हनुमान बाहुक रह्स्य –प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा ३ ३ यह पुस्तक संस्कृत और तंत्र के बड़े विद्वान पण्डित गङ्गाराम शास्त्री जी सेंवढ़ा वालों द्वारा गहरे रिसर्च, अध्य्यन, अनुशीलन,खोज, अनुसंधान, तपस्या और प्रयोगों के बाद लिखी गयी है। इसमें बताये गये अर्थ और प्रयोग आम जनता को कृपा स्वरूप ही विद्वान लेखक ने पुस्तक स्वरूप में प्रदान किये हैं।२१){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (८)}दूत रामराय को तू सपूत पूत पौन को, तू अंजनी को नंदन प्रताप भूरि भानु सो।सीय-सोच-समन दुरित-दोष-दमन् सरन आये अवन लखन प्रिय प्रान सो।दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रगट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहिब सुजान उर आन हनुमान सो।हनुमान राजा रामचन्द्र के दूत है पवनदेव के सुयोग्य पुत्र हैं. अंजनी माता को अनन्दबदेने वाले हैं, आपका प्रताप अनेक सूर्य के समान प्रकाशित है। अशोक वाटिका में आकर आपने सीता जी के दुख को शान्त किया, आप पाप और बुराइयों को करने वाले हैं. शरण में आये हुए की रक्षा करते हैं और लक्ष्मण की प्राण रक्षा करने के कारण उन्हें प्राण समान प्रिय है। असहनीय दरिद्रता रूपी रावण को नष्ट करने के लिये आप इस त्रैलोक्य के भवन में निधि के रूप में प्रकट हुए हैं। आप ज्ञानी,गुणी, बलवान और सेवा में सावधान रहने वाले हैं,चतुर स्वामी हैं, तुलसीदास कहते हैं कि रे मन इन सब गुणों से युक्त होने के लिये तू इन सब गुणों वाले हनुमान का ही ध्यान कर।(२२){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (९)}दवन दुवन दल भुवन विदित बल, वेद जस गावत विबुध बन्दीछोर को। पाप-ताप-तिमिर-तुहिन-विघटन-पटु सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को। लोक परलोक तें विसोक सपने न सोक, तुलसी के हिए है भरोसो एक ओर को। राम को दुलारो दास वामदेव को निवास, नाम कलि काम-तरु केसरी-किसोर को।शत्रुओं की सेना को आप नष्ट करने वाले हैं, संसार आपके बल को जानता है, वेद आपके यश का गान करते हैं, आपने रावण के बन्दी ग्रह में पड़े हुए देवताओं को बंधन से मुक्त किया। हनुमान पाप रूपी अन्धकार और दुख रूपी कुहासे का नाश करने में कुशल हैं। जिस प्रकार प्रातः कालीन सूर्य कमलों को विकसित करता है उसी, प्रकार आप सेवक रूपी कमलों को प्रसन्न करने वाले प्रातः कालीन सूर्य के समान सुखद हैं। तुलसीदास को एकमात्र हनुमान का इतना भरोसा है कि वह लोक और परलोक दोनों से निश्चिंत हो गया है उसे स्वप्न में भी कोई शोक नहीं है। हनुमान राम के प्रिय सेवक हैं और शिव के अवतार हैं, इस कलियुग में इनका नाम कल्पवृक्ष के समान सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है।वन्दीमोचन प्रयोग -किसी अपराध में दीर्घकालीन कारावास का दण्ड मिलने पर बन्दी मोचन के लिए प्रयोग मन्त्रसंख्या 21 और 22 का प्रतिदिन एक सौ आठ पाठ इक्कीस दिन तक करे। हनुमान जी को तेलमिश्रित सिन्दूर का चोला चढ़ाकर पाठ प्रारम्भ करें। प्रतिदिन आम केला आदि फल अथवा बेसन के लड्डुओं का भोग लगावे। यदि इक्कीस दिन में सफलता न मिले तो बाईसवें दिन से हनुमान जी को केवल बायें अंग में चोला चढ़ावें अर्धरात्रि को पाठ करे। इस प्रकार करने से इकतालीस दिन में अवश्य कार्य सिद्ध होता है। बयालीसवें दिन यथा विधि हवन कर यथा शक्ति ब्राह्मणों को नमक रहित पायस आदि भोजन करावे ।(२३){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (१०)}महाबलसीम महा भीम महा बानइत्, महाबीर विदित बरायो रघुबीर को।