साल का आख़िरी महीना कोई साधारण महीना नहीं होता। यह सिर्फ़ कैलेंडर का आख़िरी पन्ना नहीं, बल्कि ज़िंदगी का एक ठहराव होता है — जहाँ हम रुककर खुद से मिलते हैं। दिसंबर आते ही हवा ठंडी हो जाती है, लेकिन सोचें गहरी। यह महीना हमें याद दिलाता है कि एक पूरा साल बीत चुका है, अपने शोर, अपनी ख़ामोशी, अपनी जीत और अपनी टूटन के साथ।
दिसंबर सवाल लेकर नहीं आता, वह एहसास लेकर आता है। क्या हम वही हैं जो साल की शुरुआत में थे? कुछ सपने पूरे हुए, कुछ रास्ते में छूट गए। कुछ लोग साथ चलते-चलते पीछे रह गए, और कुछ यादें हमारे भीतर हमेशा के लिए बस गईं।
ठीक ऐसा ही महसूस होता है एक पहाड़ी स्टेशन पर, जब दिसंबर वहाँ उतरता है।
साल का आख़िरी महीना था। पहाड़ी स्टेशन पूरी तरह ख़ामोश पड़ा था। न सैलानियों की आवाज़, न रौनक, न हलचल। बर्फ़ से ढकी चट्टानें, ठंडी हवाएँ और आसमान से गिरती सफ़ेद चुप्पी — जैसे प्रकृति भी साल भर की थकान उतार रही हो।
वहाँ एक पहाड़ खड़ा था। सख़्त, शांत, अडिग। उसकी चट्टानों ने हर मौसम को सहा था — तपती धूप, मूसलाधार बारिश, तेज़ आँधियाँ और अब जमती हुई बर्फ़। उसने कभी मौसम से लड़ने की कोशिश नहीं की, उसने बस हर मौसम को स्वीकार किया।
उस पहाड़ के चारों ओर पेड़ थे। दिसंबर में वे नंगे थे, पत्तियों के बिना। बाहर से देखने पर लगता था जैसे उनमें अब कुछ बचा ही नहीं। जैसे साल ने उनसे सब कुछ छीन लिया हो। लेकिन उनके भीतर एक गहरी समझ थी — हर समय खिलना ज़रूरी नहीं होता।
जब कोई देखने वाला नहीं था, जब कोई उनकी देखभाल करने नहीं आता था, तब भी वे पेड़ खड़े रहे। उन्होंने अपनी पुरानी पत्तियाँ गिरा दीं, ताकि आने वाले कल के लिए अपनी ताक़त बचा सकें। ठंड ने उन्हें तोड़ा नहीं, उसने उन्हें ठहरना सिखाया।
रातें लंबी थीं। हवा सवाल पूछती थी — कब तक? लेकिन पहाड़ और पेड़ जानते थे कि कुछ सवालों के जवाब समय देता है।
और फिर, बिना किसी शोर के, साल बदलने लगा।
बर्फ़ धीरे-धीरे पिघली। सूरज थोड़ा और देर तक रुकने लगा। और उन्हीं पुरानी शाखाओं पर, जिन्हें लोग बेकार समझ चुके थे, नन्हीं-नन्हीं नई पत्तियाँ उग आईं। नई पत्तियाँ — लेकिन पुरानी टहनियों पर।
यही पहाड़ का सबक था।
नई शुरुआत के लिए पुरानी जड़ों का होना ज़रूरी है। पुरानी शाखाएँ बेकार नहीं होतीं — वही नई पत्तियों का सहारा बनती हैं।
साल का आख़िरी महीना हमें यही सिखाता है। अपने बीते साल को नकारो मत। अपनी टूटन, अपनी थकान, अपनी चुप्पी — सबको स्वीकार करो। क्योंकि नया साल खाली जगह पर नहीं आता, वह उन्हीं अनुभवों पर उगता है जिन्हें तुमने जिया है।
अगर आज तुम्हें लगता है कि तुम भी दिसंबर की तरह ठहरे हुए हो, तो याद रखना — यह अंत नहीं है। यह सिर्फ़ वह समय है जब भीतर नई पत्तियाँ तैयार हो रही हैं।
पुरानी शाखाएँ संभालकर रखो।
नई पत्तियाँ खुद आ जाएँगी।
लेकिन उस आने से पहले का समय सबसे कठिन होता है।
दिसंबर सिर्फ़ ठंड नहीं लाता, वह अकेलापन भी लाता है। पहाड़ी स्टेशन पर यह अकेलापन और गहरा हो जाता है। दिन छोटे हो जाते हैं, रातें लंबी। कई बार लगता है जैसे समय रुक गया हो, जैसे ज़िंदगी ने pause बटन दबा दिया हो।
पहाड़ उस सन्नाटे में भी खड़ा रहता है। उसे पता है कि अभी कुछ दिखाई नहीं दे रहा, इसका मतलब यह नहीं कि कुछ हो नहीं रहा। उसकी चट्टानों के भीतर हलचल होती रहती है, जैसे हमारे भीतर। बाहर सब शांत होता है, भीतर तैयारी चल रही होती है।
पेड़ भी यही करते हैं। वे अपनी पुरानी शाखाओं को थामे रखते हैं। वे उन्हें काटते नहीं, नकारते नहीं। क्योंकि वही शाखाएँ आने वाले वसंत की नींव होती हैं। नई पत्तियाँ किसी नई ज़मीन पर नहीं उगतीं, वे उसी पुराने सहारे पर जन्म लेती हैं जिसने हर मौसम सहा है।
यही दिसंबर हमें सिखाता है —
हर ठहराव हार नहीं होता।
हर ख़ामोशी खालीपन नहीं होती।
कभी-कभी ज़िंदगी हमें इसलिए रोकती है ताकि हम टूटने से बच सकें।
अगर इस साल तुम बहुत कुछ सहकर यहाँ तक पहुँचे हो,
अगर तुमने बिना किसी तालियों के, बिना किसी सहारे के,
बस खुद के लिए खड़े रहना सीखा है —
तो समझ लो, तुम भी पहाड़ की तरह मज़बूत हो।
नया साल तुम्हारे पुराने अनुभवों को मिटाने नहीं आएगा,
वह उन्हीं पर टिककर आगे बढ़ेगा।
इसलिए जब दिसंबर विदा ले,
तो खुद से बस इतना कहना —
मैं रुका था, टूटा नहीं था।
मैं ख़ामोश था, ख़त्म नहीं हुआ था।
क्योंकि जो पहाड़ हर मौसम को स्वीकार करना सीख लेता है,
वसंत उसे ढूँढ ही लेता है।
"ठंड में भी जो खड़ा रहा, वही हरियाली का हक़दार बना।
जो दिसंबर में चुप रहा, जनवरी ने उसी को आवाज़ दी।
नई पत्तियाँ आईं, पुरानी शाखाओं का शुक्रिया कहने। "
- Nensi vithalani