The Missing Part - A Pschychological Thriller in Hindi Thriller by Anand books and stories PDF | The Missing Part - A Pschychological Thriller

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The Missing Part - A Pschychological Thriller

Prologue 

"मैंने किसी की हत्या की है, सुमित। मुझे यकीन है।"
रश्मि की आवाज़ एक फुसफुसाहट से ज़्यादा कुछ नहीं थी, लेकिन उस सन्नाटे में वह किसी धमाके की तरह गूँजी। वह अपने हाथों को इतनी शिद्दत से घूर रही थी, मानो उसे डर हो कि देखते ही देखते वे खून से लाल हो जाएँगे।

मैंने उसकी ओर एक कदम बढ़ाया। मेरे सीने में दिल किसी हथौड़े की तरह बज रहा था। "नहीं रश्मि, तुमने ऐसा कुछ नहीं किया। तुम्हें मुझ पर भरोसा करना होगा। तुम ऐसी नहीं हो।"

"मेरी यादें... वे लहरों की तरह वापस आ रही हैं," उसने शून्य में देखते हुए कहा, उसकी आँखें किसी अदृश्य साये का पीछा कर रही थीं। "वह बारिश... धातु के टकराने की वह खौफनाक आवाज़... और एक चेहरा, सुमित। एक चेहरा जो अंधेरा छाने से पहले मुझे आतंक भरी नज़रों से देख रहा था। वे धुंधले मंज़र मुझे इस असल ज़िंदगी से कहीं ज़्यादा सच लग रहे हैं।"

मैंने आगे बढ़कर उसके हाथ थाम लिए। वे बर्फ की तरह ठंडे पड़ चुके थे। "यह सिर्फ सदमा है, जान। डॉक्टर अतुल ने हमें पहले ही आगाह किया था। उस एक्सीडेंट ने तुम्हारी यादों के सिलसिले को बिखेर दिया था। उन्होंने कहा था कि जब दिमाग से यादों का कोई हिस्सा गायब हो जाता है, तो वह खालीपन बर्दाश्त नहीं कर पाता। तुम्हारा मन बस उन खाली जगहों को बुरे सपनों और डर से भर रहा है। यह सिर्फ एक काल्पनिक स्मृति है। और कुछ नहीं।"

मैं उसकी आँखों में देख रहा था, अपने चेहरे पर वह सुकून दिखाने की कोशिश कर रहा था जो मेरे अंदर कहीं नहीं था। पाँच सालों तक हम एक 'मिसाल' वाले जोड़े थे। हमारी ज़िंदगी सुबह की कॉफ़ी और शांत शामों की एक खूबसूरत लय थी। लेकिन उस बरसाती मंगलवार ने—जब उसकी कार फिसलकर खाई की ओर गई थी—उस लय को हमेशा के लिए तोड़ दिया।

उसने अपनी नज़रों से मेरी रूह को टटोलते हुए पूछा, "और अगर डॉक्टर गलत हुए तो? क्या होगा अगर मेरा दिमाग खाली जगह नहीं भर रहा, बल्कि उस सच को बेनकाब कर रहा है जिसे तुम मुझसे छिपाने की कोशिश कर रहे हो?"

उसके इस सवाल ने मुझे निरुत्तर कर दिया। पिछले कई दिनों से मैं इसी कश्मकश से जूझ रहा था, लेकिन बदकिस्मती यह थी कि इस उलझन का सिरा मेरे हाथ नहीं लग रहा था। मैं उसे दिलासा दे रहा था या खुद को, यह मुझे भी नहीं पता था।



Chapter One

सात महीने पहले: 


"हेलो। क्या मेरी बात मिस्टर सुमित से हो रही है?" दूसरी तरफ से एक भारी और संजीदा आवाज़ आई।

"जी, मैं सुमित बोल रहा हूँ। आप कौन?" मैंने घबराते हुए पूछा। मेरे दिल की धड़कन अचानक तेज़ हो गई थी।

"मैं इंस्पेक्टर ऋषि बोल रहा हूँ, सिटी पुलिस स्टेशन से। आपकी पत्नी की कार का एक्सीडेंट हो गया है। हमने उन्हें सिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया है। आप जितनी जल्दी हो सके यहाँ पहुँचिए।"

