Kalvachi-Pretni Rahashy - 28 in Hindi Horror Stories by Saroj Verma books and stories PDF | कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग-(२८)

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग-(२८)

उस दिन से वें तीनों अश्वशाला में ध्यानपूर्वक कार्य करने लगें,यदि उन्हें कुछ ज्ञात नहीं होता तो अचलराज उनका मार्गदर्शन कर देता,वें दिनभर अश्वशाला में कार्य करते और रात्रि में अचलराज के घर पर विश्राम करते,समय यूँ ही अपनी गति से चल रहा था,दुर्गा बनी भैरवी जब भी अचलराज को देखती तो उसे अपने बाल्यकाल के दिन स्मरण हो आते,कभी कभी तो वो यूँ ही अचलराज को पलक झपकाए बिना देखती रहती एवं मन में ये सोचती कि कितना अच्छा हो कि वो अचलराज को ये बता दे कि वो ही भैरवी है और तुम्हें खोजने ही आई है,किन्तु अत्यधिक सोचने पर भी वो अचलराज को ये ना बता सकी कि वो ही उसके बचपन की मित्र भैरवी है,किन्तु वो तो अब इसी बात से प्रसन्न थी कि अचलराज अब उसके समक्ष है,वो कभी कभी ये भी सोचती कि मैं सेनापति व्योमकेश के पास जाकर उनसे कहूँ कि ....
"काकाश्री!मैं ही आपकी भैरवी हूँ,मैं वही भैरवी हूँ जिसे छोटी माँ देवसेना अपनी पुत्री की भाँति स्नेह करती थी,मेरी माँ आज भी इसी आशा में हैं कि एक ना एक दिन वो आपसे अवश्य मिलेगी और आप मेरे पिताश्री का प्रतिशोध लेगें"
भैरवी के मन में अभी भी बाल्यकाल की स्मृतियाँ वैसी ही जीवन्त थीं जैसे कि अभी कल की ही बात हो,किन्तु वो अपने हृदय की बात अचलराज से साँझा ना कर सकी और उधर अचलराज भी जब रात्रि को बिछौने पर लेटता तो उसे शीघ्र ही निंद्रा ना आती थी ,वो भी रात्रि में केवल भैरवी के विषय में ही सोचा करता,एक रात्रि अचलराज ना सोया और वो घर के बाहर आकर एक छोटी सी शिला पर आ बैठा,दुर्गा बनी भैरवी भी अपने बिछौने पर लेटी अचलराज की प्रतिक्रिया देख रही थीं,उसे भी निंद्रा नहीं आ रही थी इसलिए वो भी अपने बिछौने से उठकर बाहर आकर अचलराज से बोली....
"घर से बाहर क्यों आ गए,निंद्रा नहीं आ रही क्या?"
अचलराज ने पीछे मुड़कर दुर्गा बनी भैरवी को देखा और उससे पूछा...
"और तुम क्यों अभी तक जाग रही हो"?
"मुझे भी निंद्रा नहीं आ रही है",भैरवी बनी दुर्गा बोली...
"मुझे निंद्रा नहीं आ रही उसका तो कोई कारण है किन्तु तुम्हें निंद्रा ना आने का क्या कारण है"?, अचलराज ने पूछा....
"है कोई कारण जिसे मैं तुम्हें मैं नहीं बता सकती",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"मत बताओ,मैं भी तुम्हें अपने निंद्रा ना आने का कारण नहीं बताऊँगा"अचलराज बोला....
"ये कोई स्पर्धा चल रही है क्या कि यदि मैं तुम्हें अपने निंद्रा आने का कारण नहीं बताऊँ तो तुम भी मुझे अपनी निंद्रा आने का कारण नहीं बताओगें",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"ये तो तुम पर निर्भर करता है",अचलराज बोला...
"मुझ पर भला क्यों निर्भर करता है",दुर्गा ने पूछा...
"वो इसलिए कि यदि तुम मुझे अपना मित्र समझती हो तो अपनी निंद्रा ना आने का कारण बता दोगीं,तो मैं भी तुम्हें अपना मित्र समझकर तुम्हें अपनी निंद्रा ना आने का कारण बता दूँगा",अचलराज बोला...
