Niranjan Singh Sailani: Dedicated Punjabi writer and translator in Hindi Biography by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | निरंजन सिंह सैलानी :पंजाबी के समर्पित लेखक और अनुवादक

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निरंजन सिंह सैलानी :पंजाबी के समर्पित लेखक और अनुवादक

निरंजन सिंह सैलानी :पंजाबी के समर्पित लेखक और अनुवादक

नीलम कुलश्रेष्ठ

पंजाब शिक्षा विभाग से सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार‌ पाने वाले पंजाब के सुप्रसिद्ध साहित्यकार निरंजन सिंह सैलानी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। आपने कहानियां, कवितायें, आलेख लिखे हैं। अब तक आपकी 42 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं। जिसमें एक बहुत उल्लेखनीय पुस्तक है, वह है` पंजाब की बोलियों `का संकलन। इस नाम से बहुत कम लोग परिचित होंगे। कुछ लोग ढोल, मजीरे, खड़ताल बजाकर अक्सर बरात में या किसी शुभ अवसर पर इन्हें गाते हैं। शादियों में अक्सर ये दल बैंड का काम करता है। ये बोलियां कहीं पंजाबी समाज से विलुप्त न हो जायें इसलिए इन्हें अपनी पुस्तक में सरंक्षित किया है। अपनी पुस्तक `दो बोल मुहब्बत `के में आपने अपने पुस्तक पढ़ने के जूनून के विषय में लिखा है कि उन्हें अपनी एक टीचर के कारण लाइब्रेरी में पढ़ने का जुनून हो गया था। माँ खाते समय उन्हें पढ़ते देखकर डांटती, ``पहले रोटी तो खा ले. ``

यहां तक कि जे बी टी करते समय उन्होंने कोर्स से अधिक साहित्य की किताबें पढ़ीं थीं।आपकी निष्ठा का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे अस्सी वर्ष की उम्र में भी निरंतर लेखन व अनुवाद कार्य में लगे हैं। इनकी परिकल्पना की सुंदरता इसी बात से पता लगती है कि इनके एक मात्र हिंदी काव्य संग्रह का शीर्षक है --`पायल अहसासों की `यानी अहसास पायल ही तो जो मन में पायल की तरह रुन झुन करते रहते हैं।

मैंने जिन प्रतिभाशली पंजाबी लेखक सैलानी जी का संक्षिप्त परिचय लिखा है दो वर्ष पूर्व मैं उन्हें बिलकुल भी नहीं जानती थी। अचानक मुझे पटियाला शहर के राजपुरा टाऊन से एक फ़ोन मिला कि मैं आपको अपनी पुस्तकें भेजना चाहता हूँ, आप भी मुझे अपनी पुस्तकें भेजें। मैं थोड़ा असहज हो गई थी कि कह न पाई आपकी मर्ज़ी है तो पुस्तकें भेजें लेकिन मैं क्यों भेजूं ?

मुझे सैलानी जी की कुछ पुस्तक मिलीं थीं। व्यस्ततायें इतनी थी कि मैं पढ़ नहीं पा रही थी, बुरा भी लग रहा था। उनका मुझसे बार बार फ़ोन पर पुस्तक भेजने का आग्रह। मैंने जब इनके लेखन स्तर को समझा तब मैंने अपना उपन्यास `हवा !ज़रा थमकर बहो। ``भेज दिया। जब मैं गुजरात आई थी तो गुजरात की संस्कृति से मैं इतनी प्रभावित हो ग ई थी कि इसे समझने का जुनून पाल बैठी थी।अपनी कलम से इसे दूर दूर तक पहुंचाती रही। गुजरात के बड़ौदा की संस्कृति पर ये उपन्यास आधारित है।

अब दूसरा आग्रह कि आप मेरी पुस्तक का गुजराती में अनुवाद करवाइये, मैं आपकी पुस्तक का पंजाबी अनुवाद करुंगा। मैंने बताया कि मैं गुजराती नहीं जानती और न मैं अनुवाद या पुस्तक प्रकाशन के लिए धन दूंगी क्योंकि मैं हिंदी की पुस्तकों के प्रकाशन के लिए भी रुपये नहीं देती।

मुझे क्या सैलानी जी को भी नहीं पता था कि नियति ने ये कैसा संयोग रचा है। सैलानी जी अब भी अक्सर फ़ोन पर मुझसे कहते हैं, ``आपका उपन्यास को पढ़कर मैं गुजरात की अलग तरह की संस्कृति, वहां के गरबा से परिचित हुआ .मुझे आपके इस उपन्यास ने ऐसा पकड़ा कि मैं इस उपन्यास का अनुवाद करने के लिए मजबूर हो गया। ``

ये ` पकड़ना `क्या होता है ?मैं ख़ूब समझतीं हूँ क्योंकि न्यूयॉर्क में रहने वाली विश्व यात्री प्रीति सेनगुप्ता की कविताओं ने मुझे मेरे अंतर्तम में इतना गहरे प्रभावित किया था कि मैं उनकी कविताओं के अनुवाद करती चली गई थी। मातृभारती ने तो उनके व मेरे बनाये कविताओं के वीडियोज़  भी लांच किये हैं।

एक बात और साहित्य हो या जीवन जहाँ तक हो मैं लोगों की सहायता दोनों हाथों से करती रहीं हूँ। बदले में अक्सर मिला है आज की भाषा में `डिच `. शायद ये उन्हीं प्रयासों व सत्कार्यों का फल है कि सैलानी जी ने स्वयं सम्पर्क किया था। एक अविश्सनीय सी बात ये है कि इन्होने दो वर्ष में मेरे दो उपन्यास, चार कहानी संग्रह का पंजाबी में अनुवाद करके उन्हें प्रकाशित भी करवा दिया है। वे कितने अधिक साहित्य को समर्पित हैं कि इतनी कठिन मेहनत कर सके।