कुलिश-कठोर-तन जोर परे रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीर को। दुर्जन को काल सो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को। सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को।हनुमान महाबल की सीमा है अर्थात् इससे आगे बल हो ही नहीं सकता, बड़े भयंकर हैं, आप जो मन में ठान लें उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं, रामचन्द्र ने आपको वीरों में श्रेष्ठ समझ कर चुना है इसलिये आप महावीर कहलाते हैं। आपका शरीर वज्र के समान कठोर है, जब आप युद्ध में पिल पड़ते हैं, तो शत्रुओं में कोलाहल मच जाता है। आप धर्मात्मा और धैर्यवान् अथवा विद्वान है, आपका मन दुखियों के प्रति करुणा से भरा हुआ है। दुष्टों के लिये आप काल के समान भयंकर हैं, सज्जनों की रक्षा करने वाले हैं, आप ध्यान और स्मरण करने से पीड़ा को दूर करने वाले हैं आपने सीता को सुख पहुंचाया, आप रामचन्द्र के अत्यन्त प्रिय हैं। आप पवन के पुत्र बड़े ही साहसी और सेवकों की सहायता करने वाले हैं।(२४){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (११)}रचिबे को विधि जैसे पालिबे को हरि हर, मीच मारिबे को ज्याइवे को सुधा-पान भो। धरिबे को धरनि तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृशानु पोषिबे को हिमभानु भो।खल दुख दोषिवे को जन परितोषिवे को, मागबों मलीनता को मोदक सुदान भो। आरत की आरति निवारबे को तिहूं पुर, तुलसी को साहिब हठीलो हनुमान भो।जिस प्रकार ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करने के लिये हैं, विष्णु और शिव उसका पालन करने के लिये हैं, मृत्यु मारने के लिये है, अमृत का काम जीवित करना है, सबको धारण करने का काम धरणी- पृथ्वी का है, सूर्य का काम अन्धकार का नाश करना है, अग्नि का गुण शोषण करना है, चन्द्रमा का गुण पोषण करना है, दुष्टों का गुन दुख देना और दूषण निकालना अथवा दोष देखना है, सज्जन जिस प्रकार सन्तोष और प्रसन्नता देने वाले हैं, जिस प्रकार मांगने से मन में मलिनता आती है, जिस प्रकार दान दाता और ग्रहीता दोनों की प्रसन्नता का कारण होता है, उसी प्रकार विपत्ति में पड़े हुए दुखी मनुष्य का दुख दूर करने के लिये तीनों लोकों में तुलसीदास के स्वामी हठीले हनुमान हैं। प्रयोगकोई वलिष्ठ अत्याचारी अकारण सता रहा हो, उससे त्राण पाने के लिए-संकट मोचन (को नहि जानत है जग में कवि सङ्कट मोचन नाम तिहारो वाले ८ छन्द) के साथ महावलसीम वाला पूर्व छन्द प्रारम्भ में और यह छन्द अन्त में संपुट के रूप में लगाकर पाठ करना चाहिए।(२५){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (१२)}सेवक स्योकाई जानि, जानकीस माने कानि, सानुकूल सूलपानि, नवे नाथ नाक को।देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरें हाथ, बापुरो बराक और राजा राना रांक को।जागत सोवत बैठे वागत विनोद-मोद ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आंक को। सब दिन रूरो परे पैज पूरो जहां तहां, वाहि जाको है भरोसो हिये हांक हनुमान को।हनुमान जी भगवान राम के सेवक हैं, उनकी सेवा के कारण वे भी हनुमान जी का लिहाज करते हैं। शिव जी भी उनके अनुकूल रहते हैं, और स्वर्ग के राजा इन्द्र तो उनके सामने सिर झुकाते हैं। देवी देवता और दानव सभी उनकी दया चाहते हुए हाथ जोड़ते हैं फिर अन्य राजा आदि बेचारे किस गिनती में हैं। जिसके हृदय में अपने ऐसे स्वामी हनुमान जी के गर्जन का पूरा विश्वास है उसे तो जागते-सोते उठते-बैठते घूमते-फिरते सदैव आनन्द और प्रसन्नता ही रहती है। ऐसा को है जो उसके अहित करने की बात भी सोच सके। उसका तो सदैव कल्यान हो। वह जहां थी जिस किसी काम से जाता है तो उसका वह काम सफल ही होता है।