Harjana – Part - 5 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | हर्जाना - भाग 5

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हर्जाना - भाग 5

आज अचानक सुहासिनी के अनाथाश्रम आने से गीता मैडम के मन में खलबली मची हुई थी। वह सोचने लगीं, सुहासिनी आज अचानक कैसे और क्यों? 25 साल पहले सोलह साल की उम्र में अनाथाश्रम से भाग जाने वाली सुहासिनी आज आख़िर यहाँ क्यों आई है? कितनी बदनामी हुई थी उसके कारण अनाथाश्रम की, इस पावन घर की। उसे इस घर ने बचपन से पाला था और उसने क्या सिला दिया? यह सोचते हुए उनका चेहरा गुस्से में तमतमा रहा था, आँखें आग उगल रही थीं, लग रहा था मानो सुहासिनी के ऊपर तो आज सवालों का वज्रपात ही होने वाला है। जैसे ही सुहासिनी गेट से अंदर आई, कई निगाहें उसके ऊपर थीं किंतु गीता मैडम के सिवा अब शायद उसे पहचानने वाला वहाँ और कोई नहीं था।

सुहासिनी ने कमरे के अंदर आने से पहले प्रश्न किया, “गीता दीदी क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?”

सुहासिनी की तरफ़ देखकर गीता मैडम ने जवाब दिया, “क्यों आई हो अब यहाँ? इतने वर्षों बाद कैसे याद आ गई हमारी और तुम्हारी यहाँ आने की हिम्मत कैसे हुई?”

सुहासिनी की आँखों में आँसू थे। अंदर आते हुए उसने कहा, “गीता दीदी 25 साल हो गए मुझे यह अनाथाश्रम छोड़े हुए। इन 25 सालों में, मैं कभी भी चैन से सो न सकी, कभी चैन से जी ना सकी।”

“ये क्या कह रही हो? क्या वह तुम्हें छोड़ कर, धोखा देकर भाग गया?”

“कौन दीदी? आप किसकी बात कर रही हैं? कौन मुझे धोखा देकर छोड़ कर भाग गया? मैं तो इन 25 सालों में अकेली ही थी। पहले से ही अनाथ थी मेरा साथ भला कौन देता? अनाथाश्रम ने सहारा दिया लेकिन ऊपर वाले को वह भी मंजूर नहीं था। मैं छोटी थी दीदी सच बताने की हिम्मत ना कर पाई। हालातों से डर गई थी इसीलिए भाग गई। मुझे तो आज तक वह समय, वह रात, उस रात में घटा एक-एक पल सब याद है और उस घटना की याद आते ही आज भी मैं कांप जाती हूँ।”

गीता मैडम ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा, “सुहासिनी आख़िर तुम कहना क्या चाहती हो? तुम्हारा लिखा वह पत्र आज भी मेरे पास है। उसे पढ़ते समय उस पर गिरे हुए मेरे आँसुओं के वह धब्बे आज भी तुम्हें उस पत्र पर मिल जाएंगे। कितना दुखी किया था उस पत्र ने मुझे और हमारे इस परिवार को। सुहासिनी क्या हुआ था उस रात जिसका तुम अभी-अभी ज़िक्र कर रही थीं।”

“गीता दीदी आपको याद है आप अनाथाश्रम के सभी बच्चों को लेकर दो दिन के लिए पिकनिक पर गई थीं।”

“हाँ-हाँ बिल्कुल याद है सुहासिनी। वह सब मैं भी कैसे भूल सकती हूँ। तुम बीमार हो गई थीं इसीलिए मजबूरी में तुम्हें लेकर हम नहीं जा सके थे।”

“दीदी उस दिन मैं अनाथाश्रम में अकेली थी,” कहते हुए सुहासिनी चुप हो गई।

“हाँ सुहासिनी आगे कहो तुम चुप क्यों हो गईं,” कहते हुए गीता मैडम उसके करीब आ गईं।

अब तक वह समझ चुकी थीं कि बात जैसी सब समझ रहे थे वैसी नहीं है, बात तो कुछ और ही है। उन्होंने सुहासिनी का हाथ पकड़ा और उसे प्यार से कुर्सी पर बिठाते हुए कहा, “बोलो सुहासिनी डरने की कोई बात नहीं है।”

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः