

बरसात की धुँधली शाम थी। हवेली की टूटी खिड़कियों से टपकती बूंदें जैसे पुराने ज़ख़्मों को कुरेद रही थीं। कमरों की सीलन और दीवारों पर जमी काई उस जगह की वीरानी को और गहरा कर रही थी।

आरव अपने कमरे में किताबों और डायरी के पन्नों में डूबा बैठा था, तभी अचानक हवेली के बाहर कार का हॉर्न गूँजा।

“ये कौन?” आरव ने खिड़की से झाँककर देखा।
बारिश की बूँदों के बीच एक परिचित आकृति कार से बाहर निकली। वही बेफिक्र चाल, वही बेतकल्लुफ़ मुस्कान।

“ओए हीरो!” आवाज़ आई।
आरव के होंठों पर बरसों बाद हल्की मुस्कान तैर गई—“सनी…”


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सनी ने भीगते हुए गेट पर कदम रखा। चौकीदार रामदीन चाचा लालटेन लिए खड़े थे, माथे पर शिकन और आँखों में वही पुराना डर।

“बाबूजी, ये आपका दोस्त है क्या?” रामदीन ने चिंता जताई।
आरव ने सिर हिलाया, “हाँ चाचा, यही है सनी।”

सनी ने हँसते हुए जवाब दिया,
“चाचा, डरिए मत! मैं किसी भूत से नहीं डरता। हाँ, बीवी के गुस्से से जरूर डरूँगा… जब घर जाऊँगा तो वो पूछेगी इतनी रात कहाँ था।”

रामदीन चाचा ने गहरी साँस छोड़ी, “बाबूजी… मज़ाक मत करो। इस हवेली में मज़ाक नहीं चलता।”

लेकिन सनी को कौन रोक सकता था? वह सीधे आरव के पास आया और ज़ोर से गले मिलते हुए बोला—
“ओए पागल! तू यहाँ रिसर्च कर रहा है या भूत-प्रेत से मोहब्बत निभा रहा है?”

आरव बस मुस्कुरा दिया। उसके दिल ने महसूस किया कि सनी के आने से हवेली का सन्नाटा अब पहले जैसा भारी नहीं रहेगा।


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हवेली का पहला डर

रात गहराई। तूफ़ान की आवाज़ें हवेली की दीवारों से टकराकर गूँज रही थीं।
सनी अपने कमरे में गया, मोबाइल चार्ज पर लगाया और आराम से लेट गया।

“कमाल है, यहाँ वाई-फाई तक नहीं है। नेटफ्लिक्स क्या… यूट्यूब भी नहीं चलेगा। चलो, कम से कम नींद तो चैन की आएगी।” उसने खुद से कहा।

लेकिन तभी मोबाइल की स्क्रीन अपने आप चमक उठी।
उस पर मैसेज लिखा था—
“Good Night Sunny… 👻”

सनी उछल पड़ा, “अबे! ये किसने भेजा? नंबर भी सेव नहीं है।”

वो मैसेज डिलीट करने ही वाला था कि अचानक मोबाइल से ठंडी हँसी की आवाज़ आई,
“हाहाहा… सन्नी… सन्नी…”

सनी के पसीने छूट गए।
“अबे आरव! तेरे रिसर्च वाले भूत मेरे मोबाइल में क्यों घुस गए?”


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आरव दौड़ता हुआ कमरे में आया।
“क्या हुआ?”

सनी काँपते हुए मोबाइल दिखाता है,
“देख ये… अभी तक आवाज़ आ रही थी। और तू कहता है हवेली नॉर्मल है?”

आरव ने स्क्रीन देखी, मगर अब सब खाली था।
“कुछ नहीं है इसमें। तू बेवजह डर रहा है।”

सनी हाँफते हुए बोला,
“अबे तेरी हवेली में तो वाई-फाई नहीं है, फिर ये ‘भूत-फाई’ कैसे काम कर रहा है?”

आरव अपनी हँसी रोक नहीं पाया।
लेकिन उसकी हँसी अधूरी रह गई, क्योंकि तभी खिड़की अपने आप ज़ोर से खुली और ठंडी हवा का झोंका आया। परदे बेतहाशा उड़ने लगे।

उस हवा के बीच, अचानक एक धुंधली परछाईं खड़ी दिखी,
अनाया।


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👻 अनाया का पहला प्रैंक

अनाया चुपचाप सनी के पीछे आई और फुसफुसाई—
“सन्नी… आई लव यू…”

“मम्म्म्मीईईईईईईईई!”
सनी चीख पड़ा और पागलों की तरह कमरे से बाहर भागा।

आरव ने उसे रोकने की कोशिश की, “अबे रुक तो!”
लेकिन सनी सीढ़ियों से उतरते-उतरते गिरा और हाँफते हुए बोला,
“अबे तेरी प्रेमिका है या चुड़ैल? मेरी तो जान ही निकल गई।”

आरव अपनी हँसी नहीं रोक पाया।
“सनी, डर मत! ये तुझे खाएगी थोड़ी।”

अनाया खिलखिला कर हँस पड़ी। उसकी हँसी से पूरा हॉल गूँज उठा।
“आरव, तेरा दोस्त कितना मज़ेदार है… मुझे बहुत मज़ा आता है इसे डराने में।”

आरव ने गुस्से से कहा,
“अनाया, अब बस करो! बेचारे का दिल बैठ जाएगा।”

अनाया ने मुस्कराकर कहा,
“अरे, मैं तो बस थोड़ी मस्ती कर रही हूँ। अब डर भी नहीं सकती क्या?”


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उस रात, हवेली की वीरानी बरसों बाद हँसी से भर गई थी।
लेकिन सनी के मन में एक सवाल गहराई तक बैठ गया,

“अगर ये आत्मा मज़ाक में इतना डराती है… तो गुस्से में क्या करेगी?”


हवेली की शरारतें

सनी ने अगले दिन सुबह नाश्ते के वक़्त एलान कर दिया,
“देख भाई आरव, मैं यहाँ सिर्फ़ तेरे लिए रुक रहा हूँ। वरना इस हवेली की हवाओं ने मेरी जान आधी निकाल दी है।”

आरव ने मुस्कुराकर कहा, “तो फिर आधा काम मेरा आसान हो गया।”
सनी खीझकर बोला, “अबे मज़ाक मत कर। तेरा भूतिया गर्लफ़्रेंड कल रात मेरे साथ ‘I Love You’ गेम खेल रही थी। आज अगर उसने शादी का कार्ड भेज दिया तो क्या करेगा?”

इतना सुनते ही अनाया की खिलखिलाती हँसी पूरे कमरे में गूँज उठी।
सनी ने घबराकर कहा, “लो जी, हाज़िर हो गई… हवेली की Miss Universe 1947!”


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हॉल में अनाया का खेल

आरव और सनी हवेली के बड़े हॉल में बैठे रिसर्च की बातें कर रहे थे। लकड़ी के फर्श पर उनके कदमों की आवाज़ गूंज रही थी। दीवारों पर टंगे पुराने चित्र धूल में लिपटे थे।

अचानक झूमर अपने आप झूलने लगा।
सनी ने काँपते हुए कहा, “ये… ये हवा से हिल रहा है न?”
आरव ने जवाब दिया, “हाँ, बिल्कुल।”

पर तभी झूमर से धूल झड़कर सीधे सनी के सिर पर गिरी।
सनी उछल पड़ा,“अबे! भूतों को पिकनिक स्पॉट मिल गया है क्या?”

अनाया की परछाई झूमर के पीछे से झाँकी और शरारती अंदाज़ में बोली,
“सन्नी… तुम्हें तो बहुत गुस्सा आता है। चलो, थोड़ा और परेशान करते हैं।”

अचानक फर्श पर रखी कुर्सी अपने आप खिसककर सनी के पैरों से टकरा गई।
“आsss माsss!” सनी फिर गिर पड़ा।

आरव हँसी रोकते हुए बोला,
“भाई, तू तो फ्री में कॉमेडी कर रहा है।”


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🌙 रामदीन चाचा की एंट्री

इतना हंगामा सुनकर रामदीन चाचा लालटेन लिए हॉल में आ पहुँचे।
“हे भगवान! क्या हो रहा है यहाँ? बाबूजी, मैंने कहा था न… ये हवेली मस्ती की जगह नहीं है।”

सनी तुरंत चिल्लाया,
“चाचा! ये हवेली रिसर्च सेंटर नहीं है, ये तो ‘भूतिया सर्कस’ है।”

रामदीन ने माथा पीट लिया,
“बाबूजी, ये आपका दोस्त है या पागलखाने से भागा हुआ है?”

अनाया की हँसी फिर गूँजी।
“चाचा, सनी को तो बहुत मज़ा आता है डरने में।”

रामदीन सन्न रह गए।
“बाबूजी… सुना आपने? वो रूह अभी भी यहाँ है।”

आरव ने गंभीर होकर कहा,
“हाँ चाचा, वो यहीं है। लेकिन वो बुरी नहीं है।”

रामदीन की आँखों में डर और श्रद्धा दोनों झलक रहे थे।
“बाबूजी, आत्मा चाहे कितनी भी प्यारी क्यों न हो… जब तक उसे शांति नहीं मिलती, वो इंसानों के साथ खेलती रहती है।”

सनी ने तुरंत कहा,
“खेलती रहती है? अरे चाचा, ये तो क्रिकेट मैच खेल रही है मेरे साथ। कल रात मोबाइल में एंट्री मारी, आज कुर्सी से आउट कर दिया। कल बैट लेकर आएगी क्या?”

पूरा हॉल फिर हँसी से भर गया।

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रात का डिनर टेबल

शाम को डिनर के समय, सब लोग, आरव, सनी और रामदीन, टेबल पर बैठे। टेबल पर पुराने बर्तन रखे हुए थे, जिनसे सीलन की गंध आ रही थी।

सनी ने अनिच्छा से खाना शुरू किया।
“यार, ये दाल इतनी खट्टी क्यों है?”

तभी बर्तन अपने आप खिसककर सनी के सामने आया और दाल की कटोरी उलट गई।
सनी उछल पड़ा, “अबे! किसने फेंकी?”

अनाया की परछाईं टेबल के ऊपर उभरी।
“तुझे पसंद नहीं आई न? तो मैंने गिरा दी।”

सनी गुस्से में बोला,
“अरे मैडम आत्मा जी! अगर होटल चलाना है तो खाना अच्छा बनाइए। वरना मैं Zomato से रिव्यू दे दूँगा, ‘हवेली फूड: एक स्टार, क्योंकि यहाँ खाना भूत बनाकर परोसा जाता है।’”

आरव और रामदीन हँसते-हँसते लोटपोट हो गए।
अनाया भी मुस्कुरा दी।
“सनी, तू मुझे बहुत हँसाता है। तू डरता भी है और मज़ाक भी करता है… ये मुझे अच्छा लगता है।”


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उस रात जब सब सोने गए, सन्नाटा फिर हवेली में लौट आया।
लेकिन सनी के मन में एक अजीब सा डर बना रहा।
वो सोच रहा था,

“ये आत्मा मुझे हँसाती है, परेशान करती है… लेकिन अगर कभी सच में गुस्से में आ गई तो?”

हवेली की शरारतें

रात गहरी हो चुकी थी। हवेली की खिड़कियों से छनकर आती ठंडी हवा में सन्नाटा गूँज रहा था। लकड़ी की सीढ़ियाँ हर झोंके पर चरमरा उठतीं। बाहर बरसात थम चुकी थी, लेकिन हवेली के अंदर की नमी और डर, दोनों पहले से ज़्यादा भारी हो गए थे।

सनी अपने कमरे में करवटें बदल रहा था। अचानक उसे लगा जैसे किसी ने उसके तकिए के नीचे कुछ रखा हो। उसने हाथ डालकर निकाला, तो उसके हाथ में एक लाल गुलाब था।

सनी हैरान, “अबे? ये तो रोमांटिक मूवी वाला सीन है।”
तभी कमरे में धीमी सी आवाज़ गूँजी,
“सनी… तुम्हें कैसा लगा मेरा तोहफ़ा?”

सनी ने काँपते हुए कहा, “मैडम आत्मा जी… मुझे चॉकलेट पसंद है, फूल नहीं।”

अचानक गुलाब की पंखुड़ियाँ गिरकर ज़मीन पर खून की बूंदों में बदल गईं।
सनी की आँखें फटी रह गईं,“अबे तेरी… ये तो हॉरर रोमांस है!”


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बाथरूम का किस्सा

डर से घबराया सनी बाथरूम में भागा और नल खोलकर चेहरा धोने लगा। लेकिन जैसे ही उसने आईने में देखा, आईने में उसकी जगह अनाया का चेहरा दिखाई दे रहा था।

अनाया मुस्कुराते हुए बोली,
“क्यों सनी, डर गए?”

सनी चीख पड़ा, “मम्म्म्म्मीईईईई…!”
वो पीछे हटने ही वाला था कि फर्श पर फिसल गया और सीधे बाथटब में गिर पड़ा।

आरव दौड़ता हुआ आया और दरवाज़ा खोला।
“क्या हुआ?”

सनी बुरी तरह भीगा हुआ बोला,
“तेरी प्रेमिका मुझे बाथटब में डुबोकर रोमियो बनाने चली थी!”

अनाया की खिलखिलाहट बाथरूम की दीवारों से टकराकर गूँज उठी।
आरव भी हँस पड़ा, “तू सच्ची कॉमेडी पीस है।”


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लाइब्रेरी में रात

अगली रात आरव अपने रिसर्च नोट्स में डूबा था। हवेली की पुरानी लाइब्रेरी में सैकड़ों किताबें पड़ी थीं। सनी भी वहाँ बैठा था, मगर हर आवाज़ पर चौकन्ना।

तभी ऊपर की शेल्फ से किताब अपने आप गिरी और सीधे सनी के सिर पर लगी।
“आsss!” सनी चिल्लाया।
उसने किताब उठाई तो उस पर लिखा था,
“How to Survive Ghosts”

सनी बड़बड़ाया, “वाह! हवेली में स्पेशल कोर्स भी चलता है।”

अनाया की आवाज़ आई,
“ये मैंने ही गिराई थी… सोचा तुम्हें थोड़ी नॉलेज दे दूँ।”

सनी ने तड़पकर जवाब दिया,
“मैडम आत्मा जी, नॉलेज चाहिए तो मैं गूगल कर लूँगा। प्लीज़ मेरे सिर पर डिलीवरी मत किया करो।”

आरव हँसते-हँसते लोटपोट हो गया।
“सनी, तू और अनाया मिलकर सच में कॉमेडी शो बना दोगे।”


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रामदीन चाचा का डर

एक रात सब लोग आँगन में बैठे थे। रामदीन चाचा पुराने किस्से सुना रहे थे,
“बाबूजी, कहते हैं इस हवेली में जिसने भी रात अकेले गुज़ारी, वो सुबह तक पागल हो गया।”

सनी बीच में बोल पड़ा,
“तो चाचा, मैं तो पहले से पागल हूँ… अब क्या डरना!”