बिना एक पल गँवाए मैं अस्पताल की ओर भागा। वह सफर जैसे कभी खत्म ही नहीं हो रहा था। अस्पताल पहुँचते ही चारों ओर फैली उस फिनाइल और दवाओं की गंध ने मेरा दम घोंटना शुरू कर दिया। इमरजेंसी वार्ड के बाहर इंस्पेक्टर ऋषि खड़े थे। उन्होंने बताया कि हादसा बेहद भयानक था; कार खाई के मोड़ पर कई बार पलटी थी। रश्मि बहुत तेज़ रफ्तार में गाड़ी चला रही थी।

इंस्पेक्टर ने अपनी पारखी नज़रों से मुझे देखा। "वह इतनी तेज़ गाड़ी क्यों चला रही थी, सुमित? क्या आप दोनों के बीच कोई झगड़ा हुआ था? कोई परेशानी?"
"नहीं सर, ऐसा कुछ नहीं है।" मेरी आवाज़ कांप रही थी। "हमारी शादी को पाँच साल हो गए हैं और हम एक बहुत खुशहाल जोड़ा हैं। हम दोनों इंटीरियर डिजाइनर हैं। वह वीकेंड बिताने के लिए हमारे फार्म हाउस गई हुई थी। मैं भी जल्दी उसे जॉइन करने वाला था, लेकिन ऑफिस के कुछ काम की वजह से मेरी योजना रद्द हो गई, और मैंने उसे बता दिया इसलिए वह घर लौट रही थी।

तभी आईसीयू (ICU) का दरवाज़ा खुला। एक डॉक्टर बाहर निकले, उनके चेहरे पर थकान और चिंता के निशान थे। "पेशेंट रश्मि के साथ कौन है?"

मैं झपटकर उनके पास पहुँचा। "मैं उसका पति हूँ डॉक्टर। वह कैसी है? ठीक तो है ना?"

डॉक्टर ने कुछ पल के लिए चुप्पी साधी, जैसे शब्दों को तौल रहे हों। "फिलहाल वह खतरे से बाहर है, लेकिन..." वह रुक गए। वह 'लेकिन' हवा में किसी फांसी के फंदे की तरह लटक गया।

"लेकिन क्या डॉक्टर? साफ़-साफ़ बताइए।" मैंने गिड़गिड़ाते हुए पूछा।

"उनके सिर पर लगी चोट बहुत गहरी है। वह कोमा में जा चुकी हैं। हम अभी यह नहीं कह सकते कि वह कब तक इस हालत में रहेंगी।"

मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। अस्पताल का शोर, मशीनों की बीप, सब कुछ जैसे एक धुंध में खो गया। "वह कब होश में आएगी डॉक्टर ?" मैंने कहा।

"दिमाग की चोट के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है," डॉक्टर ने नरमी से कहा। "उम्मीद है, पर वक्त तय नहीं है। कुछ दिन भी लग सकते हैं, कुछ महीने भी... या फिर कुछ साल। हमें इंतज़ार करना होगा।"

डॉक्टर सांत्वना देकर अपने केबिन की ओर चले गए। इंस्पेक्टर ऋषि ने कुछ औपचारिक सवाल पूछे और फिर चले गए।

अब मैं वहाँ अकेला था। अपनी पत्नी को देख रहा था, जो उस बेड पर बेजान पड़ी थी। रश्मि, जो हमेशा ज़िंदगी से भरपूर रहती थी, आज मशीनों के सहारे सांस ले रही थी।



Chapter Two

चार महीने पहले:

अस्पताल से वह फोन कॉल किसी चमत्कार की तरह आया। डॉक्टर ने बताया कि रश्मि तीन महीने लंबे सन्नाटे के बाद आखिरकार कोमा से बाहर आ गई है। मेरा रोम-रोम ईश्वर का शुक्रिया अदा कर रहा था। वे तीन महीने मेरे लिए तीन सदियों के बराबर थे, लेकिन अब मेरी दुनिया फिर से रोशन होने वाली थी।

