आत्मा-विकास — जीवन का परम धर्म in Hindi Spiritual Stories by Agyat Agyani books and stories PDF | आत्मा-विकास — जीवन का परम धर्म

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आत्मा-विकास — जीवन का परम धर्म

✧ आत्मा-विकास — जीवन का परम धर्म ✧---

 
 
प्रस्तावना 
 
जीवन ही आत्मा-विकास हैमानव ने धर्म, शिक्षा, विज्ञान और विकास के नाम पर अनगिनत रास्ते खोजे।पर इन सब भटकनों के बाद भी जीवन का सबसे साधारण और सबसे मूल सत्य अनदेखा रह गया:जीवन को सचमुच जीना ही आत्मा-विकास है।जब आत्मा विकसित होती है, तब धन–साधन अपने आप साधन रह जाते हैं, लक्ष्य नहीं।शिक्षा ज्ञान तो देती है, पर आत्मा-विकास समझ देता है।समझ ही वह दूसरी चाबी है जो भीतर का द्वार खोलती है।आत्मा-विकास होने पर जीवन की हजारों समस्याएँ अपने आप सुलझने लगती हैं।क्योंकि तब मनुष्य संतुलित, विवेकशील और करुणामय हो जाता है।उसके पास केवल साधन नहीं, बल्कि शांति और दिशा भी होती है।यही इस ग्रंथ का बीज है।--
 
-अध्याय 1 : आत्मा-विकास की अनिवार्यताशरीर हमें जीवित रखता है,
 
बुद्धि दिशा देती है, पर आत्मा ही अर्थ देती है।बिना आत्मा के, जीवन घटनाओं की श्रृंखला है; आत्मा-विकास ही उसे आनंद और पूर्णता में बदलता है।
 
सूत्र:
 
“शरीर और बुद्धि साधन हैं; आत्मा ही जीवन का आधार है।”-
 
अध्याय 2 : शिक्षा और आत्मा का अंतरशिक्षा स्मृति और डिग्री देती है,
 
पर जीना नहीं सिखाती।आत्मा-विकास समझ और संतुलन देता है।बिना आत्मा के शिक्षा बेरोज़गारी और असंतुलन पैदा करती है।
 
सूत्र:
 
“शिक्षा बुद्धि को जगाती है, पर आत्मा को नहीं।”
 
अध्याय 3 : धर्म और आत्मा का अंतरआज का धर्म व्यापार है —
 
कर्मकांड, चमत्कार और प्रसिद्धि का खेल।आत्मा-जागरण धर्म से परे है; वह भीतर की समझ और मौन है।
 
सूत्र:
 
 
धर्म यदि आत्मा को न जगाए तो केवल व्यापार है; आत्मा ही सच्चा धर्म है।”--
 
अध्याय 4 : जीना और आत्मा-विकाससांस, भोजन, श्रम, प्रेम —
 
यही आत्मा-विकास के द्वार हैं।मौन और ध्यान थोपने से नहीं, जीने से खिलते हैं।
सूत्र:
 
“जीवन को गहराई से जीना ही आत्मा-विकास की पहली साधना है।”--
 
-अध्याय 5 : पूर्ण मनुष्य — आत्मा-विकास की परिणतिपूर्ण मनुष्य वह है जिसमें शरीर समर्थ,
 
बुद्धि विवेकशील और आत्मा जाग्रत हो।उसका जीवन ही धर्म, उसकी समझ ही शिक्षा, और उसके कर्म ही विज्ञान हैं।
 
सूत्र:
 
“जब शरीर, बुद्धि और आत्मा संतुलित हों — तब मनुष्य पूर्ण है।”---
 
अध्याय 6 : आत्मा-विकास और मृत्युमृत्यु
 
अंधकार केवल उनके लिए है जिन्होंने आत्मा को नहीं पहचाना।आत्मा-जाग्रत के लिए मृत्यु मुक्ति और उत्सव है।
 
सूत्र:
 
“आत्मा-विकास के बिना मृत्यु बंधन है; आत्मा-विकास के साथ मृत्यु मुक्ति है।”---
 
अध्याय 7 : आत्मा-विकास और समाजव्यक्ति का आत्मा-
 
विकास समाज तक फैलता है।समाज व्यक्तियों की चेतना का प्रतिबिंब है।एक जाग्रत आत्मा परिवार और समाज को संतुलन देती है।
 
सूत्र:
 
“आत्मा-विकास व्यक्ति को मुक्त करता है; मुक्त व्यक्ति समाज को संतुलन देता है।”---
 
अध्याय 8 : आत्मा-विकास और प्रेमप्रेम आत्मा के बिना वासना और अपेक्षा है।
 
आत्मा-विकास प्रेम को करुणा और पूजा में बदल देता है।
 
सूत्र:
 
“बिना आत्मा-विकास प्रेम वासना है; आत्मा-विकास के साथ प्रेम करुणा है।”---
 
अध्याय 9 : झूठा विकास और खाई का जालआज का विकास पहाड़ बनाता है,
 
साथ में खाई भी खोदता है।हर समस्या का इलाज नई समस्या लाता है।सच्चा विकास आत्मा-विकास है, जो खाई नहीं बनाता।
 
सूत्र:
 
“आज का विकास पहाड़ बनाता है, पर उसके नीचे खाई भी खोदता है।”--
 
-अध्याय 10 : आत्मा-विकास और सच्चा विज्ञानआधुनिक विज्ञान बाहर खोजता है,
 
पर भीतर खाली है।आत्मा-विकास भीतर का विज्ञान है।सच्चा विज्ञान बाहर और भीतर दोनों का मिलन है।
 
सूत्र:
 
“विज्ञान बाहर खोजे और आत्मा भीतर — दोनों का मिलन ही सच्चा विज्ञान है।”---
 
अध्याय 11 : आत्मा-विकास और शिक्षा की नई दिशा
 
नई शिक्षा वही होगी जिसमें आत्मा-विकास केंद्र में होगा।सिर्फ़ डिग्री नहीं, जीवन जीने की कला और समझ सिखाई जाएगी।
 
सूत्र:
 
“शिक्षा जो केवल डिग्री दे वह अधूरी है; शिक्षा जो आत्मा को जगाए वही पूर्ण है।”---
 
समापनधर्म,
 
शिक्षा, विज्ञान और विकास — सब अधूरे हैं यदि आत्मा-विकास न हो।आत्मा ही जीवन का सार है।जीवन को सचमुच जीना आत्मा-विकास है।और आत्मा-विकास ही जीवन की पूर्णता और मुक्ति है।
 
 
अंतिम सूत्र:
 
 
“जीवन को जीना ही आत्मा-विकास है,और आत्मा-विकास ही जीवन का परम धर्म है।”