इतना सुनते ही पीछे से किसी ने रामदीन चाचा के कंधे पर ठंडी हथेली रख दी।
चाचा चीख पड़े, “हे भगवान!”
उन्होंने पलटकर देखा, अनाया की धुंधली आकृति मुस्कुरा रही थी।

रामदीन काँपते हुए ज़मीन पर बैठ गए और मंत्र पढ़ने लगे।
सनी बोला,
“चाचा, मंत्र छोड़ो… Netflix का सब्सक्रिप्शन दिलवाओ। इससे भूत भी डरकर भागेंगे।”

अनाया की खिलखिलाहट से पूरा आँगन गूँज उठा।


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सनी का बदला

आख़िरकार सनी ने तय किया कि अब वो भी अनाया से बदला लेगा।
अगली सुबह उसने एक नकली नकाब पहना और अलमारी में छिप गया। जैसे ही अनाया की परछाई कमरे में आई, सनी ने “भूsss!” कहकर छलांग मारी।

लेकिन अगले ही पल, उसके सामने आईना टूट गया और उसमें से दर्जनों अनाया की परछाइयाँ बाहर निकल आईं।
सनी डर के मारे फिर ज़मीन पर गिर पड़ा।
“अबे! ये तो Multiverse of Ghostness है!”

अनाया सब परछाइयों के बीच से हँसती हुई बोली,
“सनी, मुझसे बदला लेने की कोशिश मत करना। मैं रूह हूँ, हर जगह हो सकती हूँ।”

सनी हाँफते हुए बोला,
“ठीक है… मान गया। अब तू क्वीन एलिज़ाबेथ है और मैं तेरा जोकर।”

आरव दूर से ये सब देख रहा था। बरसों बाद उसके चेहरे पर इतनी सच्ची मुस्कान आई थी।
सनी और अनाया की नोक-झोंक ने हवेली की वीरानी को सचमुच ज़िंदा कर दिया था।

हवेली की शरारतें 

हवेली की रातें अब बदल चुकी थीं। जहाँ कभी सिर्फ़ सन्नाटा और सीलन थी, वहाँ अब ठहाके और चिल्लाने की आवाज़ें गूँजती थीं।
सनी, जो पहले दिन भाग जाना चाहता था, अब आधा डर और आधा मज़ाक में यहीं का हिस्सा बन चुका था।

लेकिन उस रात हवेली का माहौल कुछ अलग था। हवा ज़्यादा ठंडी, ज़्यादा भारी थी। झूमर की लाइट्स बार-बार टिमटिमा रही थीं। आरव ने किताब बंद की और कहा,
“सन्नी, कुछ गड़बड़ है।”

सनी बोला, “हाँ, मुझे भी लग रहा है… आज तेरी प्रेयसी का मूड कॉमेडी नाइट वाला नहीं है।”


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अनाया का बदलता चेहरा

तभी लाइब्रेरी के बीचोंबीच अनाया की परछाई उभरी।
लेकिन इस बार उसकी मुस्कान गायब थी। चेहरा उदास, आँखों में गहरी तकलीफ़।

आरव धीरे से आगे बढ़ा।
“अनाया… तू ठीक है?”

अनाया की आवाज़ काँप रही थी,
“आरव, मैं ठीक कैसे हो सकती हूँ? चार साल से इस हवेली में कैद हूँ। कोई देख नहीं सकता, कोई छू नहीं सकता… बस मैं अधूरी रह गई हूँ।”

सन्नाटा गहरा हो गया।
सनी ने धीरे से कहा,
“मैडम आत्मा जी… आप तो हमें हँसाती थीं… फिर ये दर्द अचानक क्यों?”

अनाया की आँखों से ठंडी बूँदें टपकीं।
“क्योंकि सनी… हँसी मेरा मुखौटा है। सच तो ये है कि मैं उस रात से कभी आगे नहीं बढ़ पाई। मेरी मौत ने मुझे यहीं बाँध दिया। और सबसे बड़ा दर्द ये है… कि मैं आरव को छोड़ना ही नहीं चाहती थी।”

आरव की आँखें भर आईं। उसने काँपते हुए हाथ बढ़ाया, जैसे उसे छूना चाहता हो।
“अनाया… अगर तू यहाँ है, तो शायद इसी लिए कि मैं तुझे अब भी याद करता हूँ।”


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🌙 डर और सन्नाटा

अचानक पूरे हॉल की खिड़कियाँ एक साथ खुल गईं। हवा का तेज़ झोंका आया और किताबें उड़कर ज़मीन पर गिरने लगीं।
झूमर ज़ोर-ज़ोर से झूलने लगा।
सनी डरकर चिल्लाया,
“अबे आरव! ये तेरी प्रेमिका इमोशनल अटैक से सीधे हॉरर मूड में आ गई है!”

अनाया की आवाज़ भारी हो गई,
“मैं खुद पर काबू नहीं रख पाती… जब दर्द हद से बढ़ जाता है, तो ये हवेली मेरे साथ काँपने लगती है।”

आरव ने ज़ोर से कहा,
“अनाया! तुझे अपने दर्द पर काबू पाना होगा। मैं हूँ न… तुझे अकेला नहीं छोड़ूँगा।”

अनाया की आँखों में हल्की रोशनी सी झलक उठी, जैसे उसकी रूह को पहली बार कोई सुकून मिला हो।


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इतने में रामदीन चाचा भी लालटेन लिए दौड़ते हुए आ पहुँचे।
“हे भगवान! बाबूजी, मैंने कहा था न… ये हवेली आत्मा से भरी है।”

सनी ने काँपते हुए कहा,
“चाचा, ये तो मुझे अब तक पता ही था। आप अभी तक ये समझ रहे थे कि Netflix की शूटिंग चल रही है क्या?”

रामदीन ने घबराकर मंत्र पढ़ना शुरू किया।
लेकिन अनाया ने शांत स्वर में कहा,
“चाचा… मत पढ़िए। मैं बुरी आत्मा नहीं हूँ। मैं बस… अधूरी हूँ।”

रामदीन थम गए। उनके हाथ से लालटेन काँपकर गिर गई, और लौ बुझ गई।


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आरव का वादा

हॉल में बस चाँदनी और ठंडी हवा रह गई।
आरव ने आगे बढ़कर धीमे स्वर में कहा,
“अनाया, तू अधूरी नहीं है। तू अब भी मेरी ज़िंदगी का हिस्सा है। और मैं वादा करता हूँ, तुझे इस अधूरी हालत में ज़्यादा देर नहीं रहने दूँगा।”

अनाया ने उसकी आँखों में देखा। बरसों का दर्द उस पल जैसे हल्का हो गया।
उसकी परछाई ने धीरे से फुसफुसाया,
“शायद इसलिए मैं अब तक रुकी हुई हूँ, आरव। क्योंकि तूने मुझे छोड़ा ही नहीं।”

आरव की आँखों से आँसू बह निकले।
सनी चुप हो गया। उसके मज़ाक, उसके डर सब थम गए। पहली बार उसने इस आत्मा को सचमुच प्यार और दर्द की रूह के रूप में देखा।


अनाया का सच

बरसात के बादली आसमान के नीचे हवेली एकदम खामोश थी। चारों ओर घना अंधेरा और बीच-बीच में चमकती बिजली हवेली को किसी जिंदा दानव की तरह डरावना बना रही थी। हवेली की दीवारों पर काई जमी थी और खिड़कियों से आती हवा सीटी बजाती हुई भीतर सन्नाटा तोड़ती थी।

