hindi Best Moral Stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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  • कौन दिलों की जाने! - 23

    कौन दिलों की जाने! तेईस जैसे नदी का प्रवाहमय जल सरस व पवित्र होता है और स्थिर जल...

  • एक अप्रैल की कहानी

    एक अप्रैल की कहानी नीरजा द्विवेदी शीला एक अंतर्देशीय पत्र लेकर विचारमग्न खड़ी थीं...

  • रुक सत्तो..

    रुक सत्तो!एक बेहद सर्द दिन! दोपहर के बावजूद बाहर घटाटोप अंधकार है, जो खिड़की के र...

आषाढ़ का फिर वही एक दिन - 1 By PANKAJ SUBEER

आषाढ़ का फिर वही एक दिन (कहानी: पंकज सुबीर) (1) टिंग-टिड़िंग टिड़िंग-टिड़िंग, टिंग-टिड़िंग टिड़िंग-टिड़िंग, ये मोबाइल का अलार्म है । जो रोज़ सुबह खंडहर हो चुके सरकारी आवासों वाली तीन मंज...

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योगिनी - 8 By Mahesh Dewedy

योगिनी 8 उस सायं योगिनी ने माइक के प्रस्ताव का कोई सीधा उत्तर नहीं दिया था। रात्रि में वह तरह तरह के विचारों में डूबी रही थी। वह आश्चर्य में पड़कर सोचती कि क्या सचमुच ऐसा संसार सम्भ...

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कौन दिलों की जाने! - 23 By Lajpat Rai Garg

कौन दिलों की जाने! तेईस जैसे नदी का प्रवाहमय जल सरस व पवित्र होता है और स्थिर जल में से थोड़े समय पश्चात्‌ ही दुर्गन्ध आने लगती है, ठीक उसी प्रकार यदि दाम्पत्य जीवन की स्थिति स्थिर...

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रिमोट से चलने वाला गुड्डा - 2 By Mazkoor Alam

रिमोट से चलने वाला गुड्डा मज्कूर आलम (2) अरे छोड़ो न, कहां तुम इन चीजों में फंसी हो। तुम जैसी हो, मुझे वैसी ही सुंदर लगती हो। मगर प्रतीक... तब तक चाय खत्म हो गई थी। प्रतीक एक बार फ...

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 2 By Pallavi Saxena

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-2 क्यूँ, ऐसा क्यूँ लगता था तुम्हें क्यूंकि....जाने दो फिर कभी, फिर समय के साथ-साथ मेरा आकर्षण बदलने लगा और तुम जैसे समय के साथ–साथ मेरी जिंदगी से कहीं गुम ह...

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हूक - 3 - अंतिम भाग By Divya Shukla

हूक (3) दिमाग जिस तरफ इशारा कर रहा था आत्मा उसे मानने से छिटक रही थी | मुझे मौन देख फूला बुआ ने पूछा “ किस सोच में हो बिट्टी अब तुम दो दिन को ही आई हो काहे हलकान हो रही हो छछूंदर क...

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बेचैनी को चैन मिले तो By Satish Sardana Kumar

बेचैनी को चैन मिले तो मैं कुछ सोचूँ,बेख्याली को ध्यान में रखूँ तो मैं कुछ पाऊं।जीवन इतना सरल कहाँ,अमृत में ही गरल पड़ा,नीरव हो गए स्वपन भी अपने,आँखों से भी तरल चुका।बेदिली को दिल मे...

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राय साहब की चौथी बेटी - 9 By Prabodh Kumar Govil

राय साहब की चौथी बेटी प्रबोध कुमार गोविल 9 कहते हैं कि इंसान जब तक दुनिया में रहता है तब तक वो अपने चेतन जगत में दो जहां बुनता रहता है। एक जहां उसे उसके हाथ की लकीरें दिलवाती हैं औ...

