Chhupa Hua Ishq - 4 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | छुपा हुआ इश्क - एपिसोड 4

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छुपा हुआ इश्क - एपिसोड 4


🌑 छुपा हुआ इश्क़ — एपिसोड 4
शीर्षक: अनंत श्राप
(रत्नावली मंदिर का रहस्य जागृत होता है)


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1. हवाओं में उठती अजनबी सरगोशियाँ

दरभंगा की रात आज अजीब थी।
आकाश पर बादल थे, पर फिर भी बिजली बिना गड़गड़ाए चमक रही थी — जैसे किसी अनदेखे संकेत पर धरती थरथरा उठी हो।

माया ने हवेली के बरामदे से देखा — मंदिर की दिशा में हल्की-सी नीली रोशनी झिलमिला रही थी।
आदिल उसके पास आया, उसके चेहरे पर चिंता थी।
“फिर वही रोशनी?”

माया ने सिर हिलाया, “यह मंदिर अब सोया नहीं है, आदिल। इसकी दीवारें हर रात जागती हैं।”

आदिल ने हथेली उसके कंधे पर रखी,
“तुम बहुत कुछ झेल चुकी हो। अब हमें सावधानी से चलना होगा।”

लेकिन जवाब में माया की आँखों में एक दृढ़ संकल्प चमका।
“नहीं आदिल, अब डरना नहीं। यह रहस्य अब मुझसे ज़्यादा देर छिप नहीं पाएगा।”

और उसी क्षण, मंदिर की दिशा से आती हवा में फुसफुसाहट गूँजी —
“रत्नावली…”

आदिल और माया दोनों एक पल को जम गए।


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2. आदिल का द्वंद्व — अतीत की आग

रात के गहराने के साथ आदिल का शरीर कांपने लगा।
वह अपने कमरे में अकेला था, लेकिन उसकी आँखों के सामने अजीब दृश्य तैरने लगे —
खून से सनी तलवारें, धधकते महल, और एक स्त्री जो आग के बीच खड़ी थी — रत्नावली।

वह खुद को “आर्यवीर” के रूप में देख रहा था।
हाथों में वही तलवार, वही चिन्ह उसकी कलाई पर।

“मैं… मैं कौन हूँ?”
उसने आईने में देखा — लेकिन उसमें आदिल नहीं, आर्यवीर का चेहरा झलक रहा था।

उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
दीवार पर रखी एक पुरानी तलवार अचानक चमक उठी।
बिना जाने, आदिल ने उसे उठाया और घुमाया — उसकी हर चाल किसी प्रशिक्षित योद्धा जैसी थी।

माया कमरे में आई तो दृश्य देखकर हैरान रह गई।
“आदिल!”

वह ठिठक गया, तलवार ज़मीन पर गिर गई।
माया ने उसकी आँखों में देखा — उनमें अब दो आत्माएँ थीं।
एक आदिल की, दूसरी आर्यवीर की।

“यह क्या हो रहा है…”
आदिल ने कांपती आवाज़ में कहा।
माया ने उसके माथे पर हाथ रखा,
“यही तो श्राप है, आदिल — अतीत अब तुम्हारे भीतर जाग चुका है।”


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3. जवेन की योजना — आत्मा-विकर की खोज

उसी समय, जंगल की गहराई में जवेन एक पुराने खंडहर के सामने खड़ा था।
उसके हाथ में एक फटा हुआ ग्रंथ था — “आत्मा-विकर”।

“रूहें समय से भाग नहीं सकतीं…”
वह बुदबुदाया,
“पर मैं उन्हें बाँध दूँगा। ताकि प्रेम कभी पुनर्जन्म न ले सके।”

उसने अग्नि प्रज्वलित की, और ग्रंथ के कुछ पन्ने खोले।
प्राचीन लिपि में लिखा था —

> “जो आत्मा-विकर का स्वामी बने,
वह काल के चक्र को थाम सकता है।”



जवेन मुस्कराया।
“अब रत्नावली मंदिर मेरी शक्ति बनेगा। माया और आदिल की रूहें — मेरी कैद।”

अगली सुबह, हवेली की दीवारों पर फिर वही चिन्ह उभर आए —
तीन वृत और अधखिला कमल — लेकिन इस बार उनमें धुआँ-सी काली परछाईं थी।