इस कवित्त का अर्थ दूसरे प्रकार से भी किया जाता है कि जो भी कोई हनुमानजी का सेवक हो उसे भगवान राम भी अपने सेवक का सेवक समझ कर लिहाज़ करते हैं शिव जी उस पर अनुकूल रहते हैं, यहां तक कि इन्द्र भी उसे सिर झुकाते हैं। देवी देवता और दानव तो उसके सामने दया की याचना करते हुए हाथ जोड़ते हैं। फिर अन्य राजा राव किस गिनती में हैं। सोते जागते उठते बैठते घूमते फिरते और मनोविनोद में भी ऐसा कौन समर्थ है जो उसका अहित करने की बात सोच सके। जिसके हृदय में हनुमान जी के गर्जन का विश्वास है वह सदैव सुखी रहता है। जहां कहीं भी वह जिस उद्देश्य से जाता है, वह काम सफल होता है।(२६){खेमराज श्रीकृष्णदास बम्बई छापा में (४६)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (१३)}सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि लोकपाल सकल लखन राम जानकी। लोक परलोक सो विसोक सो तिलोक ताहि तुलसी तमाह कहा काहू वीर आन की। केसरी-किसोर बन्दीछोर के निवाजे सब, कीरति विमल कपि करुना-निधान की। बालक ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हांक हनुमान की।जो व्यक्ति हृदय में हनुमान की हुंकार का स्मरण करता हुआ प्रसन्न होता रहता है, उस पर अपने गणों और पार्वती सहित शंकर कृपा करते हैं, उसके लिये राम लक्ष्मण और सीता तथा सभी इन्द्र आदि अनुकूल रहते हैं। वह लोक और परलोक की चिन्ता से कभी दुखी नहीं होता। उसे तीनों लोक में किसी अन्य वीर की कृपा चाहने की लालसा ही क्यों होगी। हनुमान केसरी के पुत्र हैं, उन्होंने देवताओं को भी रावण के बन्दीगृह से मुक्त कर दिया था, उन्हीं की कृपा चाहिये, क्योंकि अन्य देवता तो उनसे अनुग्रहीत हैं। उनकी ऐसी निर्मल कीर्ति है कि जो करुणानिधान हनुमान का स्मरण करता है उसे सभी सिद्ध और मुनि कृपा करके बालक के समान रक्षा करते और पालते हैं।(27){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (१४)}करुणा-निधान बल-बुद्धि के निधान मोद महिमा-निधान गुनगन के निधान हो।बामदेव रूप भूप राम के सनेही, नाम लेत देत धर्म अर्थ काम निर्वान हो। आपने प्रभाव सीतानाथ के सुभाव सील, लोक वेद विधि हू के विदुष हनुमान हो। मन की वचन की करम की तिहूं प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहिब सुजान हो।हनुमान आप करुणा के भण्डार हैं बल और बुद्धि के खजाने हैं, आप महिमा के भण्डार हैं, गुणों के समूह की खान है। आप शिव के अवतार हैं, राम राजा के प्रेमी हैँ, जो आपका नाम लेता है उसे आप धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों ही प्रदान करते हैं। इन चार को पुरुषार्थ चतुष्टय कहा गया है. इनके प्राप्त करने का लक्ष्य ही परम पुरुषार्थ माना जाता है, वह आपके स्मरण मात्र से प्राप्त हो जाता है। आप अपना प्रभाव भली भांति जानते हैं। सीतापति रामचन्द्र के शील और स्वभाव तथा लोक और वेद में बताई गई सभी रीतियों और विधियों के पूर्ण ज्ञाता हैं। तुलसीदास तो मन, वचन और कर्म तीनों ही प्रकार से आपका ही है। आपही उसके चतुर स्वामी है।(२८){खेमराज श्रीकृष्णदास बम्बई छापा में (३९)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (१५)}मन को अगम तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं।देव-बन्दी-छोर, रन-रोर, केसरी-किसोर जुग जुग जग तेरे विरद विराजे हैं। बीर बरजोर घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु, खलगन गाजे हैं। बिगरी संवारि अंजनी-कुमार, कीजे मोहि जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं।जिन कामों को पूरा करने की कोई मन में कल्पना भी नहीं कर सकता था, उन्हें आपने शरीर से अथवा अपने द्वारा पूरा कर दिखाया। आपने राजा रामचन्द्र के समाज के लिये साजसज्जा प्रस्तुत कर दी। देवताओं को रावण के बन्दीगृह से छुड़ाया, आप केसरी किसोर हैं सिंह-शावक के समान युद्ध में पराक्रम दिखाने वाले हैं, युग युग से संसार में आपके गुणों और कायों का यश गान किया जाता है। आप तो बड़े ही बलशाली वीर हैं किन्तु तुलसीदास के लिये आपकी शक्ति कुछ कम हो गई है- ऐसा सुनकर सज्जन बड़े असमंजस में पड़ गये हैं और दुष्ट प्रबल होने लगे हैं। हे अंजनीकुमार आप मेरी बिगड़ी बात बना दीजिये और ऐसा कीजिये कि जिससे लोग यह समझने लगे कि यह हनुमान का कृपापात्र है और हनुमान के कृपा-पात्र ऐसे होते हैं। प्रयोगदुष्कर कार्य भली भांति सम्पन्न होने के लिए प्रत्येक शनिवार को हनुमान की दक्षिण मुख मूर्ति पर तेल सिन्दूर मिलाकर चोला चढ़ावे। चोला चढ़ाने के लिए प्रथम बायें पैर के अंगूठे से प्रारम्भ कर नख से शिख तक फिर इसी प्रकार दाहिने अंग में चढ़ावे। मूर्ति के सम्मुख उत्तर की ओर मुख करके इस मन्त्र की एक सौ आठ आवृत्ति करें। प्रसाद चढ़ाकर उसे बालकों में वितरित कर दे। कार्य की गुरुता लघुता के अनुसार पांच अथवा सात सप्ताह में कार्य सिद्ध होता है।आकर्षण प्रयोग किसी दूर देशस्थ व्यक्ति को बुलाने के लिए रात को सोते समय इस मन्त्र का पाठ करते-करते सो जाय। मन में उस व्यक्ति के पास सन्देश पहुंचने की कल्पना करे। हनुमान का इष्ट करने वालों को तो इस प्रकार चिन्तन करने से उसी दिन दूरस्थ व्यक्ति को उसी रात स्वप्न में ऐसा भान होता है कि अमुक स्थान पर कोई बुला रहा है। उसे तत्काल चल देने की प्रेरणा होती है। कुछ दिन के अभ्यास से साधक में इतना मनोबल आ जाता है कि उसी ग्राम अथवा नगर के व्यक्ति का चिन्तन करते ही मिनटों में वह उपस्थित हो जाता है।अपहृत व्यक्ति का आनयन- जब किसी व्यक्ति का चोर डाकू अथवा आतंकवादी अपहरण कर लें तो उसे मुक्त कराने के लिए-ताम्म्रपात्र में अष्टदल कमल बनाकर उसके आठ दलों पर उक्त मन्त्र की एक एक पंक्ति लिखे। लाल चन्दन अथवा अनार की लेखनी से लाल चन्दन और केशर की स्याही से लिखे। उस यन्त्र का विधिवत् पूजन करे। स्वयं लाल वस्त्र पहिन कर लाल रंग के आसन पर बैठे। लाल चन्दन के दानों की माला से जप करे। मन्त्र के आदि अन्त में हूं फट् का सम्पुट लगायें। अनुष्ठान काल में केवल रात को एक बार भोजन करे। प्रतिदिन दस माला का इस प्रकार जप करने से सत्ताईस दिन में कार्य में सफलता मिलती है। अट्ठाईसवें दिन शमी, पीपल अथवा अशोक वृक्ष की समिधा से गुड़ मिश्रित चूरमा से हवन करे। यथाशक्ति ग्यारह अथवा इक्कीस बह्मचारियों को भोजन करावे।पशु चोरीयदि गाय, बैल, घोडा, भेस ऊंट आदि पशु चपटी चले गए हों तो भैंस के गोबर से हनुमान की प्रतिमा बनाकर लाल द्रव्य से पूजन कर उक्त मन्त्र की प्रतिदिन एक सौ आठ आवृत्ति करे। गोबर भूमि में गिरने के पूर्व ही किसी स्वच्छ बर्तन में ले लेना चाहिए। भूमि पर गिरे हुए गोबर का प्रतिमा बनाने में उपयोग नहीं किया जाता।२९){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (१६)}मत्तगयन्द सवैया- जानि-सिरोमनि हो हनुमान सदा जन के मन वास निहारी।