कॉलेज की गलियों में अब एक नई पहचान बस चुकी थी —
जहाँ हर सुबह की शुरुआत एक मुस्कान से होती, और हर शाम एक चुप्पी में खत्म।
वो चुप्पी अब बोझ नहीं लगती थी, बल्कि सुकून देती थी।
जैसे दो आत्माएँ बिना शब्दों के भी एक-दूसरे को समझने लगी हों।
Prakhra अब Aarav की मौजूदगी की आदी हो चुकी थी।
क्लास में उसकी कुर्सी के बगल में बैठना,
हर बार pen गिराकर उसका ध्यान खींचना,
और फिर दोनों का एक साथ झुककर उसे उठाना —
ये छोटे-छोटे पल अब उसकी दिनचर्या बन चुके थे
Aarav को भी अब उसकी कमी महसूस होती थी जब वो आसपास नहीं होती।
कभी किसी topic पर debate हो और वो न बोले — तो उसे लगता कुछ अधूरा है।
जैसे उसकी बातों के बिना ये दुनिया अधूरी है।
🌧️ एक सुबह —
बारिश ज़ोरों से हो रही थी।
Aarav भीगते हुए क्लास में आया, बालों से पानी टपक रहा था।
Prakhra ने देखा तो हल्का-सा मुस्कुरा दी,
“छतरी नहीं लाई थी?”
Aarav ने हँसकर कहा —
“लाई थी… लेकिन हवा ने साथ छोड़ दिया।”
वो दोनों हँस पड़े।
उस पल में न कोई introduction था, न कोई definition —
बस एक सुकून था, जो दोनों के बीच ठहर गया था।
बारिश की वो बूंदें जैसे उनके दिलों के बीच की दूरी मिटा रही थीं।
📚 लाइब्रेरी की शामें अब खास बन चुकी थीं।
Aarav किताब खोलता, और Prakhra उसके पास बैठकर नोट्स लिखती।
कभी वो उसकी तरफ़ झुककर धीरे से कहता,
“तुम हमेशा कुछ लिखती रहती हो, सब किताबों से ज़्यादा interesting लगता है तुम्हारा handwriting।”
Prakhra ने पन्ने पलटे बिना जवाब दिया,
“शायद इसलिए क्योंकि जो मैं लिखती हूँ, वो किताब नहीं, एहसास होते हैं।”
वो बात यूँ ही कही गई थी —
पर Aarav के दिल में उतर गई।
वो सोचता रह गया —
“काश, वो एहसास मेरे लिए होते।”
🍃 एक दिन Prakhra absent थी।
क्लास शुरू हुई, खत्म भी — पर Aarav का ध्यान कहीं नहीं था।
लोग बातें करते रहे, jokes चले, laughter गूंजा —
पर उसके लिए बस एक ही बात थी —
वो खाली seat।
शाम को उसने लाइब्रेरी का रुख किया।
वहाँ टेबल पर वही diary रखी थी — “पहली चुप्पी” ✨
कवर पर उसका नाम नहीं था,
पर Aarav जानता था कि ये उसी की है।
धीरे से पन्ने पलटे।
लिखा था —
“कभी-कभी रिश्ता नाम का नहीं होता,
फिर भी दिल उसे पहचान लेता है।” 💌
वो मुस्कुराया —
क्योंकि ये लाइन उसकी अपनी कहानी थी।
🌙 अगले दिन, Prakhra वापस आई।
Aarav ने कुछ कहा नहीं, बस देखा —
वो मुस्कुराई, और उसने बस सिर हिला दिया।
इतना ही काफी था।
दोनों की नज़रों ने वो सब कह दिया जो लफ़्ज़ों से नहीं कहा जा सकता।
धीरे-धीरे ये रिश्ता बिना नाम के बढ़ता गया।
कभी वो Prakhra की किताब में pen रख देता,
तो कभी वो उसकी notebook में एक quote लिख जाती —
“जो कह नहीं सकते, वो महसूस कर सकते हैं।”
☕ एक शाम canteen में,
Aarav ने अचानक पूछा —
“क्या कभी सोचा है... हम दोस्त हैं या कुछ और?”
Prakhra थोड़ी देर चुप रही, फिर उसकी कॉफ़ी का घूंट लेकर बोली —
“अगर किसी चीज़ को नाम देना ज़रूरी हो,
तो शायद वो सच्चा रिश्ता नहीं होता…”
Aarav उसे देखता रहा —
क्योंकि पहली बार किसी ने उसे शब्दों से नहीं, चुप्पी से जवाब दिया था।
📖 रात को,
Prakhra ने अपनी diary में लिखा —
“कुछ रिश्ते शब्दों से परे होते हैं।
वो बस दिल में जगह बना लेते हैं,
बिना किसी वादे के, बिना किसी नाम के।” 🌸
उसके pen से एक बूंद स्याही गिरी —
शायद किसी आँसू के साथ मिली थी।
अब दोनों जानते थे —
उनके बीच जो था, वो दोस्ती से गहरा था,
पर प्यार कहने जितना आसान नहीं।
वो एक ऐसा रिश्ता था —
जिसका कोई नाम नहीं,
पर हर धड़कन उसी का नाम दोहराती थी… 💞
✨ To be continued…
(Next Episode: “फासले” — जहाँ चुप्पी अब सन्नाटा बन जाती है,
और एक हल्की सी दूरी दोनों के बीच जगह बनाने लगती है…) 🌧️