वृंदा कहती है---
वृदां :- निंद ही नहीं आ रही है तो सोचा कुछ दैर तुमसे बात करलूं ।
तभी चतुर नशे में बड़बड़ाता है----
चतुर :- आज तो बच गया रे बाबा। ए
कुम्भन तू साला गया। तूने मुझसे पंगा लिया है ना । तुझेे तो मैं गोली से उड़ा दूगां ढिसकांउउ ....
इतना बोलकर चतुर फिर सो जाता है।
वृंदा हैरानी से पुछती है---
वृदां :- इससे क्या हो गया ?
एकांश :- वो तो ऐसे ही बड़बड़ाने लगता है।
वृंदा एकांश के हाथ मे ग्लास
देखकर पूछती है ---
वृदां :- ये क्या है
एकांश ग्लास को छुपाते हूए कहता हैं--
एकांश :; कक्क...कक..कुछ नहीं।
वृंदा :- क्या है एकांश बोलो ना । तुम मुझसे क्या छुपा रहे हो ।
एकांश :- वो हम लोग सब धापा मेरा
मतलब है की ताड़ी पी रहे हैं।
वृंदा :- ये ताड़ी क्या चिज है ।
एकांश :- ये खजूर के पैड़ का रस है जिस से अगर सुबह पेड़ से उतरते
समय पिया जाए तो एक दवा है जो पेट के लिए बहुत लाभदायी और इसमे नशा भी नहीं होता पर अगर ये रस को शाम को पिया जाये तो इसमे नशे की गोली मिलाई जाती है।
वृंदा एकांश से ग्लास ले कर कहती है--
वृदां :- में भी पीयू ?
एकांश हंसकर कहता है---
एकांश :- क्या तुम ?
वृंदा नाराज होता है कहती है---
वृदां :- क्यूं..! में क्यूं नहीं पी सकती।
एकांश :- तुम्हें नशा हो गया तो ।
वृंदा :- तो क्या हुआ।
इतना बोलकर वृंदा धापा पीने लगती है। उधर आलोक निचे उतर रहा था उसे भी काफी नशा हो जाता है। वो धीरे धीरे हवेली के बहार निकलता है और वही पेड़ के निचे बैठ जाता है जहां पर बिचोलियां बिछी हुई थी।
तभी वहा संपूर्णा भी आ जाती है। संपूर्णा को देख कर आलोक कहता है--
आलोक :- लगता है काफी चड़ गई है
नशे में मुझे संपूर्णा दिखाई दे रही है।
आलोक अपने नशे को कंट्रोल में रख वर्ना सब घर वालों को पता चल जाएगा के तूने धापा पी रखी है।
संपूर्णा आलोक की बात सुनकर हंसने लगती है।
आलोक :- तुम हंस क्यों रही हो।
संपूर्णा :- इसिलिए क्योंकी तुम्हें मैं सपना लग रहा हूं ।
आलोक हड़बड़ा के कहता है----
आलोक :- तो तुम संपूर्णा हो ।
इतना बोलकर आलोक अपनी एक उंगली संपूर्णा को छुने के लिए बढ़ाता है तो संपूर्ण आलोक की उंगली को अपने दांत से काट लेटी है जिससे आलोक को दर्द होता है।
आलोक :- आउच्छ .....! ये क्या कर रही हो।
संपूर्णा :- क्यू जोर से लगा।
आलोक कुछ नहीं कहता है।
संपूर्णा :- क्या सोच रहे हो।
आलोक :- ये के तुम मेरे दोस्त की बहन हो और तुम्हें अगर यहाँ किसी ने देख लिया तो मेरी दोस्ती बदनाम हो जाएगी। इसिलिए तुम यहाँ से चली जाओ।
संपूर्णा :- अच्छा तो तुम्हे इस बात का डर है।
आलोक :- हां.! इसी बात का डर है और इसिलिए मैं तुमसे इतने दिनो से नही मिला ।
इतना बोलकर आलोक उठने की कोसिस करता है पर नशे मे होने के कारण गिरने लगता है तो संपूर्णा आलोक को संम्भाल लेती है और आलोक संपूर्णा के ऊपर गिर जाता है और उसके ऊपर ही सो जाता है।
आलोक का एक हाथ संपूर्णा के वक्ष के ऊपर चला जाता है और आलोक का होंठ संपूर्णा के गर्दन को चुम रहा था जिसे संपूर्ण के शरीर में एक सिहरन सी हो जाती है और संपूर्णा काबु से बाहर चली जाती है। संपूर्णा भी आलोक को कसके पकड़ लेती हैं और आलोक को चुमने लगती है फिर दोनो ऐसे ही वही पर सो जाता है।
इधर वृंदा धापा के चार घुट पीने के बाद कहती है---
वृदां :- के ये तो बिलकुल कोल्ड ड्रिंक
जैसी है। पर इसकी महक थोड़ी अबीब सी है।