ढ़ारो बिगारो में काको कहा, केहि कारन खीझत, हों तो तिहारों। साहिब सेवक नाते तें हातो कियो, तो तहां तुलसी को न चारो। दोष सुनाये तें आगेहु कों हुसियार हवैहों मन तो हिय हारो। हनुमानजी, आप ज्ञानियों में श्रेष्ठ हैं, भक्तों के हृदय में आपका सदा निवास रहता है। मैंने किसी का क्या बनाया बिगाड़ा है। आप मुझ पर किस कारण क्रोध करते हैं मैं तो आपका ही हूं। यदि आपने स्वामी और सेवक का नाता छोड़ दिया हो, मुझे अपना सेवक न मानते हों तो इसमें मेरा कुछ वश नहीं। यदि मैंने भूल की हो तो बता तो दीजिये जिससे मैं आगे के लिये सचेत हो जाऊं और फिर ऐसी भूल न करूं। वैसे मन से तो मैं हार ही गया हूं निराश हो चुका हूं।(३०){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (१७)}तेरे थपे उथपे न महेस थपै थिर को कपि जे घर घाले। तेरे निवाजे गरीबनिवाज, विराजत वैरिन के उर साले। संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटें मकरी के से जाले।बूढ़ भये बलि मेरिहि बार कि हारि परे बहुतै नत पाले।हनुमान, जिसे आपने एक बार प्रतिष्ठित कर दिया उसे महादेव भी नहीं हटाते । और जिसे आप उखाड़ फेंकते हैं, जिसे आप नष्ट करना चाहते हैं, उसे कोई भी पुनः प्रतिष्ठित नहीं कर सकता। आपने राक्षसों के जिन घरों को नष्ट कर दिया उसे फिर कोई नहीं बसा सका। आपने जिस पर कृपा की वह इतना बढ़ गया कि उसके बैरियों को वह कांटे सा खटकने लगा। आपका नाम लेने से सभी प्रकार के संकट और शोक उसी प्रकार दूर हो जाते हैं जिस प्रकार मकड़ी का जाला फट जाता है। आपके इतने समर्थ होते हुए भी तुलसीदास जो दुख उठा रहा है, क्या अब आप मेरी बारी आने पर बूढ़े हो गये हैं, अथवा अनेक शरणागतों के कार्य करने के कारण हार थक कर बैठ गये हैं।प्रयोगस्थानांतर निलंबन और पदावनति निरस्त कराने के लिए प्रयोग विधि- मन्त्र संख्या 63 के अनुसार करे (मन्त्र सँख्या 63 पर लेखक महाशय पण्डित गङ्गा राम शास्त्री ने इस प्रकार दर्शाया है- 21 दिन तक प्रतिदिन इस मन्त्र कामाला पर 108 बार पाठ करे। पाठ का प्रारम्भ मंगलवार से करना चाहिये। प्रतिदिन हनुमान जी की प्रतिमा के सम्मुख स्नानादि से पवित्र होकर शुद्ध एकाग्र मन से पाठ करे। सात्विक भोजन कर बह्मचर्य का पालन करे। हनुमान जी के सभी अनुष्ठान करते समय ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। पाठ करते समय धूप दे घी का दीप जलाये। पाठ पूरा हो जाने पर केला, बेर आदि फलों का भोग लगाये। बाईसवें दिन मंगलवार को इसी मन्त्र से शमी वृक्ष की समिधा लेकर घी में डुबोकर 108 बार आहुति दे। यदि शमी वृक्ष की समिधा न उपलब्ध हो तो पलाश, खदिर, गूलर आदि की समिधाओं से अग्नि प्रज्वलित कर पायसान्न का हवन करना चाहिये। हनुमान जी को उस दिन गुड़मिश्रित पूड़ी (मालपुआ) और फल का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करे।)अथवा स्थानांतर निरस्त कराने के लिए इसका 1000 पाठ प्रतिदिन करे।अनुष्ठान शनिवार से प्रारंभ करे।पदावनति रुकवाने अथवा निलंबन से बहाल होने के लिए उत्तर भाद्रपद अथवा अश्विनी नक्षत्र युक्त मंगलवार से पाठ प्रारम्भ करे। यदि उस समय इन दोनों में से कोई भी योग न पड़ रहा हो तो मंगलवार के दिन जब तृतीया, अष्टमी,अथवा त्रयोदसी तिथि हो उस दिन से प्रारंभ करे। यदि किसी अलोकप्रिय शासक अथवा पीड़ा कारके अधिकारी को हटाना हो तो इसी मन्त्र का उल्टा प्रयोग करने से तत्काल वह व्यक्ति अपने पद से हट जाएगा । उलटे पाठ के लिए सबैया की चतुर्थ पँक्ति पहिले, फिर तृतीय, फिर द्वितीय और प्रथम पँक्ति का उच्चारण करे- थपै थिर को कपि जे घर घाले ,का सम्पुट लगाये।