उस रात हवेली के सबसे पुराने कमरे में, टूटी लकड़ी की टेबल पर आरव बैठा था। सामने उसकी डायरी खुली हुई थी, मगर उसके पन्ने खाली थे। लिखने के लिए बहुत कुछ था, पर शब्द जैसे उसकी कलम से इंकार कर रहे थे। उसका मन बेचैन था।

कमरे की ठंडी हवा में अचानक हल्की-सी सरसराहट हुई। आरव ने सिर उठाया,और देखा।

सामने वही थी… अनाया।
धुंधली आकृति, पर वो आँखें अब भी वैसी ही थीं,गहरी और अपनापन लिए हुए।

आरव का दिल जोर से धड़क उठा। कुछ देर वो बस उसे देखता रहा, फिर काँपती आवाज़ में बोला,

आरव:
“अनाया… तुम्हारी मौत तो सड़क पर हुई थी, उस रात… जब सब कुछ मुझसे छीन गया।
फिर तुम्हारी आत्मा यहाँ, इस हवेली में कैसे बंध गई?
ये जगह तुम तक कैसे पहुँची? मुझे सच बताओ।”

कुछ देर तक खामोशी रही। अनाया की आँखें झुक गईं। उसके चारों ओर ठंडी धुंध और गाढ़ी हो गई।
जैसे हवेली खुद इस सवाल का जवाब सुनने से डर रही हो।

आखिरकार अनाया ने सिर उठाया। उसकी आवाज़ धीमी, मगर भारी थी,

अनाया:
“आरव… जिस रात मेरी मौत हुई थी, तुम वहीं थे। तुम्हारी आँखों से बहते आँसू… तुम्हारे हाथों में कसकर थामा मेरा कंगन… सब मैंने महसूस किया।
मौत के बाद मेरी आत्मा उसी सड़क पर भटकती रही। मैं दूर नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि तुम्हें छोड़ने का ख्याल भी मुझे तोड़ देता था।
मैं तुम्हारे आसपास मंडराती रही… तुम्हें रोते देखती रही… तुम्हारे हर दर्द को महसूस करती रही।
मगर फिर…”

उसकी आवाज़ अचानक टूट गई। उसने आँखे बंद कीं और धीमी सिसकी ली।

अनाया (धीरे से):
“फिर कोई आया।
इस हवेली का मालिक… या कहो, इस हवेली का शापित रक्षक।
उसने मुझे देखा… और मुझे अपने काले जादू से बुला लिया।
आरव, उसने मंत्र पढ़कर मेरी आत्मा को कैद कर लिया।
और कहा,
‘अब तुम मेरी हो। तुम डर बनोगी। तुम इस हवेली को इंसानों से बचाओगी। ताकि कोई इसे खरीद न सके। ताकि ये हमेशा मेरी मुट्ठी में रहे।’”

आरव की साँसें थम गईं। उसे लगा जैसे किसी ने उसका दिल दबा दिया हो।

आरव:
“क्या…?
तो ये हवेली… सिर्फ़ वीरान नहीं, बल्कि किसी की काली कमाई है?
और तुम्हें… तुम्हें उसने गुलाम बना दिया?”

अनाया ने सिर हिलाया। उसकी धुंधली देह काँपने लगी।

अनाया:
“हाँ, आरव। मैं चाहकर भी वहाँ से निकल नहीं पाई।
हर बार जब कोई इंसान इस हवेली में आता, मुझे मजबूर किया जाता कि मैं उसे डराऊँ… उसे भगाऊँ।
कभी चीख बनकर, कभी परछाईं बनकर, कभी खून से सनी औरत का रूप धरकर।
मैं ऐसा नहीं चाहती थी… मैं किसी को डराना नहीं चाहती थी।
लेकिन वो ताक़त… वो मंत्र… मुझे अपने बस में कर लेता था।”

आरव के चेहरे पर गुस्सा और दर्द एक साथ उभर आया। उसकी मुट्ठियाँ कस गईं।

आरव:
“तुम मेरी अनाया हो… कोई हवेली का खिलौना नहीं।
किसी को हक़ नहीं है कि तुम्हारी आत्मा को गुलाम बनाए।
मैं कसम खाता हूँ… मैं तुम्हें इस कैद से छुड़ाऊँगा।”

अनाया की आँखें भर आईं। उसकी धुंधली आकृति और कमजोर हो गई, जैसे सच कहने से उसकी ताक़त छिन रही हो।
उसने काँपती आवाज़ में कहा,

अनाया:
“आरव… ये आसान नहीं है।
ये हवेली उस आदमी की बुरी नीयत का अड्डा है।
यहाँ सिर्फ़ मैं ही नहीं, और भी आत्माएँ कैद हैं।
कभी-कभी रात में तुमने जो चीखें सुनी हैं… वो मेरी नहीं होतीं।
वो सब हैं… जिन्हें यहाँ बाँध दिया गया है।
मेरे हिस्से का दर्द तो फिर भी मोहब्बत से जुड़ा है… लेकिन उन आत्माओं का दर्द… सिर्फ़ नफ़रत और बदला है।”

कमरे की दीवारें अचानक काँप उठीं। बाहर बिजली कड़की और खिड़की अपने आप ज़ोर से बंद हो गई।
आरव ने अनाया की ओर देखा,

आरव:
“तो फिर… इसका अंत कैसे होगा?
तुम मुझे रास्ता दिखाओ अनाया।
मैं तुम्हें आज़ाद कर दूँगा, चाहे इसके लिए अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े।”

अनाया कुछ पल खामोश रही। उसकी आँखें नम थीं, मगर उनमें उम्मीद की हल्की सी चमक लौट आई।

अनाया:
“अगर कोई मुझे इस कैद से मुक्त कर सकता है… तो वो सिर्फ़ तुम हो, आरव।
तुम्हारा प्यार ही मेरी ताक़त है।
लेकिन याद रखना… अगर तुम इस हवेली की बुरी ताक़त से भिड़े… और हार गए… तो तुम भी मेरी तरह इसी हवेली का हिस्सा बन जाओगे।”

आरव ने उसकी आँखों में गहराई से देखा।
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान आई, पर आँखों में आँसू तैर रहे थे।

आरव:
“अगर तुम्हारे बिना जीना ही कैद है… तो फिर डर किस बात का?
मैं लड़ूँगा, अनाया।
तुम्हारे लिए, हमारी मोहब्बत के लिए… मैं इस हवेली की जंजीरें तोड़ दूँगा।”

अनाया ने हल्की मुस्कान दी। उसकी आकृति धीरे-धीरे धुंधली होने लगी।
लेकिन जाते-जाते उसने बस इतना कहा,

अनाया:
“सावधान रहना, आरव… ये हवेली सिर्फ़ ईंट-पत्थरों से नहीं बनी।
ये डर, खून और काले जादू से बंधी है।
यहाँ हर कोना तुम्हें निगाहों से देखता है… हर दीवार तुम्हारी साँसों को सुनती है।”

और फिर धुंध में खो गई।

कमरा फिर से सन्नाटे में डूब गया।
आरव अकेला था, पर पहली बार उसे लगा, अब वो अकेला नहीं।
क्योंकि अब उसके पास एक मक़सद था,
अपनी अनाया को इस कैद से आज़ाद कराना।

हवेली का रहस्य और आरव की मुक्ति योजना

हवेली की रात अब और भी गहरी लग रही थी। बारिश की बूँदें टूटी खिड़कियों से टकराकर ज़ोर-ज़ोर से गिर रही थीं। हवा की आवाज़ में कभी-कभी किसी की फुसफुसाहट भी सुनाई देती थी।

आरव डायरी और किताबों का ढेर सामने रखकर बैठा था। उसने ठान लिया था कि अब और इंतजार नहीं होगा।
आरव:
“अब समय आ गया है। मैं अनाया को इस कैद से आज़ाद करूँगा। कोई भी शक्ति इसे रोक नहीं सकती।”

सन्नी, जो अभी भी डर और मज़ाक के बीच फँसा हुआ था, धीरे से बोला,
सन्नी:
“आरव भाई… मैं तो पहले ही कह रहा था… ये हवेली… मुझे तो डर लग रहा है।
अगर हम कुछ गलती कर दें, तो क्या… क्या हम भी… वैसे ही यहाँ फँस जाएंगे जैसे अनाया?”

