"श्रिनिका की डायरी से कुछ अनछुए पन्ने"
"मोहब्बत जब सिर्फ एहसास बन जाए,
तब शब्द उसकी परछाई हो जाते हैं।"
जब श्रिनिका चली गई....
तो उसके पीछे जो सबसे कीमती चीज़ मेरे पास बची..
वो थी उसकी डायरी।
नीले रंग की, पुराने रिबन से बंधी हुई, हल्के गुलाब की खुशबू से महकती एक डायरी....
जिसे वो हमेशा अपनी जान कहती थी।
कई रातें मैंने वो डायरी सीने से लगाकर रोते हुए बिताई हैं।
कई बार लगा जैसे उसके शब्दों में वो खुद छुपी बैठी हो..
मुस्कुराते हुए, रोती हुई, मुझे समझाती हुई, थपथपाती हुई।
आज.... मैं वही पन्ने आपसे साझा कर रहा हूँ ..
वो जो केवल मेरे और उसकी आत्मा के बीच थे।
डायरी पन्ना – 16 जनवरी 2021
"Shrishay के नाम...."
"पता नहीं ये कैंसर मेरा शरीर खा रहा है या मेरी हिम्मत..
पर जब भी तुम मेरी हथेली पकड़ते हो ना, तो लगता है मौत भी झूठ बोल रही है, और मैं जीने के लिए फिर हिम्मत जुटाती हूं, मुझे अपनी सारी ज़िंदगी तुम्हारे साथ बितानी है श्रीशय, मै जीना चाहती हूं पर ये कैंसर मेरी जान ले रहा।
अगर मैं न रहूं.. तो मेरी बातों को हवा में मत बहा देना।
मेरी मुस्कान को किसी बच्चे की हँसी में ढूंढ लेना" जिंदगी को फिर से नए सिरे से शुरू करना श्रीशय, तुम्हे जीना है मेरे लिए, हमारे सपनो के लिए, हमारे मां पापा के लिए।
उसने ऐसे शब्दों में दर्द को बया किया जिसे मैं महसूस कर रहा था आंखों में आंसू थे कि मैं उसे बचा नही पाया।
वो दर्द से तड़पती रही और मेरी नजरों के सामने चली गई।
यह पत्र श्रिनिका ने अस्पताल में भर्ती होने के एक दिन बाद लिखा था।
उसे मालूम था कि शायद ज़िंदगी लंबी नहीं चलेगी, लेकिन फिर भी वह मुझे कमज़ोर नहीं होने देना चाहती थी।
उसकी ख्वाहिश थी .. उसकी याद मेरे लिए मोहब्बत बने, बोझ नहीं।
डायरी पन्ना – 27 जनवरी 2021
"बारिश वाली बात.…"
"Shrishay, जब भी बारिश आए ना....
छत पर जाकर भीगना....
क्योंकि बारिश में मैं सबसे ज़्यादा खुद को महसूस करती हूँ।
अगर कभी तुम्हें मेरी बहुत याद आए ....
तो बारिश में मुझे ढूंढ लेना।
मैं वहीं मिलूँगी .... तुम्हारे पास.... बूंदों में।"
तुम मुझे महसूस करना श्रीशय, बारिश की हर एक बूंद में,
मै सिर्फ तुम्हारी हूँ श्रीशय।
यह पढ़ते ही मैं फूट-फूट कर रोया था।
अब हर बारिश में मैं छत पर जाता हूँ....
भीगता हूँ.... और उसकी आवाज़ कानों में गूंजती है।
उसके कहे शब्द मेरी आत्मा को भिगो देते हैं।
डायरी पन्ना – 11 फरवरी 2021
"मेरा सपना .... अब तुम्हारा है श्रीशय"
"मै कहती हू ना, एक दिन NGO खोलेंगे।
जहाँ हर बच्चा खुश हो, हर कहानी में उम्मीद हो।
तो सुनो.... जब मैं न रह जाऊ।
तो मेरा नाम रखना उस NGO में .... ताकि मैं भी हर दिन वहाँ रह सकूं।
मैं चाहती हूँ कि मेरा जाना, किसी का जीना बन जाए।"
‘Shrinika Smiles’ का नाम यही से आया।
यह सिर्फ NGO का नाम नहीं, उसकी आख़िरी ख्वाहिश थी
जो मैंने वादा करके पूरी की।
डायरी पन्ना .... अंतिम शब्द
"अगर ये मेरी आखिरी डायरी है...."
"तो इसे मत बंद करना..
इसे खोलते रहना, पढ़ते रहना..
क्योंकि इसमें मैं जिंदा हूँ।
तुम्हारे शब्दों में मैं हमेशा बोलती रहूँगी।
तुम्हारी हर सांस में, हर मुस्कान में .. मैं रहूँगी।
और हाँ, जब कोई पूछे कि क्या श्रिनिका को प्यार हुआ था?
तो कहना ....
'हाँ, उसे हुआ था.... और उसने उसे जी लिया था।"
क्योंकि उसका प्यार अंतिम सांस तक उसके साथ था।
यह लाइन मैंने NGO के मुख्य द्वार पर पत्थर पर लिखवा
दी है।
ताकि हर बच्चा, हर आने वाला इंसान, हर स्वेच्छासेवक जान सके ....
ये जगह एक ऐसी लड़की के प्यार से बनी है, जिसने आखिरी साँस तक मोहब्बत की।
आज भी....
जब मैं डायरी के पन्ने पलटता हूँ ..
हर पन्ना एक अहसास है,
हर शब्द एक वादा,
हर भावना एक प्रार्थना है।
मैं उसे हर दिन जीता हूँ ..
उसकी इच्छाओं को पूरा कर के,
उसकी मुस्कान को बच्चों में देख कर।
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