inteqam chapter- 21 in Hindi Motivational Stories by Mamta Meena books and stories PDF | इंतेक़ाम - भाग 21

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इंतेक़ाम - भाग 21

अब तक आपने पढ़ा कि बंगले के आगे एक गाड़ी आकर रूकती है उसमें से एक सूट बूट पहने हुए और आंखों पर काला चश्मा लगाए आदमी निकलता है, उस आदमी ने आगे बढ़कर निशा से हाथ जोड़कर नमस्ते कहा,,,,

निशा के कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह है कौन है तब उस आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा आप गुनगुन चौहान की मम्मी होना,,,,

यह सुनकर निशा हड़बड़ा कर बोली हां,,,,

तब वह आदमी बोला आज जिस कंपटीशन मैं आपकी बेटी ने फर्स्ट प्राइज प्राप्त किया है उस कंपटीशन में मैंने जज,,,

आदमी आगे कुछ कहता तभी निशा बोली आइए आइए सर अंदर आइए,,,,,,

निशा के कहने पर वह आदमी अंदर आया निशा ने उसे सोफे पर बिठाया और रसोई मै से उसके लिए भागकर पानी लाई और बोली आप चाय लेंगे या कॉफी,,,,,

यह सुनकर वह आदमी बोला नो थैंक्स,, वह आपसे मुझे कुछ जरूरी बात करनी है,,,,,

यह सुनकर निशा भी वहीं दूसरे सोफे पर बैठ गई और बोली जी बोलिए,,,,,

निशा के बोलने और रहने के सादगी पूर्ण ढंग को देखकर उसे आदमी ने सादा ढंग से और साफ-सुथरी भाषा में अपनी बात उसके सामने रखी और कहा मेरा नाम सुनील दत्त है,,,,,

सुनील दत्त यह सुनकर निशा बोली कि सुनील दत्त बह जो शहर के जाने-माने रईस है,,,,

जब वह आदमी निशा की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा हां मैं वही सुनील दत्त हूं जैसा आप जानती है कि इस शहर के साथ-साथ आसपास के कई शहरों में मेरा फैंसी डिजाइनिंग फैंसी ड्रेस का कलेक्शन है और मेरा यह कारोबार इस शहर के साथ-साथ देश के कई शहरों में भी फैला हुआ है आप तो जानती है कि हम एक से बढ़कर एक ड्रेस डिजाइनिंग करते हैं और हमारी  डिजाइनिंग की हुई ड्रेस इंडिया के साथ-साथ विदेशों में भी काफी पसंद की जाती है, लेकिन आज जब मैंने आपकी बेटी की ड्रेस को देखा तो मैं हैरान रह गया कि आज तक हमने एक से बढ़कर एक डिजाइनिंग फैंसी ड्रेस तैयार की है लेकिन ऐसी ड्रेस कभी भी बना नहीं पाए, जहां तक मुझे पता है वह ड्रेस आपको किसी दुकान पर तो नहीं मिली है क्या मैं जान सकता हूं  कि वह ड्रेस आप कहां से लाए थे,,,,,

यह सुनकर निशा कुछ देर चुप रही और फिर बोली जी सर बात यह है कि मैं सिलाई का काम करती हूं और मुझे बचपन से ही तरह-तरह की फैंसी डिजाइनिंग ड्रेस तैयार करने का शौक है ,जब मुझे गुनगुन ने बताया कि उसकी स्कूल में एक फैंसी ड्रेस कॉन्पिटिशन होने वाला है तो मैं यह सोचकर परेशान थी कि मैं अपनी बेटी के लिए कौन सी ड्रेस खरीदे, मैंने कहीं दुकानों पर ट्राई भी किया लेकिन जो शहर की छोटी दुकानें थी उन पर तो कोई अच्छी ड्रेस नहीं मिली और जो बड़े-बड़े शोरूम थे उनमें से ड्रेस खरीदना मेरी औकात के बाहर था इसलिए वह ड्रेस में न हीं अपने दिमाग से खुद ने ही सील कर तैयार की है,,,,,, 

