Thumki (The untimely end of a dancing life) in Hindi Women Focused by Rinki Singh books and stories PDF | ठुमकी (एक ठुमकती हुई ज़िन्दगी का असमय अंत )

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ठुमकी (एक ठुमकती हुई ज़िन्दगी का असमय अंत )



ससुराल से एक साल बाद मायके पहुँची थी |बरामदे की चौखट पार की ही थी कि सामने से फूला चाची आती दिखीं |
हमेशा की तरह थोड़ा घूँघट निकाला हुआ चेहरा, हाथ में झोली,पर होंठों पर वह मुस्कान नहीं दिखी जो हमेशा दिखती थी | 
पर आज कुछ अलग था।
उनके नज़र उठाने पर मैंने पूछा..
“कैसी हैं चाची?”

पर जवाब में बस एक खामोशी आई |
वो धीरे से सिर हिलाकर आगे बढ़ गईं |उनकी चाल में उस रोज़ ठहराव था, उदासी थी, जैसे कोई मन के भीतर से ढह गया हो |
मैं कुछ क्षण वहीं जड़-सी खड़ी रही |
फूला चाची हँसते हुए जवाब देने वाली औरत थीं |
उनकी खामोशी ने ही मुझे डरा दिया |
फूला चाची.. तीज-त्यौहार, शादी-विवाह में घर के कामों में माँ का हाथ बटा देती थी और ऐसे भी कभी काम अधिक को तो अम्मा मदद के लिए बुला लिया करती थी... 

भीतर गई तो माँ चूल्हे के पास बैठी थीं, बोली आ गई बिटिया?
मैंने पूछा..
“अम्मा, फूला चाची उदास क्यों थीं? इस वक़्त क्यों आई थीं?”
माँ ने आह भरते हुए कहा..
“अरे बेटा, उनकी बेटी ठुमकी… उसकी तबीयत बहुत खराब है। हॉस्पिटल में भर्ती है |”

मेरे हाथ से पर्स फिसल गया |
“कौन ठुमकी?… वही जो पहले आती थी?
“हाँ बेटा… वही | उसी को बच्चा हुआ है कल | बहुत खून बह गया | अब तो आँखों से भी नहीं दिख रहा |डॉक्टर जवाब दे चुके…कह रहे कोई उम्मीद नहीं है ”
माँ की आवाज़ धीमी पड़ गई..
“भगवान रहम करे उस पर।”

मेरे भीतर हलचल सी मच गई |
ठुमकी…
वही साँवली-सी, बड़ी-बड़ी आँखों वाली वो लड़की, जो हमेशा मुस्कुराते हुए आती थी |

पहली बार देखा था जब, तो 7–8 साल की रही होगी |
फूला चाची के पीछे-पीछे चलती हुई आई थी, नाम पूछने पर शर्माते हुए बोली थी,
“दीदी, मेरा नाम ठुमकी है |”
मैं हँस पड़ी थी 
“ये कैसा नाम है?”
वो भी हँस दी..
“अरे असली में नाम कविता है… पर सब ठुमकी बुलाते हैं | मैं बहुत ठुमक-ठुमक के चलती हूँ न…”
और तभी फूला चाची पीछे से बोली थीं..
“दिन भर नाचती रहती है, हँसती रहती है, एकदम पगली है |”
तभी सब बुलाने लगे..

और ठुमकी खिलखिला पड़ी थी |
उसकी हँसी में ही जैसे पूरी दुनिया की रोशनी भरी होती थी |

धीरे-धीरे ठुमकी घर की ही लगने लगी थी |
पढ़ने में तेज, बातों में मीठी |
अक्सर वो कॉपी-पेन लेकर स्कूल का काम समझने आती |
मुझे प्यार से टीचर दीदी कहती थी..|

माँ भी कहती..फूला चाची से..
“काम की उम्र थोड़े है अभी |पढ़ने दो इसे”
और सच में..
ठुमकी में कुछ था…
कुछ चमक…
कुछ सपना…

एक बार बोली..
“दीदी, मैं नौकरी करूँगी… अम्मा को सब ला दूँगी जो वो नहीं ले पातीं |”
उसकी आँखों में उम्मीद का पूरा आकाश था |

फिर एक दिन याद है..
वो मेरे पास आई..
“दीदी, आपकी घुँघरू वाली पायल दे दो… आज बगल में शादी है… डान्स करना है |”

वो शादी में जिस दिन नाची थी...
लगता था जैसे हवा पर तैर रही हो |
सच में “ठुमकी” नाम उसी पर जँचता था |

फिर मेरी शादी हुई |
कुछ महीने बाद माँ ने बताया...
“ठुमकी की शादी हो गई। सोलह साल की थी |”

हड्डियों तक सिहरन दौड़ गई थी |
वो उम्र जहाँ एक लड़की को किताबें मिलनी चाहिए थीं…
वहाँ उसे ब्याह दिया गया |
और अब…
सत्रह साल की उम्र में…
माँ बन गई थी |

उस रात नींद नहीं आई |
उसका मासूम चेहरा बार-बार आँखों के आगे आ रहा था |

सुबह-सुबह फूला चाची दौड़ी आईं..
हांफती आवाज़ में बोली..

