Maa - Ek Jivan Gatha in Hindi Poems by Abhishek Mishra books and stories PDF | माँ - एक जीवन गाथा

Featured Books
  • خواہش

    محبت کی چادر جوان کلیاں محبت کی چادر میں لپٹی ہوئی نکلی ہیں۔...

  • Akhir Kun

                  Hello dear readers please follow me on Instagr...

  • وقت

    وقت برف کا گھنا بادل جلد ہی منتشر ہو جائے گا۔ سورج یہاں نہیں...

  • افسوس باب 1

    افسوسپیش لفظ:زندگی کے سفر میں بعض لمحے ایسے آتے ہیں جو ایک پ...

  • کیا آپ جھانک رہے ہیں؟

    مجھے نہیں معلوم کیوں   پتہ نہیں ان دنوں حکومت کیوں پریش...

Categories
Share

माँ - एक जीवन गाथा

माँ की ममता, माँ की पूजा, माँ ही जीवन सार है,

उसके आँचल में ही बसी, सृष्टि की हर धार है।

जब शब्द गुम हो जाते हैं, भाव जब मौन बुनते हैं,

तब कलम उठती है मेरी, माँ के चरण छू लिपटते हैं।

इस कविता को लिखने का उद्देश्य केवल माँ की महिमा का गान करना नहीं था,

बल्कि उन अनकहे पलों को शब्द देना था, जो माँ हर दिन अपनी मुस्कान के पीछे छुपा लेती है।

“माँ: एक जीवन गाथा” एक मार्मिक कविता है, जो मातृत्व के असीम त्याग, ममता और प्रेम को सजीवता से प्रस्तुत करती है। यह रचना न केवल एक व्यक्तिगत अनुभूति है, बल्कि हर उस व्यक्ति के दिल की आवाज़ है, जिसने माँ की छांव में जीवन के कठिनाइयों को सहा है।

लेखक का कहना है कि माँ के लिए कविता लिखना सरल नहीं, क्योंकि माँ स्वयं एक ऐसी कविता हैं जिन्होंने उन्हें पहली बार कलम थमाना सिखाया। इस कविता में उस अनमोल बंधन की गहराई और जीवन को दिशा देने वाली माँ की भूमिका को बहुत ही संवेदनशील और सुंदर ढंग से उकेरा गया है।

लेखक परिचय:

अभिषेक मिश्रा, बलिया के युवा कवि और लेखक, जिनकी लेखनी जीवन के जटिल पहलुओं को सरल और प्रभावी भाषा में व्यक्त करती है। उनकी कविताएँ समाज, मानवीय भावनाओं और देशभक्ति की भावना से प्रेरित हैं। अभिषेक की यह रचना मातृत्व के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा और सम्मान का परिचायक है।

"जब शब्द भी माँ की ममता के सामने लज्जित हो जाते हैं, तब एक कविता बोल उठती है 'माँ एक जीवन गाथा'। इसे पढ़िए, क्योंकि ये आपकी रूह से जुड़ जाएगी।"

 

"माँ – एक जीवन गाथा"

माँ हैं वो, न कोई कथा, न कहानी हैं,

हर साँस में बस उसकी कुर्बानी हैं।

जो खुद को हर पल पीछे छोड़ गई,

माँ – सच में एक जीवन गाथा हैं।

 

वो भी कभी पायल पहनती थी,

आँगन में खुलकर हँसती थी।

छोटी-छोटी बातों में रुठती थी,

सपनों की दुनिया में झूमती थी।

 

फिर एक दिन चुपचाप विदा हुई,

हँसी ओढ़े, आँखों से ग़म बहा गई।

दुल्हन बनी तो जिम्मेदारी ओढ़ी,

बेटी से बहू की राह पकड़ गई।

 

हर सुबह सबसे पहले जागी,

सपनों को पीछे छोड़ भागी।

अपने मन की बात न बोली,

दूसरों की ख़ुशियों में ही डूबी।

 

फिर माँ बनी... जीवन बदल गया,

उसकी दुनिया एक बच्चे में सिमट गया।

रातें जाग-जाग कर काटीं उसने,

ख़ुद को खोकर मुझे पाला उसने।

 

कभी मेरी भूख से भूखी रही,

कभी मेरी नींद में जागती रही।

खिलौनों से पहले किताबें चुनी,

मेरे हर आँसू को वो खुद में सहेजी।

 

कभी डर में मेरी ढाल बनी,

कभी ग़लतियों पर सवाल बनी।

हर बार खुद को पीछे रखकर,

मुझे दुनिया से आगे रखा उसने।

 

आज भी जब थककर लौटता हूँ,

उसके आँचल का सुकून ढूँढता हूँ।

वो कहती है — "मैं ठीक हूँ बेटा",

पर आँखें सब कुछ कह जाती हैं।

 

लिखते-लिखते थम गया क़लम,

माँ का प्यार शब्दों से बह गया।

जो कहना चाहा, अधूरा ही रह गया,

हर मिसरा उसकी ममता में खो गया।

 

मैं — अभिषेक, बस महसूस कर सका,

लिख न सका, जितना माँ जी चुकी हैं।

हर कविता मेरी अधूरी है माँ के बिना,

क्योंकि वो खुद एक अनकही कविता हैं।

 

("तेरी ममता को शब्दों में बाँधने की एक नाकाम कोशिश ।")

 

लेखक – अभिषेक मिश्रा

जहाँ शब्द बनें एहसास, वहीं मेरी कलम।”