यह सुनकर सुनील दत्त हैरानी से निशा की तरफ देखने लगे और फिर अपने आप को संभालते हुए बोले क्या आप अपनी डिजाइनिंग हमें सेल करना चाहोगी, उसके बदले आपको एक मोटी रकम भी मिलेगी आप नहीं जानती कि आपकी उस डिजाइनिंग की कीमत क्या है,,,,,

यह सुनकर निशा बोली सर मुझे कोई कीमत नहीं चाहिए मैंने तो बस अपनी बेटी का मन रखने के लिए वह ड्रेस तैयार की थी,,,,,

यह सुनकर सुनील दत्त निशा से बोले लेकिन आप एक बार सोच लीजिए वह डिजाइनिंग हमारे लिए इंपॉर्टेंट है,,,,,

तब निशा बोली आप उस डिजाइन का इस्तेमाल कर सकते हैं मुझे कोई आपत्ति नहीं है और मुझे कुछ नहीं चाहिए,,,,,

निशा की बात सुनकर सुनील दत्त काफी प्रभावित हुए और फिर बोले अगर आपको ऐतराज ना हो तो एक बात बोलूं,,,,,,

यह सुनकर निशा मुस्कुराते हुए बोली जी कहिए,,,,

तब सुनील दत्त बोले कि अगर आप चाहती तो उस डिजाइन के लिए आप को मोटी रकम भी आपको मिल सकती थी लेकिन आपने पैसे लेने से साफ इंकार कर दिया और मैं यह सोच कर हैरान हूं कि आप जैसी एक हाउसवाइफ ऐसी डिजाइनिंग ड्रेस तैयार कर सकती है ,अगर आपको सही लगे तो क्या आप हमारे साथ काम करना चाओगी,,,,,, 

यह सुनकर निशा बोली लेकिन मैं,,,,,

तब सुनील दत्त बोले हां आपने जो ड्रेस गुनगुन के लिए तैयार की थी उससे ही आप के हुनर का पता चलता है अगर आप हमारे साथ हमारे लिए काम करोगी तो हमें बड़ी खुशी होगी और साथ में आप को भी एक अच्छा प्लेटफार्म मिल जाएगा,,,,,

यह सुनकर निशा बोली लेकिन मैं,,,,,

तब सुनील दत्त बोले देखिए मना मत कीजिए,,,,,, 

तब निशा बोली ठीक है,लेकिन मेरी भी एक शर्थ है,,,,

तब सन्नो भी वहां आ गई तब निशा सन्नो की तरफ देखते हुए बोली यह मेरी बहन है सन्नो मेरी एक शर्त है कि आपके यहां मेरे साथ काम मेरी बहन भी करेगी मेरी बहन मुझसे भी ज्यादा अच्छा काम करती है,,,,,

यह सुनकर सुनील दत्त ने सन्नो की तरफ देखा और फिर वह निशा की तरफ देखते हुए बोला जैसा आप ठीक समझो कल आप लोग इस पते पर आ जाना,,,,

यह कहकर सुनील दत्त ने एक कार्ड निशा को दिया कार्ड लेकर निशा मुस्कुराते हुए बोली जी,,,,,

यह कहकर सुनील दत्त खड़े होते हुए बोले तो मैं चलता हूं,,,,

तब निशा बोली सर कुछ देर बैठिए है आपके लिए चाय नाश्ता लेकर आती हूं,,,,,

तब सुनील दत्त बोले नहीं नहीं इसकी कोई जरूरत नहीं है मुझे किसी अर्जेंट मीटिंग में जाना है इसलिए मैं चलता हूं,,,,,

यह कहकर सुनील दत्त बाहर चले गए और अपनी गाड़ी में बैठ कर वहां से चले गए,,,,,

निशा सुनील दत्त के सादगी पूर्ण स्वभाव से काफी प्रभावित हुई, तब सन्नो ने आगे बढ़कर निशा से जानना चाहा कि आखिर में मामला क्या है,,,, 

तब निशा ने सारी बात सन्नो को बता दी सारी बात सुनने के बाद सन्नो की आंखों में यह सुनकर आंसू आ गए की निशा ने अपने बारे में ना सोच कर पहले उसकी खुशियों के लिए सोचा है ,यह सोचकर उसने निशा को गले लगा लिया,,,,,