अस्पताल पहुँचते ही सबसे पहले मैं डॉक्टर से मिला, जैसा कि उन्होंने सख्त हिदायत दी थी। उनका चेहरा गंभीर था, जैसे वे मुझे किसी बड़ी खुशखबरी के साथ एक चेतावनी भी देना चाहते हों।

"मिस्टर सुमित, मुझे आपसे पहले बात करनी पड़ी, इसके लिए माफी चाहता हूँ," डॉक्टर ने अपनी मेज़ पर रखे कागज़ों को देखते हुए कहा।

"माफी मत मांगिए सर। मैं तो आपका शुक्रगुजार हूँ कि आपकी देखरेख में रश्मि की जान बच गई," मैंने उत्तेजना में कहा।

"यह सब ऊपर वाले के हाथ में है, हम तो बस ज़रिया थे," डॉक्टर ने चश्मा उतारते हुए कहा। "लेकिन सुमित, आपको एक बात समझनी होगी। रश्मि शारीरिक रूप से ठीक है, लेकिन सिर की अंदरूनी चोट की वजह से उसने अपनी याददाश्त का एक हिस्सा खो दिया है। यह भी संभव है कि वह अपनी यादों को कभी वापस पा ले, और यह भी कि वे हमेशा के लिए मिट जाएँ।"

डॉक्टर ने मेरी आँखों में देखते हुए जोर देकर कहा, "मेरी एक बात ध्यान से सुनिए—उसे याद करने के लिए मजबूर मत कीजिएगा। कम से कम अभी नहीं। उसका शरीर और दिमाग, दोनों अभी बहुत कमजोर हैं। दबाव डालने से उसकी हालत बिगड़ सकती है। यहाँ तक कि हो सकता है कि वह अभी आपको भी न पहचान पाए। आपको धैर्य रखना होगा।"

"मेरे लिए इतना ही काफी है कि वह ज़िंदा है और मेरे पास है," मैंने भर्राई हुई आवाज़ में कहा। "बाकी सब इंतज़ार कर सकता है।"

जब मैं वार्ड में दाखिल हुआ और उसे देखा, तो मेरे सब्र का बांध टूट गया। मैंने उसे गले लगा लिया, लेकिन उसकी देह में कोई हलचल नहीं थी। डॉक्टर सही कह रहे थे। उसकी आँखों में मेरे लिए वह प्यार नहीं, बल्कि एक अजनबी के लिए होने वाली हिचकिचाहट थी। मैंने अपने आंसू पोंछ लिए और मुस्कुराहट ओढ़ ली; मैं उसे डराना नहीं चाहता था।

कुछ हफ़्तों बाद, मैं उसे घर ले आया। वक्त गुज़रता गया और रश्मि की सेहत में सुधार होने लगा। धीरे-धीरे उसे मेरी पहचान याद आने लगी। उसकी याददाश्त के टूटे हुए टुकड़े जुड़ने लगे थे। मैं खुश था, मुझे लग रहा था कि हमारी 'परफेक्ट' लाइफ वापस लौट रही है।

लेकिन मैं गलत था।

खुशी के उन पलों के पीछे एक काली छाया छिपी थी। अच्छाई के साथ बुराई भी एक सच्चे हमसफर की तरह चली आ रही थी। उसकी यादें तो लौट रही थीं, पर उन यादों के साथ कुछ ऐसा भी आ रहा था जिसे शायद दफन रहना ही बेहतर था।



Chapter Three

वर्तमान समय: 

रश्मि की शारीरिक रिकवरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा तेज़ थी, लेकिन उसके मन के भीतर एक गहरी दरार पड़ती जा रही थी। उसे खुद को किसी की हत्या करते हुए देखने के जो 'विज़न' आते थे, वे शुरुआत में तो कभी-कभार आने वाले धुंधले साये की तरह थे, लेकिन अब वे किसी भयावह फिल्म की तरह साफ़ और डरावने हो चुके थे।

मैं उसे नियमित रूप से अपने दोस्त डॉ. अतुल के पास ले जा रहा था, जो शहर का जाना-माना मनोचिकित्सक था। उनके सेशन कुछ हद तक मददगार तो थे, पर उन खौफनाक दृश्यों की तीव्रता कम नहीं हो रही थी।

