Mother Cow: The heart of Indian culture, the basis of life and spiritual consciousness in Hindi Spiritual Stories by Dr Nimesh R Kamdar books and stories PDF | गौमाता: भारतीय संस्कृति का हृदय, जीवन का आधार और आध्यात्मिक चेतना

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गौमाता: भारतीय संस्कृति का हृदय, जीवन का आधार और आध्यात्मिक चेतना

गौमाता: भारतीय संस्कृति का हृदय, जीवन का आधार और आध्यात्मिक चेतना

भारतीय संस्कृति में गाय को केवल एक पालतू पशु के रूप में ही नहीं देखा जाता, बल्कि उसे तो माता के समान पूजनीय और आदरणीय स्थान दिया गया है। वह केवल एक दूध देने वाला प्राणी नहीं है, बल्कि करुणा, ममता, वात्सल्य और नि:स्वार्थ सेवा का एक जीवंत और मूर्तिमान प्रतीक है। गाय हमें अमृत समान दूध प्रदान करती है, जो बच्चों से लेकर वृद्धों तक सभी के लिए पौष्टिक आहार है। इस दूध से बनने वाला दही और घी न केवल स्वादिष्ट ही हैं, बल्कि वे हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभदायक हैं, जो अनेक रोगों से रक्षा करते हैं और शरीर को शक्ति देते हैं।
परंतु गाय का महत्व केवल आहार तक सीमित नहीं है। उसके गोबर और मूत्र भी अनेक तरह से उपयोगी हैं। गाय का गोबर एक उत्तम और प्राकृतिक खाद है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और रासायनिक खादों के दुष्प्रभावों से बचाता है। इसी गोबर का उपयोग गाँवों में घरों की दीवारों और फर्श को लीपने के लिए होता है, जो एक प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में काम करता है और वातावरण को शुद्ध रखता है। गाय का मूत्र भी अनेक आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल होता है और उसमें रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के गुण होते हैं। इस तरह, गाय न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
गाय का आध्यात्मिक महत्व तो उससे भी ऊँचा है। वैदिक काल से ही गाय को पवित्र माना जाता है और उसकी पूजा की जाती है। ऋग्वेद में गाय को 'अघ्न्या' अर्थात् 'जिसे मारना योग्य नहीं' कहा गया है। उसे विश्व की माता, रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री और सर्व देवों की पूजनीय के रूप में वर्णित किया गया है। हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। भगवान श्री राम, कृष्ण और अन्य अनेक देवी-देवताओं ने गायों का पालन किया है और उनके महत्व को स्वीकार किया है। भगवान कृष्ण तो गोपाल के रूप में जाने जाते हैं और उनका पूरा जीवन गायों से जुड़ा हुआ है। गोपूजा, गोभक्ति और गाय के मंत्रों के जाप से अनेक लोगों को आध्यात्मिक शांति और समृद्धि प्राप्त हुई है।
गाय न केवल हमें पोषण ही देती है, बल्कि यह पर्यावरण को भी शुद्ध रखने में अमूल्य योगदान देती है। खेती में बैलों का उपयोग जमीन को जोतने और अनाज उत्पन्न करने में सदियों से सहायक रहा है। इससे खेती खर्च में कमी आती है और रासायनिक खादों का उपयोग टाला जा सकता है, जो पर्यावरण के लिए अत्यंत फायदेमंद है। गाय का शांत, सौम्य और दयालु स्वभाव मानव जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। उसके दर्शन और उसकी नज़दीकी से मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव होता है। ऐसा माना जाता है कि गाय के सानिध्य में नकारात्मक विचार दूर होते हैं और सकारात्मकता का अनुभव होता है।
परंतु आजकल दुःख की बात यह है कि हमारे देश में गायों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। अंग्रेजी शासन के दौरान शुरू हुई गौहत्या आज भी अनेक तरह से जारी है। मांस भक्षण के लोभ में और चमड़े के व्यापार के कारण निर्दोष गायों की हत्या की जा रही है। यह मात्र एक मूक पशु की हत्या नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, हमारी परंपराओं और हमारे आध्यात्मिक मूल्यों का भी हनन है। हम यह भूल रहे हैं कि गाय हमारी संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है और उसकी रक्षा करना हमारा नैतिक कर्तव्य है।
भारतीय संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। जिस तरह एक माता अपने बच्चे का नि:स्वार्थ भाव से पालन करती है, उसे प्यार देती है और उसकी रक्षा करती है, उसी तरह गाय भी हमें जीवन भर अनेक उपयोगी वस्तुएँ प्रदान करती है। इसके बदले में हमें उसे प्यार और सुरक्षा देनी चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि गाय मात्र एक पशु नहीं है, बल्कि वह हमारी जीवनदात्री है।
आज अत्यंत आवश्यकता है कि हम गाय के अमूल्य महत्व को समझें और उसका संरक्षण करने के लिए सक्रिय कदम उठाएँ। सरकार को गौहत्या पर पूर्ण और कठोर प्रतिबंध लगाना चाहिए और गायों के लिए विशाल और सुविधायुक्त पांजरापोल और गौशालाओं की व्यवस्था करनी चाहिए, जहाँ वे शांति से, सुरक्षित रूप से और गौरव के साथ रह सकें। ये गौशालाएँ केवल गायों के लिए आश्रयस्थल ही नहीं, बल्कि गौ संवर्धन और गौ उत्पादों के अनुसंधान केंद्र के रूप में भी विकसित की जा सकती हैं। हम सबको व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से गाय को बचाने के प्रयास करने होंगे, क्योंकि गाय मात्र एक पशु नहीं है, वह हमारी संस्कृति का अमूल्य विरासत है और हमारे जीवन का आधार है।
अथर्ववेद के ४२१ ऋचाएँ गाय के महत्व का विस्तृत वर्णन करती हैं। हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने गौमाता के साथ वैदिक कार्य किए हैं, क्योंकि गाय तीनों भुवनों में पूजनीय है। चलिए हम सब मिलकर गौमाता का सम्मान करें और उसके संरक्षण के लिए दृढ़ संकल्प लें। इसी में हमारी संस्कृति का, हमारी परंपराओं का और संपूर्ण मानवता का कल्याण समाहित है। नमो गोमाता! जय गौमाता!