आरव ने उस पर मुस्कान दी।
आरव:
“सन्नी, डरना तो छोड़। डर के आगे ही जीत है।
और हाँ, तू डर के साथ मज़ाक भी करता रहेगा… ताकि मैं थोड़ा हँस सकूँ।”

सन्नी ने राहत की साँस ली, पर उसकी आँखों में डर साफ़ झलक रहा था।


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रामदीन चाचा की सलाह

इतने में रामदीन चाचा लालटेन हाथ में लेकर कमरे में आए। उनका चेहरा गंभीर था।
रामदीन चाचा:
“बाबूजी, आप समझ रहे हैं कि यह जगह सिर्फ़ ईंट-पत्थरों की नहीं है।
इस हवेली में बंधी आत्माएँ बहुत गहरी शक्ति रखती हैं।
जो भी योजना होगी, उसे बहुत सोच-समझकर करना होगा।
अनाया अकेली नहीं है… और उस तांत्रिक की शक्ति अभी भी हवेली की दीवारों में बसी हुई है।”

आरव ने सिर हिलाया।
आरव:
“चाचा, मैं जानता हूँ। पर अब इंतजार नहीं कर सकता।
अनाया का दर्द और कैद अब और नहीं सहा जा सकता।
तुम मेरी मदद करोगे?”

रामदीन चाचा ने गंभीरता से सिर हिलाया।
रामदीन चाचा:
“हाँ बाबूजी, मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।
लेकिन तुम्हें सावधान रहना होगा। हवेली हर कदम पर तुम्हें परीक्षा देगी।
हर आवाज़, हर परछाईं… सब तुम्हारे डर को पकड़ने आएगी।”

सन्नी ने हल्की हँसी हँसते हुए कहा,
सन्नी:
“वाह चाचा! मतलब हवेली अब Fear + Fun Combo में है।
अच्छा है, मैं कम से कम हँस भी सकता हूँ… डर भी सकता हूँ।
साथ में डर-हँसी का पैकेज!”

आरव ने मुस्कान रोकते हुए कहा,
आरव:
“सन्नी, ये कोई मज़ाक नहीं है।
हर कदम सोच-समझकर उठाना होगा।
और हाँ, अनाया को भी शांत रखना होगा। उसका डर और दर्द हमारी योजना को प्रभावित कर सकता है।”


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हवेली की जांच

आरव और सन्नी ने कमरे की लाइट्स धीरे-धीरे जलाईं।
आरव ने कहा,
आरव:
“पहला काम है हवेली की हर दीवार, हर कमरे की जांच करना।
ताकि उस तांत्रिक के जादुई बंधन के निशान मिल सकें।
अगर हम बिंदु-बिंदु समझ गए, तो अनाया को आज़ाद करने की योजना आसान हो जाएगी।”

सन्नी काँपते हुए बोला,
सन्नी:
“आरव भाई… मैं पहले ही कह रहा हूँ… ये कमरे रात में और डरावने लगते हैं।
अगर कोई परछाईं अचानक आ गई, तो मैं… मैं…”

आरव (हँसते हुए):
“तो भाग जाएगा, सन्नी। पर याद रख, भागना अब विकल्प नहीं है।
हिम्मत दिखाओ और मेरे साथ चलो। अनाया का दर्द हमारी जिम्मेदारी है।”

रामदीन चाचा लालटेन की रौशनी के साथ आगे बढ़े।
रामदीन चाचा:
“बाबूजी, सबसे पहले हम हवेली के पुराने हिस्सों से शुरू करेंगे।
जहाँ आत्माएँ अक्सर इकट्ठा होती हैं।
क्योंकि उस तांत्रिक ने अपने मंत्र वहीँ पढ़े थे।
हम वहीँ से सुराग पाएंगे।

आरव ने गहरी साँस ली।
आरव:
“ठीक है, चलो।
आज रात हम शुरू करते हैं… अनाया की मुक्ति की दिशा में पहला कदम।”

सन्नी ने काँपते हुए लालटेन पकड़ी, और धीरे-धीरे कहा,
सन्नी:
“अगर कोई मुझे डराएगा… मैं पहली बार सच में चिल्लाऊँगा।
पर कम से कम मैं तैयार हूँ… तुम्हारे साथ।”


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हवेली की पहली चुनौती

जैसे ही तीनों पुराने हिस्से की ओर बढ़े, हवा और ठंडी पड़ने लगी।
दिवारों पर लगे पुराने पेंटिंग्स जैसे हिल रही थीं। खिड़कियों से आती हवा कभी-कभी फुसफुसा रही थी,
“तुम नहीं जा सकते…”

आरव ने कदम बढ़ाया और कहा,
आरव:
“सन्नी, ध्यान से।
रामदीन चाचा, तुम ध्यान रखो।
यहाँ हर आवाज़ जादुई हो सकती है।
लेकिन हमारा डर और संदेह हमें पीछे नहीं हटने देगा।”

सन्नी ने हाँ में सिर हिलाया, पर उसके होंठ काँप रहे थे।

कमरे के कोने में अचानक धुंधली परछाईं दिखाई दी।
अनाया की आवाज़ हल्की गूँज रही थी,
अनाया:
“आरव… सावधान रहो… यहाँ हर कोना हमारी परीक्षा लेगा।”

आरव ने दृढ़ता से फुसफुसाया, 
आरव:
“मैं तैयार हूँ। अब कोई ताक़त मुझे नहीं रोक सकती।
अनाया, तुम्हारी मुक्ति अब हमारी प्राथमिकता है।”


हवेली का रहस्य और आरव की मुक्ति योजना

हवेली का पुराना हिस्सा अभी भी बरसात की बूंदों और खिड़कियों से आती ठंडी हवा के साथ जी उठ रहा था। दीवारों पर जमी मोल्ड की गंध और बासी लकड़ी की खुशबू से माहौल और भी डरावना लग रहा था।

आरव, सन्नी और रामदीन चाचा धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे थे।
सन्नी (काँपते हुए):
“अबे आरव भाई… मुझे तो लगता है जैसे हर कोने में कोई मेरी जान लेने के लिए बैठा है।
और ये हवा… ये आवाज़ें… मुझे लगता है कोई मेरे पीछे फुसफुसा रहा है!”

