Kaathagodaam Ki Garmiyaan - 1 in Hindi Fiction Stories by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR books and stories PDF | काठगोदाम की गर्मियाँ - 1

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काठगोदाम की गर्मियाँ - 1

अध्याय 1

मैग्गी प्वाइंट्स की शाम

शा
 

म के कोई सात बजने वाले थे। जून का महीना था, लेकिन पहाड़ों में गर्मियाँ कुछ और ही होती हैं — न ज्यादा तेज़, न ज्यादा ठंडी — बस हल्की-हल्की हवा जो हर थकावट को चुपचाप चुरा ले जाए।

 

कनिका ने अपना दुपट्टा कंधे पर ठीक किया और बाइक से उतरते हुए सचिन से कहा,

“यह जगह ना… कुछ अलग है। पहली बार आई हूँ लेकिन अजीब सुकून है।”

 

सचिन हँसा, “काठगोदाम की हवा में जादू है, धीरे-धीरे असर करती है।”

 

दोनों मैग्गी प्वाइंट्स पर पहुँचे थे — एक छोटा-सा ढाबा, दो लकड़ी की बेंचें और सामने घाटी का खूबसूरत नज़ारा। कोई फाइव स्टार नहीं, लेकिन फीलिंग उससे बेहतर थी।

 

कनिका ने इधर-उधर देखा। कोने में एक लड़का बैठा था — साधारण कपड़े, हल्की दाढ़ी, हाथ में चाय का कप, और आँखें जो दूर पहाड़ों को नाप रही थीं।

 

“भैया दो चाय और एक स्पेशल मैग्गी,” सचिन ने ऑर्डर दिया।

 

कनिका वहीं बेंच पर बैठ गई। उसने सिर पीछे टिका लिया और गहरी सांस ली।

“दिल्ली की हवा इतनी साफ़ क्यों नहीं होती?” वो खुद से बुदबुदाई।

 

“क्योंकि वहाँ रिश्तों की तरह हवा भी उलझी होती है,” पास बैठे लड़के की आवाज़ आई।

 

कनिका ने चौंक कर देखा।

“माफ कीजिए, क्या कहा आपने?”

 

“कुछ नहीं।” लड़के ने मुस्कुराते हुए चाय का कप उठाया और फिर सामने देखने लगा।

 

सचिन बोला, “अरे रोहन भाई! आप यहाँ?”

 

“हाँ, हर शाम यहीं आ जाता हूँ। घर से भागने का बहाना ढूँढता हूँ,” रोहन ने हल्के अंदाज़ में कहा।

 

“बहन की शादी की तैयारियाँ कैसी चल रही हैं?”

 

“पूरे घर में सिरफिरेपन जैसा माहौल है। ऊपर से रेनोवेशन, और पापा की तबीयत। दिन में बीस बार फ़ोन बजता है।”

 

कनिका को अब समझ आया कि यही है वो ‘रोहन’, जिससे वो सचिन के ज़रिए कुछ दिन पहले मिली थी। कॉल किया था, पर रिसीव नहीं हुआ। और अब बहाने सामने थे।

 

“तो आप ही हैं जो दिन भर फोन रिसीव नहीं करते?” कनिका ने टेढ़ा सवाल पूछा।

 

“मैंने कहा न, घर में शादी है, रेनोवेशन है। और वैसे भी, अजनबियों के कॉल बहुत जल्दी रिसीव नहीं करता,” रोहन ने नज़र मिलाते हुए जवाब दिया।

 

“अजनबी?” कनिका ने हल्की मुस्कान दी, “और अगर वही अजनबी शादी में आ जाए तो?”

 

“तो शायद पहचान बन जाएगी,” रोहन ने तुरंत कहा।

 

बातों में चाय आ गई थी, और मैग्गी की खुशबू भी। लेकिन कनिका को उस पल, खाने से ज़्यादा, उस बातचीत ने भर दिया था। छोटी सी मुलाकात थी, लेकिन कहीं न कहीं ये शुरुआत लग रही थी — किसी और कहानी की।

 

थोड़ी देर बाद रोहन उठ गया,

“चलता हूँ। अम्मा इंतज़ार कर रही होंगी।”

 

कनिका ने सिर हिलाया, पर कुछ कहा नहीं। वो बस देखती रही — रोहन जा रहा था, लेकिन उसकी मौजूदगी जैसे उस बेंच पर रह गई थी।

 

“ये जगह ठीक है… और शायद ये लड़का भी।” कनिका ने मन ही मन सोचा।