कव्या और आरव की कहानी बारिश से शुरू हुई थी — और एक अधूरी चिट्ठी पर ख़त्म हुई।
दो दिल, जो एक-दूसरे के लिए बने थे, मगर हालात, समाज और मजबूरी ने उन्हें जुदा कर दिया।
यह कहानी है उस प्यार की, जो मौत के बाद भी ज़िंदा रहा… हर बारिश की बूँद में।
अधूरी मोहब्बत की आख़िरी चिट्ठी
बारिश हमेशा मुझे तुम्हारी याद दिलाती है, आरव।
हर बूँद जैसे वही वादा दोहराती है — “कव्या, मैं लौट आऊँगा।”
पर शायद कुछ लोग लौटते नहीं, बस याद बनकर रह जाते हैं।
हमारी कहानी भी तो बारिश से ही शुरू हुई थी।
वो जुलाई की पहली शाम थी। मैं कॉलेज के कैंपस में खड़ी थी, जब अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। सब भाग रहे थे, पर मैं वहीं भीगती रह गई। शायद मुझे हमेशा से बारिश से मोहब्बत रही है — और उसी दिन, बारिश ने मुझे तुमसे मिलवा दिया।
तुम छतरी लेकर आए थे, और कहा था —
“अगर ऐसे ही भीगती रही तो तुम्हें सर्दी लग जाएगी।”
मैं हँसी थी, तुम मुस्कुराए थे, और बस वहीं से हमारी कहानी शुरू हुई थी।
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वो छोटे-छोटे पल
कॉलेज के तीन साल कैसे गुज़रे, पता ही नहीं चला।
हमारे लिए हर दिन किसी फिल्म जैसा था —
कैंटीन की चाय, लाइब्रेरी की खामोशी, और तुम्हारे बाइक पर वो शाम की सवारी।
तुम्हारा कहना, “कव्या, शादी के बाद भी मैं हर सुबह तुम्हें इसी तरह कॉलेज गेट पर छोड़ने आऊँगा,”
मुझे उस वक़्त किसी सपने जैसा लगता था।
कौन जानता था कि वो सपना कभी पूरा नहीं होगा।
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जब सबकुछ परफेक्ट लग रहा था
कॉलेज ख़त्म हुआ। तुमने जॉब जॉइन की।
हमने मिलकर घरवालों से बात करने का प्लान बनाया।
तुम्हारी माँ मान गईं, पर मेरे पापा…
उन्हें तुम पसंद नहीं आए।
“सरकारी नौकरी नहीं करता, और ऊपर से अलग जाति का है।”
बस, एक ही लाइन में उन्होंने हमारी तीन साल की कहानी मिटा दी।
उस दिन मैंने पहली बार तुम्हें रोते देखा था।
तुमने कहा था — “कव्या, थोड़ा वक़्त दो, सब ठीक कर लूँगा।”
पर शायद वक़्त ही वो चीज़ थी जो हमारे पास नहीं थी।
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मजबूरी की शादी
पापा की ज़िद, रिश्तेदारों का दबाव — और समाज का डर।
एक दिन उन्होंने कहा, “कव्या, अगले महीने तुम्हारी शादी तय है।”
मैंने विरोध किया, रोई, चिल्लाई… पर कोई नहीं सुना।
शादी की रात, जब सब मुझे सुहागन कहकर आशीर्वाद दे रहे थे,
मुझे बस तुम्हारी आँखों की वो आख़िरी झलक याद आ रही थी —
जब तुमने कहा था, “अगर तुम खुश हो, तो मैं भी ठीक हूँ।”
और उस झूठे सुकून में शायद तुमने खुद को तोड़ दिया था।
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नई ज़िंदगी, पुराना दर्द
मेरे पति विनीत बहुत अच्छे इंसान थे।
उन्होंने कभी मुझसे ज़्यादा उम्मीद नहीं रखी।
पर जो दिल किसी और के नाम लिखा जा चुका हो,
वो किसी और के लिए कैसे धड़क सकता है?
मैं हर सुबह उनकी बनाई चाय पीते हुए तुम्हें याद करती थी।
हर रात उनके सो जाने के बाद तुम्हारी पुरानी मैसेजेज़ पढ़ती थी।
तुमने मुझे कभी “गुड नाइट” भेजना नहीं छोड़ा था,
भले ही मैं अब किसी और की पत्नी थी।
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तुम्हारा आख़िरी मैसेज
फरवरी की एक ठंडी रात थी।
तुमने मैसेज किया —
"कव्या, अब और नहीं सहा जाता। मैं जा रहा हूँ।"
मैंने तुरंत कॉल किया, पर तुमने नहीं उठाया।
अगले दिन सुबह अख़बार में पढ़ा —
“एक युवक ने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या की।”
नाम पढ़कर मेरा दिल थम गया — आरव मेहरा।
उस पल लगा जैसे मेरी साँसें वहीं रुक गईं।
वो बारिश फिर हुई उस शाम,
और मैंने आकाश की ओर देखा —
शायद तुम वहीं कहीं मुस्कुरा रहे थे, आज़ाद होकर।
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अधूरी चिट्ठी
एक हफ्ते बाद तुम्हारी माँ ने मुझे वो चिट्ठी दी,
जो तुम्हारे कमरे में मिली थी —
मेरे नाम।
> “कव्या,
मैं जानता हूँ कि तुम अब किसी और की हो,
पर मेरा दिल अभी भी वहीं अटका है जहाँ हमने पहली बार एक छतरी के नीचे पनाह ली थी।
शायद ये पागलपन है, पर मैं तुम्हें भूल नहीं पाया।
अगर अगला जन्म हुआ, तो मैं फिर वही गलती करूँगा —
तुमसे प्यार करने की।”
तुम्हारा — आरव।
उस चिट्ठी पर कुछ आँसू सूख चुके थे — शायद तुम्हारे थे या मेरे, पता नहीं।
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सालों बाद
अब दस साल बीत चुके हैं।
मैं माँ बन चुकी हूँ। मेरी बेटी का नाम आर्या है —
क्योंकि उसमें मुझे तुम्हारा नाम सुनाई देता है।
हर साल 14 फरवरी को मैं मंदिर जाती हूँ।
लोग सोचते हैं मैं भगवान से आशीर्वाद माँगने आई हूँ,
पर सच ये है कि मैं तुम्हें याद करने आती हूँ।
कभी-कभी लगता है, अगर उस वक़्त हम भाग जाते,
तो शायद तुम ज़िंदा होते…
पर शायद ज़िंदगी को हमारी मोहब्बत अधूरी ही पसंद थी।
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एपिलॉग — बारिश की वो बूँदें
आज फिर बारिश हो रही है।
मैं बालकनी में खड़ी हूँ, आँखें बंद कर लेती हूँ।
हर बूँद जैसे तुम्हारा नाम दोहराती है।
"कव्या… आरव…"
कभी-कभी सोचती हूँ,
तुम्हारा जाना मेरी सज़ा थी या मेरी मुक्ति —
पर जो भी था, वो प्यार सच्चा था।
और सच्चे प्यार की कहानी कभी ख़त्म नहीं होती,
बस अधूरी रह जाती है।
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~ समाप्त ~
✍️ Written by Tanya Singh