hindi Best Moral Stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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  • दीवारें तो साथ हैं - 1

    पति को घर से गए कई घंटे हो गए थे। अब बीतता एक-एक क्षण मिसेज माथुर को अखरने लगा थ...

  • रिश्ते

    सर्दियों की कुनकुनी धूप मुझे शुरू से ही बहुत पसंद है। रोज़ दोपहर को सोसाइटी...

  • शह और मात

    यह कहानी राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका मधुमती के अप्रेल 2018 के अंक में प्र...

बिराज बहू - 8 By Sarat Chandra Chattopadhyay

पता नहीं किस तरह सुन्दरी को घर जाने की वात नमक-मिर्च लगाकर बिराज के कानो में पड़ गई। पड़ोस की बुआ आई थी। उसने खूब आलोचना की। बिराज ने सबकुछ सुनकर गंभीर स्वर में कहा- “बुआ माँ! आपको उ...

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दहन By Govind Sen

बच्चे खिलखिला रहे थे। उनके लिए अपनी ख़ुशी को संभालना मुश्किल था । ऊपर-नीचे सतत दौड़ लगा रहे थे । उन्होंने पूरे घर को आसमान पर उठा रखा था । वे सब उमंग, उत्साह और शरारत से लबालब थे । इ...

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दीवारें तो साथ हैं - 1 By Pradeep Shrivastava

पति को घर से गए कई घंटे हो गए थे। अब बीतता एक-एक क्षण मिसेज माथुर को अखरने लगा था। वैसे भी लंबे समय तक ऊहापोह की स्थिति में रहने के बाद बड़ी मुश्किल से पति-पत्नी दोनों मिलकर ही यह न...

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रिश्ते By Dr. Vandana Gupta

सर्दियों की कुनकुनी धूप मुझे शुरू से ही बहुत पसंद है। रोज़ दोपहर को सोसाइटी के लॉन में बैठकर धूप सेंकना मेरा प्रिय शगल रहा है, बरसों से। कोई किताब पढ़ते हुए दोपहर गुजर जाती है।...

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कक्षा - ६ By महेश रौतेला

कक्षा ६ : मेरी उम्र तब लगभग ग्यारह वर्ष होगी।साल १९६५। ननिहाल पढ़ने गया था, कक्षा ६ में। पहले पहल घर से बाहर। जब बड़े भाई साहब छोड़ने गये थे तो खुश था लेकिन जब वे मुझे छोड़कर व...

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तक्सीम - 4 - अंतिम भाग By Pragya Rohini

‘‘हां भई हम पे भरोसा कहां था तुझे कि ख्याल रखेंगे तेरी बीवी का? अब संभाल ले तू।’’
बेटे का मजाक उड़ाते हुए अम्मा ने कहा तो जमील, अब्बा के सामने जरा शर्माया पर जबान तक आए उसके शब्द ब...

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मुख़बिर - 4 By राज बोहरे

दिन में समूह के बीच सुरक्षित चलते वक्त तक जरा-जरा सी आवाज पर हमारे बदन में फुरफुरी आ जाती थी, फिर तो इस वक्त रात के अंधेरे में असुरक्षित लेटे हम सब थे। मुझे ऐसे कई हादसे याद आ रहे...

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शह और मात By Renu Gupta

यह कहानी राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका मधुमती के अप्रेल 2018 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है। ‘शादी वाले दिन मैं सुर्ख लाल रंग का जरी के काम वाला लंहगा पहनूँगी –बड़ी सी नथ ओ...

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कैदी नंबर 306 By The Real Ghost

कैदी नंबर 306 कई कहानियों का संग्रह है जोकि भारतीय समाज से जुड़ी हुई कानूनी समस्याओं को विशेष तौर पर उन समस्याओं को जिन्हें आम इंसान देखना ही नहीं चाहता या शायद देख कर भी इग्नोर कर...

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गूँगा होता घर By Govind Sen

मैं साइकिल समेत घर में घुसा। साइकिल की खड़खड़ाहट ने पूरे घर को मेरे आगमन की सूचना दे दी। वैसे सभी जानते थे कि हर शनिवार मैं घर आ जाता हूँ। रविवार की छुट्टी घर पर ही गुजारता हूँ।
घर...

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विद्रोहिणी - 10 By Brijmohan sharma

कुछ दिनों से श्यामा पर ताने तो मारे ही जा रहे थे फिर ऐक दिन अचानक उनके बंद दरवाजे पर कभी पत्थर तो कभी गोबर फेंके जाने लगा ।
मोहन व श्यामा बाहर निकलते तो कोई दिखाई नहीं देता । कुछ...

