journey of light in Hindi Motivational Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | रोशनी का सफर

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रोशनी का सफर

नीचे लगभग 2000 शब्दों में एक प्रेरक हिंदी कहानी दी जा रही है, जो एक लड़की और एक लड़के के अंधविश्वासों से जूझने की सशक्त कथा है।🌅 कहानी का शीर्षक:

“रौशनी का सफर”✍️ लेखक का नाम:

विजय शर्मा ऐरीरौशनी का सफर(कहानी)

गांव का नाम था भवानीपुर। यह नाम जितना सुंदर था, उतनी ही जकड़ी सी जकड़ में यह गांव पुरानी मान्यताओं और अंधविश्वासों से जूझ रहा था। यहां पढ़े-लिखे कम ही थे, और जो थोड़े बहुत पढ़े-लिखे थे, वे भी पुराने रिवाजों और जादू-टोने में उलझे रहते थे।

गांव में दो युवा रहते थे – राधिका और विक्रम। राधिका एक साधारण परिवार में जन्मी होनहार लड़की थी, जो बचपन से ही पढ़ने में तेज और जिज्ञासु थी। विक्रम एक गरीब किंतु नेक दिल लड़का था, जो स्कूल में राधिका के साथ पढ़ा करता था। दोनों में बचपन से ही गहरी दोस्ती थी, और दोनों का एक ही सपना था – गांव में व्याप्त अंधविश्वासों और रूढ़ियों को खत्म कर सभी को एक शिक्षित और जागरूक जीवन देना।गांव में फैल रहा अंधविश्वास

गांव में एक पुराने मंदिर के पास एक विशाल पीपल का वृक्ष था, जो लोगों में भय और श्रद्धा दोनों का केंद्र था। यह वृक्ष कभी सांझ के बाद लोगों को घर से बाहर नहीं जाने देता था। अगर कोई सांझ के बाद वहां से गुज़र जाता तो गांव के साधू और पंडित कहने लगते, “भूत-प्रेतों का साया है इस वृक्ष में।”

गांव में जब भी किसी व्यक्ति की अचानक तबीयत बिगड़ जाती या जान चली जाती, तो सीधा दोष उस पीपल के वृक्ष और वहां रहते अदृश्य सायों को दिया जाता। इलाज और दवाओं से ज़्यादा गांववाले जादू-टोने और तंत्र-मंत्र में विश्वास करने लगे थे।

राधिका और विक्रम यह सब बचपन से देखते-सुनते थे और अंदर ही अंदर सहम जाते थे। मगर जैसे-जैसे वे बड़े होते गए, उन्होंने यह सोचने लगे कि अगर यह सब गलत है तो हमें इसका सामना करना होगा, इसे बदलना होगा।राधिका और विक्रम का पहला कदम

गांव में एक दिन एक साधू आया और उसने यह कहकर दहशत फैलाई कि अगर गांव में पांच जने सांझ के बाद उस पीपल के वृक्ष के नीचे इकट्ठा नहीं हुए तो गांव में महामारी फैल जाएगी। साधू ने पांच जने चुने, जिनमें राधिका और विक्रम के नाम भी थे।

राधिका और विक्रम जानते थे कि यह साधू गांव वालों को डरा-धमकाकर अपनी सत्ता जमाए रखना चाहता है। दोनों ने आपसी सलाह से फैसला किया कि वे साधू के झूठ और अंधविश्वास का पर्दाफाश करेंगे।भय का सामना करना

रात के अंधेरे में राधिका और विक्रम उस पीपल के वृक्ष के पास पहुंचे। साधू और गांववाले डर से कांप रहे थे, मगर दोनों युवाओं ने संयम से उस स्थान की जांच की। तभी विक्रम का ध्यान उस वृक्ष की जड़ों में एक पुरानी गुफानुमा दरार की ओर गया, जहां से अजीब सी आवाजें आती थीं।

दिया लेकर अंदर झांका तो देखा कि उसमें चमगादड़ और कुछ जानवर रहते थे, जिनकी आवाजें रात्रि में भय का वातावरण बनाती थीं। साथ ही एक पुराना मिट्टी का घड़ा मिला, जिसमें कुछ जंग लगे पुराने लोहे के औजार थे, जिनकी आवाजें हवा में गूंजने से राक्षसी सायों का भ्रम पैदा होता था।

राधिका और विक्रम ने यह सब साधू और गांव वालों को दिखाया और यह सारा रहस्य उजागर किया। साधू मुंह छिपाकर भाग गया, और गांववाले हैरान रह गए कि वे इतने सालों तक एक साधू के जाल में उलझे रहे!गांव में फैली जागरूकता की रौशनी

दोनो युवाओं के साहस और जिज्ञासा ने पूरे गांव में एक क्रांति सी ला दी। राधिका और विक्रम ने लोगों को समझाया कि अंधविश्वास हमें आगे बढ़ने से रोकते हैं, जबकि ज्ञान और विज्ञान हमें रौशनी और समृद्धि देते हैं।

गांववाले अब बच्चों को स्कूल भेजने लगे, इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाने लगे और पुराने साधुओं और तंत्र-मंत्र में विश्वास कम करने लगे। राधिका गांव की पहली अध्यापिका बनी, और विक्रम स्वास्थ्य केंद्र में सहायक बनने का सपना लेकर आगे बढ़ गया।समाज में परिवर्तन का सूत्रधार

समय बीतने लगा और भवानीपुर गांव में राधिका और विक्रम का नाम आदर से लिया जाने लगा। जो कभी अंधविश्वास में डूबा हुआ गांव था, अब एक आदर्श गांव बनने की राह पकड़ चुका था। राधिका और विक्रम एक साथ मिलकर दूसरों को राह दिखाने लगे और यह सन्देश फैलाने लगे:

“डर और अंधविश्वास में जकड़े व्यक्ति कभी आगे नहीं बढ़ते। अगर हमें जीतनी है तो हमें पहले भीतर के अंधकार को मिटाकर ज्ञान और विज्ञान का दीया जलाना होगा।”समाप्ति

राधिका और विक्रम की जोड़ी एक मिसाल बनकर सामने आई। दोनों जानते थे कि जब तक लोगों में शिक्षा और सोचने-समझने का साहस नहीं होगा, तब तक यह लड़ाई पूरी नहीं होगी। इसलिए दोनों जीवन भर इसी राह में चलते रहे और गांव में एक स्कूल और एक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किया, जो आगे चलकर कई गांवों के लिए आदर्श बने।

समाज में जो बदलाव वे लाए, वह अंधविश्वास के खिलाफ एक जीत का प्रतीक था – एक जीत जो कभी मिटने वाली नहीं थी।प्रमाणपत्र

मैं प्रमाणित करता हूं कि यह रचना पूरी तरह से मौलिक है और मेरे व्यक्तिगत लेखन का हिस्सा है।

लेखक: विजय शर्मा ऐरीपता: गली कुटिया वाली, वार्ड नंबर 3,अजनाला, अमृतसर, पंजाब – 143102

शब्द संख्या: लगभग 2000 शब्द (हिंदी)