आरव ने हँसते हुए कहा,
आरव:
“सन्नी, ये हवेली डरावनी है… डरावनी आत्माएँ हैं… और हाँ, ये सब तुम्हें डराने के लिए ही हैं।
लेकिन डर को हरा कर ही हम अनाया को आज़ाद कर पाएँगे।”

रामदीन चाचा लालटेन को ऊपर उठाते हुए बोले,
रामदीन चाचा:
“बाबूजी, ध्यान से। ये हिस्सा सबसे खतरनाक है।
यहाँ तांत्रिक ने अपने काले मंत्र पढ़े थे। हर दरवाज़ा, हर दरार जादुई ऊर्जा से भरी है।
अगर हम सावधान नहीं रहे… तो हमें वही सीख मिल सकती है जो अनाया को मिली थी।”


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पहली आत्मा का सामना

जैसे ही तीनों एक पुरानी दीवार वाले कमरे में पहुँचे, अचानक हवा तेज़ हो गई।
दीवारों पर टंगी पेंटिंग्स हिलने लगीं। कमरे का अँधेरा और गहरा हो गया।

तभी अचानक कमरे के कोने से फुसफुसाहट आई,
आवाज़:
“तुम नहीं जा सकते… यहाँ से कोई जीवित नहीं लौटता…”

सन्नी के पैर ठंडे पड़ गए।
सन्नी:
“आरव! अबे यार… ये आवाज़… ये तो वही… वही भूतिया बात है जो अनाया ने कही थी!”

आरव ने गहरी साँस ली और धीरे से कहा,
आरव:
“सन्नी, डरना छोड़। हमें पता लगाना है कि ये आवाज़ कहाँ से आ रही है।
यहीं से हमें सुराग मिलेंगे।”

जैसे ही आरव ने कदम बढ़ाया, कमरे की हल्की धुंध में एक धुंधली आकृति उभरी।
अनाया की तरह दिख रही पर डरावनी और गंभीर।
अनाया (धीमे, डरावने स्वर में):
“आरव… सावधान… ये सिर्फ़ शुरुआत है।
हवेली की हर आत्मा तुम्हें आज़माएगी।
अगर डर गए… तो तुम भी वहीं फँस जाओगे जहाँ मैं बंधी हुई हूँ।”

सन्नी जोर-जोर से चीखा,
सन्नी:
“मम्म्म्म्म्म्म्म्म… अबे आरव! ये कौन सा खेल है भाई?
मैं तो भाग रहा हूँ… भाग रहा हूँ!”

रामदीन चाचा ने सन्नी को पकड़ते हुए कहा,
रामदीन चाचा:
“बेटा, भागने से कुछ नहीं होगा। साहस दिखाओ… और हाँ, हिम्मत रखो।
ये आत्माएँ सिर्फ़ डर दिखा रही हैं, उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं।”


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🌙 सुराग की खोज

आरव ने धुंध में हाथ फैलाया और दीवार की एक दरार पर ध्यान दिया।
आरव:
“देखो, ये दरार… कुछ लिखा हुआ है। शायद तांत्रिक का मंत्र।
अगर हम इसे पढ़ पाएँ, तो अनाया को आज़ाद करने का रास्ता साफ़ होगा।”

सन्नी ने हँसते हुए कहा,
सन्नी:
“आरव भाई, हाँ… लिखावट देखकर डर नहीं लग रहा…
लग रहा है जैसे किसी ने शैतानी लैब से यहां संदेश छोड़ा है।
चलो पढ़ते हैं… पर डर तो अभी भी है!”

रामदीन चाचा ने लालटेन को नज़दीक लाया।
दरार पर धुंधली स्याही में कुछ शब्द दिखाई दिए।
रामदीन चाचा:
“बाबूजी… ये तांत्रिक के मंत्र हैं।
हमें इसे उल्टा पढ़ना होगा और उसका उल्टा असर करना होगा।
तभी हम अनाया को आज़ाद कर पाएँगे।”

आरव ने गहरी साँस ली।
आरव:
“ठीक है। मैं इसे पढ़ूंगा।
अनाया, मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे मार्गदर्शन करोगी।”

धुंध में अनाया की परछाईं धीरे-धीरे उभरी।
अनाया (हल्की मुस्कान के साथ):
“आरव… ध्यान रखो।
हर शब्द मायने रखता है।
अगर गलती हुई… तो हवेली खुद तुम्हें रोक सकती है।
पर मैं जानती हूँ… तुम कर सकते हो।”

सन्नी ने धीरे से कहा,
सन्नी:
“आरव भाई… अगर ये काम हो गया, तो मैं अगले साल हॉरर हवेली टूर भी करूंगा…
अब डर तो थोड़ा कम है… मज़ा भी आएगा।”

आरव हँसा, लेकिन उसकी आँखों में गंभीरता थी।
आरव:
“मज़ाक छोड़ो, सन्नी।
ये सिर्फ़ खेल नहीं है।
ये अनाया की आज़ादी का आख़िरी मौका है।”


जैसे ही आरव मंत्र पढ़ना शुरू करता है, हवेली में अचानक हवा और तेज़ हो जाती है।
दीवारों की पेंटिंग्स हिलने लगीं। फर्श पर धूल उठी।
सन्नी जोर-जोर से हँसते-डरते बोला,
सन्नी:
“अबे यार! ये तो हॉरर मूवी से भी ज़्यादा डरावना है!”

अनाया की परछाईं फुसफुसाई,
अनाया:
“आरव… ये केवल शुरुआत है।
तुम्हें खुद अपनी ताक़त पर विश्वास रखना होगा।
अनाया की मुक्ति अब तुम्हारे हाथ में है।”

और तभी कमरे की खिड़की जोर से खुली…

हवेली का रहस्य और आरव की मुक्ति योजना 

हवेली की रात अब चरम पर थी। बारिश की बूँदें खिड़कियों से टकरा कर ज़ोर से गिर रही थीं, हवा के तेज़ झोंके दरवाजों और खिड़कियों से टकरा कर कमरों में डर की गूँज पैदा कर रहे थे। दीवारों पर टंगी पुरानी पेंटिंग्स हिल रही थीं और धूल हवा में उड़ रही थी।

आरव, सन्नी और रामदीन चाचा उस कमरे में खड़े थे, जहाँ तांत्रिक के बंधन के मंत्र लिखे हुए थे। आरव की आँखों में गंभीरता और दृढ़ संकल्प था।
आरव:
“अब समय आ गया है।
अनाया… मैं तुम्हें आज़ाद कर दूँगा।
तुम्हारी मुक्ति अब मेरे हाथ में है।”

सन्नी धीरे-धीरे हँसते हुए बोलाc
सन्नी:
“आरव भाई… अगर मैं जीवित रहा, तो अगले हॉलिडे पर हॉरर टूर का प्लान भी बना लेंगे।
अभी डर तो थोड़ा कम है… पर मज़ा ज़्यादा आएगा।”

रामदीन चाचा ने लालटेन ऊपर उठाई और गंभीरता से कहा,
रामदीन चाचा:
“बाबूजी, हर शब्द का सही उच्चारण करना होगा।
गलती हुई… तो हवेली खुद तुम्हें रोक देगी।
लेकिन तुम्हारा हौसला ही सबसे बड़ी ताक़त है।”

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मंत्र का उच्चारण

आरव ने गहरी साँस ली और मंत्र पढ़ना शुरू किया।
जैसे ही शब्द हवा में फैलते गए, हवेली की ऊर्जा बदलने लगी। दीवारों की पेंटिंग्स हिल रही थीं, फर्श पर धूल के छोटे बादल उठ रहे थे।

अनाया की धुंधली परछाईं सामने आई। उसकी आवाज़ धीरे और गहरी थी,
अनाया:
“आरव… ध्यान रखना।
हर शब्द मायने रखता है।
तुम्हारा डर तुम्हें पीछे हटा सकता है, पर तुम्हारा प्यार तुम्हें आगे बढ़ाएगा।”

सन्नी जोर-जोर से हँसते-डरते बोला
सन्नी:
“अबे यार… ये मंत्र तो हॉरर मूवी जैसा लग रहा है!
अगर मैं जीवित रहा, तो अपनी अगली छुट्टी… हॉरर हवेली टूर पर ही करूंगा!”

