जंगल अब पहले जैसा नहीं रहा था। जहाँ कभी राख और सन्नाटा था, वहाँ फिर से हरियाली लौट आई थी। नई बेलें पुराने पेड़ों से लिपट गई थीं, पक्षियों की आवाज़ें सुबह को जगाने लगी थीं और नदी का पानी फिर से साफ़ बहने लगा था। लेकिन इस शांति के नीचे एक नई बेचैनी छुपी हुई थी।
द ग्रेट गोरिल्ला यह सब महसूस कर सकता था।
वह जंगल की सबसे ऊँची चट्टान पर बैठा दूर तक देख रहा था। हवा में कुछ बदला-बदला सा था। जानवर अक्सर बिना कारण भागते, पक्षी अचानक उड़ जाते। यह डर पुराने दिनों जैसा नहीं था, यह किसी आने वाले संकट की आहट थी।
कुछ मील दूर, जंगल के बाहर, एक नई ताकत जन्म ले रही थी।
यह पहले जैसी मशीनें नहीं थीं। ये और ज़्यादा चालाक थीं, और ज़्यादा निर्दयी। एक बड़ी कंपनी ने जंगल के नीचे छुपे खनिज पर नज़र डाल ली थी। काग़ज़ों में जंगल संरक्षित था, लेकिन लालच हमेशा रास्ता खोज लेता है। रात के अँधेरे में सर्वे ड्रोन उड़ने लगे। ज़मीन के नीचे धमाके होने लगे। जंगल फिर कराह उठा।
एक रात ज़ोरदार विस्फोट हुआ।
धरती हिल गई। नदी का रास्ता बदलने लगा। कई जानवर घायल हो गए। द ग्रेट गोरिल्ला दहाड़ा। यह दहाड़ अब चेतावनी नहीं थी, यह पीड़ा थी।
वह विस्फोट वाली जगह पहुँचा। ज़मीन फटी हुई थी, पेड़ जड़ से उखड़े थे। तभी उसने कुछ देखा—एक छोटा सा शावक, पत्थरों के नीचे दबा हुआ। उसकी साँसें चल रही थीं, लेकिन शरीर खून से सना था।
गोरिल्ला ने बेहद सावधानी से पत्थर हटाए और शावक को उठाया। उसने उसे अपनी छाती से लगाया। उस पल उसकी आँखों में वही पुराना दर्द लौट आया—माँ और भाई की याद।
लेकिन इस बार उसने हार नहीं मानी।
अगली सुबह गाँव में हलचल मच गई। रात के विस्फोट ने सबको डरा दिया था। लोग जंगल के किनारे इकट्ठा हुए। तभी उन्होंने देखा—द ग्रेट गोरिल्ला सामने खड़ा है, और उसकी बाहों में एक घायल जानवर है।
लोगों ने पहली बार उसकी आँखों में गुस्सा देखा। यह गुस्सा हिंसा का नहीं, न्याय का था।
गोरिल्ला ने जंगल की ओर देखा, फिर ज़मीन की ओर, जहाँ गहरे गड्ढे बने थे। उसने ज़ोर से दहाड़ मारी और ज़मीन पर मुक्का मारा। मिट्टी उड़ गई। यह एक संकेत था।
गाँव के लोग समझ गए—खतरा वापस आ गया है।
कुछ दिनों बाद रात में ट्रक आए। भारी मशीनें, हथियारबंद लोग। वे सोच रहे थे कि अँधेरे में कोई उनका विरोध नहीं करेगा। लेकिन जैसे ही पहला पेड़ गिरा, जंगल जाग उठा।
पेड़ों के बीच से एक विशाल परछाईं निकली।
द ग्रेट गोरिल्ला।
उसने मशीनों पर हमला नहीं किया। उसने उनके रास्ते रोक दिए। ट्रकों को उलट दिया, ड्रोन आसमान से गिरा दिए। लोग घबरा गए। उन्होंने गोलियाँ चलाईं, लेकिन गोरिल्ला पेड़ों और चट्टानों के पीछे से आगे बढ़ता रहा।
अचानक एक गोली चली और उसके कंधे में लगी।
जंगल सन्नाटे में डूब गया।
गोरिल्ला रुका। खून बह रहा था। उसने दर्द सहा, लेकिन पीछे नहीं हटा। उसने घायल शावक को याद किया, उस जंगल को याद किया जिसे उसने बचाने की कसम खाई थी।
वह आगे बढ़ा।
उसकी दहाड़ इतनी तेज़ थी कि इंसानों के हाथ काँपने लगे। उन्हें पहली बार समझ आया कि वे किसी जानवर से नहीं, जंगल की आत्मा से लड़ रहे हैं।
कुछ लोग भाग गए। कुछ गिर पड़े। मशीनें छोड़ दी गईं।
अगली सुबह खबर फैल चुकी थी। तस्वीरें, वीडियो—सब कुछ दुनिया ने देखा। सवाल उठने लगे। सरकार को दख़ल देना पड़ा। कंपनी पर केस हुआ। जंगल की निगरानी और सख़्त कर दी गई।
लेकिन जीत की क़ीमत थी।
द ग्रेट गोरिल्ला घायल था। वह जंगल की गहराई में चला गया। कई दिनों तक किसी ने उसे नहीं देखा। जानवर बेचैन थे। गाँव के लोग डर रहे थे—कहीं वह मर न गया हो।
एक सुबह बच्चे जंगल के किनारे गए। वहाँ उन्होंने देखा—चट्टान के पास द ग्रेट गोरिल्ला बैठा है। उसका घाव भर रहा था। उसके पास वही शावक खेल रहा था, अब ज़िंदा और सुरक्षित।
गोरिल्ला ने बच्चों की ओर देखा। उसकी आँखों में अब गुस्सा नहीं था। केवल थकान और संतोष था।
समय बीतता गया।
जंगल अब और ज़्यादा सुरक्षित था। लोग सीख चुके थे। बच्चे बड़े हो रहे थे, यह जानते हुए कि ताकत का मतलब डर नहीं, जिम्मेदारी होता है।
रात को जब भारी कदमों की आवाज़ आती, तो कोई डरता नहीं था।
क्योंकि सब जानते थे—
जब भी जंगल पर संकट आएगा,
द ग्रेट गोरिल्ला फिर खड़ा होगा।