“भाभी… कुछ पैसे दे दो… लड़की सीरियस है… गाड़ी करके हॉस्पिटल जाना है…”
अम्मा पर्स ढूँढ रही थीं |
मैंने तुरंत पैसे दिए और कहा..

“मैं भी चलूंगी चाची”

वो फूट-फूट कर रो दीं..
“चल बिटिया… तेरी बहिनी तुझे बहुत याद करती थी ”

हॉस्पिटल… सरकारी वार्ड… पीली दीवारें… सड़ी हुईं गंध…
और बीचों-बीच एक खाट पर ठुमकी |

उसकी आँखें बुझ चुकी थीं |
जैसे पुतलियाँ अंदर धँस गई हों |
चेहरे पर सैकड़ों पीड़ाओं की रेखाएँ |
गला सूख चुका था |
सांसें ऊपर-नीचे उठ रही थीं… पर शरीर निर्जीव-सा पड़ गया था |

फूला चाची ने उसका हाथ थामा..
“ठुमकी… देख कौन आया है… तेरी दीदी… टीचर दीदी…”

ठुमकी की सूखी पलकें काँपीं |
उसकी पुतलियाँ जैसे अँधेरे में रास्ता खोजने लगीं |
और उसकी आखिरी बची सांसों ने एक शब्द बनाया..

“दी…दी…”

मैं वहीं बैठ गई,
मेरी आँखें धुंधला गईं |
ठुमकी ने होंठ हिलाए, शायद कुछ कहना चाहती थी...
पर आवाज़ उसके भीतर ही कहीं टूट गई |

कुछ ही देर बाद…
वो साँस जो ऊपर-नीचे चल रही थी
अचानक… थम गई |

वार्ड में चीखें गूँज उठीं |
फूला चाची ज़मीन पर गिरकर रोने लगीं..
“मेरी ठुमकी… मेरी बच्ची…”

ठुमकी का पति कोने में बच्चे को गोद में लिए खड़ा था |
चेहरा पत्थर जैसा |
पिता बनने की खुशी और पत्नी खो देने का दुख..शायद दोनों ही नहीं समझ पा रहा था |

मैं सबको देख रही थी…
और मेरे मन में एक ही बात हथौड़े की तरह बज रही थी..

“इनमें से कौन है… जिसने ठुमकी को इतना जल्दी शादी के लिए धकेल दिया?”

एक-एक चेहरा मेरे सामने अपराधी की तरह खड़ा था |
फूला चाची…
समाज…
रिवाज़…
गरीबी…
अज्ञान…
सबने मिलकर ठुमकी को मार दिया |

शरीर सहन नहीं कर पाया कम उम्र में बच्चा |
खून बह गया…
आँखें अँधेरा देखती रहीं…
और ठुमकी चली गई |
वो भी मुस्कुराए बिना…

कुछ साल बाद जब घर आई तो माँ ने कहा..
“फूला की दूसरी बेटी की शादी है |”

मैं स्तब्ध रह गई |
उसकी उम्र?
“सत्रह साल।”
ठुमकी की मौत से कोई सीख नहीं मिली |
उनके लिए यह भी एक “सामान्य घटना” थी..
जैसे रोज़ की छोटी-छोटी दिक्कतें…
जैसे पानी भरते गिर जाना…
जैसे बर्तन टूट जाना…

एक लड़की की मौत
उनके लिए बस एक और बीता हुआ दिन था |

आज भी जब बरामदे में बैठती हूँ,
कभी-कभी लगता है
दूर से हँसती हुई ठुमकी आ रही है..
बालों में फूल लगाए,
घुँघरू की पायल पहने,
ठुमकते हुए…

पर जैसे ही पास आती है..
उसकी आँखें बुझ जाती हैं…
और वो धुँध की तरह गायब हो जाती है |

मैं बरामदे की दीवार से सिर टिकाकर बस यही सोचती रहती हूँ..

“क्यों पैदा होते ही लड़कियों को शादी के नाम का ताला सौंप दिया जाता है?”
“कब तक समाज उनकी साँसों का सौदा करता रहेगा?”

और हर सवाल का जवाब बस एक ही रूप में ढलकर सामने आता है
ठुमकी की बुझी हुई आँखें |

~रिंकी सिंह