वरुण को नताशा से बात करता देख शोभा बीच में आई और कहा, "मेरी बेटी का जीवन बर्बाद करके तेरा मन नहीं भरा जो अभी भी झूठ पर झूठ कहता चला जा रहा है।"
वरुण ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "मम्मी जी, नताशा अभी भी मेरी पत्नी है। कृपया आप हम पति-पत्नी के बीच में न आएं तो ही अच्छा है।"
वरुण का गुस्सा देखकर शोभा ने अपने कदम पीछे हटा लिए।
इसके बाद वरुण ने नताशा की तरफ देखते हुए कहा, "नताशा, मैं नहीं चाहता कि हमारे बीच किसी भी तरह की कोई गलतफहमी रह जाए। मैं तुमसे सच्चे दिल से प्यार करता हूँ। जिस दिन मैंने तुम्हारी चोटी पकड़कर खींची थी, मेरा मन बहुत रोया था। मैंने वह पाप किया था जिसका मुझे कोई हक नहीं था। उस रात जब तुम दूसरी तरफ़ करवट करके सो रही थीं, उस रात ख़ुद से गुस्सा होकर मैंने अपने उस हाथ को, जिसने तुम्हारी चोटी खींची थी, इतनी ज़ोर से काटा था जिसका निशान अब भी मेरे हाथ पर है," यह बताते हुए वरुण ने अपना हाथ नताशा को दिखाया।
वरुण के हाथ पर दांतों के इतने गहरे निशान देखकर नताशा दंग रह गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है।
इसके बाद वरुण ने आगे कहा, "मैंने तुम्हें धोखा नहीं दिया, नताशा। मैंने मेरी बहन को इंसाफ दिलाया है। धोखा और छल तो माही के साथ तुम लोगों ने किया है।"
नताशा ने वरुण के हाथों से अपना हाथ अलग कर लिया और मुंह फेर लिया।
नताशा को दुःखी देखकर वरुण ने एक बार फिर उससे कहा, "नताशा, यदि तुम्हारा मन और मानसिकता बदल जाए, तो मेरे दिल के और मेरे घर के दरवाजे हमेशा तुम्हारे लिए खुले रहेंगे। मेरे दिल पर तुम्हारे सिवाय अब कोई और दस्तक नहीं दे सकता क्योंकि उसके दरवाजे सबके लिए बंद हैं; वहाँ केवल पत्नी का ही हक़ होता है और वह तुम हो, आई लव यू नताशा, आई लव यू फॉर एवर।"
वरुण ने एक और बात कही, "नताशा, मुझे यहाँ कोई बिज़नेस शुरू नहीं करना है और यदि करना भी हुआ, तो मैं अपने दम पर करूंगा। हमारे परिवार में सभी दहेज लेने और दहेज देने दोनों के ही खिलाफ हैं। मुझे तुम्हारे परिवार से तुम्हारे सिवाय और कुछ भी नहीं चाहिए। तुम्हें नहीं पता, नताशा, जिस समय माही रोते हुए यहाँ के हालात के बारे में बताती थी, वह सुनकर मेरी रूह काँप जाती थी। मैं उसका भाई हूँ और उसकी रक्षा करना मेरी जिम्मेदारी थी।"
नताशा ने एक गहरी सांस लेते हुए उससे पूछा, "लेकिन वरुण, तुम हो कौन, मैं यह जानना चाहती हूँ?"
वरुण ने कहा, "मैं कौन हूँ...? सबसे पहले तो मैं तुम्हारा पति हूँ। आज भी, अभी भी, तुम अपना पूरा समय लो, नताशा। सही-गलत का अंतर सोचो, समझो। उसके बाद तुम्हें तुम्हारे हर सवाल का जवाब मिल जाएगा। यह कभी मत सोचना कि तुम यदि लौटीं, तो मेरे परिवार में तुम्हारा अपमान होगा। तुम्हें वहाँ वही आदर-सत्कार मिलेगा जो एक बहू को मिलना चाहिए।"
वरुण का यह रूप देखकर नताशा हैरान हो रही थी। प्यार तो वह भी उसे बेइंतहा ही करती थी। इसी समय उसकी नज़रें शोभा से मिलीं, तो शोभा ने उसे अंदर चलने का इशारा किया। नताशा भी इस समय असमंजस की स्थिति में थी, इसलिए उसने मौन व्रत लेना ही ठीक समझा और चुपचाप अपने कमरे में चली गई।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः