"कभी-कभी प्यार मर नहीं जाता... बस सिसकता रहता हैं , दिल के किसी कोने में , ज़िंदा लाश बनकर।"
11:49 PM – उज्जैन जंक्शन, प्लेटफॉर्म नंबर 4
बारिश की नमी अब भी प्लेटफॉर्म की दीवारों से रिस रही थी। दूर स्टेशन पर लटक रही लाइट बुझने के कगार पर थी , हल्की उमस के चलते मुरझाई सी एक कुतिया बेंच के इर्द-गिर्द घूम रही थी ; पटरी के आस-पास हल्की बारीक घास उग आई थी , सामने लटक रही बंद घड़ी के कांच पर एक हल्की सी दरार आ गयी थी ; सामने टी स्टाल पर पिछले 07 मिनट में चाय के पैसे देने वाला यह 22 वाँ आदमी था ; ठंडी हवा जब भी चलती , तो वो उस पुराने पड़े 'प्रेम विवाह विशेष ट्रेन' के पोस्टर को फड़फड़ा रही थी।
नरेश , उसी प्लेटफॉर्म पर बैठा था। एक सूनी आँखों वाला लड़का, जो अपने अंदर चीखता तो था... पर बाहर से उतना ही शांत दिखता था जितना एक खाली चर्च की दीवारें। परंतु इतने दृश्यों को अपनी आँखों में रखने वाला लड़का सूनी आँखों वाला कैसे हो सकता हैं ??—अक्सर जब हमारी आँखे किसी विशेष की तलाश में होती हैं और वो विशेष हमें नहीं दिखता , तो हर वो चीज़ हमारी आँखों में समा जाती हैं जिसके इर्द-गिर्द हमने उसे ढूँढने की कोशिश की थी ; अक्सर किसी को ढूँढने के क्रम में हम कितनी चीज़े ढूँढ लेते हैं ।
नरेश बार-बार मोबाइल स्क्रीन को ऑन-ऑफ कर रहा था , घड़ी में रात के 11 बजकर 49 मिनट हो रहे थे। उसने मोबाइल स्क्रीन बार-बार ऑन की , और फिर बंद कर दी। व्हाट्सएप पर उसका 'लास्ट सीन' अब भी वही था — "Seen Yesterday at 8:47 PM — जैसे समय भी रुक गया हो उसी घड़ी में, जब वो उससे टूटा था। परन्तु उसकी आँखों की नमी अभी भी किसी कोने में टहरी हुई थी , बरसने के लिए।
'वो' — काजल ।
कॉलेज की लाइब्रेरी में शुरू हुई कहानी, एक कप कॉफी, कुछ नजदीकियाँ, और फिर एक साल का रिश्ता। ऐसा लगता था, जैसे जिंदगी अपनी किताब खुद लिख रही हो। नरेश ने सपने देखे थे — छोटे-छोटे, साधारण, पर पूरे दिल से।
उनकी पहली मुलाकात कॉलेज की लाइब्रेरी में हुई थी जब नरेश ‘ गुनाहों का देवता ‘ ढूँढ़ते-ढूँढ़ते काजल से टकरा गया था , और फिर काजल ने हल्की मुस्कुराहट से कहा था – छठवी अलमारी में ऊपर से नवीं किताब।
नरेश, जो आमतौर पर चुपचाप रहने वाला और किताबों से प्यार करने वाला था कब काजल की गहरी आँखों में खो गया पता नहीं चला। पहली बार कुछ कह नहीं पाया। उसे ऐसा लगा जैसे उसके मन के सबसे शांत कोने में किसी ने आवाज़ दी हो।