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बेटा ही होगा... By Sarvesh Saxena

दोस्तों, कभी कभी मेरे दिमाग मे कई बार सवाल आते हैं, जिनका जवाब मैं समाज से पूछना चाहता हूं |दोस्तों आज मैं अपने इन प्रश्नों और विचारों को कहानी का रूप देकर आप लोगों के साथ शेयर कर...

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प्रायश्चित By Renu Gupta

हनी ने एयरपोर्ट पर भारी मन से अपनी मौम और डैड से हाथ हिला कर विदा ली थी। उनके एयरपोर्ट के भीतर जाते ही उसके मन का सारा संताप उसकी आँखों की राह अश्रुधारा के रूप में बह निकला था। बड़ी...

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‘बराबाद’ .... नहीं आबाद By Pragya Rohini

‘‘ क्या नाम लेती हो तुम अपने गांव का... हां याद आया गन्नौर न। सुनो आज गन्नौर में दो प्यार करने वालांे ने जान दे दी ट्रेन से कटकर।’’
‘‘हे मेरे मालिक क्या खबर सुणाई सबेरे- सबेरे म्ह...

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पछतावा By Satish Sardana Kumar

पछतावासतीश सरदानासुबह के सवा नौ बजे तीन जन इंछापुरी रेलवे स्टेशन पर उतरे।पैसेंजर ट्रेन की अधिकांश सवारी शिव मंदिर की तरफ मुड़ गई।ये तीन जन उनसे विपरीत खेतों के दरम्यान एक पगडंडी पर...

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सजायाफ्ता कौन By Dr. Vandana Gupta

'वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है.....'सुबह से गाने की पंक्तियाँ उसके जेहन में गूँज रहीं थीं। सिंधु परेशान थी क्योंकि दिल से दिल नहीं मिला था... जो हुआ था वह बहुत भय...

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मंझली दीदी - 8 - अंतिम भाग By Sarat Chandra Chattopadhyay

रात हेमांगिनी ने अपने पति को बुलाकर रुंधे गले से कहा, ‘आज तक तो मैंने तुमसे कभी कुछ नहीं मांगा, लेकिन आज इस बीमारी के समय एक भिक्षा मांगती हुं, दोगे?’
विपिन ने संदिग्ध स्वर में कह...

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समायरा की स्टूडेंट - 2 - अंतिम भाग By Pradeep Shrivastava

‘अरे यार यह तुम्हारी स्टूडेंट है कि कोई तमाशा।’
‘वह है तो स्टूडेंट ही है। एक इनोसेंट स्टूडेंट। जिसे शातिर बनाने वाली, सारी खुराफ़ात की जड़ रिंग मास्टर तो ज्योग्रॉफी की टीचर नासिरा...

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भवितव्य By महेश रौतेला

भवितव्य:शाम को कश्यप के यहाँ जाना हुआ। चाय पी रहे थे। मैंने कश्यप से पूछ लिया," आपकी उम्र कितनी हो गयी है?" वे बोले," अस्सी चल रहा है। दिसम्बर में अस्सी हो जायेंगे।" फिर वे अपनी बि...

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कुमकुम बिंदी कंगना By Renu Gupta

यह कहानी 25 सितंबर 2019 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है। कुमकुम बिंदी कंगना...

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पापा मर चुके हैं By Jaishree Roy

आज एकबार फिर अरनव को बिस्तर पर उसकी इच्छाओं के चरम क्षण में अचानक छोडकर मै उठ आयी थी। अब बाथरूम के एकांत में पीली रोशनी के वृत के नीचे खड़ी आईने में प्रतिबिंबित अपनी सम्पूर्ण विवस्त...

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क्या यही प्यार है By Saroj Prajapati

सुबह सुबह बुआ जी का फोन आ गया। मैंने नमस्कार कर पूछा "बुआ जी आज कैसे आपको अपनी भतीजी की याद आ गई। " "अरे याद तो रोज ही आती है बस टाइम ही नहीं मिल पाता। अच्छा छोड़ ।आज मैंने एक खुश...

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बड़ी दीदी - 8 - अंतिम भाग By Sarat Chandra Chattopadhyay

कार्तिक के महीना समाप्ति पर है। थोड़ी-थोड़ी सर्दी पड़ने लगी है। सुरेन्द्र नाथ के ऊपर बाले कमरे में खिड़की के रास्ते प्रातःकाल के सूर्य का जो प्रकाश बिखर रहा है, सुरेन्द्र दिखाई दे...

