The Sixth Room in Hindi Horror Stories by fiza saifi books and stories PDF | छठा कमरा

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छठा कमरा

नीहा को शहर में नई नौकरी मिल गई थी। कंपनी ने उसे एक सुंदर-सा फ्लैट भी दे दिया था। सबसे बड़ी सुविधा थी—
सोनिना, वह घरेलू सहायिका जिसके बारे में बताया गया था कि कंपनी ने ही उसे भेजा है।

हमेशा शांत, गंभीर आँखों वाली, वह घर का हर काम संभाल लेती थी।
नीहा थकी-हारी लौटती तो खाना गर्म मिलता और घर चमकता हुआ रहता।

धीरे-धीरे सोनिना नीहा की ज़िंदगी का हिस्सा बनती चली गई…
या शायद नीहा ऐसा ही समझती थी।


एक अनोखी मुलाकात
एक दिन नीहा की माँ और भाई गाँव से उससे मिलने आए।
घर देखकर भाई ने हँसते हुए कहा—

“दीदी, आपके तो मज़े हैं… घर भी मिल गया और कामवाली भी!”

नीहा मुस्कराकर बोली,
“हाँ, सोनिना की वजह से सब आसान है।”

लेकिन माँ के चेहरे पर एक अजीब-सी घबराहट थी,
जिसे नीहा ने नज़रअंदाज़ कर दिया।


रविवार की ख़ामोशी
अगले दिन रविवार था। सोनिना छुट्टी पर थी।
शाम को माँ और भाई वापस जाने लगे।

दरवाज़े पर खड़ी माँ ने अचानक पूछा—

“बेटा, यह सोनिना कौन है?”

नीहा चौंक गई,
“अरे वही कामवाली! जिसे आप दोनों ने देखा था।”

माँ का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
“नीहा, जब से हम आए हैं… इस घर में तुम्हारे सिवा कोई नहीं था।”

नीहा हँस पड़ी,
“मम्मा, ऐसा कैसे? गोलू, तुमने देखा था ना?”

गोलू ने डरते-डरते कहा—

“नहीं दीदी… हम तो यहाँ हमेशा अकेले ही थे…”

अब नीहा के चेहरे से मुस्कान ग़ायब हो चुकी थी।
पूरा फ्लैट अचानक डरावनी हद तक शांत लगने लगा।


वह नंबर… जो था ही नहीं
नीहा ने काँपते हाथों से सोनिना का नंबर मिलाया—

“The number you have called does not exist.”

जैसे दिल में बर्फ़ भर गई हो।

“क्या? मैं रोज़ उससे बात करती हूँ!”

माँ ने डरते हुए नीहा को थाम लिया—
“बेटा, तुम किससे बातें करती थीं? यहाँ तो कोई नहीं था।”


सच्चाई… जो हड्डियों में उतर गई
सच जानने के लिए नीहा ने ऑफिस के असिस्टेंट विकास को फोन किया।

“विकास, सोनिना का नंबर दो, तुरंत!”

विकास उलझ गया—
“मैम, कौन सोनिना?
ऑफिस ने आपके लिए सिर्फ फ्लैट अलॉट किया था।
कोई घरेलू सहायिका नहीं भेजी गई थी…”

यह सुनते ही नीहा के पैर जैसे ज़मीन में धँस गए।
फोन हाथ से छूट गया…
और वह माँ की गोद में बेहोश होकर गिर पड़ी।


और फिर… वह दबी-दबी हँसी
अचानक ख़ामोशी में एक अजीब-सी आवाज़ गूँजी—

एक दबी-दबी हँसी…

माँ और गोलू सहमकर एक-दूसरे को देखने लगे।
वह हँसी बहुत क़रीब से आ रही थी…
नीहा के अपने कमरे की तरफ़ से…
जहाँ अक्सर सोनिना खड़ी होकर मुस्कराती थी।

और दीवार पर लगे आईने में
एक पल के लिए किसी और का अक्स झलका—

ठंडी आँखें… वही गंभीर मुस्कान…

सोनिना।

लेकिन इस बार
वह अकेले काम करने नहीं आई थी…
वह किसी को अपने साथ ले जाने आई थी।

नीहा की आँखें अचानक खुल गईं।

कमरा अँधेरे में डूबा था।
माँ और गोलू कहीं नहीं थे।

हवा में सड़ी हुई नमी की बदबू थी,
जैसे किसी बंद कमरे में बरसों से कुछ सड़ता रहा हो।

नीहा उठने की कोशिश करती है…
लेकिन शरीर हिलता नहीं।

तभी—
टिक… टिक… टिक…

किचन की घड़ी नहीं,
यह आवाज़ उसके सिर के अंदर गूँज रही थी।

धीरे-धीरे
पैरों के चलने की आवाज़ आई।

छप… छप…

जैसे कोई गीले फर्श पर नंगे पाँव चल रहा हो।

नीहा की साँस अटक गई।

दरवाज़ा अपने आप चरमराया।

और फिर
वह दिखाई दी।

सोनिना।

लेकिन अब वैसी नहीं।

उसके बाल फर्श तक लटक रहे थे।
गर्दन अजीब से कोण पर मुड़ी हुई।
आँखें… पूरी तरह काली।

होंठ हिले—

“मैडम… आज आपने खाना नहीं खाया।”

नीहा चीखना चाहती थी,
लेकिन मुँह से आवाज़ नहीं निकली।

सोनिना आगे बढ़ी।
हर कदम के साथ
फ्लैट की दीवारें सिकुड़ने लगीं।

नीहा को अचानक याद आया—

इस फ्लैट में सिर्फ पाँच कमरे थे।

तो फिर—

वह छठा कमरा…?

पीछे दीवार में
एक दरवाज़ा उभर आया
जहाँ पहले कुछ नहीं था।

दरवाज़ा अपने आप खुला।

अंदर
सैकड़ों औरतें खड़ी थीं।

सबकी आँखें खाली।
सबके होंठों पर वही दबी हुई मुस्कान।

सब कभी
“कंपनी की तरफ़ से भेजी गई थीं।”

सोनिना ने नीहा का हाथ पकड़ा।

उसकी उँगलियाँ बर्फ़ जैसी ठंडी थीं।

“अब आपको आराम मिलेगा, मैडम,”
उसने फुसफुसाया।
“अब आप भी… यहीं रहेंगी।”

आईने में
नीहा ने आख़िरी बार खुद को देखा—

उसकी आँखें काली हो चुकी थीं।
चेहरे पर वही गंभीर मुस्कान।

और बाहर
माँ की आवाज़ गूँजी—

“इस फ्लैट में…
सिर्फ पाँच कमरे हैं…”

लेकिन
छठा कमरा
एक और मेहमान का इंतज़ार कर रहा था।!!!!!!!!!!!!!!