मैं संकोच में अनुवाद या प्रकाशन के लिए पैसे न देने वाली लेखिका एक पुस्तक प्रकाशन के बाद मना करती रह गई - अब ये अनुवाद बंद करें। हर बार उनका सात्विक उत्तर होता था, ``मैं क्या कर रहा हूँ ?मुझे रब प्रेरणा दे रहा है। ये अनुवाद रब की मर्ज़ी है। ``

उनके साहित्य समर्पण को पंजाब के लेखकों के मंतव्य से और भी जानने का मौक़ा मिला था इसलिए मैं  पाठकों से शेयर करना चाहतीं हूँ।

पंजाबी के चर्चित लेखक जसबीर राना लिखते हैं, `` निरंजन सिंह सैलानी जी रिटायरमेंट के बाद और भी जवान हो गए हैं। युवा व्यक्ति वह है जो सृजन करता है। निरंजन बनाता है. उनके नाम से फकीरों की आभा चमकती है। वह एक बहुमुखी पंजाबी लेखक हैं। उनका लेखन आत्मकथा से लेकर अनुवाद तक फैला हुआ है। उन्होंने हिंदी उपन्यासों और कहानियों का पंजाबी में अनुवाद करके अनुवाद का एक सुंदर पुल बनाया है। ` ब्लैक रोज़ फॉर पारू ` उपन्यासकार नीलम कुलश्रेष्ठ की उत्कृष्ट कलात्मक कृति है। मैं नीलम कुलश्रेष्ठ को उनकी नव अनुवादित पुस्तक "अंडर द ग्रीन स्कर्टेड ट्री" के लिए बधाई देता हूं। आपने "शाहनामा फ़िरदौसी: दास्तानगोई" पुस्तक का संपादन और अनुवाद किया है और इसे नए सिरे से परिभाषित किया है। दार्शनिक दृष्टि से आप का यह कार्य ऐतिहासिक है। इसे पढ़ने के बाद मैं अपने आप को एक सुर में आया महसूस करता हूं। यह इस किताब का सबसे बड़ा आकर्षण है।हिंदी कहानी पुस्तक "तस्वर-ए-जानान" का अनुवाद और संपादन करके आपने पंजाबी कहानी के लिए एक सुंदर पुल बनाया है। इसमें लिखी कहानियाँ कथन और कथन के स्तर पर कथा साहित्य में एक नया चलन स्थापित करती हैं। हिंदी पुस्तकों का अनुवाद करने के लिए पंजाबी कहानी विशेष रूप से आपका आभारी है.``

गुरुदासपुर के बीबा बलवंत एक कवि, चित्रकार मूर्ति बनाने वाले कलाकार हैं। ये, लेखिका बंचित कौर, लुधिआना के सुप्रसिद्ध लेखक व चिकित्सक डॉ फ़कीर चंद शुक्ला, और भी बहुत से बुद्धिजीवी सैलानी जी के फ़ैन हैं।ऐसे पंजाबी के समृद्ध लेखकों के फ़ोन पाकर, अपनी  पुस्तकों की प्रशंसा उनसे फ़ोन पर सुनना , मेरा बेहद ख़ुश होना स्वाभाविक है। पंजाब की यू ट्यूबर देविंदर  कौर सैलानी मेरे पंजाबी में अनुदित उपन्यास को अपने चैनल पर एपीसोड्स के रुप में प्रस्तुत कर रहीं हैं। ये निरंजन सैलानी जी के श्रम  है का परिणाम है।

वे अक्सर फ़ोन पर जब भी मेरी कोई कृति पढ़ते हैं तो यही फ़ोन पर कहते हैं, ``मैडम जी !आप पर सरस्वती की बहुत कृपा है। ``

मैं सोचती रह जातीं हूँ--- कहाँ अहमदाबाद --और कहाँ राजपुरा --सरस्वती की कृपा तो सच ही है कि ऐसे सज्जन, बिना स्वार्थ के मेरी पुस्तकों का अनुवाद करने वाले आदरणीय निरंजन सैलानी से मेरा परिचय हुआ।

उनकी ताज़ा पुस्तकें हैं` शाहनामा `व नीला प्रसाद के उपन्यास  का अनुवाद . कुछ महीनों पूर्व पटियाला यूनिवर्सिटी के भाषा विभाग में आपकी छ: पुस्तकों का विमोचन हुआ था। सौभाग्य से उनमें मेरी अनुवादित तीन पुस्तकें थीं। मैं उन्हें बधाई देतीं हूँ व शुभकामनाएं कि वे अपना सृजन ज़ारी रखते हुए ऐसे ही हिंदी व पंजाबी भाषा के बीच सेतु बनाते रहें।

मुझे ख़ुशी है पांच भाषाओं की विद्वान सुप्रसिद्ध अनुवादक आरती करोड़े ने `यादों के झरोखे से `, उनकी आत्मकथा का गुजराती में अनुवाद व प्रकाशन का दायित्व लिया है। मेरा दोनों को आभार व शुभकामनायें। गुजराती के पाठकों को पंजाब की ग्रामीण सौंधी महक, एक अविस्मरणीय स्कूल, सैलानी जी की विद्वता, उनकी यायावरी, प्रकृति, उनकी सज्जनता का परिचय मिलेगा।

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail.com