Nafrat e Ishq - Part 24 in Hindi Love Stories by Umashankar Ji books and stories PDF | Nafrat e Ishq - Part 24

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Nafrat e Ishq - Part 24



फ्लैट की धुंधली रोशनी मानो रहस्यों की गवाही दे रही थी। दीवारों पर टंगे पुराने कैलेंडर और टूटी खिड़की से आती ठंडी हवा माहौल को और भी भयावह बना रही थी।

दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला।

अंधेरे में दो साये लंबाई पकड़ते हुए कमरे में दाख़िल हुए। रोशनी जैसे ही उन पर पड़ी, साफ़ हो गया—वे सहदेव और विक्रम थे। दोनों के चेहरे पर कठोरता और आँखों में चमक थी, मानो आज जवाब लेकर ही बाहर निकलेंगे।

कमरे के बीचोंबीच चार आदमी बंधे पड़े थे। उनके हाथ-पाँव रस्सियों से कसकर बाँध दिए गए थे और होंठों पर मोटी टेप चिपकाई हुई थी। यही वे गुंडे थे जो कुछ घंटे पहले सहदेव का पीछा कर गोलियाँ बरसा रहे थे।

सहदेव ने धीमे कदमों से आगे बढ़ते हुए एक की ठुड्डी पर थपकी दी, “तो जनाब, अब बोलोगे? या अभी भी अपने मालिक का नाम छिपाने की कोशिश करोगे?”

विक्रम ने टॉर्च का उजाला सीधे उन पर डाला। तेज़ रोशनी में उनकी आँखें झपकने लगीं।



सहदेव ने पास रखी कुर्सी खींची और उनमें से एक के सामने बैठ गया।
“बता… किसने भेजा तुम्हें मेरे पीछे? और क्यों? जब मैं मनीषा का पता लगाने निकला, तभी तुम लोग रास्ते में आकर धमकाने लगे कि मुझे सच जानने का हक़ नहीं है। आखिर क्यों?”

उसकी आवाज़ में न तेज़ी थी, न ही गुस्सा—सिर्फ़ ठंडापन। वही ठंडापन जो किसी भी इंसान की रगों में सिहरन पैदा कर दे।

गुंडों में से एक, जिसे सब ‘मुकेश’ कहते थे, सहदेव की आँखों में घूरते हुए हल्का मुस्कराया। होंठों पर लगी टेप हटी तो उसके मुँह से आवाज़ निकली, “तुझे लगता है तू हमें मार कर सच निकलवा लेगा? भूल जा… तू चाहे जितना भी कोशिश कर ले, तुझे कुछ हासिल नहीं होगा।”



बाहर कमरे के, मोनिटर पर बैठकर सब यह दृश्य देख रहे थे।

मनोज ने धीरे से कहा, “अच्छा, तो क्या नाम है इन सबको पकड़ने का?”

आदित्य ने ठंडी सांस छोड़ी और कहा, “नाम? नाम से क्या होगा मनोज… नाम तो सिर्फ़ परछाईं है। असली चेहरा तो तब सामने आएगा जब ये बताएँगे कि इनका मालिक कौन है।”

मनोज ने हल्की हंसी ली, “सही कहा। पर मुझे शक है… कहीं ये सब सिर्फ़ मोहरे न हों।”

आदित्य ने सिर हिलाया, “बेशक… सही होगा।”

उनकी निगाहें स्क्रीन पर जमी थीं। यह फ्लैट आदित्य के चाचा का था और यहाँ एक साउंडप्रूफ कमरा बना हुआ था। पहले इस कमरे का इस्तेमाल कहानियों की डबिंग और रिकॉर्डिंग के लिए होता था, लेकिन आज यहाँ साज़िश का सच उगलवाने की कोशिश हो रही थी।



कमरे के अंदर सहदेव का चेहरा कठोर हो गया। उसने मुकेश की गर्दन पकड़कर उसे ज़ोर से दीवार से टिकाया और ठंडी आवाज़ में कहा—
“देख… मेरे पास वक़्त कम है। या तो तू बोलेगा, या फिर ये रस्सियाँ तेरी कब्र बनेंगी। समझा?”

विक्रम ने बीच में कहा, “सहदेव, याद रख… डर और दर्द, दोनों ही इंसान से उसकी जुबान खुलवाते हैं। बस चुनाव तेरा है कि तू पहले कौन सा हथियार इस्तेमाल करेगा।”

सहदेव ने हल्की मुस्कान दी, “ठीक कहा। मैं तो बस इनकी हंसी देखकर समझ रहा था कि ये ज़्यादा देर चुप नहीं रह पाएँगे।”



मुकेश ने फिर हंसी छोड़ी—धीमी, लंबी और डरावनी।
“मार ले… चाहे जितना मार ले… पर मैं नहीं बोलूँगा। और अगर बोल भी दूँ, तो भी तुझे विश्वास नहीं होगा।”

सहदेव की आँखों में सन्नाटा छा गया।
“क्यों नहीं मानूँगा?”

मुकेश ने होंठों पर खून की बूंदें साफ करते हुए कहा,
“क्योंकि जिस नाम को सुनने की तू कोशिश कर रहा है… वो नाम तेरी दुनिया का सबसे बड़ा झूठ बनकर सामने आएगा। तेरा यकीन टूट जाएगा… और तेरी दुनिया बिखर जाएगी।”



विक्रम ने मुट्ठी भींची और झटके से उसकी कुर्सी को लात मारी।
“कौन है वो? साफ-साफ बता वरना अभी यहीं तेरी हड्डियाँ तोड़ दूँगा।”

मुकेश ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “तुम मुझे जितना चाहे तोड़ लो… पर मैं उसका नाम नहीं लूँगा। क्योंकि वो नाम सिर्फ़ सुनकर ही तुम सबकी जान पर बन आएगी।”



बाहर बैठे मनोज ने गुस्से से कहा, “ये कमीना खेल खेल रहा है। मुझे तो लगता है, सहदेव को अब सख़्ती करनी पड़ेगी।”

आदित्य ने गंभीर आवाज़ में कहा, “सख़्ती ही सबकुछ नहीं होती। कभी-कभी जवाब चुप्पी से भी निकलता है। देखो, मुकेश की मुस्कान बता रही है कि वो किसी बहुत बड़े खेल का हिस्सा है। और हमें यह समझना होगा कि असल मालिक कौन है।”



कमरे में सहदेव ने धीरे से विक्रम को इशारा किया।
“विक्रम, जरा पीछे हटो। मुझे इसे अपने तरीके से संभालना है।”

विक्रम ने अनिच्छा से कदम पीछे खींचे।

सहदेव ने झुककर मुकेश की आँखों में देखा और बहुत धीमी आवाज़ में कहा—
“तू हंस रहा है? ठीक है। पर ये मत भूल कि जो इंसान अपने मालिक के लिए मरने को तैयार हो, वो मालिक अक्सर अपने आदमी को कुत्ते की तरह छोड़ भी देता है। क्या तुझे यकीन है कि तेरा मालिक तेरे लिए खड़ा है?”

यह सुनते ही मुकेश के चेहरे की मुस्कान हल्की पड़ गई। उसके माथे पर पसीने की बूंदें छलकने लगीं।



“तू… तू नहीं जानता,” मुकेश हकलाया।
“वो औरत… वो औरत…”

सहदेव ने चौकन्ने होकर पूछा, “कौन औरत? साफ बोल!”

मुकेश ने होंठ भींचे और अचानक चुप हो गया। उसकी आँखों में फिर वही हंसी लौट आई।

“नहीं… अगर मैंने नाम लिया, तो पहले मेरी जान जाएगी। और यकीन मानो… मैं तुम्हारे हाथों मरना पसंद करूँगा, पर उसके हाथों नहीं।”



कमरे के बाहर बैठे मनोज और आदित्य के चेहरे भी गंभीर हो उठे।
मनोज ने धीरे से कहा, “औरत? कौन औरत हो सकती है? कहीं… मनीषा?”

आदित्य ने सिर हिलाया, “हो सकता है… लेकिन यह खेल कहीं और गहरा है। मनीषा के पीछे कोई और भी हो सकता है।”

कमरे में सहदेव की आँखों में आग भड़क उठी। उसने ठंडी आवाज़ में कहा,
“ठीक है मुकेश। तू नाम नहीं लेगा, तो मैं तुझे जीते जी ऐसा छोड़ दूँगा कि तू खुद नाम पुकारने लगेगा।”

उसकी बातों में ऐसी दृढ़ता थी कि कमरे की हवा भी भारी हो गई।

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मुकेश की रहस्यमयी मुस्कान और उसकी बातों ने सहदेव के दिल में एक और तूफ़ान जगा दिया। कहीं न कहीं उसे यकीन होने लगा कि मनीषा सचमुच किसी के शिकंजे में है… और वही लोग उसके पीछे इन गुंडों को भेजते रहे।

अब सवाल यह था—वह औरत कौन थी?
क्या सचमुच मनीषा ही?
या मनीषा के पीछे कोई और भी परछाई थी?

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To be continued…