आज हम फिर अतुल के क्लिनिक में थे। कमरे की दीवारों पर टंगी शांत पेंटिंग्स और धीमी रोशनी भी रश्मि की बेचैनी कम नहीं कर पा रही थी।

"रश्मि, तुम पूरी तरह ठीक हो। इन दृश्यों को खुद पर हावी मत होने दो। ये सिर्फ 'विज़न' हैं, सच नहीं," अतुल ने बड़ी नरमी से रश्मि को समझाते हुए कहा।

रश्मि ने अपनी उंगलियों को आपस में भींचते हुए अपनी नज़रें उठाईं। "लेकिन अतुल, हर बार वही एक दृश्य? वही बारिश, वही चीख और वही खून से सने मेरे हाथ? यह कैसे मुमकिन है कि मेरा दिमाग हर बार एक ही कहानी गढ़े?"

अतुल उसकी ओर थोड़ा झुका और तार्किक लहजे में बोला, "देखो, तुम एक लंबे कोमा से बाहर आई हो। तुम्हारा मस्तिष्क अभी भी पुरानी यादों को फिर से जोड़ने के लिए संघर्ष कर रहा है। मुमकिन है कि एक्सीडेंट से कुछ समय पहले तुमने कोई ऐसी फिल्म देखी हो, कोई उपन्यास पढ़ा हो या कोई क्राइम सीरीज़ देखी हो। तुम्हारा दिमाग उस खाली हिस्से को उन रैंडम यादों से भर रहा है। तुम जितना उनके बारे में सोचोगी, वे उतनी ही असली लगने लगेंगी।"

रश्मि के पास अब कहने को कुछ नहीं बचा था। वह बस खामोश बैठी कभी मुझे देखती, तो कभी अतुल को। उसकी आँखों में एक गहरा खालीपन था, जैसे वह अपनी ही पहचान को किसी भूलभुलैया में तलाश रही हो।

मैंने उसका हाथ थाम लिया और उसे यकीन दिलाने की कोशिश की, "तुम बिल्कुल स्वस्थ हो रश्मि। इतने भयानक एक्सीडेंट से बच निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं है। ज़िंदगी ने हमें यह दूसरा मौका दिया है, तो हम इसे इन बेबुनियाद ख्यालों में क्यों बर्बाद करें? चलो इन सब बातों को भूलते हैं और अपनी पुरानी ज़िंदगी की ओर वापस लौटते हैं।"

"हाँ रश्मि, सुमित सही कह रहा है। एक शांत और सुखद भविष्य की ओर कदम बढ़ाओ," अतुल ने मेरा साथ देते हुए कहा।

रश्मि अब शांत थी, लेकिन मैं उसे अच्छी तरह जानता था। उसकी खामोशी सुकून वाली नहीं थी; वह एक ऐसे तूफान का संकेत थी जो उसके दिमाग के भीतर चल रहा था। उसका शरीर भले ही क्लिनिक में था, पर उसका मन शायद अभी भी उस अंधेरी, बरसाती रात की सड़कों पर भटक रहा था।


Chapter Four

कुछ दिन शांति से बीते, लेकिन वह शांति किसी तूफान से पहले के सन्नाटे जैसी थी। अचानक एक सुबह रश्मि ने ऑफिस चलने की इच्छा ज़ाहिर की। मुझे लगा कि काम के माहौल में लौटने से उसका मन भटक जाएगा और शायद उसे सामान्य होने में मदद मिलेगी। पर उसकी आँखों की गहराई में कुछ और ही चल रहा था, जिसका अंदाज़ा मुझे नहीं था।

ऑफिस पहुँचते ही स्टाफ ने रश्मि का बड़े उत्साह और गर्मजोशी से स्वागत किया। वह भी बड़ी शालीनता से सबसे मिली, लेकिन उसकी नज़रें हर केबिन और हर मेज़ पर किसी को तलाश रही थीं।

जब हम अपने निजी केबिन में पहुँचे, तो उसने अचानक मुझसे पूछा, "रितिका कहाँ है, सुमित? हमारी सेक्रेटरी? मैंने उसे बाहर नहीं देखा।"

मेरे हाथ में पकड़ी फाइल एक पल के लिए ठिठक गई। "वह मुंबई चली गई है, रश्मि। तुम्हारे एक्सीडेंट से कुछ समय पहले ही उसने एक बेहतर नौकरी के लिए इस्तीफा दे दिया था। तुमने खुद उसका इस्तीफा मंजूर किया था, याद नहीं?"

