प्रिय राधा आंटी!,
उम्मीद है जहाँ होंगी इस जहाँ से बेहतर होंगी |
हर कष्ट हर पीड़ा से मुक्त होंगी |
आंटी!...
कभी सोचा नहीं था कि दस मिनट का रास्ता
इतनी गहरी याद बन जाएगा |
हर सुबह जब मैं अपने बच्चे को स्कूल ले जाती थी,
तो गली के मोड़ पर अपनी नन्ही पोती की उँगलियाँ थामे मुस्कान के साथ मिलती थी..
एक हल्की सी नम्रता, जैसे रोज़मर्रा की थकान पर मरहम रख देती हो |
आपके बालों में सवेरे की धूप उलझी रहती थी,
और आपकी आँखों में एक अपनापन..
जो बिना कहे भी कह जाता था कि “बेटा, सब ठीक हो जाएगा |”
धीरे-धीरे बातें बढ़ीं,
खाने की रेसिपी, बच्चों की शरारतें, मौसम का मिज़ाज,
सब साझा हुए..
और फिर एक दिन आपने बताया..
“वो पीते हैं… बहुत |"
आपके स्वर में कोई शिकायत नहीं थी,
बस एक थकान थी..जैसे किसी ने बरसों से आत्मा पर बोझ रख छोड़ा हो |
मैंने पहली बार तब आपकी चुप्पी में चीख सुनी |
आपकी चाल धीमी होने लगी, फिर वो दिन आया जब
आपका पैर दर्द से काँपने लगा और आप चल नहीं पाईं,
मैंने आपकी पोती को स्कूल पहुंचाने में आपकी मदद की,
और उस दिन मेरे पूछने पर कि आपको क्या हुआ है,आपने जो कहा, वो भीतर ठहर गया..
“ शरीर पर और मन पर कुछ घाव हैं बेटी जो अब नहीं भरेंगे शायद |"
कुछ ही समय में खबर मिली..
आप बिस्तर पर पड़ गई हैं |
डॉक्टर ने कहा, कैंसर है |
कहते हैं, वो घाव जो सालों की मार से बने थे,
अब भीतर फैल चुके थे |
आपको देखने आई मैं..
आप मुस्कुराईं भी उस वक्त,
जैसे दर्द से भी रिश्ता बना लिया हो आपने|
एक रात अचानक शोर और रुदन सुनाई दिया...
आपका घर बस दो-तीन घर छोड़कर ही तो था |
लोग भाग रहे थे, कुछ फुसफुसा रहे थे,
और जब पहुँची, तो देखा..
आप नहीं थीं | जा चुकी थीं अपने हर दर्द से मुक्त होकर |
आपके पति वहीं बैठे थे, आपके निर्जीव शरीर के पास,
सिर पकड़कर रो रहे थे |
उन्हें देख कर अजीब-सी सिहरन हुई..नहीं, घृणा हुईं |
जैसे किसी जल्लाद को अपने ही अपराध पर पछतावा हुआ हो |
पर देर से, बहुत देर से |
किसी ने कहा है...
“ पुलिस की लाठी और मरद की मार से मरी देहो का पंचनामा नहीं होता |”
कितना सच लगता है ये, राधा आंटी!
पति की मार से होने वाली पीड़ा को,
यह समाज औरत की नियति मान लेता है, और मौत को भी |
उस कातिल के लिए कोई सजा तय नहीं..
बल्कि उसे सहानुभूति के शब्द मिलते हैं उसके बदले |
जब सोचती हूँ वो सब, इस समाज के सारे नियम, सारे आदर्श झूठे, बेबुनियाद लगते हैं |
अब मैं उस मोहल्ले में नहीं रहती, पर अब उसकी यादें मेरे साथ हैं, आंटी |
आप चली गईं, पर एक सीख दे गईं..
कि चुप्पी भी अपराध होती है,
और औरत की सहनशीलता कभी-कभी उसके विनाश का कारण बन जाती है |
अब भी कभी-कभी वो रास्ता याद आता है..
जहाँ आपकी हँसी थी, आपकी बातें थीं,
और मेरे भीतर एक बच्चा-सा यकीन था
कि दुनिया बुरी नहीं होती |
पर अब समझ पाई हूँ,
दुनिया वही है.. बस कुछ “राधा आंटियाँ” उसे सुंदर बनाए रखती हैं |
आपकी याद में,
वो पड़ोस की लड़की,
जिसके दिन की शुरुआत आपकी मुस्कान से होती थी |
~रिंकी सिंह ✍️