चित्रा का दर्द
चित्रा की आँखों में आँसू आ गए…
लेकिन आवाज़ स्थिर थी।
“आप बुरा मत मानिएगा, दिव्यम जी…”
“आप जानते हैं…
मेरी भी पहली शादी हो चुकी है।”
उसने धीमे से कहा—
“मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया।
लेकिन मेरे लिए…
पति आज भी वही है।”
दिव्यम ने हैरानी से उसकी ओर देखा।
“मैं पूरी निष्ठा और ईमानदारी से
आपके बच्चे को संभालूंगी।
उसे माँ का प्यार दूँगी।”
“बस…”
उसकी आवाज़ टूट गई।
“मुझे रहने के लिए एक छत चाहिए।
बस यही काफी है।”
फिर जैसे अंदर का ज़हर बाहर आ गया—
“मेरे पहले पति के भीतर इतना अहंकार था कि उसने धमकी दी थी—उसकी मां
‘ दूसरी शादी करवा देगी,
तब तू देखना क्या हालत होगी।’”
चित्रा रो पड़ी।
“उसकी माँ…
मुझे डराती थी…
कहती थी—
‘तुझे कोई हाथ नहीं थामेगा।’”
“मैं मजबूरी में शादी के लिए तैयार हुई…
नहीं तो मैं कभी नहीं करती, दिव्यम जी।”
उसने आँखें पोंछीं।
“मैं भी आपको अपना दिल नहीं दे सकती।
लेकिन आपके घर की हर जिम्मेदारी निभाऊंगी।
आपके बच्चे को कभी माँ की कमी महसूस नहीं होने दूँगी।”
🕊️ एक सवाल… जो सब बदल सकता है
दिव्यम देर तक चुप रहा।
फिर पहली बार उसकी आँखों में
गुस्सा नहीं…
दया थी।
उसने धीरे से पूछा—
“इतना सब सहने के बाद…
आख़िर तुम्हारे साथ हुआ क्या था, चित्रा?”
“क्या तुम मुझे अपना अतीत बताओगी?”
चित्रा की साँस रुक गई।
उसके सामने
फिर से वही ज़ख्म…
वही अपमान…
वही टूटन खड़ी थी।
हुई आँखें, बंद होता हुआ दिल”
चित्रा बोलते-बोलते थक चुकी थी।
उसकी आँखें आधी बंद थीं…
जैसे नींद में हो,
लेकिन शब्द जाग रहे थे।
वह पलंग के किनारे बैठी थी,
हाथों की उँगलियाँ आपस में गुँथी हुईं।
दिव्यम सामने कुर्सी पर बैठा था—
बिल्कुल शांत।
एक भी शब्द नहीं…
सिर्फ उसकी आँखें,
जो चित्रा के हर शब्द के साथ और गहरी होती जा रही थीं।
🌑 चित्रा का अतीत — एक–एक परत खुलती हुई
धीमी आवाज़ में चित्रा बोलने लगी—
“मेरी शादी…
बहुत खुशी-खुशी हुई थी।”
उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आई—
पर वह मुस्कान तुरंत मर गई।
“अरेंज मैरिज थी।
माँ-पापा ने बहुत देख-भाल कर रिश्ता चुना था।
पैसे की कोई कमी नहीं थी…
घर भी अच्छा था।”
उसने आँखें बंद कर लीं।
“लेकिन मुझे यह नहीं पता था…”
उसकी आवाज़ काँप गई।
“…कि मेरा पति शराबी है।
जुए का आदी है।
और… लड़कीबाज़।”
दिव्यम की भौंहें तन गईं।
🩸 घर नहीं… जेल था वह रिश्ता
“वह कभी मेरा साथ नहीं देता था।”
चित्रा की आवाज़ अब सपाट थी।
“गलती वह करता…
और दोष मुझ पर आता।”
“उसकी माँ…”
चित्रा रुक गई।
“वह हर बार अपने बेटे के पक्ष में बोलती।
अगर वह पकड़ा जाता…
तो भी मैं ही गलत ठहराई जाती।”
दिव्यम ने मुट्ठी भींच ली।
“मैं पूरे मन से घर संभाल रही थी।
उसकी हर गलती माफ करती रही।”
“उसकी गर्लफ्रेंड…
उसकी रखैल…”
चित्रा का गला भर आया।
“सब सहती रही।”
🔥 हिंसा और अपमान
“पर वह बदला नहीं।”
अब उसकी आवाज़ टूटने लगी।
“गंदी-गंदी गालियाँ…
मारपीट…
धक्के…”
चित्रा का सिर झुक गया।
“मैं सब सहती रही।”
फिर उसने वह बात कही
जो शायद सबसे ज़्यादा चुभने वाली थी—
“मुझे बार-बार कहा जाता था—
‘तीन जगह से इसकी सगाई टूटी है।’”
दिव्यम चौंक गया।
“ससुराल वाले कहते—
‘तीन जगह नकारा गया है इसे।’”
चित्रा ने आँखें खोलीं।
“जबकि सच यह था—
लड़के वाले आए…
दहेज तय हुआ…
लेकिन हर बार…
गोद भराई से पहले रिश्ता टूट गया।”
उसकी आवाज़ कड़वी हो गई।
“और उसी बात को
मेरे खिलाफ हथियार बना लिया गया।”
🕳️ तानो से बना पिंजरा
“बात-बात पर ताने…”
“ताकि मैं बोल न सकूँ।”
“ताकि मुझे लगे—
मैं ही गलत हूँ।”
“मैं ही बोझ हूँ।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
चित्रा अब चुप थी।
आँखों से आँसू बह रहे थे…
पर आवाज़ नहीं।
🌊 दिव्यम की खामोशी
दिव्यम अब भी कुछ नहीं बोला।
बस उसकी आँखें…
नमी से भर चुकी थीं।
पहली बार उसे समझ आया—
यह लड़की चुप नहीं है।
यह लड़की तोड़ दी गई है।
“अगर वह लौट आए…”
चित्रा की आवाज़ अब काँप रही थी।
शब्द जैसे गले में अटक–अटक कर बाहर आ रहे थे।
आँखें भरी हुई थीं…
पलकों पर नींद थी,
लेकिन दिल पूरी तरह जाग रहा था।
वह रोते हुए बोली—
“अगर… अगर मेरा पति मुझे वापस बुलाए ना…”
उसकी आवाज़ टूट गई।
“तो मैं… मैं चली जाऊँगी।”
दिव्यम जैसे सन्न रह गया।
चित्रा ने सिर झुका लिया,
आँसू उसकी गोद में गिरने लगे।
“क्योंकि मेरे लिए…”
वह गहरी साँस लेकर बोली—
“उसके अलावा कोई और भाता ही नहीं है, दिव्यम जी।”