कहते ही मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। मुझे उसे याद करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए था। "आई एम सॉरी... मुझे ऐसे नहीं पूछना चाहिए था," मैंने तुरंत बात संभाली।

रश्मि ने मेरी माफ़ी को अनसुना कर दिया। "कोई बात नहीं। पर क्या मैं उसका इस्तीफा देख सकती हूँ? अभी?"
"हाँ, बिल्कुल। पर अचानक रितिका के बारे में क्यों पूछ रही हो?" मैंने फाइलें खंगालते हुए पूछा।

"पहले मुझे वह कागज़ देखने दो, सुमित। मैं सब बता दूँगी।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी ज़िद थी।

मैंने उसे वह फाइल थमा दी जिसमें रितिका का इस्तीफा लगा था। रश्मि ने उसे बहुत गौर से पढ़ा—एक-एक शब्द, रितिका के दस्तखत, तारीख... सब कुछ। उसके चेहरे पर एक पल के लिए सुकून आया, लेकिन अगले ही पल वह फिर उलझन में डूब गई।

"अब बताओगी कि मामला क्या है?" मैंने बेचैनी से पूछा।
रश्मि ने फाइल बंद की और मेरी आँखों में देखकर कहा, "मुझे लगा कि वह रितिका थी... जिसे मैंने अपने उन विज़न्स में मरते हुए देखा है।"

"क्या?" मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। "रश्मि, तुम यह क्या कह रही हो? वह सिर्फ एक कर्मचारी थी, और तुम..."

"मुझे नहीं पता सुमित, लेकिन उस धुंधली सी याद में जो चेहरा तड़प रहा था, वह रितिका जैसा लग रहा था।" उसने धीमी आवाज़ में कहा। "क्या तुमने इस्तीफे के बाद कभी उससे बात की?"

"नहीं, उसके बाद कोई संपर्क नहीं हुआ। पर अगर तुम चाहती हो, तो मैं अभी कोशिश करता हूँ।" मैंने अपना फोन निकाला और रितिका का नंबर मिलाया।

'आपके द्वारा डायल किया गया नंबर अभी उपयोग में नहीं है...'

वही मशीनी आवाज़ गूँजी। मैंने रश्मि की तरफ देखा और सिर हिला दिया। "नंबर बंद है। मैं उसे ईमेल कर देता हूँ, शायद जवाब आ जाए।"

"नहीं, रहने दो। कोई बात नहीं," रश्मि ने कहा और खिड़की के बाहर देखने लगी। ऑफिस का शोर उस केबिन के भीतर पसरी खामोशी को नहीं काट पा रहा था।

"रश्मि, प्लीज़ मुझे बताओ," मैंने उसके पास जाकर धीमे से पूछा, "तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि तुमने रितिका का खून किया है? कोई तो वजह होगी?"

"सिर्फ वे दृश्य, सुमित। मुझे उन पर यकीन नहीं है, पर वे मुझे छोड़ते भी नहीं। जब मुझे कुछ ठोस याद आएगा, मैं तुम्हें ज़रूर बताऊँगी।"

"ठीक है, तुम अपना वक्त लो," मैंने उसका हाथ सहलाते हुए कहा। "पर मैं फिर कहूँगा, इन यादों को संजीदगी से मत लो। ये सिर्फ टूटे हुए दिमाग का खेल हैं।"

"मैं कोशिश करूँगी," उसने जवाब दिया, लेकिन उसकी आँखों का खालीपन बता रहा था कि वह अब भी उस 'चेहरे' की तलाश में है।


