hindi Best Moral Stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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  • जबसे इस घर में आई है सावी

    जब से इस घर में आई है सावी,एक दिन सुख का साँस नहीं लिया।रतिया की नाली के किनारे...

  • उजाले की ओर - 3

    उजाले की ओर जयश्री रॉय (3) उस दिन वह सुबीर के साथ विंध्य क्लब गई थी। उसके किसी क...

  • तुम्हारी मंजूषा.....

    तुम्हारी मंजूषा..... कॉलेज में प्रिंसिपल ने अकस्मात सब स्टाफ वालों की मीटिंग बुल...

रात का सूरजमुखी - 2 By S Bhagyam Sharma

रात का सूरजमुखी अध्याय 2 बापू, कल्पना और सुबानायकम् तीनो लोग ऊपर से जल्दी-जल्दी उतर कर नीचे आए। राघवन उस लड़की से पूछताछ कर रहा था। "किस बारे में अप्पा से मिलने आई हो तुम ?" "जो वह...

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जबसे इस घर में आई है सावी By Satish Sardana Kumar

जब से इस घर में आई है सावी,एक दिन सुख का साँस नहीं लिया।रतिया की नाली के किनारे का गाँव,बारिश में छत तक पानी भर जाता,रत्ता टिब्बा पर जाकर शरण लेनी पड़ती।बाकी पूरा साल प्यासा।घर में...

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एबॉन्डेण्ड - 11 - अंतिम भाग By Pradeep Shrivastava

एबॉन्डेण्ड - प्रदीप श्रीवास्तव भाग 11 मोबाइल लेकर युवक उसकी बैट्री निकाल रहा है। कह रहा है, ‘इसकी बैट्री निकाल कर रखता हूं। ऑन रहेगा तो वो हमारी लोकेशन पता कर लेंगे। और हम तक पहुंच...

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उजाले की ओर - 3 By Jaishree Roy

उजाले की ओर जयश्री रॉय (3) उस दिन वह सुबीर के साथ विंध्य क्लब गई थी। उसके किसी कोलीग की पाँचवीं मैरिज एनीवर्सरी थी! क्लब का माहौल बेहद सुखद था। लोग भी सहज और मिलनसार। वहीं पहली बार...

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हर्ज़ाना - 1 By Anjali Deshpande

हर्ज़ाना अंजली देशपांडे (1) घंटी बजी, नौकर ने दरवाज़ा खोला और वापस आकर कहा, “चार लोग हैं साब.” उनके चेहरे की हर झुर्री प्रफुल्लित हो उभर आई. वे इतनी तत्परता से उठे कि रीढ़ ने प्रतिवाद...

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तुम्हारी मंजूषा..... By Dr Vinita Rahurikar

तुम्हारी मंजूषा..... कॉलेज में प्रिंसिपल ने अकस्मात सब स्टाफ वालों की मीटिंग बुला ली थी। एक घंटा मीटिंग अटेंड करके मंजूषा अपने विभाग की ओर दौड़ पड़ी। परसों से एम.ए. प्रीवियस के वार...

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पी.के. - 2 By Roop Singh Chandel

पी.के. (2) “चाय पीने.” “मैं पिलाउंगा चाय आज आपको.” पीके बोला और साथ हो लिया था. वह कुछ नहीं बोल पाया था, लेकिन तभी उसके मन में एक बात पैदा हुई थी और उसने सोचा था कि चाय पीते हुए वह...

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नाम में क्या रखा है - 2 By Vandana Gupta

नाम में क्या रखा है (2) प्रश्न मेरे पाले में था तो जवाब तो देना ही था “ आप अपना ध्यान नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर लगाइए. वो करने की कोशिश कीजिए जो आप करना चाहते हों और अब तक न...

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ये लम्हा...... गुज़र जाने दो By Garima Dubey

ये लम्हा...... गुज़र जाने दो डॉ. गरिमा संजय दुबे "तुम समझ रही हो मैं क्या कह रहा हूँ ", सुबकती हुई बिंदु को विनोद ने झकझोरते हुए कहा, "अब कोई चारा नहीं रहा, ज़िन्दगी हाथ से फिसल चुकी...

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हुँण तां, मैं ठीक हाँ By हरिराम भार्गव हिन्दी जुड़वाँ

हुंण तां, मैं ठीक हाँ जीवन में रिश्ते बनते नहीं और बनाए भी नहीं जाते l अनायास ही निस्वार्थ भाव से जो प्रेम पनपता है l वही सच्चा रिश्ता होता है l यह मैंने हरि, जिससे मैं कोई दो साल...

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बाबुल मोरा... - 3 - अंतिम भाग By Zakia Zubairi

बाबुल मोरा.... ज़किया ज़ुबैरी (3) लिसा का ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा था; जैसे जैसे उसे अहसास हो रहा था अपना कुछ खो जाने का ; लुट जाने का...अपने ही घर में आंखों के सामने डाका पड़ जाने का...

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कुबेर - 15 By Hansa Deep

कुबेर डॉ. हंसा दीप 15 पैसे भी आते जीवन-ज्योत में तो थोक में आते। कई बार गिनती के लिए बच्चों को बैठाया जाता। डोनेशन के रूप में कई लोग डाल जाते। अपनी इच्छाएँ पूरी होतीं तो दादा का शु...