पांचवे दिन काजल ने ‘ गुनाहों के देवता ‘ के बारे में पूछा और फिर दोनों के बीच सुधा-चंदर को लेकर लम्बी बात चली ; विशेष रूप से उस बात पर जब सुधा चंदर से कहती हैं – चंदर अगर दुनिया में पुनर्जन्म जैसा कुछ नहीं होता हैं तो तुमने मुझे अनंत काल के लिए खो दिया हैं।,,,कितना सुखद होता हैं न ? जब आप अपने ही प्यार से प्रेम की उत्कृष्टतम कृति के विषय में चर्चा कर रहे हो ,,ऐसा प्रेम जो कितना प्लूटोनिक हैं पता नहीं , पर मार्मिकता के मामले में हर जख्म को हरा कर देता हैं।
काजल ठहराव से भरी गहरी आँखों वाली एक जिद्दी लड़की थी , स्वभाव से चुलबुली थी लेकिन जब मुस्कुराती थी तो दुनिया को कुछ क्षण तक रोक लेने का दम रखती थी। उसकी बातें बचकानी थीं, लेकिन उसमें एक गहराई छिपी थी — एक ऐसी लड़की जो दुनिया से लड़ना जानती थी, लेकिन खुद के जख्म किसी को नहीं दिखाती थी , शायद बचकानेपन से अपने दुखो को ढकना चाहती थी।
धीरे-धीरे बातें शुरू हुईं। काजल उसे खींचकर कैंटीन ले जाती, जबरदस्ती उसके लिए उसके पसंदीदा इडली-साम्भर मंगवाती। वो उस पर हँसती थी, उसे चिढ़ाती थी, लेकिन साथ ही साथ उसकी परवाह भी करती थी।
चढ़ते प्रेम की आभा से कोई बच पाया हैं भला ?? नरेश भी कहाँ-ही बच सकता था - जब भी नरेश काजल को देखता, उसे लगता कि जैसे सब कुछ रुक गया हो — क्लास की घंटी, हवा की सरसराहट, किताबों की आवाज़ — बस काजल का चेहरा दिखता था और वो मुस्कुराहट जो उसके दिन की सबसे कीमती चीज़ थी। वो उसे देखकर खुद को बेहतर महसूस करता था और अक्सर काजल से कहता था – “””
‘‘तुम्हारी स्मित मुझे परमानंद की अनुभूति देती हैं; तुम्हारे उदास चेहरे को देखना मेरे लिए सबसे बड़ी यातना हैं।’’- काजल अक्सर हल्की मुस्कान के साथ इसका जवाब देती थी ।
जब पहली बार काजल ने उसका हाथ पकड़ा था — एक छोटी सी नदी को पार करते हुए — नरेश को ऐसा लगा जैसे उसने कोई मन्नत पा ली हो। और उस दिन उसने खुद से कहा था कि अब कुछ भी हो जाए वह इस हाथ को जिंदगी भर नहीं छोड़ेगा।
"तू न, बहुत अच्छा है... बस थोड़ा चुप है। पर मुझे तेरी खामोशी भी सुनाई देती है।" — काजल ने एक बार कहा था।
नरेश ने पहली बार खुद को किसी के साथ पूरा महसूस किया था। वो जो हमेशा अकेला रहता था, जिसे अपने जज़्बात बाँटना नहीं आता था — अब वो रात के 2 बजे तक कॉल पर बैठा काजल की बातें सुनता था। उनकी हँसी, उनकी बहसें , मूवी की पसंद-नापसंद, यहाँ तक कि नरेश ने उसके पसंदीदा धारावाहिक 'अनुपमा' और 'बिग बॉस ' भी देखना शुरू कर दिये थे , जो उसे बिलकुल पसंद नही थे ।
उसे हर सुबह कॉलेज आने का मन सिर्फ इसलिए करता था क्योंकि शायद काजल के साथ 10 मिनट मिल जाएँ। और जब वो उसे देखता था, तो उस दिन की सारी थकान अपने आप दूर हो जाती थी।
उनकी प्रेम कहानी कोई बड़ी फिल्मी नहीं थी, पर उन लम्हों में इतनी सच्चाई थी कि ज़िंदगी को पूरा कर देने के लिए काफी थी।
वो एक बार काजल से बोला था — "अगर मैं किताब होता , तो तू मेरा पहला और आखिरी पन्ना होती। बीच में सिर्फ तेरे लिए शब्द होते।"
काजल ने सिर्फ मुस्कुराकर उसका हाथ पकड़ा था। और उस स्पर्श में जो भरोसा था, वही उसकी सबसे बड़ी पूँजी बन गया था।
उन्होंने साथ में कई यात्राएं की थी, पहली बारिश में भीगते हुए पकोड़े खाए थे, और रात के दो बजे तक बात करते हुए कई बार सूरज को निकलते देखा था।
परंतु किसी ने नहीं बताया था कि कभी-कभी जिस पर तुम सबसे ज़्यादा भरोसा करते हो, वही तुम्हें सबसे गहरा तोड़ता है। और कभी-कभी हम इतने गहरे टूट जाते हैं कि टूटे हुए टूकड़े भी हमारे अन्दर नहीं बचते । प्यार हमें जिस करीने से संवारता हैं उससे कई ज्यादा बारीकी से तोड़ता भी हैं , और तब टूटना कितना यातनाकारी होता हैं जब आपने संवारने में लम्बा समय दिया हो ; संवरकर टूटना हमेशा , टूटने से ज्यादा पीड़ा देने वाला रहा हैं ।
कुछ पल ऐसे होते हैं जिसमे व्यक्ति चाहकर भी कोई प्रकाश नहीं देख पाता , नरेश के लिए यह पल वह था जब काजल ने ब्रेकअप वाले दिन सिर्फ एक लाइन बोली थी — "तू बहुत अच्छा है नरेश, लेकिन मैं अब और नहीं कर सकती। मुझे किसी और से प्यार हो गया है — रजत से।"
बस इतना ही। न लड़ाई, न गुस्सा। बस... खामोशी। अक्सर ख़ामोशी आदमी को अन्दर तक तोड़ देती हैं क्यूंकि ख़ामोशी से खत्म हुए रिश्तों में कुछ नहीं बचता , वो कभी वापस जुड़ नहीं पाते और ये बात शायद काजल और नरेश अच्छी तरह से समझते थे।
उसके बाद रजत भी ज़्यादा दिन काजल के साथ नहीं रहा। वो बस एक 'पल की पसंद' था — न गहराई, न समझ। काजल जब टूटी, तो वापस लौटना चाहा, लेकिन तब तक नरेश के अंदर सब कुछ मर चुका था।
नरेश अब खुद से नफ़रत करने लगा था। उसे लगता था, कहीं न कहीं वही काफ़ी नहीं था — न दिखने में, न पैसे में, न बातों में। हर दिन आईने में देखता, और सोचता — क्या कमी रह गई?
शायद प्यार से ज़्यादा खुद को खो देना खतरनाक होता है। और नरेश अब पूरी तरह खुद को खो चुका था।
उसने जेब से एक चिट्ठी निकाली। उस पर लिखा था:
"काजल , मैंने तुमसे सिर्फ प्यार किया था, पर बदले में जो टूटा, वो सिर्फ दिल नहीं था... मैं था। अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता... इसलिए जा रहा हूँ... हमेशा के लिए।"
ट्रेन आने में अब 5 मिनट बाकी थे। उज्जैन एक्सप्रेस की सीटी दूर से सुनाई दे रही थी।
तभी एक आवाज़ आई — चुलबुली, हल्की हँसी के साथ, जैसे ज़िंदगी ने खुद आवाज़ दी
जैसे कोई अजनबी उसके दुख को हल्का करना चाहता हो।
"इतनी रात को प्लेटफॉर्म पर अकेले? तुम भी मेरी तरह नींद से झगड़ा कर रहे हो या ज़िंदगी से?"