Chapter Five

रश्मि का मन अब एक जलते हुए अंगारे की तरह था जिसे बुझाना नामुमकिन था। वह उन दृश्यों के पीछे छिपे सच को खंगालने के लिए बेताब थी। मैंने उसे हज़ारों बार समझाने की कोशिश की कि ये महज़ उसके घायल दिमाग की उपज हैं, लेकिन मेरी सारी दलीलें बेकार साबित हुईं। दिन-ब-दिन उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी और वह रातों को उठकर घंटों अंधेरे में बैठी रहती थी।

मैं रितिका से संपर्क करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था—पुराने दोस्तों से पूछा, सोशल मीडिया खंगाला, पर रितिका जैसे हवा में विलीन हो गई थी। उसका कोई सुराग न मिलना रश्मि के शक की आग में घी डालने का काम कर रहा था।

शायद वक्त हमारे खिलाफ था। या शायद वह 'सच' खुद बाहर आने के लिए तड़प रहा था।

उस दिन मैं ऑफिस में एक मीटिंग में था और रश्मि घर पर आराम कर रही थी। तभी अचानक मेरा फोन बजा। रश्मि का नाम स्क्रीन पर चमक रहा था। मैंने फोन उठाया, पर दूसरी तरफ से जो आवाज़ आई उसने मेरे खून को जमा दिया।

"सुमित... मुझे सब याद आ गया है।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सा ठहराव था, जैसे कोई मर चुका इंसान बोल रहा हो। "मुझे कारण पता है, जगह याद है और वह वक्त भी... रितिका की हत्या से जुड़ी हर एक बात अब मेरे सामने साफ है। मेरे विज़न्स ने मुझे सब दिखा दिया है।"

मेरे हाथ कांपने लगे। "रश्मि! मेरी बात सुनो... शांत हो जाओ। तुम कहाँ हो?"

"मैंने उसे मार डाला, सुमित। और मुझे पता है कि मैंने उसकी लाश कहाँ छिपाई है। मैं वहीं जा रही हूँ," उसने ठंडे लहजे में कहा।

"रश्मि! रुको—" मैंने चिल्लाकर कहना चाहा, लेकिन फोन कट चुका था।

मैंने दोबारा नंबर मिलाया, पर वह स्विच ऑफ था। सन्नाटे में मुझे गाड़ी के इंजन की आवाज़ और हवा का शोर सुनाई दिया था—वह गाड़ी चला रही थी। 

मेरा दिमाग बिजली की तेज़ी से दौड़ा। अगर उसे 'सब' याद आ गया है, तो वह उसी जगह जा रही होगी जहाँ सात महीने पहले उसका एक्सीडेंट हुआ था। वह पहाड़ी रास्ता, वह पुराना फार्महाउस...

मैं पागलों की तरह अपनी कार की ओर भागा। मेरा दिल डूब रहा था।


Chapter Six

मैं अपनी पूरी ताकत से गाड़ी चलाते हुए फार्महाउस पहुँचा। रश्मि की कार बाहर बेतरतीब ढंग से खड़ी थी, उसका दरवाज़ा खुला हुआ था। मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था। मैं पागलों की तरह अंदर भागा।

"रश्मि! रश्मि! तुम कहाँ हो?" मैंने चिल्लाकर आवाज़ दी, लेकिन जवाब में सिर्फ सन्नाटा और मेरी अपनी आवाज़ की गूँज सुनाई दी।

मैं एक कमरे से दूसरे कमरे की ओर भागा। अंत में, मेरी तलाश घर के पिछवाड़े बने स्टोर रूम पर जाकर खत्म हुई। अंदर का नज़ारा देख मेरी सांसें थम गईं। रश्मि ज़मीन पर बेजान सी बैठी थी। उसके पास एक भारी कुल्हाड़ी पड़ी थी और स्टोर रूम की कच्ची दीवार का एक हिस्सा टूटा हुआ था। मिट्टी और ईंटें चारों ओर बिखरी हुई थीं। यह साफ़ था कि उसने पागलों की तरह उस दीवार को गिराया था।

"रश्मि! क्या हुआ यह? तुम यह सब क्या कर रही हो?" मैंने उसके पास घुटनों के बल बैठते हुए पूछा।

