📖 कहानी — किराडू का श्राप
मेरा नाम राहुल है, और यह कहानी मेरी ज़िन्दगी का सबसे रहस्यमय अनुभव है।
मैं अपने माता-पिता के साथ रहता हूँ। मम्मी और पापा दोनों इंजीनियर हैं—मेहनती, गंभीर और अपने काम में इतने मग्न कि मानो दुनिया में उनके लिए बस वही मायने रखता हो।
हम पहले पंजाब में रहते थे, लेकिन इस बार उनके ऑफिस ट्रांसफर के कारण हमें दिल्ली से राजस्थान जाना पड़ा। जब सामान बाँधने का वक्त आया, मैं बहुत उत्साहित था—नई जगह, नए लोग, नई यादें।
हम सुबह-सुबह निकले, रास्ता लंबा था। धूलभरी सड़कों और सुनहरी रेत के बीच जब हम राजस्थान पहुँचे, तब तक सूरज ढलने लगा था। उस शाम हमने एक होटल में ठहरकर विश्राम किया।
अगले दिन हमने नया घर ढूँढना शुरू किया। काफी मशक्कत के बाद हमें किराडू नामक एक छोटे, रहस्यमयी शहर में एक सुंदर घर मिला। हमें यह नहीं पता था कि यह जगह अपने भीतर सदियों पुराना रहस्य समेटे हुए है...
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🕍 मंदिर का श्राप
एक दिन पड़ोस के लोगों से बातचीत में हमने जाना कि हमारे घर से लगभग तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर एक प्राचीन मंदिर है। लेकिन जब हमने वहाँ जाने की बात की, सबके चेहरों पर डर उतर आया।
एक बूढ़े व्यक्ति ने कहा —
> “उस मंदिर में सूरज ढलने के बाद कोई नहीं जाता, बेटा। वहाँ रहने वाले सब पत्थर बन जाते हैं।”
हम हैरान रह गए। आगे उसने धीरे-धीरे एक भयावह कथा सुनाई—
लगभग पच्चीस वर्ष पहले, इस स्थान पर एक राजा का राज्य था। एक दिन एक संत अपने शिष्य के साथ वहाँ पहुँचे। राजा ने उनका स्वागत किया, भली-भाँति सेवा की।
कुछ दिन बाद संत को दो दिन के लिए कहीं बाहर जाना पड़ा। जाते समय उन्होंने राजा से कहा—
> “मेरे शिष्य की देखभाल करना, यह मेरा आशीर्वाद लेकर तुम्हारे राज्य में रहेगा।”
परन्तु जब संत लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनके शिष्य को न केवल उपेक्षित किया गया, बल्कि अत्याचार करके मार दिया गया।
क्रोधित संत ने पूरे राज्य को शाप दिया—
> “सूर्यास्त के बाद इस भूमि पर जो भी रहेगा, वह पत्थर बन जाएगा!”
केवल एक दयालु महिला जिसने उस शिष्य की सेवा की थी, उसे संत ने चेताया—
> “भाग जा बेटी! पीछे मत देखना, वरना तू भी शापित हो जाएगी।”
वह भागी, पर जब गाँव से पत्थर बनने की चीखें गूँजने लगीं, तो वह खुद को पीछे देखने से रोक न सकी। उसी क्षण वह भी पत्थर में बदल गई।
संत ने दुखी होकर उसी मंदिर में जाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।
मरने से पहले उन्होंने मंदिर के द्वार पर लिखा —
> “यह श्राप हज़ार वर्षों तक अमर रहेगा।”
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यह कहानी सुनने के बाद मेरे मन में जिज्ञासा और भी बढ़ गई।
मैंने पापा से कहा, “हम मंदिर देख सकते हैं न?”