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इस दश्‍त में एक शहर था - 15 By Amitabh Mishra

इस दश्‍त में एक शहर था अमिताभ मिश्र (15) अब मौका है कालिका प्रसाद के सबसे छोटे बेटे यानि डाक्टर त्रिलोकीनाथ की शादी का। पिछले जमाने में होता यूं था कि पिछली पीढ़ी के यानि चाचा की शा...

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एक अप्रैल की कहानी By Neerja Dewedy

एक अप्रैल की कहानी नीरजा द्विवेदी शीला एक अंतर्देशीय पत्र लेकर विचारमग्न खड़ी थीं. उनके पति ने धोखे से बेटी के मंगेतर का पत्र खोल दिया था और अपराध बोध से ग्रस्त होकर झिझकते हुए बोले...

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रुक सत्तो.. By Shobhana Shyam

रुक सत्तो!एक बेहद सर्द दिन! दोपहर के बावजूद बाहर घटाटोप अंधकार है, जो खिड़की के रास्ते शारदा के मन-मस्तिष्क में उतरता जा रहा है। हलकी बूँदा-बाँदी बाहर भी हो रही है और अंदर भी। आसमान...

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ततइया - 2 By Nasira Sharma

ततइया (2) ‘शन्नो भाग गई, आखिर क्यों | कुछ दिन पहले ही तो पता चला था कि---माँखुशी से भरकर कोई पुरानी तावीज़ संदूक से निकाल लाई थी। उसको शन्नो के बाजू पर बाँधते हुए उसने दशहरे बाद उत्...

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तुम लोग By PANKAJ SUBEER

तुम लोग कहानी पंकज सुबीर ‘‘लाहौल विला कुव्वत, पंडत तुमसे तो कोई बात भी करना फ़िज़ूल है। एसा लगता है मानो ज़माने भर के सारे पत्थर तुम्हारी अकल पर ही पड़े गए हों।’’ अज़ीज़ फ़ारूक़ी ने बुर...

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नॉमिनी - 3 - अंतिम भाग By Madhu Arora

नॉमिनी मधु अरोड़ा (3) आखि़र रविवार भी आ ही गया और इसी दिन का इंतज़ार था सपना को। रवि ने कहा, ‘आज हम पिक्‍चर देखने जायेंगे। तुम्‍हें हॉल में पिक्‍चर देखना अच्‍छा लगता है न?’ सपना ने...

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महत्वाकांक्षा - 4 - अंतिम भाग By Shashi Ranjan

महत्वाकांक्षा टी शशिरंजन (4) तभी प्रियंका ने अचानक अपने चेहरे का भाव बदलते हुए कहा - जिंदगी के मजे ऐसे नहीं होते हैं पंकज बाबू । इसके लिए पैसों की आवश्यकता होती है और आपकी जितनी सै...

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मकसद By Raj Gopal S Verma

“क्या बताऊं, कैसे समझाऊं तुमको. कुछ सुनती ही नहीं तो समझोगी कैसे अनन्या”, भुनभुनाता हुआ प्रसनजीत अपना मोबाइल उसके हाथ से लेकर बाहर निकल आया. गुस्से में प्रसनजीत घर से निकल गया. क...

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सखी होली आ रही है By Sneh Goswami

सखी होली आने वाली हैबसंत पंचमी आ चुकी है . बसंत यानि उमंग .बसंत यानि तरंग . एक विभोर, एक हिलौर ,एक हलक, एक हुलस का पर्व . मन में तन में आस-पास के वातावरण में रंग ही रंग का पर्व ....

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हमें भगवान क्यो नही मिलते हैं ? By Sahaj Sabharwal

हमें भगवान क्यों नहीं मिलते ? आज प्रतिभाशाली और कलात्मक लोगों द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास से भरी दुनिया है। इस दुनिया में विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं। उन...

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चाबी By PANKAJ SUBEER

चाबी (कहानी : पंकज सुबीर) ‘सीमा जी नहीं हैं क्या ?’ रश्मि ने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो सामने हाथ में ब्रीफकेस थामे लगभग चालीस पैंतालीस साल का एक आदमी खड़ा था। रश्मि को देख कर उस आदमी...