उसने अपनी सूजी हुई आँखें उठाईं, जो आंसुओं से भरी थीं। "सुमित... मुझे याद आया था कि तुम्हारा और रितिका का अफेयर था। मुझे लगा कि उसी गुस्से में मैंने उसे मारकर यहाँ इस दीवार के पीछे चुनवा दिया था।

लेकिन देखो..." उसने उस मलबे की ओर इशारा किया, "वहाँ कुछ भी नहीं है। सिर्फ मिट्टी और पत्थर हैं। सुमित, मैं पागल हो रही हूँ। मेरा दिमाग मेरा साथ छोड़ रहा है।"

मैंने उसे कसकर गले लगा लिया। वह कांप रही थी। "रश्मि, शांत हो जाओ। मैंने और अतुल ने तुमसे कितनी बार कहा कि ये सिर्फ भ्रम हैं। तुम्हारा मन तुम्हें धोखा दे रहा है।"

मैं उसे किसी तरह सहारा देकर लिविंग रूम तक लाया और सोफे पर बिठाया। मैं उसे पानी देने के लिए मुड़ा ही था कि अचानक उसकी नज़र सोफे के नीचे दबी एक चीज़ पर पड़ी। 

उसने झुककर उसे उठाया—वह एक धूल भरी पुरानी किताब थी। मैंने तुरंत उसके हाथ से वह किताब ले ली। उसका शीर्षक था: "द अफेयर" (The Affair)।

जैसे ही मैंने उस उपन्यास के पिछले कवर पर लिखी कहानी (Plotline) पढ़ी, मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। "रश्मि, यह देखो..."

मैंने उसे वह सारांश पढ़कर सुनाया। किताब की कहानी बिल्कुल वैसी ही थी जैसे रश्मि के विज़न्स—एक पत्नी जिसे अपने पति के अफेयर का शक होता है, वह उसकी सेक्रेटरी की हत्या करती है और लाश को दीवार में चुनवा देती है।

रश्मि सन्न रह गई। उसकी आँखों में चमकता खौफ अब हैरानी में बदल चुका था। सब कुछ एक जैसा था—धोखा, हत्या और वह जगह भी।

"अब समझी तुम?" मैंने राहत की सांस लेते हुए कहा। "एक्सीडेंट से पहले शायद तुम यह किताब पढ़ रही होगी। कोमा से जागने के बाद तुम्हारे दिमाग ने तुम्हारी खोई हुई यादों को इस किताब की कहानी से बदल दिया। जिसे तुम सच समझ रही थीं, वह महज़ एक लेखक की कल्पना थी।"

मैंने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया। "सब कुछ भूल जाओ रश्मि। सच यह है कि हम साथ हैं, हम सुरक्षित हैं और हमारे बीच कोई रितिका नहीं है। एक मामूली किताब को अपनी ज़िंदगी बर्बाद मत करने दो, प्लीज।"

रश्मि बिलख-बिलख कर रोने लगी, लेकिन इस बार उसके आंसुओं में वह खौफ नहीं था। उसके शरीर का तनाव धीरे-धीरे कम हो रहा था। उसे अपनी खोई हुई हकीकत वापस मिल गई थी।

शायद अब सब कुछ ठीक होने वाला था। अँधेरा छंट रहा था और एक नई सुबह हमारा इंतज़ार कर रही थी।


Epilogue 

रश्मि अब तेज़ी से सामान्य हो रही थी। उसके चेहरे पर खिली मुस्कान यह बता रही थी कि वह इस बात से कितनी राहत में है कि उसके खौफनाक 'विज़न' महज़ एक कल्पना थे। उसे लग रहा था कि वह निर्दोष है।

लेकिन वह गलत थी।

सच तो यह था कि रश्मि ने रितिका की हत्या की कोशिश की थी। पर इस गुनाह की असली जड़ वह नहीं, बल्कि मैं था।