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4. गुफा में मिली तपस्वी योगिनी

माया ने उस रात एक सपना देखा —
वह मंदिर के पीछे एक गुफा की ओर बढ़ रही थी, और किसी आवाज़ ने उसे पुकारा —
“आओ, रत्नावली की उत्तराधिकारी…”

वह उठी और बिना कुछ कहे मंदिर की दिशा में निकल गई।
चाँदनी के बीच, उसे वही गुफा मिली, जो उसने सपने में देखी थी।

अंदर धूप और चंदन की मिली-जुली सुगंध थी।
दीवारों पर दीपक जल रहे थे।
बीच में एक योगिनी ध्यानस्थ बैठी थी — चाँदी जैसे बाल, शांत चेहरा, और माथे पर रत्नावली का चिन्ह।

“तुम जानती थीं कि मैं आऊँगी?”
माया ने पूछा।

योगिनी ने मुस्कुराकर आँखें खोलीं,
“मैं तुम्हारे जन्मों की प्रतीक्षा में हूँ, माया।
यह श्राप कोई दंड नहीं — यह प्रेम की परीक्षा है।
जिसने प्रेम को अधूरा छोड़ा, वही बार-बार लौटता है… जब तक वह अपने अधूरे इश्क़ को पूरा न कर दे।”

माया की आँखें नम हो गईं,
“तो इस बार मैं इसे अधूरा नहीं रहने दूँगी।”

योगिनी ने उसके माथे पर आशीर्वाद दिया।
“स्मरण रहे — जो अतीत को बदलने निकले, उसे अपने वर्तमान की कीमत चुकानी पड़ती है।”


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5. मंदिर का जागरण — प्रेम बनाम श्राप

माया और आदिल फिर से मंदिर पहुँचे।
दीवारों पर लहराती नील रोशनी अब और तीव्र हो चुकी थी।
जवेन वहाँ पहले से खड़ा था — उसके चारों ओर हवा में घूमती आत्माओं के चिह्न दिखाई दे रहे थे।

“तुम देर कर गई, माया,” जवेन बोला,
“अब यह मंदिर मेरे नियंत्रण में है।”

माया आगे बढ़ी, उसकी आवाज़ दृढ़ थी —
“तुम्हें प्रेम की शक्ति का अंदाज़ा नहीं है, जवेन।
यह रूहें तुम्हारे आदेश से नहीं, अपने वादे से बंधी हैं।”

आदिल के भीतर फिर वही ऊर्जा उठी —
उसकी आँखें नीली हो गईं, और उसने तलवार उठा ली।

मंदिर में एक भीषण प्रकाश फैला, दीवारें काँपने लगीं।
जवेन ने आत्मा-विकर का मंत्र पढ़ा, और उसी क्षण आदिल का शरीर जमीन पर गिर पड़ा।

माया चीखी — “नहीं!”
उसने दोनों हाथ जोड़े और वही प्राचीन मंत्र दोहराया —

> “प्रेमस्य रक्षणं भवतु…”



मंदिर की दीवारें सुनहरी आभा से भर गईं।
जवेन की आत्मा कुछ पल के लिए स्थिर हुई — फिर वह धुएँ में बदल गई।
आदिल की साँस लौट आई।


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6. क्लिफ़हैंगर — जलाशय में प्रतिबिंब

माया ने थकी आँखों से चारों ओर देखा —
सब शांत था।
आदिल उसके पास था, जीवित।

लेकिन मंदिर के पीछे के जलाशय में जब उसने झाँका —
उसे अपना नहीं, किसी और स्त्री का चेहरा दिखाई दिया।
उसकी आँखों में वही रत्नावली का चिन्ह था, लेकिन चेहरा अपरिचित।

माया ने काँपती आवाज़ में कहा,
“तुम… कौन हो?”

प्रतिबिंब ने मुस्कराकर कहा,
“मैं… तुम्हारा अगला जन्म हूँ।”

पानी की सतह लहराई — और दृश्य गायब हो गया।
माया के पीछे मंदिर की घंटियाँ अपने आप बज उठीं,
जैसे किसी ने फुसफुसाया हो —

> “अनंत श्राप अभी टूटा नहीं…”



(एपिसोड समाप्त — अगले भाग में: “पुनर्जन्म का वादा”)


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