Yaado ki Sahelgaah - 11 in Hindi Biography by Ramesh Desai books and stories PDF | यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (11)

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यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (11)


                 : : प्रकरण - 11 : :

      पुरी रात सब लोग ने खूब एंजोय किया था. सुबह हो गई थी. साथ बज चुके थे. आरती को इशारा कर के मैं अपने घर चला आया था. बाद में फटाफट तैयार हो गये थे. भाविका को अब तक कुछ बताया नहीं था. वह घड़ी घड़ी सवाल कर रही थी.

      आरती भी कोलेज में कोई कार्यक्रम हैं. ऐसा बहाना बनाकर घर से निकल गई थी.

     सब कुछ प्लान के मुताबिक चल रहा था. हम लोग ठीक नौ बजे आर्य समाज होल पहुंच गये थे. शादी में हमारे सारे सम्बंधित, परिचित लोग और हम दोनों के दोस्त भी मौजूद थे..

     ठीक दस बजे शादी की रसम की शुरुआत हुई थी जो एक घंटे में संपन्न हो गई थी.

    उस के बाद मेरे पिताजी ने फोन कर के ललिता पवार को बताया था. 

      " आरती और मेरे बेटे संभव की शादी हो गई हैं. आप को आशीर्वाद देना हैं तो बजार गेट में आर्य समाज होल में आ जाइये. " 

      और कुछ देर में ललिता पवार बड़ी मा और उस के नौकर के साथ होल में पहुंच गये थे.

      ललिता पवार ने होल में कदम रखते हुए भी मेरे पिताजी को अनाप सनाप बोलना शुरू कर दिया था.

      " तुम्हारे धोले बालो में धूल पड़े. आप के पागल बेटे को फसाकर मेरी बेटी के गले बांध लिया. "

       मैं कुछ बोलू उस के घर के नौकर ने मुझे मालिक के अंदाज में सवाल किया :

       " यह तुमने किया? "

       उस को मुझे कुछ पूछने का उसे कोई अधिकार नहीं था. मैंने उसे साफ कह दिया था.

       " तुम भला किस खेत की मूली हो? तुम्हे मैं क्यों जवाब दूं? तुम इस मुआमले से दूर रहना. " 

        उस पर वह मुझे मारने पर उतर आया था. उस वक़्त होल के सदस्यों ने उसे मेथीपाक खिलाया था. उस पर मुझे धमकी दी थी.

        " मैं तुम्हे मार दूंगा. "

       उस वक़्त मेरे मामाजी वहाँ मौजूद थे. उन्होंने ने मुझे तसल्ली दी थी.

      " तुम फ़िक्र मत करो. रास्ते में कोई भी तुम्हे हाथ लगायेगा तो मैं उसे अंदर कर दूंगा. "

      मुझे और आरती को एक रूम में बिठाया गया था. उस वक़्त बड़ी मा हमारे पास आई थी.

      मैंने विनम्र स्वर में कहां था:

      " यह आप की भतीजी आप के सामने हैं. उसे पूछो मैंने तुम्हारी बेटी से कोई जबरदस्ती की है. उस की मरजी के खिलाफ यह शादी रचाई हैं. अगर वह हां कहती हैं तो आप उसे घर ले जाइये. अभी किसी को हमारी शादी के बारे में पता नहीं है. मैं भूल जाऊंगा की मेरी शादी हुई हैं. "

      उन्होंने ने मेरी बात पर भरोसा किया था. और वह लोग चले गये थे. बाद में हम भी अपने घर ना जाते हुए पिताजी की साली के खाली फ्लैट में चले गये थे. मेरे पिताजी किसी भी तरह का जोखिम उठाना नहीं चाहते थे. इस लिये ऐसी व्यवस्था की थी. 

      दो दिन में हीं ललिता पवार के होंश ठिकाने आ गये थे. वह अपने देवर और दो ननद को लेकर घर ढूंढ़ते हमारे पास आये थे.

      " हम लोग सत्कार समारोह रखना चाहते हैं. "

      हमे उस बात से कोई एतराज नहीं था.

      दो दिन बाद हमारा सत्कार समारोह आयोजित हुआ था. ललिता पवार ने सब मेहमानों का आइसक्रीम से स्वागत किया था.

      वहाँ भी उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रदर्शन किया था.

