बैठना और बोलना सीखें
बैठना और बोलना एक कला है। यदि विद्यार्थी ने इस कला को जीवन के प्रारंभिक वर्षों में ही सीख लिया तो उसका जीवन सफल हो जाएगा।
बैठने और बोलने के तरीके से ही समझा जा सकता है कि मन में सुकून है या बेसब्री। कबीर कहते हैं
मीठी वाणी बोलिए मन का आपा खोय
औरों को शीतल करें आपहुं शीतल होय।।
तू बैठना और बोलना सीख जा
इंसान बन जाएगा
समझ ले एक बात तू जिंदगी में
तेरे बैठने और बोलने के सलीके से
तेरे खानदान की पहचान होगी।।
खेद है हम सब कुछ करते हैं परंतु बैठने और बोलने की कला को नहीं सीखते।
देखा गया है कि शिक्षक जब कक्षा में जाता है तो उसे पढ़ाने की जल्दी होती है। इसके पीछे केवल एक ही सिद्धांत है, दिऐ पाठ्यक्रम को दिए गये समय सिमा में पूरा करना है।
परंतु शिक्षक को कक्षा में जाते ही सबसे पहले विद्यार्थियों को सीधे बैठने की कला को सीखना चाहिए । विद्यार्थी यदि सीधा बैठेगा तो उसकी स्मरण शक्ति और पाठ पर ध्यान देने की शक्ति बढ़ जाएगी। बैठते समय रीड की हड्डी हमेशा सीधी होनी चाहिए। पुस्तक आंखों से तैंतीस सेंटीमीटर दूर रखना चाहिए।
ध्यान रहे जब हम बैठते हैं तो हमारे शरीर की संरचना एक पिरामिड के समान बन जाती है या पिरामिड की तरह बन जाती है। पैरामिड में ऊर्जा का संचार नीचे से ऊपर की ओर होता है। ध्यान करते समय भी साधक ध्यान को पहले मूलाधार में लगता है और फिर ऊर्जा का संचरण नीचे से ऊपर की ओर होता है। यह तभी ही सकता है जब साधक बैठने की कला को जानता हो।
यदि बैठने की पद्धति या विधि सही नहीं है तो एकाग्रता भी सही नहीं होगी। बहुदा देखा होगा कि एक सैनिक जब बैठता है तो वह अपनी कमर और हाथ सीधे करके बैठता है। इससे उसकी एकाग्रता बनी रहती है। ध्यान देने योग्य बात है कि फील्ड मार्शल के एम करियापा की कमर बुढ़ापे तक सीधी रही। वे हमेशा सीधे खड़े होते थे और सीधे बैठते थे।
गांव में एक कहावत है 'बैठना सीख जाओ'। इन शब्दों का बहुत गहरा अर्थ है। भारत में प्राचीन काल से ही बैठने की विधि को सबसे अधिक महत्व दिया जाता था। यहां तक की बैठने के आसान हुआ करते थे।
कुछ विद्यार्थी सिद्ध आसन में बैठते थे, कुछ पद्म आसन में बैठते थे और कुछ वज्रासन में बैठे थे। इन तीनों ही आसनों में रीड की हड्डी हमेशा सीधी रहती है। वज्रासन ही केवल एक ऐसा आसान है जिसे भोजन के पश्चात भी किया जा सकता है।
यह बात ध्यान रखने योग्य है कि यदि बैठते समय रीड की हड्डी सीधी ना हो तो जवानी में ही बुढ़ापा आ जाएगा। इसलिए हमारे प्राचीन गुरु हमेशा कक्षा में आते ही सबसे पहले विद्यार्थियों को बैठना सीखाते थे।
बैठना केवल कक्षा तक ही सीमित न हो। बैठना जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काम आता है।
यदि विद्यार्थी यह सोचता हैं कि बैठने का तरीका केवल कक्षा तक ही सीमित है तो उसका यह भ्रम है।
यहां पर बैठने का व्यापक अर्थ लेना चाहिए। कक्षा तक ही सीमित न रखें।
समाज में भी बैठने और बोलने का एक तरीका होता है। कुछ ऐसे सामाजिक नियम है जहां पर हमको अपने से बड़ों के सामने नहीं बैठना चाहिए, उनसे खड़े होकर ही बात करनी चाहिए, समाज में दूसरा नियम यह है कि चारपाई पर हमसे कोई वरिष्ठ व्यक्ति बैठा है तो हम को उसके पैरों की ओर बैठना चाहिये न कि उसके सिरहाने की ओर। जब दो बड़े व्यक्ति बात कर रहे हों तो अच्छा होगा कि आप बीच में बात ना करें। दूसरों की बातों को कभी न सुनें। दूसरों की बातों को सुनकर मन की एकाग्रता में कमी आती है और मंन विचलित होता है। इसलिए जब तक आवश्यक ना हो दूसरे की बातों को सुनना नहीं चाहिए।
हमको अपने प्राचार्य शिक्षक वरिष्ठ जनों से खड़े होकर ही बात करनी चाहिए। केवल खड़े होकर ही नहीं अपितु अपने शरीर का पूरा संतुलन भी हमें बनाए रखना चाहिए। ये ना हो कि हम हिलते डुलते या अपने शरीर को इधर से उधर हिलाते हुए वार्ता करें । ऐसा नहीं होना चाहिए।
कुछ देशों में इस प्रकार की शारीरिक भाषा को अभद्र समझा जाता है। रूस तथा पश्चिमी यूरोप के अन्य देशों में आलस्य से चलने को अशुभ माना गया है। वे ऐसे ही चलने के तरीके को बीमारी का लक्षण समझते हैं। इसलिए जब भी आप सड़क पर चलें चुस्ती से चलें। आपको देखने वाला व्यक्ति यह कहे कि अभी शरीर में जान है।
शरीर की एक भाषा होती है जिसे आजकल अंग्रेजी में बहुत प्रयोग किया जाता है। उसे बॉडी लैंग्वेज कहते हैं। आवश्यक है कि जब आप किसी से वार्ता कर रहे हों तो अपनी शारीरिक भाषा को बनाए रखें या बॉडी लैंग्वेज की ओर ध्यान अवश्य दें।
यदि आप किसी बड़े अधिकारी के पास बैठे हैं या अपने प्राचार्य के पास बैठे हैं तो आपको अवश्य ध्यान देना चाहिए कि आप अनावश्यक रूप से अपने पैरों को या हाथों को न हिलाएं। ना हीं उंगलियो के नाखूनों को चबाऐ, ना अपने बालों पर हाथ फेरते रहे हैं। अपनी उंगलियों को भी ना चटकाएं।अनावश्यक रूप से अंगों को हिलाना या इधर-उधर चलाना, यह बैठने का तरीका नहीं है। ये मानसिक कमजोरी का लक्षण है। कुछ लोग अपनी रिस्ट वॉच को बार-बार इधर से उधर करते रहते हैं। यह भी बैठने के तरीके के खिलाफ है। कुर्सी पर बैठते समय आप अपने पैरों को अधिक चौड़ा कर ना बैंठे, घुटने को घुटने के ऊपर रख कर ना बैठे। पैर को पैर ऊपर इस प्रकार न रखें कि आप के जूते का तलवा आप के आदरणीय को दीखे। यह एक प्रकार का अपमान है। इस प्रकार बैठने का तरीका शिष्टाचार के विरुद्ध है। यह एक गंभीर अभद्रता है। आप सावधान रहें।
वार्ता करते समय आपको आंख से आंख मिलाकर वार्ता करनी चाहिए। यदि आप स्त्री से बात कर रहे हैं तो आप अपनी आंखों के ऊपर नियंत्रण रखें। गंभीर तथा सम्मानजनक मुद्रा से वार्ता करें।
आज के समाज में एक और बीमारी फैल रही है और वह है कि अपने मोबाइल को हमेशा देखते रहना। यदि आपके घर में कोई मेहमान आ गया है या आपसे कोई मिलने आ गया है तो यह आवश्यक है कि आप अपने मोबाइल को एक तरफ रख दें और आगंतुक से चर्चा करते रहें। बहुदा देखा गया है की घर में मेहमान आ गया है और आप अपने मोबाइल में व्यस्त हैं। यह मेहमान नवाजी नहीं है। यह हमारे बैठने के तरीके से बिल्कुल विरुद्ध है। अच्छा होगा कि आप मेहमान को ना बुलाए।
जब हम कहते हैं कि बैठना सीख जाओ तो यह अवश्य समझ लेना चाहिए की हम को बैठाना कक्षा तक सीमित नहीं रखना है। हमको जीवन की प्रत्येक गतिविधि के ऊपर ध्यान देना चाहिए।
बैठने के ऊपर काफी कुछ कह दिया। अब थोड़ी चर्चा बोलने के ऊपर करली जाए। लेख के प्रारंभ में ही कबीर का दोहा लिखा गया है, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमारे बोलने से और हमारे बैठने से हमारा परिचय मिलता है।
बोलने एक स्तर होता है, वाणी में एक ठहराव होता है। इसीलिए टीवी और रेडियो पर जितने भी समाचार पढ़ने वाले होते हैं उनकी वाणी का परीक्षण होता है । संगीतकारों को, संस्कृत के मंत्र पढ़नेवलों को बोलने की कला सिखाई जती है।
बोलते समय आपकी वाणी में दम होना चाहिए। बोलते समय सुनने वाले को ऐसा ना लगे कि आप बोलते समय चिल्ला रहे हैं। आपको अपनी वाणी के ऊपर पूरा संयम होना चाहिए। बोलने का एक लेहजा होता है, बोलने मे एक मिठास होनी चाहिए। बोलते समय आपकी भाषा मजी हुई होनी चाहिए ,उसमें एक प्रकार का निखार होना चाहिए।
कहते हैं कि भरत जी जब बोलते थे तो ऐसा लगता था की फुल निकल रहे हैं ।
आपको अपने बोलने के तरीके को समय तथा परस्थिति के अनुसार बदलने का तरीका आना चाहिए। ऐसा ना हो कि गुस्से के समय आपकी वाणी मीठी हो जाए। ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए। गुस्से के समय आपके शब्दमे कठोरता होनी चाहिए।
तो बोल ऐसे पूरा, जहां सुन ने आए।
तो बैठ एसे पूरा जहां सीखने आए।।
LM SHARMA