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एक अदद टॉयलेट बाथरूम By Satish Sardana Kumar

हम दो जन थे।फिर एक छोटी सी टीन्डसी आ गई।रिश्तेदारी इतनी तल्ख हो गई थी कि न किसी के आना न जाना।बेटी आ गई थी दिन भर मुहल्ले में मां को डुलाए रहती।दिन छोटे होते और रातें लंबी।बेटी सो...

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नग्न मानसिकता के महिलावादी By Vijay Vibhor

हर जीव् का एक नैसर्गिक स्वभाव होता है.. ठीक वैसे ही पुरुष है।। चरित्र और काम वासना पुरुषो का नैसर्गिक रूप से सबसे अधिक कमज़ोर और संवेदनशील बिंदु है… और चालाक औरते पुरुषो के इसी पॉइं...

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पुनर्जन्म By Vinita Shukla

बहुत दिनों से नौवीं की छात्रा कलिका, स्टाफ- रूम में चर्चा का विषय बनी हुई है. शिक्षिकाएं एकमत हैं कि उसे कोई मानसिक समस्या जरूर है. सबको श्रीमती मीरा वर्मा का इंतजार है, जो अपने ढी...

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फैसला - 5 - अंतिम भाग By Divya Shukla

फैसला (5) मै भी तो बहुत परेशान थी | जिस जद्दोजहद से मै गुजर रही थी अब उसका हल निकलना ही चाहिये, यह सोच कर ही मैने बात छेड़ी, "सुनो मुझे तुम से बात करनी है " विजयेन्द्र ने अख़बार से न...

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मुख़बिर - 31 - अंतिम भाग By राज बोहरे

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (31) कृपाराम के मुखबिर हेतमसिंह बताता है कि इगलैंड से ख़ास तरह की तालीम लेकर आये पुलिस के एक आई जी को इस अंचल में डाकू समस्या को निपटाने का काम सोंपा गया तो...

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कुत्ता कहीं का By Shobhana Shyam

कुत्ता कहीं कावह बार-बार “हट! हट!” करती जा रही थी, लेकिन वह लगातार उसके पीछे-पीछे चल रहा था। कालोनी की इस सड़क पर काफी अँधेरा था, सो अब तो राधिका को डर लगने लगा था। उसने अपनी चाल ते...

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सुरक्षा या बेड़ियां By आयुषी सिंह

“ यह कैसे कपड़े पहन कर जा रही है सुरेखा ? ” “ माँ मैं यह कपड़े अपनी मर्जी से पहन कर नहीं जा रही, मैं तो हर दिन की तरह आज भी सलवार सूट ही पहनती लेकिन आज कॉलेज में हो रहे कैम्प का ड्...

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उम्मीदों का बना रहना By Raj Gopal S Verma

शहर की एक पोश कॉलोनी बाग़ फरजाना में स्थित डॉक्टर के विशाल घर का छोटा सा हिस्सा था यह क्लीनिक जिसे आउट हाउस कह सकते हैं. घर जरूर विशाल था पर कुछ उजाड़-सा लगता था. लॉन का रख-रखाव न...

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पेशावर By bharat Thakur

4 जनवरी, 2012 "ये वतन! हमारा है!! इस वतन को फिरकापरस्त लोगो ने कब्जाया हुआ है। मुझे अपनी अपनी कुर्बानी दो, इस वतन को जन्नत में बदलने के लिए। हम यहाँ नया जहाँ बनायेगे! तुम्हारी कुर्...

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आषाढ़ का फिर वही एक दिन - 1 By PANKAJ SUBEER

आषाढ़ का फिर वही एक दिन (कहानी: पंकज सुबीर) (1) टिंग-टिड़िंग टिड़िंग-टिड़िंग, टिंग-टिड़िंग टिड़िंग-टिड़िंग, ये मोबाइल का अलार्म है । जो रोज़ सुबह खंडहर हो चुके सरकारी आवासों वाली तीन मंज...