रामदीन चाचा ने हँसते हुए कहा,
रामदीन चाचा:
“शांत रहो बेटा… हँसी भी जरुरी है, डर भी… बस ध्यान रहे मंत्र सही पढ़ा जाए।”

आरव ने अंतिम शब्द उच्चारित किया। अचानक हवेली में तेज़ हवा चली, बिजली चमकी, और पुरानी खिड़कियाँ जोर से झड़की।
सन्नी जोर से चीखा,
सन्नी:
“अबे भाई! ये क्या हो रहा है! मुझे यहाँ से बाहर निकालो!”


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अनाया की मुक्ति

धुंध में अनाया की आकृति अचानक चमक उठी। उसकी आँखों में दर्द और राहत दोनों झलक रहे थे।
अनाया:
“आरव… तुमने कर दिखाया!
अब मैं आज़ाद हूँ… मैं हवेली की जंजीरों से मुक्त हूँ!”

आरव ने हँसते हुए कहा
आरव:
“हाँ, अनाया… अब कोई तुम्हें रोक नहीं सकता।
तुम मेरी हो… सिर्फ़ मेरी, और स्वतंत्र!”

सन्नी ने राहत की साँस ली और मज़ाक करते हुए बोला—
सन्नी:
“अबे भाई… कम से कम मैं जीवित हूँ।
और अनाया… तुम डराने वाली आत्मा से प्यारी आत्मा बन गई!”

रामदीन चाचा ने मुस्कुराते हुए कहाl
रामदीन चाचा:
“बाबूजी, देखो… साहस और प्रेम की ताक़त ने इस हवेली के शाप को तोड़ दिया।
अब यहाँ शांति होगी। और अनाया की आत्मा पूरी तरह आज़ाद है।”


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हवेली का अंतिम दृश्य

हवेली अब शांत थी। दीवारों की दरारें, फर्श की धूल, और पुराने कमरे की अँधेरी परछाइयाँ धीरे-धीरे गायब हो रही थीं।
अनाया की परछाईं धीरे-धीरे हल्की हुई और आखिरकार चमक के साथ गायब हो गई।

आरव ने सन्नी की तरफ देखा।
आरव:
“सन्नी, देखो… डरावनी हवेली अब सिर्फ़ इमारत है।
अनाया आज़ाद हो चुकी है, और हम सुरक्षित हैं।”

सन्नी ने हँसते हुए कहा,
सन्नी:
“हाँ भाई… अब मैं हॉरर टूर पर जा सकता हूँ,
लेकिन इस बार सिर्फ़ मज़ाक और डर का combo रहेगा!”

रामदीन चाचा ने लालटेन नीचे रखा और गंभीरता से मुस्कुराए,
रामदीन चाचा:
“बाबूजी, प्रेम और साहस की ताक़त ने ये साबित कर दिया कि कोई भी शाप हमेशा के लिए टिक नहीं सकता।
अब हवेली शांत है… और अनाया की आत्मा स्वतंत्र।”

आरव ने हवा में गहरी साँस ली। उसने अपने आप से कहा,
आरव:
“अब मैंने उसे खोया नहीं, बल्कि पाया।
अब अनाया मेरी है… आज़ाद और सुरक्षित।”


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🌙 अंत का सुखद भाव

सन्नी ने हँसते हुए कहा—
सन्नी:
“आरव भाई… अगली बार हॉरर हवेली टूर में तुम्हारे साथ मैं नहीं भागूँगा।
लेकिन इस बार… मज़ा भी आया और डर भी… सब एक साथ!”

आरव ने मुस्कान दी।
आरव:
“सही कहा, सन्नी।
और अब हम हवेली छोड़ सकते हैं।
अनाया का दर्द खत्म हुआ… और मेरी कहानी भी अब नया मोड़ ले रही है।”

हवेली की खिड़कियों से धीरे-धीरे सूरज की पहली किरणें आईं। बरसाती बादल छंट गए।
अब हवेली सिर्फ़ शांत और वीरान थी—किसी डर या शाप के बिना।

और आरव, सन्नी और रामदीन चाचा ने पहली बार निश्चिंत होकर हवेली से बाहर कदम रखा।

अनाया की आत्मा आज़ाद थी, और आरव की मोहब्बत ने उसका सबसे बड़ा युद्ध जीत लिया।

अध्याय 7 – हवेली का अंतिम रहस्य (Enhanced Horror & Fight)

बारिश की तेज़ बूँदें हवेली की पुरानी छतों और टूटी खिड़कियों से टकरा रही थीं। ठंडी हवा कमरे में घुस रही थी, और हर कोने में धूल के छोटे बादल उठ रहे थे। दीवारों पर टंगी पेंटिंग्स हिल रही थीं, जैसे कोई भीतर से हँस रहा हो।

आरव ने अपने साथी सन्नी और रामदीन चाचा से कहा—
आरव:
“ध्यान रखो। तांत्रिक की शक्ति अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई।
हवेली की हर दीवार, हर कोना उसके जादुई बंधन से भरा है। अगर हम सतर्क नहीं हुए… तो वही सब हमारे ऊपर टूट सकता है।”

सन्नी (काँपते हुए हँसते हुए):
“अबे भाई… मतलब डर और मज़ा दोनों एक साथ!
मैं तो सिर्फ़ अपनी जान बचाने आया हूँ… पर लगता है हॉरर मूवी का live scene मिल गया।”

रामदीन चाचा:
“शांत रहो बेटा… डर दिख रहा है, पर ये सिर्फ़ परीक्षण है।
साहस और बुद्धि से ही तांत्रिक को हराया जा सकता है।”


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🌙 तांत्रिक की उपस्थिति

जैसे ही तीनों कमरे के पुराने हिस्से की ओर बढ़े, अँधेरा और गहरा हो गया।
हवा तेज़ हुई, दीवारों पर टंगी पेंटिंग्स हिलने लगीं। अचानक कमरे की छत से ठंडी हवा के झोंके आए और धुंधली परछाईं उभरी।

तांत्रिक की आकृति बड़ी, डरावनी, और काली धुंध जैसी थी। उसकी आँखें लाल और चमकदार, और हाथ में अदृश्य शक्ति थी।
तांत्रिक (गहरी डरावनी आवाज़ में):
“तुम सोचते हो कि सिर्फ प्रेम और साहस से मुझे हराया जा सकता है?
मेरी शक्ति हवेली की हर ईंट में बसी है। अगर तुमने गलती की… तो तुम्हें वहीं फँसना पड़ेगा जहाँ अनाया फँसी थी।”

सन्नी ने जोर से चीखा—
सन्नी:
“अबे यार! भाई… ये तो वही ultimate villain लग रहा है!
मैं तो भागता हूँ… पर लगता है भागना भी आसान नहीं!”

आरव ने गंभीरता से कहा—
आरव:
“सन्नी, हँसी छोड़। हमें उसे खत्म करना है। अनाया अब सुरक्षित है… पर हवेली की आत्माएँ अभी बंधी हुई हैं।”


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🌙 लड़ाई का आरंभ

आरव ने चारों कोनों में लगे तांत्रिक के प्रतीकों की ओर देखा।
आरव:
“रामदीन चाचा, लालटेन संभालो।
सन्नी, हर कोने पर नजर रखो।
मैं मंत्र पढ़ने वाला हूँ… अगर तांत्रिक ने हमला किया, तो तुरंत प्रतिक्रिया देना।”

तांत्रिक ने हवा में हाथ उठाया और कमरे की शक्ति को घुमाया। दीवारें हिल गईं, फर्श पर धूल के बादल उठे, और अचानक कमरे की हल्की धुंध में वह तेज़ी से तीनों की ओर बढ़ा।

सन्नी (भागते हुए):
“अबे भाई! ये तो हॉरर मूवी का live climax लग रहा है!
मैं तो सिर्फ़ जीना चाहता हूँ!”

रामदीन चाचा ने लालटेन उठाई और जोर से कहा—
“साहस दिखाओ बेटा! डर को पीछे रखो!”

आरव ने गहरी साँस ली और मंत्र उच्चारण शुरू किया। शब्द हवा में फैलते ही कमरे में तेज़ हवा चल गई।

तांत्रिक ने अचानक धुंध में से बिजली जैसी शक्ति छोड़ी। आरव ने तेजी से कदम हिलाकर और हाथ उठाकर इसे टाल दिया। सन्नी ने हँसते-डरते कहा—
“अबे यार! ये तो ultimate boss fight लग रही है!
मैं तो सिर्फ spectator हूँ!”

अनाया की परछाईं सामने आई और धीरे-धीरे बोली—
अनाया:
“आरव… अपने डर को परे रखो।
मंत्र का हर शब्द मायने रखता है।
अगर तुमने सही उच्चारण किया… तो मेरी आत्मा और हवेली दोनों सुरक्षित होंगी।”


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🌙 तांत्रिक की आख़िरी शक्ति

आरव ने अंतिम शब्द उच्चारित किया। कमरे में अचानक तेज़ रोशनी फैली। तांत्रिक की परछाईं हवा में उड़ी, और उसके लाल आँखों की चमक धीरे-धीरे फीकी पड़ गई।

तांत्रिक (धीमे स्वर में):
“तुमने मुझे हराया…
पर याद रखो… शक्ति हमेशा बदलती रहती है…”

और फिर वह पूरी तरह गायब हो गया।

सन्नी जोर से हँसते हुए बोला—
“अबे भाई… कम से कम मैं जीवित हूँ।
और हाँ, अगली हॉरर टूर का प्लान भी सुरक्षित!”

रामदीन चाचा ने लालटेन नीचे रखी और मुस्कुराए—
“बाबूजी, साहस और प्रेम ने साबित कर दिया कि कोई भी शाप हमेशा के लिए टिक नहीं सकता।
अब हवेली शांत है।”

आरव ने राहत की साँस ली। उसने कहा—
“अब अनाया पूरी तरह आज़ाद है।
और मैं भी उसके बिना डर और पछतावे के जी सकता हूँ।

सन्नी ने हँसते हुए कहा—
“भाई, अब मैं भी चैन से सो सकूँगा।
और हाँ… अगली हॉरर टूर में सिर्फ मज़ा लेना!”

अध्याय 7 – हवेली का अंतिम रहस्य (Part 2 – Enhanced Closure)

हवेली अब शांत और उजली लग रही थी। सूरज की पहली किरणें खिड़कियों से झाँक रही थीं, और पुरानी दीवारों पर से धूल धीरे-धीरे हट रही थी। बारिश थम चुकी थी, और हवेली की छत पर बूँदें हल्की झिलमिला रही थीं।

आरव ने गहरी साँस ली। सन्नी अभी भी हल्का काँप रहा था, लेकिन चेहरे पर हँसी थी। रामदीन चाचा गंभीर मगर संतुष्ट मुद्रा में खड़े थे।

आरव:
“सभी तैयार हो जाओ… अब हवेली पूरी तरह सुरक्षित है।
अनाया और बाकी आत्माएँ अब आज़ाद हैं।
तांत्रिक की शक्ति खत्म हो गई।”

अचानक कमरे में हल्की धुंध छा गई, और हवा में ध्वनियाँ गूँजने लगीं—“धन्यवाद… धन्यवाद आरव!”

आरव ने हैरानी से देखा। वह आवाज़ें कई थीं—पुरानी आत्माओं की, जो अब पूरी तरह मुक्त हो रही थीं।

अनाया:
“आरव… तुम्हारी वजह से मैं आज़ाद हूँ।
और ये सभी आत्माएँ भी अब शांति पा रही हैं।
तुमने सिर्फ़ मुझे नहीं, बल्कि इस हवेली की सारी आत्माओं को मुक्ति दिलाई।”

सन्नी ने हँसते हुए कहा—
सन्नी:
“भाई… मतलब अब ये हवेली haunted नहीं, बल्कि आशीर्वाद वाली जगह बन गई!”

रामदीन चाचा ने लालटेन नीचे रखी और मुस्कुराए—
रामदीन चाचा:
“देखो बेटा… प्रेम, साहस और दोस्ती की ताक़त ने साबित कर दिया कि कोई भी शाप या बंधन हमेशा टिक नहीं सकता।
अब हवेली सुरक्षित और शांति से भरी है।”


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🌙 आत्माओं का धन्यवाद

हवेली की कोनों में से हल्की धुंध और चमकदार रोशनी में कई आत्माएँ उभरने लगीं। वे आरव के चारों ओर आईं, मुस्कुराईं, और धीरे-धीरे बोलीं—

सभी आत्माएँ:
“धन्यवाद आरव!
तुम्हारी बहादुरी और साहस ने हमें आज़ाद किया।
अब हम शांति से जा सकते हैं।”

आरव की आँखें नम हो गईं। उसने महसूस किया कि उसकी मेहनत और प्यार ने सिर्फ़ अनाया को ही नहीं, बल्कि सभी बंधी आत्माओं को मुक्त कर दिया।

आरव:
“मैं बस वही कर रहा था जो सही था…
आप सबकी मुक्ति में मेरी खुशी है।”

अनाया की हल्की परछाईं सामने आई और मुस्कुराई—
अनाया:
“आरव… मेरी आत्मा पूरी तरह आज़ाद है।
और अब ये हवेली भी सुरक्षित है।
मैं हमेशा तुम्हारे दिल में रहूँगी।”


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🌙 आरव और अनाया की healing

आरव ने खिड़की के पास खड़े होकर बाहर देखा। सूरज की किरणें हवेली के हर कोने में फैल रही थीं।
अनाया ने धीरे से कहा—
“आरव… अब मुझे डर नहीं।
मेरी आत्मा आज़ाद है, और मैं शांति में हूँ।

आरव ने मुस्कुराते हुए कहा—
“और मैं भी… तुम्हारे बिना जीना सीख रहा हूँ।
लेकिन ये अनुभव हमें और करीब ला गया है।
अब मुझे पता है कि सच्चा प्रेम किसी भी भय या शाप से ऊपर होता है।”

सन्नी ने मज़ाक में कहा—
“अबे भाई… अगली बार हॉरर हवेली टूर पर तुम्हारे साथ आऊँगा,
लेकिन सिर्फ़ मज़ा लेना, डर नहीं!”

अनाया हँसी और बोली—
“सन्नी… तुमसे डरना मज़ेदार था, पर अब मैं शांति में हूँ।
और आरव… तेरी वजह से मेरी आत्मा मुक्त है।”


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🌙 हवेली छोड़ना और emotional closure

तीनों—आरव, सन्नी और रामदीन चाचा—हवेली के दरवाज़े की ओर बढ़े।
आरव ने पीछे मुड़कर देखा। हवेली अब केवल एक पुरानी इमारत थी, जिसमें कोई डर या बंधन नहीं रह गया था।

सन्नी ने हँसते हुए कहा—
“भाई, अब डर खत्म, मज़ा शुरू!”

रामदीन चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा—
“हवेली अब सिर्फ़ यादों और अनुभवों की होगी।
शांति और साहस ने हर डर और शाप को हराया।”