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इंसान_बनाम_मशीन - 1 By सिद्धार्थ शुक्ला

#इंसान_बनाम_मशीन ?वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत जहाँ इंसान की जरूरतें पूरी होतीं थी वहीं परस्पर अनुग्रह और प्रेम का भाव बना रहता होगा ऐसा मैं समझता हूं। फिर वैज्ञानिक क्रांति के चलते...

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आओ थेरियों - 5 - अंतिम भाग By Pradeep Shrivastava

आओ थेरियों प्रदीप श्रीवास्तव भाग 5 मैं यह जानती समझती हूं कि हम तुम छप्पर में रहने वाली औरतों के लिए यह संभव नहीं है। हम सदियों से इतने शोषित हुए हैं कि मुंह खोलने की बात छोड़ो ऐसी...

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दास्ताँ ए दर्द ! - 17 - अंतिम भाग By Pranava Bharti

दास्ताँ ए दर्द ! 17 प्रज्ञा को बहुत समय लगा सत्ती के ऊपर कुछ लिखने में ! वह जैसे ही उसकी किसी स्मृति को लिखना शुरू करती, उसकी आँखों से आँसुओं की धारा निकल जाती और दृष्टि धुंधला...

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रात का सूरजमुखी - 2 By S Bhagyam Sharma

रात का सूरजमुखी अध्याय 2 बापू, कल्पना और सुबानायकम् तीनो लोग ऊपर से जल्दी-जल्दी उतर कर नीचे आए। राघवन उस लड़की से पूछताछ कर रहा था। "किस बारे में अप्पा से मिलने आई हो तुम ?" "जो वह...

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जबसे इस घर में आई है सावी By Satish Sardana Kumar

जब से इस घर में आई है सावी,एक दिन सुख का साँस नहीं लिया।रतिया की नाली के किनारे का गाँव,बारिश में छत तक पानी भर जाता,रत्ता टिब्बा पर जाकर शरण लेनी पड़ती।बाकी पूरा साल प्यासा।घर में...

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एबॉन्डेण्ड - 11 - अंतिम भाग By Pradeep Shrivastava

एबॉन्डेण्ड - प्रदीप श्रीवास्तव भाग 11 मोबाइल लेकर युवक उसकी बैट्री निकाल रहा है। कह रहा है, ‘इसकी बैट्री निकाल कर रखता हूं। ऑन रहेगा तो वो हमारी लोकेशन पता कर लेंगे। और हम तक पहुंच...

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उजाले की ओर - 3 By Jaishree Roy

उजाले की ओर जयश्री रॉय (3) उस दिन वह सुबीर के साथ विंध्य क्लब गई थी। उसके किसी कोलीग की पाँचवीं मैरिज एनीवर्सरी थी! क्लब का माहौल बेहद सुखद था। लोग भी सहज और मिलनसार। वहीं पहली बार...

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हर्ज़ाना - 1 By Anjali Deshpande

हर्ज़ाना अंजली देशपांडे (1) घंटी बजी, नौकर ने दरवाज़ा खोला और वापस आकर कहा, “चार लोग हैं साब.” उनके चेहरे की हर झुर्री प्रफुल्लित हो उभर आई. वे इतनी तत्परता से उठे कि रीढ़ ने प्रतिवाद...

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तुम्हारी मंजूषा..... By Dr Vinita Rahurikar

तुम्हारी मंजूषा..... कॉलेज में प्रिंसिपल ने अकस्मात सब स्टाफ वालों की मीटिंग बुला ली थी। एक घंटा मीटिंग अटेंड करके मंजूषा अपने विभाग की ओर दौड़ पड़ी। परसों से एम.ए. प्रीवियस के वार...

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नाम में क्या रखा है - 2 By Vandana Gupta

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हुँण तां, मैं ठीक हाँ By हरिराम भार्गव हिन्दी जुड़वाँ

हुंण तां, मैं ठीक हाँ जीवन में रिश्ते बनते नहीं और बनाए भी नहीं जाते l अनायास ही निस्वार्थ भाव से जो प्रेम पनपता है l वही सच्चा रिश्ता होता है l यह मैंने हरि, जिससे मैं कोई दो साल...

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बाबुल मोरा... - 3 - अंतिम भाग By Zakia Zubairi

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कुबेर - 15 By Hansa Deep

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इंसान_बनाम_मशीन - 1 By सिद्धार्थ शुक्ला

#इंसान_बनाम_मशीन ?वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत जहाँ इंसान की जरूरतें पूरी होतीं थी वहीं परस्पर अनुग्रह और प्रेम का भाव बना रहता होगा ऐसा मैं समझता हूं। फिर वैज्ञानिक क्रांति के चलते...

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आओ थेरियों - 5 - अंतिम भाग By Pradeep Shrivastava

आओ थेरियों प्रदीप श्रीवास्तव भाग 5 मैं यह जानती समझती हूं कि हम तुम छप्पर में रहने वाली औरतों के लिए यह संभव नहीं है। हम सदियों से इतने शोषित हुए हैं कि मुंह खोलने की बात छोड़ो ऐसी...

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दास्ताँ ए दर्द ! - 17 - अंतिम भाग By Pranava Bharti

दास्ताँ ए दर्द ! 17 प्रज्ञा को बहुत समय लगा सत्ती के ऊपर कुछ लिखने में ! वह जैसे ही उसकी किसी स्मृति को लिखना शुरू करती, उसकी आँखों से आँसुओं की धारा निकल जाती और दृष्टि धुंधला...

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