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योगिनी - 8 By Mahesh Dewedy

योगिनी 8 उस सायं योगिनी ने माइक के प्रस्ताव का कोई सीधा उत्तर नहीं दिया था। रात्रि में वह तरह तरह के विचारों में डूबी रही थी। वह आश्चर्य में पड़कर सोचती कि क्या सचमुच ऐसा संसार सम्भ...

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कौन दिलों की जाने! - 23 By Lajpat Rai Garg

कौन दिलों की जाने! तेईस जैसे नदी का प्रवाहमय जल सरस व पवित्र होता है और स्थिर जल में से थोड़े समय पश्चात्‌ ही दुर्गन्ध आने लगती है, ठीक उसी प्रकार यदि दाम्पत्य जीवन की स्थिति स्थिर...

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रिमोट से चलने वाला गुड्डा - 2 By Mazkoor Alam

रिमोट से चलने वाला गुड्डा मज्कूर आलम (2) अरे छोड़ो न, कहां तुम इन चीजों में फंसी हो। तुम जैसी हो, मुझे वैसी ही सुंदर लगती हो। मगर प्रतीक... तब तक चाय खत्म हो गई थी। प्रतीक एक बार फ...

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दो अजनबी और वो आवाज़ - 2 By Pallavi Saxena

दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-2 क्यूँ, ऐसा क्यूँ लगता था तुम्हें क्यूंकि....जाने दो फिर कभी, फिर समय के साथ-साथ मेरा आकर्षण बदलने लगा और तुम जैसे समय के साथ–साथ मेरी जिंदगी से कहीं गुम ह...

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हूक - 3 - अंतिम भाग By Divya Shukla

हूक (3) दिमाग जिस तरफ इशारा कर रहा था आत्मा उसे मानने से छिटक रही थी | मुझे मौन देख फूला बुआ ने पूछा “ किस सोच में हो बिट्टी अब तुम दो दिन को ही आई हो काहे हलकान हो रही हो छछूंदर क...

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बेचैनी को चैन मिले तो By Satish Sardana Kumar

बेचैनी को चैन मिले तो मैं कुछ सोचूँ,बेख्याली को ध्यान में रखूँ तो मैं कुछ पाऊं।जीवन इतना सरल कहाँ,अमृत में ही गरल पड़ा,नीरव हो गए स्वपन भी अपने,आँखों से भी तरल चुका।बेदिली को दिल मे...

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राय साहब की चौथी बेटी - 9 By Prabodh Kumar Govil

राय साहब की चौथी बेटी प्रबोध कुमार गोविल 9 कहते हैं कि इंसान जब तक दुनिया में रहता है तब तक वो अपने चेतन जगत में दो जहां बुनता रहता है। एक जहां उसे उसके हाथ की लकीरें दिलवाती हैं औ...

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इस दश्‍त में एक शहर था - 15 By Amitabh Mishra

इस दश्‍त में एक शहर था अमिताभ मिश्र (15) अब मौका है कालिका प्रसाद के सबसे छोटे बेटे यानि डाक्टर त्रिलोकीनाथ की शादी का। पिछले जमाने में होता यूं था कि पिछली पीढ़ी के यानि चाचा की शा...

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एक अप्रैल की कहानी By Neerja Dewedy

एक अप्रैल की कहानी नीरजा द्विवेदी शीला एक अंतर्देशीय पत्र लेकर विचारमग्न खड़ी थीं. उनके पति ने धोखे से बेटी के मंगेतर का पत्र खोल दिया था और अपराध बोध से ग्रस्त होकर झिझकते हुए बोले...

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रुक सत्तो.. By Shobhana Shyam

रुक सत्तो!एक बेहद सर्द दिन! दोपहर के बावजूद बाहर घटाटोप अंधकार है, जो खिड़की के रास्ते शारदा के मन-मस्तिष्क में उतरता जा रहा है। हलकी बूँदा-बाँदी बाहर भी हो रही है और अंदर भी। आसमान...

