Kurbaan Hua - Chapter 45 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | Kurbaan Hua - Chapter 45

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Kurbaan Hua - Chapter 45

अधूरी नफ़रत और अनचाहा खिंचाव

बारिश अब पूरी तरह थम चुकी थी, लेकिन आसमान में बादल अब भी बिखरे थे, जैसे कोई कहानी पूरी होने से पहले ही ठहर गई हो। सड़कें गीली थीं, पानी के छोटे-छोटे कतरे पत्तों से टपककर नीचे गिर रहे थे, और ठंडी हवा वातावरण को और भी सिहरन भरा बना रही थी। लेकिन इस वक्त, बाहर के मौसम से कहीं ज्यादा तूफान हर्षवर्धन के अंदर उठ रहा था।

वह बरामदे में खड़ा था, हवा के तेज झोंके उसके उलझे हुए बालों से खेल रहे थे, लेकिन उसकी आँखें वहीं अंदर टिकी थीं—सोफे पर गहरी नींद में डूबी संजना पर। उसकी मासूमियत भरी नींद, उसके चेहरे पर फैली नर्मी, और उसके हल्के-हल्के हिलते होंठ, जैसे कोई सपना देख रही हो। हर्षवर्धन की आँखें एक पल को उस चेहरे पर टिकी रहीं और फिर वह झटके से दूसरी तरफ देखने लगा।

"क्या मैं सही कर रहा हूँ?" उसने खुद से सवाल किया, लेकिन उसका जवाब देने के लिए उसके भीतर जैसे दो शख्स खड़े हो गए।

एक हर्षवर्धन जो बदला लेना चाहता था। जिसने कसम खाई थी कि मिस्टर कूपर को तबाह कर देगा। जिसने तय किया था कि इस लड़ाई में उसकी जान भी चली जाए, तो वह पीछे नहीं हटेगा। संजना के पिता ने उससे जो छीना था, उसके लिए वह उन्हें कभी माफ नहीं कर सकता था।

लेकिन दूसरा हर्षवर्धन… वो संजना को देखकर विचलित हो जाता था। उसकी आँखों में उसे एक ऐसी मासूमियत दिखती, जो किसी भी तरह उसके पिता की क्रूरता से मेल नहीं खाती थी। जब वह संजना को देखता, तो उसका दिल अजीब तरह से सुकून और बेचैनी के बीच झूलने लगता।

"ये क्या हो रहा है मुझे?" उसने खुद से सवाल किया।

वह अपना सिर झटक कर वापस संजना की ओर देखने लगा। कमरे की टूटी खिड़की से ठंडी हवा अंदर आ रही थी, और उसकी हल्की रोशनी में सोफे पर पड़ी संजना किसी ख्वाब जैसी लग रही थी। उसकी साँसें हल्की-हल्की चल रही थीं, और उसके चेहरे पर एक ऐसी शांति थी, जो हर्षवर्धन को भीतर तक बेचैन कर रही थी।

वह धीरे-धीरे खिड़की के पास गया, और अंदर झाँककर उसे देखने लगा। उसके भीतर एक अजीब-सा खिंचाव था।

"नहीं… मैं इस जाल में नहीं फँस सकता।" उसने खुद को समझाने की कोशिश की।

लेकिन ये खिंचाव क्या था? क्यों संजना की मौजूदगी उसे उसके घावों पर मरहम जैसी लग रही थी? क्यों उसे संजना को देखते ही ऐसा महसूस होता था, जैसे किसी अधूरी कहानी का कोई भूला हिस्सा उसके सामने आ गया हो? क्या ये सिर्फ उसकी नफरत का एक हिस्सा था? या फिर कुछ और…

हर्षवर्धन ने एक लंबी साँस ली और अपने भीतर उठ रही भावनाओं को दबाने की कोशिश की। उसे याद आया कि यह वही लड़की थी, जिसके पिता ने उसकी जिंदगी में दर्द और अंधेरा भर दिया था।

"ये मासूम चेहरा भी उतना ही दोषी है, जितना उसका बाप।" उसने खुद को याद दिलाया।

लेकिन क्या ये सच था?

क्योंकि कुछ देर पहले जब संजना ठंड से कांप रही थी, तब उसी हर्षवर्धन ने उसे अपनी जैकेट उढ़ा दी थी। क्यों? अगर वह वाकई उससे नफरत करता था, तो उसे उसके दर्द से फर्क क्यों पड़ रहा था? क्यों उसके आँसू देखकर हर्षवर्धन को भी तकलीफ होती थी?

उसने झुंझलाकर अपने बालों में उंगलियाँ फिराईं और तेज़ी से कमरे से बाहर निकल आया। उसने चाहा कि बारिश फिर से शुरू हो जाए, ताकि उसकी उलझनें उस शोर में कहीं दब जाएं। लेकिन अब बारिश थम चुकी थी। सिर्फ ठंडी हवा बह रही थी, जो उसे और बेचैन कर रही थी।

उसकी मुठ्ठियाँ भींच गईं। वह मिस्टर कूपर को बर्बाद करना चाहता था, हर हाल में। उसने जो दर्द सहा था, उसका हिसाब लेना चाहता था। और अगर इस बदले की राह में उसकी जान भी चली जाए, तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।