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नोरा By Shweta Misra

एक दशक पहले यूरोप से अफ्रीका जब मेरा आना हुआ तो रुई के फाहे की तरह गिरते बर्फ की जगह यहाँ की ठंडी पुरवाई मेरे मन को लुभाती चली गयी मन हज़ार तरह की आशंकाओं से घिरा था l यूरोप का अत्य...

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बिराज बहू - 8 By Sarat Chandra Chattopadhyay

पता नहीं किस तरह सुन्दरी को घर जाने की वात नमक-मिर्च लगाकर बिराज के कानो में पड़ गई। पड़ोस की बुआ आई थी। उसने खूब आलोचना की। बिराज ने सबकुछ सुनकर गंभीर स्वर में कहा- “बुआ माँ! आपको उ...

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दहन By Govind Sen

बच्चे खिलखिला रहे थे। उनके लिए अपनी ख़ुशी को संभालना मुश्किल था । ऊपर-नीचे सतत दौड़ लगा रहे थे । उन्होंने पूरे घर को आसमान पर उठा रखा था । वे सब उमंग, उत्साह और शरारत से लबालब थे । इ...

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दीवारें तो साथ हैं - 1 By Pradeep Shrivastava

पति को घर से गए कई घंटे हो गए थे। अब बीतता एक-एक क्षण मिसेज माथुर को अखरने लगा था। वैसे भी लंबे समय तक ऊहापोह की स्थिति में रहने के बाद बड़ी मुश्किल से पति-पत्नी दोनों मिलकर ही यह न...

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रिश्ते By Dr. Vandana Gupta

सर्दियों की कुनकुनी धूप मुझे शुरू से ही बहुत पसंद है। रोज़ दोपहर को सोसाइटी के लॉन में बैठकर धूप सेंकना मेरा प्रिय शगल रहा है, बरसों से। कोई किताब पढ़ते हुए दोपहर गुजर जाती है।...

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कक्षा - ६ By महेश रौतेला

कक्षा ६ : मेरी उम्र तब लगभग ग्यारह वर्ष होगी।साल १९६५। ननिहाल पढ़ने गया था, कक्षा ६ में। पहले पहल घर से बाहर। जब बड़े भाई साहब छोड़ने गये थे तो खुश था लेकिन जब वे मुझे छोड़कर व...

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तक्सीम - 4 - अंतिम भाग By Pragya Rohini

‘‘हां भई हम पे भरोसा कहां था तुझे कि ख्याल रखेंगे तेरी बीवी का? अब संभाल ले तू।’’
बेटे का मजाक उड़ाते हुए अम्मा ने कहा तो जमील, अब्बा के सामने जरा शर्माया पर जबान तक आए उसके शब्द ब...

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मुख़बिर - 4 By राज बोहरे

दिन में समूह के बीच सुरक्षित चलते वक्त तक जरा-जरा सी आवाज पर हमारे बदन में फुरफुरी आ जाती थी, फिर तो इस वक्त रात के अंधेरे में असुरक्षित लेटे हम सब थे। मुझे ऐसे कई हादसे याद आ रहे...

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शह और मात By Renu Gupta

यह कहानी राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका मधुमती के अप्रेल 2018 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है। ‘शादी वाले दिन मैं सुर्ख लाल रंग का जरी के काम वाला लंहगा पहनूँगी –बड़ी सी नथ ओ...

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कैदी नंबर 306 By The Real Ghost

कैदी नंबर 306 कई कहानियों का संग्रह है जोकि भारतीय समाज से जुड़ी हुई कानूनी समस्याओं को विशेष तौर पर उन समस्याओं को जिन्हें आम इंसान देखना ही नहीं चाहता या शायद देख कर भी इग्नोर कर...

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गूँगा होता घर By Govind Sen

मैं साइकिल समेत घर में घुसा। साइकिल की खड़खड़ाहट ने पूरे घर को मेरे आगमन की सूचना दे दी। वैसे सभी जानते थे कि हर शनिवार मैं घर आ जाता हूँ। रविवार की छुट्टी घर पर ही गुजारता हूँ।
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विद्रोहिणी - 10 By Brijmohan sharma

कुछ दिनों से श्यामा पर ताने तो मारे ही जा रहे थे फिर ऐक दिन अचानक उनके बंद दरवाजे पर कभी पत्थर तो कभी गोबर फेंके जाने लगा ।
मोहन व श्यामा बाहर निकलते तो कोई दिखाई नहीं देता । कुछ...

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बेटा ही होगा... By Sarvesh Saxena

दोस्तों, कभी कभी मेरे दिमाग मे कई बार सवाल आते हैं, जिनका जवाब मैं समाज से पूछना चाहता हूं |दोस्तों आज मैं अपने इन प्रश्नों और विचारों को कहानी का रूप देकर आप लोगों के साथ शेयर कर...

