एक साल बाद.गांव नरकटिया अब शांत था। पीपल का पेड सूख गया था, और उसकी जडें जमीन में गहराई तक सिमट गई थीं। रुखसाना अब गांव की स्कूल में पढाने लगी थी, और जावेद शहर में नौकरी कर रहा था।लेकिन शांति हमेशा के लिए नहीं होती.नया गांव. नया डरगांव नरकटिया के पास ही एक दूसरा गांव था — बेलडिहा।
वहां एक पुरानी हवेली थी, जिसे लोग“ भूली हवेली” कहते थे। बीस सालों से बंद पडी उस हवेली में अब एक परिवार आया — प्रोफेसर अमरनाथ अपनी पत्नी और बेटी संजना के साथ।संजना, बीस साल की तेज- तर्रार लडकी, शहर की पढी- लिखी, लेकिन पुराने रहस्यों की दीवानी।
उसे गांव की कहानियाँ और आत्माओं की बातें खींच लाती थीं।एक दिन गांव की लाइब्रेरी में उसे एक पुराना अखबार मिला। हेडलाइन थी:लडकी को जिंदा जलाया गया – गांव में आत्मा का आतंक”उसके नीचे लिखा था — गांव नरकटिया में पीपल की आत्मा ने दोषियों से लिया बदला।
संजना चौंकती है — वो उस पीपल को देखना चाहती है।छाया की छाया लौटती हैसंजना अकेली ही जाती है नरकटिया के उस पीपल के पास। सूखा हुआ पेड, टूटी- फूटी जडें, लेकिन एक शाखा पर अब भी एक जला हुआ लाल धागा लटक रहा था।
वो धागा जैसे उसकी ओर खिंचता है.और जैसे ही वो धागा छूती है — हवा का रुख बदलता है. और उसके कानों में एक आवाज आती है:मैं अभी पूरी नहीं हुई.अगले दिन से घटनाएं शुरू होती हैंबेलडिहा गांव में एक औरत कुएं में उलटी लटकी मिलती है — चेहरे पर राख पोती हुई।गांव के मुखिया को हवेली में आग की लपटों में खडा देखा जाता है — लेकिन शरीर जलता नहीं. वो पागल हो जाता है।
संजना रात को सोते हुए उठती है. और पाती है कि उसके तकिए के नीचे एक पुराना पत्र रखा है — जिस पर लिखा होता है:तेरा नाम अब कहानी का हिस्सा है।रुखसाना की वापसीसंजना, डर के बावजूद, और जानना चाहती है।
गांववालों से सुनते- सुनते उसे रुखसाना का नाम पता चलता है। वह उससे मिलने जाती है।रुखसाना एक ही नजर में समझ जाती है —छाया वापस आ गई है. लेकिन इस बार वो कुछ ढूंढ रही है।
कोई अधूरी बात. या कोई नई रूह?वो बताती है —छाया की आत्मा कभी पूरी तरह मुक्त नहीं हुई थी। उस आत्मा को ‘शांति’ नहीं मिली थी — बल्कि वो नींद में थी।लेकिन संजना ने धागा छूकर उसे फिर से जगा दिया है।पुराना राज उजागर होता हैरुखसाना और संजना मिलकर मास्टर रमजान की पुरानी डायरी पढते हैं।
उसमें एक लाइन होती है:>“ गोवर्धन के गुनाहों में अकेले गांव वाले ही नहीं थे. कुछ बाहरी लोग भी थे, जो हवेली में आते थे — सौदागर, अधिकारी और तांत्रिक। उन्होंने रूह को बंद करने की तंत्र विद्या की थी. और छाया आज भी उन्हें ढूंढ रही है।
अब समझ आता है — छाया अपनी हत्या में शामिल उन सभी की रूहों को तलाश रही है, जो बच निकले थे।और उनमें से कुछ अब बेलडिहा में हैं।क्लाइमेक्स – हवेली का सचसंजना की मां एक रात बेहोश पाई जाती हैं — उनके शरीर पर जले हुए निशान होते हैं।
प्रोफेसर अमरनाथ डर से कांपते हैं — क्योंकि वो तब के गोवर्धन के मेहमान थे — और उन्होंने सच्चाई जानकर भी चुप्पी साध ली थी।पीपल की शाखाएं बेलडिहा तक फैलने लगती हैं — हवा में राख उडती है — हवेली की दीवारों पर खून से लिखा दिखता है:अब तू भी बोलेगा?संजना चीखती है —“ छाया! क्या सबको मार दोगी?अचानक हवा रुक जाती है — और छाया की आत्मा प्रकट होती है।
जली हुई देह, राख से बने पैर, और आंखें जलते अंगारों जैसी।वो कहती है —मैं सिर्फ सच सुनना चाहती हूँ। इंसाफ तब पूरा होता है. जब जुर्म कुबूल किया जाए।प्रोफेसर गिरते हैं. रोते हैं. और कहते हैं:हां. मैं जानता था. लेकिन मैंने डर के मारे कुछ नहीं किया. मुझे माफ कर दो।छाया एक पल को शांत होती है।
संजना उसकी ओर हाथ बढाकर कहती है:अब बहुत हो गया. तेरी लडाई मेरी भी है. लेकिन हमें सबक देना है, सिर्फ डर नहीं फैलाना।छाया एक लंबी सांस लेती है. और फिर एक धीमा उजाला फैलता है.अंतिम दृश्य:पीपल का पेड अब पूरी तरह जल जाता है — और राख हवा में बिखर जाती है।एक आखिरी आवाज गूंजती है:जब तक बेटियाँ बोलती रहेंगी. मैं फिर नहीं लौटूँगी. लेकिन अगर चुप्पी हुई. तो छाया फिर जागेगी।Climax डायलॉग:भूत डराते नहीं, वो बताने आते हैं — कि इंसाफ अब भी जिंदा है।
भूमिका:बीस साल पहले, छाया की आत्मा ने गांव नरकटिया में इंसाफ की चिंगारी जलाकर कई दोषियों को भस्म कर दिया था।एक साल पहले, उस आत्मा को फिर से जगाया गया, और वह अपने अधूरे बदले पूरे कर अंत में शांति में विलीन हो गई।
पर सवाल अब भी जिंदा था —क्या सच में आत्मा को मुक्ति मिल गई थी?या.उसने अपनी जगह कोई वारिस छोड दिया था