"पहले तुम अपना कारण बताओ तो मैं भी तुम्हें अपना कारण बता दूँगीं" दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"सुनना चाहती हो तो सुनो महाराज कुशाग्रसेन की पुत्री भैरवी बाल्यकाल में मेरी मित्र थीं,हम सदैव साथ में रहते थे,साथ में हँसते खेलते थे और जितना हँसते खेलते थे उतना ही लड़ते-झगड़ते भी थे,किन्तु एक दूसरे से कभी दूर नहीं रह पाते थे,ना जाने हम दोनों के मध्य ऐसा क्या था जो हम दोनों को एक दूसरे से कभी दूर नहीं रहने देता था,भैरवी अत्यधिक चंचल एवं वाचाल थी और मैं एकदम शान्त और कम बोलने वाला था,संग में भोजन करना और संग में खेलना ये हम दोनों के प्रतिदिन का नियम था,एक बार तो क्या हुआ उसके कान की एक बाली गिर गई और वो मैनें अपने पास छुपा ली उसे कभी नहीं लौटाई और वो उसे ढूढ़ ढूढ़कर थक गई और देखो वो बाली अब भी मेरे पास है,"अचलराज ने अपनी मुट्ठी खोलकर भैरवी को बाली दिखाते हुए कहा....
कान की बाली देखकर भैरवीं की आँखें अश्रुपूरित हो गईं क्योंकि दूसरी बाली उसके पास थी,जिसे अपनी मुट्ठी में बंद करके भैरवी कभी कभी अचलराज को याद कर लेती है,किन्तु वो भावों में बहने का समय नहीं था इसलिए भैरवी स्वयं को सन्तुलित करते हुए अचलराज से बोली...
"क्या तुम भैरवी से प्रेम करते हो"?
"वो तो मुझे ज्ञात नहीं दुर्गा!,किन्तु बाल्यकाल से मेरे जीवन में केवल एक ही लड़की आई है जिससे अलग होने के पश्चात भी मैं आज तक उसे नहीं भुला पाया,अब तुम इसे मित्रता कहो या प्रेम ,मैं इसका उत्तर नहीं जानता,कदाचित तुम ही सही उत्तर देकर मेरा संशय दूर कर सकती हो",अचलराज बोला...
"अब तुम्हारे हृदय की बात भला मैं कैसे जान सकती हूँ",भैरवी बोली....
"वो इसलिए कि तुम मेरी मित्र हो और इसका उत्तर तुम ही मुझे दे सकती हो ताकि इस अन्तर्द्वन्द्व से मैं बाहर आ सकूँ,क्योंकि पिताश्री मुझसे कहते हैं कि विवाह कर लो और मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यदि मैनें विवाह कर लिया तो कदाचित मैं अपनी पत्नी से प्रेम नहीं कर पाऊँगा और प्रेम के बिना विवाह का बंधन सदैव अधूरा रहता है,"अचलराज बोला....
"तो तुम मुझसे कैसा उत्तर चाहते हो?",भैरवी ने पूछा...
"यही कि मैं विवाह क्यों नहीं करना चाहता",अचलराज बोला...
"ये तो तुम्हारी समस्या है कि तुम विवाह नहीं करना चाहते,इसमें मैं क्या करूँ"?भैरवी बोली...
"समस्या का समाधान बताओ दुर्गा!,मैं बस तुमसे यही कहना चाहता हूँ",अचलराज बोला...
"बस एक ही कारण हो सकता है तुम्हारे विवाह ना करने का",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"वो क्या भला?",अचलराज ने पूछा...
"कि तुम महाराज कुशाग्रसेन की पुत्री को भूल नहीं पाए अब तक,क्योंकि तुम्हारे हृदय में अब भी उसकी ही छवि बसती है",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"तुम्हारे कहने का तात्पर्य ये है कि मैं महाराज कुशाग्रसेन की पुत्री भैरवी से प्रेम करता हूँ",अचलराज बोला...
"मुझे तो इसके अलावा और कोई कारण नहीं जान पड़ता",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"इसका तात्पर्य है कि मुझे भैरवी की खोज में लग जाना चाहिए और उसके मिलने के पश्चात पूछना चाहिए कि क्या तुम मुझे अपना मित्र मानती हो या प्रेमी",ऐसा कहकर अचलराज हँसने लगा ....
अचलराज के हँसने पर दुर्गा ने पूछा...
"तुम हँस क्यों रहे हो"?
"तुमने इतना अच्छा परिहास जो किया",अचलराज बोला...
"परिहास....ऐसा मैनें क्या कह दिया जो तुम्हें परिहास लगा",दुर्गा ने क्रोध से पूछा...
"तुम ये भी तो कह सकती थी कि तुम भैरवी से प्रेम करते हो तो विवाह भी उसी से करना",अचलराज बोला....
"मुझे अब तुमसे कोई बात नहीं करनी ,मैं भीतर जा रही हूँ",दूर्गा रूठते हुए बोली...
दुर्गा जैसे ही भीतर जाने लगी तो अचलराज ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा...
"रुठ गई पगली,वो भी ऐसे ही रूठा करती थी"...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....