पापा ने झुंझलाकर कहा, “बिलकुल नहीं! ये सब लोककथाएँ हैं, पर वहाँ जाना ख़तरे से खाली नहीं।”
मैंने मम्मी से विनती की। मम्मी का दिल पिघल गया।
“ठीक है,” उन्होंने कहा, “सुबह चलेंगे और शाम तक लौट आएँगे।”
सुबह जब हम पहुँचे, सामने एक विशाल पत्थर का द्वार था। उस पर खुदा था —
> “सूर्यास्त से पहले लौट जाना, वरना तू भी पत्थर बन जाएगा।”
यह पढ़कर शरीर में सिहरन दौड़ गई। अंदर घुसते ही ठंडी हवा और अंधेरी गलियाँ हमें एक प्राचीन रहस्य की ओर खींच रही थीं।
मंदिर के बीचोंबीच उस तांत्रिक संत की मूर्ति थी, जिसके चेहरे पर एक अजीब मुस्कान जमी थी।
घूमते-घूमते हम एक दीवार के पास पहुँचे जहाँ लोग खड़े होकर कुछ देख रहे थे। वहाँ पत्थर बने इंसानों की आकृतियाँ उभरी हुई थीं—इतनी जीवंत कि लगता था जैसे अभी भी उनमें जान बाकी हो।
एक व्यक्ति ने बताया —
> “जो भी यहाँ सूरज ढलने के बाद रुक जाता है, उसकी छवि खुद-ब-खुद इन दीवारों पर उभर आती है।”
अब डर मन में घर करने लगा था। हमने तुरंत निकलने का फैसला किया।
परंतु जब हम द्वार के पास पहुँचे, सूरज क्षितिज को छू रहा था।
हम पूरी जान लगाकर भागे और किसी तरह बाहर निकल आए।
पर हमारे पीछे एक परिवार था जो अंदर ही रह गया... और द्वार अपने आप बंद हो गया।
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अगली सुबह हम फिर वहाँ पहुँचे। दीवारों पर अब उन लोगों की तस्वीरें भी उभर चुकी थीं।
हम सब सन्न रह गए।
इस रहस्य को सुलझाने के लिए हम अपने कैमरे लेकर रात में वापस गए।
हमने कैमरे मंदिर के कोनों में लगा दिए।
अगली सुबह जब फुटेज देखा, तो साँसें थम गईं—
लोग धीरे-धीरे पत्थर में बदल रहे थे, और तभी अचानक किसी ने कैमरे बंद कर दिए।
जब हमने बचा हुआ आखिरी कैमरा देखा, उसमें दो पारदर्शी आत्माएँ दिखीं—मानो तांत्रिक और उसका शिष्य हों।
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🔥 आत्माओं को मुक्ति
हम तुरंत एक स्थानीय तांत्रिक के पास पहुँचे।
उसने कहा,
> “जब तक ये माला गले में रहेगी, श्राप तुम पर असर नहीं करेगा।
अगर वे आत्माएँ फिर दिखें, तो उन्हें अग्नि में समर्पित कर देना—तभी मुक्त होंगी।”
रात को हम फिर मंदिर पहुँचे। प्रवेश द्वार अपने आप बंद हो गया।
हवा भारी थी, समय जैसे थम गया था।
अचानक वही दो आत्माएँ प्रकट हुईं—उनकी आँखों में पीड़ा और गुस्सा था।
हमारे हाथ काँप रहे थे, लेकिन हमने तांत्रिक की बात याद रखी।
मैंने मंत्र जपा, और जैसे ही अग्नि प्रज्वलित हुई, आत्माएँ जलने लगीं।
उनके विलुप्त होते ही मंदिर में एक तेज़ प्रकाश फैला और द्वार अपने आप खुल गया।
अगले दिन पापा ने वहाँ पूजा-अर्चना करवाई।
उसके बाद से उस मंदिर में कभी कोई अनहोनी नहीं हुई।
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आज भी जब मैं उन घटनाओं को याद करता हूँ, तो शरीर में सिहरन दौड़ जाती है।
कभी-कभी लगता है—वो आत्माएँ सच में मुक्त हुई थीं या बस किसी और रूप में अब भी उस मंदिर की रक्षा कर रही हैं…
THE END
--- A M
( This story, " The curse of kiradhu temple "
: A Mysterious Journey', was collaboratively created by the members of our 'Alfha' group. It is entirely based on the authors imagination and serves as a fictional travelogue. All characters and events described in the narrative are purely fictitious. The sole purpose of this story is entertainment. )
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