Silent Love - 3 in Hindi Love Stories by Naina Khan books and stories PDF | ख़ामोश मोहब्बत - 3

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ख़ामोश मोहब्बत - 3

*कहानी का नाम: "ख़ामोश मोहब्बत – भाग 3"*  

*(जब मोहब्बत किताब बन गई और हर दिल की ज़बान बन बैठी...)*

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* 1. एक साल बाद — बनारस*

गंगा के घाट अब भी वैसे ही थे — शांत, गहरे, और सच्चाई से भरे। फर्क बस इतना था कि अब वहाँ दो साये अक्सर दिखाई देते थे — *ज़ैनब और यूसुफ़*, जो अब सिर्फ आशिक़ नहीं, *रफ़ीक़* बन चुके थे।  

उनकी मोहब्बत अब सिर्फ तन्हाई में सिमटी हुई नहीं थी, बल्कि अब वो *लफ़्ज़ों की शक्ल* ले चुकी थी। दोनों ने मिलकर एक किताब पूरी की —  

*“ख़ामोश मोहब्बत”* —  

एक मोहब्बत की दास्तान जो कही नहीं गई थी, सिर्फ महसूस की गई थी।

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*2. किताब की रचना*

ज़ैनब ने अपनी पुरानी डायरी खोली, यूसुफ़ ने अपने छुपाए हुए खत निकाले।  

हर शेर, हर ग़ज़ल, हर तहरीर — दोनों की रूह की आवाज़ थी।

> “तेरे बिना जो लिखा, वो तन्हा था।  

> पर जब तू आया, तो हर लफ़्ज़ जिंदा हो गया।”

उन्होंने पन्नों पर खामोशी को उकेरा, मोहब्बत को रेखाओं में पिरोया।

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*3. एक नयी शुरुआत*

किताब छप कर आई — हल्के गुलाबी कवर में, ऊपर नाम लिखा था:

*"ख़ामोश मोहब्बत"*  

*लेखक: ज़ैनब & यूसुफ़*

बनारस की एक छोटी सी बुक लॉन्च में, उन्होंने इसे पहली बार पढ़ा।  

आवाज़ें धीमी थीं, दिल तेज़ धड़क रहे थे।

ज़ैनब ने पढ़ा:

> **“मोहब्बत वो नहीं जो इज़हार माँगे,  

> मोहब्बत वो है जो ख़ामोशी में भी पहचान दे।”**

(धीमा साज़, गंगा की लहरों की हल्की आवाज़ पृष्ठभूमि में)

ज़ैनब की आवाज़:

>  

⁠“कहते हैं मोहब्बत लफ़्ज़ों से बयान होती है...  

>  

⁠मगर मेरी मोहब्बत तो...  

>  

⁠ख़ामोश रही — और फिर भी सब कुछ कह गई।” 

>  

⁠“जब यूसुफ़ मेरी ज़िन्दगी से गया,  

⁠तो ऐसा लगा जैसे पूरी कायनात चुप हो गई हो...  

>  

⁠हर किताब, हर रास्ता, हर दुआ — बस उसका नाम पुकारती रही।”  

>  

⁠“मगर मैंने हार नहीं मानी…  

>  

⁠क्योंकि सच्ची मोहब्बत कभी दूर नहीं जाती —  

⁠वो किसी ना किसी शक्ल में लौट आती है।”  

⁠“और वो लौटा…  

>  

⁠मेरी शायरी की सतरों में,  

⁠उसकी तन्हाई की स्याही में,  

⁠हमारी अधूरी कहानी की ख़ामोशी में।”  

⁠“हमने कुछ नहीं लिखा…  

⁠मोहब्बत ने हमें लिखा।”  

⁠“और अब हमारी ये दास्तान…  

⁠हर उस दिल तक पहुँचेगी जो चुप रहकर भी बेहिसाब चाह चुका है।”   

⁠“ये कहानी मेरी नहीं, हमारी नहीं…  

⁠ये तुम्हारी है — तुम्हारी ख़ामोश मोहब्बत।”

लोगों की आँखें भीग गईं। किसी को अपने गुज़रे प्यार की याद आई, किसी को अधूरी मोहब्बत का मरहम मिला।

---*4. मोहब्बत हर दिल तक पहुँची*

कुछ ही महीनों में किताब को लोगों ने *दिलों में जगह* दी।  

- कॉलेज की लड़कियाँ इसे दोस्तों को तोहफ़ा देने लगीं।  

- बूढ़े शायर इस किताब को अपने छूटे वक़्त की यादों से जोड़ने लगे।  

- और जो अकेले थे, उन्हें भी ऐसा लगा — *"कोई है जो हमारी भी बात समझता है।"*

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*5. आख़िरी पन्ना*

एक इंटरव्यू में जब ज़ैनब से पूछा गया:  

*“क्या ये कहानी आपकी है?”*  

वो मुस्कराई और बोली:  

*“ये कहानी मेरी नहीं — हर उस दिल की है, जिसने मोहब्बत की, मगर कह नहीं पाया।”*

और यूसुफ़ ने जोड़ दिया:  

*“हमने कुछ नहीं लिखा, मोहब्बत ने खुद को लिखवा लिया।”*

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*6. वर्षों बाद*

एक दिन, किसी और शहर के किसी और बुक स्टोर में एक लड़की ने वो किताब उठाई, और पढ़ते ही रो पड़ी।

उसके दोस्त ने पूछा,  

*“तू क्यों रोई?”*

वो बोली:  

*“क्योंकि मेरी अधूरी मोहब्बत को किसी ने लिखा है… बिना मुझसे पूछे।”*

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*समाप्त नहीं…*

क्योंकि *"ख़ामोश मोहब्बत"* अब एक किताब नहीं —  

*एक अहसास* बन चुकी थी,  

*एक जुबान* बन चुकी थी,  

और  

*हर उस दिल का नाम* बन चुकी थी,  

जो बिना बोले भी पूरी मोहब्बत कर बैठा।

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