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ततइया - 2 By Nasira Sharma

ततइया (2) ‘शन्नो भाग गई, आखिर क्यों | कुछ दिन पहले ही तो पता चला था कि---माँखुशी से भरकर कोई पुरानी तावीज़ संदूक से निकाल लाई थी। उसको शन्नो के बाजू पर बाँधते हुए उसने दशहरे बाद उत्...

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तुम लोग By PANKAJ SUBEER

तुम लोग कहानी पंकज सुबीर ‘‘लाहौल विला कुव्वत, पंडत तुमसे तो कोई बात भी करना फ़िज़ूल है। एसा लगता है मानो ज़माने भर के सारे पत्थर तुम्हारी अकल पर ही पड़े गए हों।’’ अज़ीज़ फ़ारूक़ी ने बुर...

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नॉमिनी - 3 - अंतिम भाग By Madhu Arora

नॉमिनी मधु अरोड़ा (3) आखि़र रविवार भी आ ही गया और इसी दिन का इंतज़ार था सपना को। रवि ने कहा, ‘आज हम पिक्‍चर देखने जायेंगे। तुम्‍हें हॉल में पिक्‍चर देखना अच्‍छा लगता है न?’ सपना ने...

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मकसद By Raj Gopal S Verma

“क्या बताऊं, कैसे समझाऊं तुमको. कुछ सुनती ही नहीं तो समझोगी कैसे अनन्या”, भुनभुनाता हुआ प्रसनजीत अपना मोबाइल उसके हाथ से लेकर बाहर निकल आया. गुस्से में प्रसनजीत घर से निकल गया. क...

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सखी होली आने वाली हैबसंत पंचमी आ चुकी है . बसंत यानि उमंग .बसंत यानि तरंग . एक विभोर, एक हिलौर ,एक हलक, एक हुलस का पर्व . मन में तन में आस-पास के वातावरण में रंग ही रंग का पर्व ....

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हमें भगवान क्यो नही मिलते हैं ? By Sahaj Sabharwal

हमें भगवान क्यों नहीं मिलते ? आज प्रतिभाशाली और कलात्मक लोगों द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास से भरी दुनिया है। इस दुनिया में विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं। उन...

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चाबी (कहानी : पंकज सुबीर) ‘सीमा जी नहीं हैं क्या ?’ रश्मि ने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो सामने हाथ में ब्रीफकेस थामे लगभग चालीस पैंतालीस साल का एक आदमी खड़ा था। रश्मि को देख कर उस आदमी...

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एक अदद टॉयलेट बाथरूम By Satish Sardana Kumar

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मुख़बिर - 31 - अंतिम भाग By राज बोहरे

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (31) कृपाराम के मुखबिर हेतमसिंह बताता है कि इगलैंड से ख़ास तरह की तालीम लेकर आये पुलिस के एक आई जी को इस अंचल में डाकू समस्या को निपटाने का काम सोंपा गया तो...

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कुत्ता कहीं कावह बार-बार “हट! हट!” करती जा रही थी, लेकिन वह लगातार उसके पीछे-पीछे चल रहा था। कालोनी की इस सड़क पर काफी अँधेरा था, सो अब तो राधिका को डर लगने लगा था। उसने अपनी चाल ते...

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सुरक्षा या बेड़ियां By आयुषी सिंह

“ यह कैसे कपड़े पहन कर जा रही है सुरेखा ? ” “ माँ मैं यह कपड़े अपनी मर्जी से पहन कर नहीं जा रही, मैं तो हर दिन की तरह आज भी सलवार सूट ही पहनती लेकिन आज कॉलेज में हो रहे कैम्प का ड्...

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उम्मीदों का बना रहना By Raj Gopal S Verma

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पेशावर By bharat Thakur

4 जनवरी, 2012 "ये वतन! हमारा है!! इस वतन को फिरकापरस्त लोगो ने कब्जाया हुआ है। मुझे अपनी अपनी कुर्बानी दो, इस वतन को जन्नत में बदलने के लिए। हम यहाँ नया जहाँ बनायेगे! तुम्हारी कुर्...

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