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प्रायश्चित By Renu Gupta

हनी ने एयरपोर्ट पर भारी मन से अपनी मौम और डैड से हाथ हिला कर विदा ली थी। उनके एयरपोर्ट के भीतर जाते ही उसके मन का सारा संताप उसकी आँखों की राह अश्रुधारा के रूप में बह निकला था। बड़ी...

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‘बराबाद’ .... नहीं आबाद By Pragya Rohini

‘‘ क्या नाम लेती हो तुम अपने गांव का... हां याद आया गन्नौर न। सुनो आज गन्नौर में दो प्यार करने वालांे ने जान दे दी ट्रेन से कटकर।’’
‘‘हे मेरे मालिक क्या खबर सुणाई सबेरे- सबेरे म्ह...

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पछतावा By Satish Sardana Kumar

पछतावासतीश सरदानासुबह के सवा नौ बजे तीन जन इंछापुरी रेलवे स्टेशन पर उतरे।पैसेंजर ट्रेन की अधिकांश सवारी शिव मंदिर की तरफ मुड़ गई।ये तीन जन उनसे विपरीत खेतों के दरम्यान एक पगडंडी पर...

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सजायाफ्ता कौन By Dr. Vandana Gupta

'वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है.....'सुबह से गाने की पंक्तियाँ उसके जेहन में गूँज रहीं थीं। सिंधु परेशान थी क्योंकि दिल से दिल नहीं मिला था... जो हुआ था वह बहुत भय...

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मंझली दीदी - 8 - अंतिम भाग By Sarat Chandra Chattopadhyay

रात हेमांगिनी ने अपने पति को बुलाकर रुंधे गले से कहा, ‘आज तक तो मैंने तुमसे कभी कुछ नहीं मांगा, लेकिन आज इस बीमारी के समय एक भिक्षा मांगती हुं, दोगे?’
विपिन ने संदिग्ध स्वर में कह...

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समायरा की स्टूडेंट - 2 - अंतिम भाग By Pradeep Shrivastava

‘अरे यार यह तुम्हारी स्टूडेंट है कि कोई तमाशा।’
‘वह है तो स्टूडेंट ही है। एक इनोसेंट स्टूडेंट। जिसे शातिर बनाने वाली, सारी खुराफ़ात की जड़ रिंग मास्टर तो ज्योग्रॉफी की टीचर नासिरा...

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भवितव्य By महेश रौतेला

भवितव्य:शाम को कश्यप के यहाँ जाना हुआ। चाय पी रहे थे। मैंने कश्यप से पूछ लिया," आपकी उम्र कितनी हो गयी है?" वे बोले," अस्सी चल रहा है। दिसम्बर में अस्सी हो जायेंगे।" फिर वे अपनी बि...

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कुमकुम बिंदी कंगना By Renu Gupta

यह कहानी 25 सितंबर 2019 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है। कुमकुम बिंदी कंगना...

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पापा मर चुके हैं By Jaishree Roy

आज एकबार फिर अरनव को बिस्तर पर उसकी इच्छाओं के चरम क्षण में अचानक छोडकर मै उठ आयी थी। अब बाथरूम के एकांत में पीली रोशनी के वृत के नीचे खड़ी आईने में प्रतिबिंबित अपनी सम्पूर्ण विवस्त...

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क्या यही प्यार है By Saroj Prajapati

सुबह सुबह बुआ जी का फोन आ गया। मैंने नमस्कार कर पूछा "बुआ जी आज कैसे आपको अपनी भतीजी की याद आ गई। " "अरे याद तो रोज ही आती है बस टाइम ही नहीं मिल पाता। अच्छा छोड़ ।आज मैंने एक खुश...

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बड़ी दीदी - 8 - अंतिम भाग By Sarat Chandra Chattopadhyay

कार्तिक के महीना समाप्ति पर है। थोड़ी-थोड़ी सर्दी पड़ने लगी है। सुरेन्द्र नाथ के ऊपर बाले कमरे में खिड़की के रास्ते प्रातःकाल के सूर्य का जो प्रकाश बिखर रहा है, सुरेन्द्र दिखाई दे...

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नोरा By Shweta Misra

एक दशक पहले यूरोप से अफ्रीका जब मेरा आना हुआ तो रुई के फाहे की तरह गिरते बर्फ की जगह यहाँ की ठंडी पुरवाई मेरे मन को लुभाती चली गयी मन हज़ार तरह की आशंकाओं से घिरा था l यूरोप का अत्य...

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