 .    उन्होंने बेटी की शादी की खुशी में अपने दामाद को बाजु पर रखकर अनिश को अपने हाथों आइसक्रीम खिलाया था. इस पर कई लोगो को अचरज हुआ था, एतराज व्यक्त था. उन की दूसरी बेटी सुहानी और अनिश के बीच चककर चालू था. उसे एडवांस में आइसक्रीम खिलाया था.

       मेरा शुरू से हीं ललिता पवार के साथ छत्तीस का आंकड़ा था. दो तीन बार मेरा उन के साथ झगड़ा हुआ था. अपने आप को महान समझने वाले ललिता पवार में एक पैसे की भी अकक्ल नहीं थी.

       ससुराल में अच्छे से कैसे रहना चाहिये वह सिखाने के बदले उलटे पाठ पढ़ाती थी.

       उस ने कई बार अपनी बेटी को भड़काने की कोशिश की थी.

       " हमारे बताये हुए लडके से शादी करती तो यह मिलता, वह मिलता. गलत जगह शादी कर के मिलने वाले गहने को खो दिया हैं. "

        आरती को कोई चीज की लालच नहीं था. उस ने अभी अपने लिये कुछ नहीं मांगा था. लेकिन वह उसे विचलित करने में लगे रहते थे.

        एक बार उन्होंने बिन मांगे मुझे सलाह दी थी.

        " तुम्हारे घर में सौतेली मा हैं, कल जाकर तुम्हे घर से बाहर निकाल दिया तो क्या करोंगे? "

        मुझे ऊन की इस तरह की बातों से तकलीफ हुई थी. मैंने उन का मुंह तोड़ते हुए सुना दिया था. 

        " मैंने तुम्हारी बेटी से शादी की हैं. वह मेरी जिम्मेदारी है, उस में आप को टांग अड़ाने की कोई आवश्यकता नहीं हैं. "

         फिर भी वह अपनी आदतों से वाज नहीं आये थे.

         मैंने एक महिला मेगेझिन में एक लेख लिखा था

         हर एक स्त्री में मंथरा का वास होता हैं

         उस में मैंने ललिता पवार की बात वाइरल कर के उन की कड़ी आलोचना की थी. वह लेख उन्हें पढ़ने को दिया था. लेकिन उस से कुछ फर्क नहीं पड़ा था.

        उन की एक और बूरी आदत थी. हर किसी से मांगने की. उन्होंने ने बेटी के अधिकारों पर तराप मारी थी. उन्हें कभी कुछ नहीं दिया था.

       शादी के दो महिने बाद आरती ने मुझे ख़ुश खबरी सुनाई थी :

       " मैं प्रेग्नेंट हूं. "

       सुनकर मेरी खुशी की कोई अवधि नहीं रही थी.

       सामान्यत: एक रस्म होती हैं. पहली डिलीवरी मायके में होती हैं. लेकिन ललिता पवार वह डिलीवरी करना नहीं चाहते थे तो उन्होंने ने हम से उलटी बात कही थी.

      " हमारे यहाँ पहली डिलीवरी ससुराल में होती हैं.. "

       हम लोग तो वैसे भी डिलीवरी हमारे यहाँ करना चाहते थे, लेकिन ललिता पवार ने ऐसी बात कर के अपना सन्मान खो दिया था.

      उस वक़्त मैं शादी के बाद भी एल एल बी की पढ़ाई कर रहा था.. साथ में नौकरी भी करता था. उस वजह से काफ़ी व्यस्त भी रहता था.. ज्यादा समय आरती को नहीं दे सकता था. लेकिन गीता बहन अपनी बहू का एक बेटी से भी ज्यादा ख्याल रखते थे. यह मेरे लिये बड़ी राहत थी.

        गर्मी की छुट्टिया होने वाली थी. ललिता पवार उन का परिवार महाबलेश्वर जा रहे थे.. उस वक़्त बड़ी मा ने मुझे साथ चलने का आमंत्रण दिया था.

        आरती की डिलीवरी कभी भी हो सकती थी. इस स्थिति में मैंने उन के आमंत्रण का स्वीकार नहीं किया था. तब मेरे माता पिता ने हीं नहीं बल्कि खुद आरती ने मुझे जाने के लिये आग्रह किया था :

         " आप बहुत थक गये हो. थोड़ा घूम कर आओ, फ्रेश हो जाओगे. "

         और मैं तैयार हो गया था. हमे छोड़ने वह घर का नौकर और बड़ी मा का भतीजा बस डिपो तक आये थे.

       तब घर के नौकर का सुहानी के साथ का व्यवहार देखकर मैं चौंक सा गया था.

                    000000000000 ( क्रमशः)