नरेश चौंका। पीछे मुड़कर देखा। एक लड़की खड़ी थी — जीन्स और ढीली टी-शर्ट में, हाथ में कॉफी का कप, बाल खुले और चेहरे पर अजीब-सी शांति के साथ एक खिलखिलाहट थी। उसके बात करने के अंदाज़ में कोई भारी बोझ नहीं था, बस एक सच्चा अपनापन।
"तुम कौन हो?" नरेश ने हिचकते हुए पूछा।
लड़की मुस्कराई , जैसे कोई पुरानी जान-पहचान हो।
"नाम श्वेता है। पेशा नहीं पता, लेकिन शौक बहुत हैं — फोटोग्राफी, घूमना, और लोगों से बेवजह बातें करना। बस यूँ ही टहलते हुए यहाँ आ गई... और तुम्हें देखा तो लगा कि शायद आज तुम्हें किसी अजनबी की ज़रूरत है, जो सिर्फ सुने।"
"तुम क्या जानो, प्यार में टूटना क्या होता है? जिस इंसान को खुद से ज़्यादा चाहा, जब वही किसी और की बाहों में दिखे... तो सासें भी धोखा लगती हैं।"
श्वेता पास आ गई। उसके चेहरे पर मासूमियत थी, पर बातों में चुटकी थी, जैसे वो ज़िंदगी से मोहब्बत करती हो और हर दर्द में भी मुस्कराहट खोज लेती हो।
वो बगल में बैठ गई, बिना अनुमति माँगे, जैसे उसे यकीन था कि इस लड़के को अकेला छोड़ना ठीक नहीं। और बोली –
‘‘ पता हैं , कभी-कभी हमें लगता हैं कि हम किसी के मिलने से पूरे हुए हैं ,परन्तु उस समय हम यह भूल जाते हैं कि हम पैदा ही पूर्णता के साथ ही हुए थे; हम हिस्सों में थे ही कब जो हमें कोई तोड़ सके , टूटा हुआ तो हम तब खुद को महसूस करते हैं जब कोई ऐसा हमें छोड़कर चला जाता हैं जिसे हमनें अपना हिस्सा मान लिया हैं , परन्तु वास्तव में ऐसा कोई हिस्सा होता ही नहीं। ’’
"जानती हूँ, ये पल बहुत भारी होता है... जब दिल कहता है कि अब कुछ नहीं बचा, और दिमाग चुपचाप हार मान लेता है। पर क्या कभी सोचा है, अगर तुम्हारे अंदर इतनी गहराई है कि तुम इतना टूट सकते हो, तो तुम्हारे अंदर उतनी ही ताक़त भी है कि फिर से जुड़ सको।"
नरेश ने उसकी तरफ देखा — आँखों में अब भी सवाल थे, लेकिन पहली बार किसी की बात उसके भीतर तक जा रही थी।
"लेकिन जब कोई तुम्हारा सब कुछ तोड़ दे... जब हर जगह उसी की याद हो, और जब दुनिया भी ये कहे कि 'आगे बढ़ो', तब आगे जाना मुमकिन नहीं लगता।"
श्वेता ने मुस्कुरा कर कॉफी का एक घूँट लिया। फिर कुमार विश्वास का नाम लेते हुई बोली —
‘‘ खुद से भी न मिल सको इतने ख़ास मत होना , इश्क तो करना मगर देवदास मत होना , मिलना, चाहना, और फिर भूल जाना , ये सब किस्से हैं दुनिया के इनसे उदास मत होना ’’
"तुमने उससे प्यार किया, इसलिए तुम अभी तक टूटे हो। लेकिन क्या तुम्हारा प्यार सिर्फ उसकी मौजूदगी पर टिका था? अगर हाँ, तो वो मोह था। और अगर नहीं, तो तुम आज भी उसके लिए दुआ कर सकते हो... ज़िंदा रहकर। खुद को खत्म करके सिर्फ एक और कहानी अधूरी रह जाएगी। लेकिन अगर तुम जी गए, तो तुम एक मिसाल बन सकते हो — कि कैसे सच्चे प्यार में भी खुद से प्यार करना ज़रूरी होता है।"
नरेश के होंठ काँपने लगे।
"क्या तुमने भी कभी किसी को इतना चाहा है?"