मेरा रितिका के साथ अफेयर वह चिंगारी थी जिसने रश्मि की दुनिया में आग लगा दी थी। मुझे आज भी नहीं पता कि मैं रितिका की ओर कैसे आकर्षित हुआ, लेकिन जब रश्मि को इस धोखे का पता चला, तो उसके भीतर की वफादार पत्नी मर गई और एक आहत महिला जाग गई।

रश्मि मुझसे बेपनाह प्यार करती थी; उसने रितिका की तब मदद की थी जब वह एक गरीब घर से शहर आई थी। रश्मि ने उसे अपनी बहन की तरह माना, उसे नौकरी दी, और बदले में हमने उसे सिर्फ धोखा दिया।

एक्सीडेंट से पहले वाली रात, हमारे बीच एक भयानक झगड़ा हुआ था। रश्मि का दिल टूट चुका था। वह रितिका को  बहाने से फार्महाउस ले गई। रितिका को लगा कि रश्मि उससे सवाल करेगी, वह सब छोड़कर जाने को तैयार थी, पर रश्मि ने उसे बोलने का मौका तक नहीं दिया। नफरत और जुनून में रश्मि ने रितिका का सिर दीवार पर दे मारा और उसे मरा हुआ समझकर स्टोर रूम की दीवार में चुन दिया।

लेकिन रश्मि का मन एक अपराधी का नहीं था। घर लौटते समय उसकी आत्मा ने उसे धिक्कारा। उसने रोते हुए मुझे फोन किया और सब सच उगल दिया। उसने कहा कि वह वापस जा रही है और रितिका को बचा लेगी। मैं डर गया था। मैं रितिका की जान और रश्मि की आज़ादी, दोनों बचाना चाहता था।

मैं पागलों की तरह फार्महाउस पहुँचा, रितिका को उस दीवार से बाहर निकाला। वह घायल थी, पर ज़िंदा थी। जब हम उसे लेकर निकल रहे थे, तभी इंस्पेक्टर ऋषि का फोन आया कि रश्मि की कार का एक्सीडेंट हो गया है।

अस्पताल में ऋषि से मिलने के बाद,मैं उससे दोबारा मिला था और उन्हें सब सच बता दिया। मेरे दोस्त अतुल ने मेरी और रश्मि की बहुत मदद की। अतुल ने ही ऋषि को राजी किया कि इस मामले को कानूनी रूप न दिया जाए, क्योंकि रितिका ज़िंदा थी और वह खुद भी इस गुनाह के लिए खुद को दोषी मान रही थी। रितिका ने कोई शिकायत नहीं की और वह शहर छोड़कर चली गई।

ऋषि ने हमें एक आखिरी चेतावनी दी—"एक पवित्र आत्मा को दोबारा कभी धोखा मत देना।"

अतुल ने अपने सेशन्स के ज़रिए रश्मि को यकीन दिलाया कि जो वह देख रही है, वे सिर्फ एक्सीडेंट के बाद पैदा हुए भ्रम हैं। वह किताब—'द अफेयर'—हमारे लिए एक वरदान साबित हुई। मैंने ही वह किताब सोफे के नीचे रखी थी ताकि रश्मि को लगे कि उसकी यादें उस कहानी से प्रेरित हैं।

आज रितिका का ईमेल भी आ गया। उसने लिखा कि वह विदेश में एक प्रोजेक्ट पर है और खुश है। जब मैंने यह रश्मि को दिखाया, तो उसकी आँखों में एक संतोष था जो मैंने महीनों से नहीं देखा था।

आज हम फिर से एक 'खुशहाल' जोड़ा हैं। रश्मि को लगता है कि उसकी यादें गलत थीं, और मैं चाहता हूँ कि उसे कभी सच पता न चले।

कभी-कभी ज़िंदगी में कुछ यादों का अधूरा रहना ही बेहतर होता है। 

                              The End

Disclaimer : यह पुस्तक पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है। इस कहानी के सभी पात्र, घटनाएँ, स्थान और संवाद लेखक की कल्पना की उपज हैं। इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति, वास्तविक घटना या किसी विशेष समुदाय से कोई संबंध नहीं है। यदि कोई समानता पाई जाती है, तो उसे मात्र एक संयोग समझा जाना चाहिए।


Written by :

Anand Kumar Sharma