एकांश :- हां...! क्योंकी हम इसे रात को पी रहे है। सुबह ताजा ताजा पीने से इसमे जरा सा भी गंध नहीं आता है।
इस तरह कभी एकांश तो कभी वृंदा एक एक घूंट लिए जा रहा था। जिसके बाद दोनो को नशा हो जाता है। वृंदा अखिरी घुट खतम करके कहती हैं----
वृदां :- अरे ये तो खतम हो गया।
वृंदा नशे की हलत में एकांश की और देखती है और लड़खड़ाती हूई कहती है---
वृदां :- देखो मुझे नशा हुआ क्या ! नहीं ना । और तुम बेकार में डर रहे थे।
एकांश कुछ नहीं बोलता बस हल्की मुस्कान देता है। वृंदा एकांश के कंधे पर दोनो हाथ रख कर कहती है-----
वृदां :- एक बात बोलू। तुम न बहुत अच्छे हो, बहुत क्यूट हो तुम। तुम्हें पता है मैंने आज तक किसी लड़के से ऐसी बात नहीं किया। पर तुम सबसे अलग हो।
एकांश बस वृंदा की बात पर मुस्काये जा रहा था। वृंदा के आंखों में एकांश के लिए प्यार साफ दिख रहा था। एकांश वृंदा की आंखों में दैखता है ऐर दैखते ही रह जाता है। वृंदा धीरे धीरे एकांश के करीब आते लगते हैं और एकांश के हाथ को पकड़कर वृदां अपने कमर पर रख देती है।
एकांश का हाथ अब वृंदा के कमर पर था और दोनो एक दुसरे के बहोत करीब ।
जिससे वृंदा की सांस तेज हो चुकी थी एकांश की दिल की धड़कन भी तेज हो चुका था। दोनो अब एक दसरे के बहुत करीब होते हैं। दोनो ही एक दसरे करिब आ कर अपना काबू खो बैठा था दोनो की होंठ एक दसरे के बहोत ही करीब थे दौनो अब एक दसरे के होथ को चुमना चाहते थे।
वृंदा अपनी आंखे बंद कर देती है और अपने होंठ को एकांश के पास ले जाने लगती है एकांश वृंदा के गुलाबी होथ को ही देख रहा था। दोनो के होंठ अब एक दुसरे से टकराने के लिए बेताब थे
एकांश अब वृंदा के होंट को घुमने ही वाला था के तब एकांश को वर्षाली का चेहरा याद आता है और एकांश वृंदा के कमर से अपना हाथ हटा देता है और पिछे आ जाता है। वृंदा एकांश को अचानक ऐसे पिछे हटते देख कर कहती है---
वृदां :- क्या हुआ एकांश तुम रुक क्यों गए?
एकांश वृंदा से कहता है ----
एकांश :- वृंदा ये सब ठीक नहीं है। तुम अभी नशे में हो और तुम्हें पता नहीं के तुम क्या कर रही हो।
वृंदा एकांश को अपने करीब खींच कर कहती है ---
वृदां :- तुम भी तो नशे में हो फिर क्यों सोच रहे हो। कर लो ना जो करना है तेरे बाप का क्या जाता है।
वृंदा की बात सुन कर एकांश हल्की मुस्कान के साथ कहता है---
एकांश :- क्या , क्या कहा तुमने।
वृंदा कहती है---
वृदां :- मैंने कहा कर लो ना जो करना है तेरे बाप का क्या जाता है।
वृंदा एकांश के और करीब जा कर कहती है---
वृदां :- क्या मैं सुंदर नहीं हूं? मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती क्या ?
एकांश कहता है---
एकांश :- तुम बहुत खूबसूरत हो और
बहुत प्यारी भी ।
इतना बोलकर एकांश वृंदा के माथे पर एक गहरा चुंबन करता है । एकांश के किस करने पर वृंदा खुश हो जाती है और प्यारी सी मुस्कान देकर एकांश के बांहो में बेहोस हो जाती है।
जिससे वृंदा का चेहरा उसके बाल से ढक जाता है। एकांश वृंदा के चेहरे से बालों को हटा देता है और एकांश वृंदा को उठा कर रूम की और चला जाता है । रूम में जाकर एकांश वृंदा को सुला देता है। और वहा से जाने लगता है पर वृंदा एकांश का हाथ पकड़ लेती है और निंद में बड़बड़ाती है।
वृदां :- कर लो न एकांश तेरे बाप का
क्या जाता है।
To be continue....244