श्वेता की आँखें थोड़ी देर को चमक उठीं, लेकिन उसने मुस्कान बनाए रखी।
"हाँ... चाहा था। और खो भी दिया। लेकिन फिर एक दिन आईने में खुद को देखा, और सोचा — क्या मैं वाकई खत्म हो चुकी हूँ? नहीं। मेरा दिल अब भी धड़क रहा है, मेरी साँसे अब भी चल रही हैं। तो क्यों न उस अधूरे प्यार को अपनी ताक़त बना लूँ? और बस... उसी दिन से मैं मुस्कुराना सीख गई। और अब... मैं हर उस इंसान को मुस्कुराना सिखाती हूँ जो हार चुका होता है। आज... वो इंसान तुम हो।"
एक पल के लिए सब शांत हो गया। नरेश के भीतर एक तूफान थमने लगा था। पहली बार उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसकी गहराई समझ गया हो, बिना कोई फैसला सुनाए।
"देखो, मैं कोई ज्ञान नहीं दूँगी। ना ही कहूँगी कि सब ठीक हो जाएगा। लेकिन एक बात बताओ... इतनी प्यारी दुनिया छोड़कर कहाँ जाओगे? मैंने ज़िंदगी में बहुत कुछ देखा है — हार, धोखा, अकेलापन। लेकिन फिर भी हर सुबह उठती हूँ क्योंकि मुझे पता है, कहीं ना कहीं, कुछ अच्छा मेरा इंतज़ार कर रहा है।"
"जानती हूँ। प्यार में टूटा हुआ इंसान सबसे खतरनाक होता है — क्योंकि वो या तो खुद को मारता है, या अपने प्यार की याद में पूरी ज़िंदगी जीता है। लेकिन नरेश, अगर वो चला गया, तो क्या प्यार मर गया? क्या तुम्हारे अंदर जो सच्चा था, वो अब कोई कीमत नहीं रखता?"
नरेश चुप था। वो भीगती आँखों से बस उसकी ओर देखता रहा।
"क्या तुमने कभी खुद से पूछा — तुम उसे क्यों चाहते थे? उसकी हँसी के लिए? उसकी बातें सुनने के लिए? वो छोटी-छोटी लड़ाइयाँ, वो नाराज़गी... क्या वो सब अब भी तुम्हारी यादों में नहीं हैं? क्या वो सब इस लायक नहीं हैं कि तुम्हारे ज़िंदा रहने की वजह बनें?"
नरेश पहली बार टूटा नहीं, थमा। उसकी आँखों में कुछ थिरकने लगा — कोई पुरानी याद, कोई खोई हुई हँसी।
"तुम्हारे जैसा प्यार करने वाला इंसान अगर मर गया, तो दुनिया में प्यार पर से लोगों का भरोसा उठ जाएगा। और कभी-कभी किसी की सच्चाई किसी और की वजह बन जाती है। क्या तुम नहीं चाहते कि कोई कभी कहे – नरेश जैसे लोग भी होते हैं, जो टूट कर भी दूसरों को जोड़ते हैं?"
ट्रेन अब स्टेशन पर आ रही थी। भीड़ हल्की थी, लेकिन शोर तेज़।
श्वेता दूर जा रही थी। नरेश उसे देखता रहा — उसकी आँखें अब भी नम थीं, पर अब उनमें एक लड़ाई थी। हारने की नहीं, रुकने की। एक बार फिर से जीने की।
उसने चिट्ठी को मोड़कर जेब में रख लिया। और प्लेटफॉर्म से दूर जाकर बेंच पर बैठ गया — देर तक।